For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हाँ..! कुछ तो बाकी है (अतुकांत)

आज कुछ....

आहट सी हुई, उस बंद

वीरान अन्धेरें से कोने में

जहाँ कभी

खुशियों की रौशनी थी

क्यों..?

आज उस बेजान लगने वाली

बंजर भूमि में

नमी सी आ गई

और दिखने लगा

एक आशा का अंकुरण

उस अंकुर में

जो कभी

हमने मिल कर

बोया था

हमारे वर्तमान और भविष्य

की छाँव

और फल के लिए

हाँ..! कुछ तो बाकी है

जो अमिट रहा

शायद....!

यही  तो रिश्ता होता है,

जो कि बड़ी

मुश्किलों से बनता है...

           जितेन्द्र'गीत'

   (मौलिक व् अप्रकाशित)

.

 

Views: 458

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 3, 2014 at 11:29am

आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु आपका हार्दिक आभारी हूँ आदरणीया प्रियंका जी

सादर !

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 3, 2014 at 11:29am

रचना पर आपकी सराहना हेतु आपका ह्रदय से आभार, आदरणीय डा. गोपाल जी .स्नेह बनाये रखियेगा

सादर !



Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 2, 2014 at 10:31pm

आपने रचना को मान दिया, आपका ह्रदय से आभार आदरणीय शुशील जी. स्नेह बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 2, 2014 at 10:26pm

आपकी बधाई सहर्ष स्वीकार है आदरणीय लक्ष्मण जी, स्नेह बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 2, 2014 at 10:25pm

आपके उत्साहवर्धक अनुमोदन हेतु आपका ह्रदय से आभारी हूँ आदरणीय शिज्जू जी. स्नेह बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by Priyanka singh on July 2, 2014 at 5:12pm

अच्छी रचना .... बधाई आपको 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 2, 2014 at 3:01pm

जीतू जी

बहुत सुन्दर भाव i

हाँ..! कुछ तो बाकी है

जो अमिट रहा

शायद....!

यही  तो रिश्ता होता है,

जो कि बड़ी

मुश्किलों से बनता है...

Comment by Sushil Sarna on July 2, 2014 at 11:29am


एक आशा का अंकुरण
उस अंकुर में
जो कभी
हमने मिल कर
बोया था
हमारे वर्तमान और भविष्य
की छाँव
और फल के लिए
हाँ..! कुछ तो बाकी है
जो अमिट रहा
शायद....!
यही तो रिश्ता होता है,
जो कि बड़ी
मुश्किलों से बनता है...
…………… बेहद खूबसूरत भावों की दिलकश अभिव्यक्ति .... सीधे शब्दों में सीधी बात .... इस सुंदर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय जितेन्द्र जी

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 2, 2014 at 10:50am

आ०  जीतेन्द्र  भाई रिश्तों की बेहतरीन व्याख्या करती इस रचना के लिए हार्दिक बधाई l


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 2, 2014 at 8:15am

वाह आदरणीय जितेन्द्र भाई बहुत खूबसूरत रचना है रिश्तों की बड़ी अच्छी व्याख्या की है आपने बहुत बहुत बधाई

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
18 hours ago
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
yesterday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service