For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कभी का मर चुका हूँ मैं महज साँसें ही चलती है

मेरी पथरा गयी आँखें मगर फिर भी बरसती हैं

के अक्सर खींच लाती है मुझे लहरों की ये मस्ती
मगर मँझधार में लाकर ये लहरें क्यों मचलती हैं

बहुत है दूर वो मुझसे नहीं आना कभी उसको

मगर दीदार को आँखें न जाने क्यों तरसती हैं

कहीं गुमनाम हो जाऊँ ये शहरा छोड कर मैं भी

मगर दुनियाँ तेरे जैसी तेरे जैसी ही बस्ती हैं

मेरा ये बावफा होना किसी को रास ना आया
सभी की आदतें आपस में कितनी मिल्ती जुल्ती हैं

उमेश कटारा

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 372

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 7, 2014 at 1:04am

इता दोष के कारण मतला के खारिज़ होने का खतरा है, आदरणीय. 

शहरा को अवश्य ही आप सहरा कहना चाहते होंगे. अन्यथा ये शब्द मेरे लिए नया है.

शुभ-शुभ

Comment by Santlal Karun on July 4, 2014 at 5:31pm

आदरणीय कटारा जी, आप ने बड़ी उम्दा ग़ज़ल कही है | ...हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ !

Comment by विजय मिश्र on June 23, 2014 at 12:44pm
कसीस भरी इन पंक्तियों केलिए अनेक धन्यवाद कटाराजी

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 22, 2014 at 8:37pm

आदरणीय उमेश भाई , गज़ल बहुत लाजवाब कही है , आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥ एक दो ज़गह टाइपिंग की गलती हो गई है , सुधार लीजियेगा ।

1- मझे लहरों की ये मस्ती  ---- मुझे कर लीजियेगा  2- सभी का आदतें   -- को -- सभी की आदतें  , कर लीजियेगा ॥सादर !!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Sunday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Friday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service