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Umesh katara's Blog (67)

हर आदमी रो रहा है

अभी अभी जन्मे हो

फिर भी इतना रोना धोना

बात क्या है

क्यों रो रहे हो बच्चे ?

मैंने पूछ लिया

एक प्रश्न बेवजह ।।

बच्चा चमत्कारी था

बोल पडा झट से

क्यों नहीं रोऊँ मैं

इस दुनिया में आके

जबकि इस दुनिया में

गरीब रो रहा है

अमीर रो रहा है

बेऔलाद रो रहा है

औलाद वाला रो रहा है

इस दुनिया में सब लोग

मेरी तरह नंगे हाल आये

फिर भी सब के सब रो रहे हैं

जो हँस रहा है

वो भी रो रहा है

जो रो रहा है वो भी रहा है

जब पूरी…

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Added by umesh katara on October 18, 2015 at 9:49am — 4 Comments

यादों को मंजूर नहीं है तेरा यूँ आना जाना

तुम मेरे हो या कोई पराये
निश्चित तो कर लेने दो
मेरी सूखी आँखों में
कुछ पानी तो भर लेने दो
या तो आकर ठहर ही जाओ
या फिर दूर चले जाओ
यादों को मंजूर नहीं है
तेरा यूँ आना जाना

उमेश कटारा
मौलिक व अप्रकाशित

Added by umesh katara on July 19, 2015 at 8:54am — 3 Comments

फ़ैसला

मैं चुप था

मगर शामिल नहीं था

तुम्हारे फासलों के

फ़ैसले में



मेरी चुप्पी का

हर एक अर्थ लगाया था

तुमने अपनी समझ से



मेरे चुप रहने का अर्थ

तुमने उस दिन भी

गलत समझा था

जब कि शिरू हो रही थी

जिन्द्गी की यात्रा



और मेरी चुप्पी का अर्थ

आज भी गलत ही है

जबकि समाप्ति की ओर है

जिन्द्गी की यात्रा



क्योंकि तुमने

मेरी चुप्पी का हमेशा

वो अर्थ लगाया

जो अनुकूल था

तुम्हारे लिये



उमेश… Continue

Added by umesh katara on July 5, 2015 at 12:26pm — 5 Comments

अदालत ने मेरा क़ातिल मुझे ठहरा दिया साहिब

1222 1222 1222 1222

---------------------------------------

मुहब्बत है कभी जिसने मुझे कहला दिया साहिब

मगर फिर घाव उसने ही बहुत गहरा दिया साहिब 



जरूरत ही नहीं होती मुहब्बत में व़फाओं की 

के बच्चों की तरह उसने मुझे बहला दिया साहिब



सड़क पर भूख से बेचैन माँ आँसू बहाती है

निवाला बेटे को जिसने ,कभी पहला दिया साहिब

 

मुहब्बत मिट नहीं पायी दीवारों में चुनी फिर भी

रक़ीबों ने जमाने से बहुत पहरा दिया साहिब



बहुत छेड़ा है दुनिया ने खुदा की पाक…

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Added by umesh katara on May 20, 2015 at 4:47pm — 10 Comments

ग़ज़ल -उमेश कटारा

2122  2122 2122

--------------------------------------------

मर्ज बढ़ता जा रहा अब क्या रखा है

बेअसर होती दवा अब क्या रखा है



ढ़ूँढ ले अब हम सफर कोई नया तू 

मुस्करादे कब कज़ा अब क्या रखा है



रच रहे हम साजिशें इक दूसरे को 

साथ चलने में बता अब क्या रखा है



साथ आना जाना भी क्यों महफिलों में 

बन्द कर ये सिलसिला अब क्या रखा है



शहर पूरा है, मगर आया नहीं तू

बिन मिले ही मैं चला अब क्या रखा है



उमेश कटारा

मौलिक व…

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Added by umesh katara on May 9, 2015 at 9:52am — 13 Comments

रेल की पटरी जैसे चलती ,साथ चले हैं हम दोनों

पग पग तेरा मान करूँ 
अपमान मेरा मत कर तू भी
एक दिन तो सबको मरना है
अभिमान जरा मत कर तू भी
जीवन की आँख मिचौली में
ठहरूँ पल भर मैं पलक तले 
क्या है भरोसा कल सुबह तक 
कौन बचे और कौन जले
कौन मिलेगा बीच सफर में
साथ मेरे ही चलता जा
आयू भी आधी निकल गयी 
हाथ मले तो मलता जा
इक दूजे को देते रहें है
जाने क्यों हम गम दोनों
रेल की पटरी जैसे चलती
साथ चले हैं हम दोनों

उमेश कटारा
मौलिक व अप्रकाशित




Added by umesh katara on May 7, 2015 at 7:20am — 8 Comments

ग़ज़ल --उमेश-------------पत्थरों के शहर में हुआ हादसा

बन्द कर दो सितम अब खुदा के लिये

जुल्म कितना करोगे अना के लिये



कत्ल करदे मगर यूँ न बदनाम कर

हाथ उठने लगे हैं दुआ के लिये



इस कदर मुफलिसी दे न मेरे खुदा

पास पैसे न हों जब दवा के लिये



चींखती रह गयी बेगुनाही मेरी

है गुनाह भी जरूरी सजा के लिये



बाद जाने के तेरे बचा कुछ नहीं

जी रहा हूँ फ़कत मैं क़जा के लिये



पत्थरों के शहर में हुआ हादसा

मर गया इश्क देखो व़फा के लिये



उमेश कटारा

मौलिक व अप्रकाशित…

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Added by umesh katara on May 3, 2015 at 9:00am — 10 Comments

माँ का टोटका

बचपन में
हजार बुरी बलाओं पर 
पर भारी था
मेरी माँ का टोटका
माँ के हाथों से
माथे पर छोटा सा
काला टीका लगते ही
भयमुक्त हो जाता था 
एक असीम ताकत 
दे जाता था मन को
वो ममता में लिपटा 
माँ का टोटका
अब तो मैंने कैसे कैसे 
कृत्यों से कर लिया है
पूरा मुँह काला
मगर फिर भी 
भय से व्याप्त मन 
हमेशा व्याकुल रहता है

मौलिक व अप्रकाशित
उमेश कटारा



Added by umesh katara on April 29, 2015 at 6:28pm — 16 Comments

खुदा से भी मिला हूँ मैं

भला हूँ मैं बुरा हूँ मैं
मुहब्बत का ज़ला हूँ मैं 
----
खुदा भी साथ है उसके
खुदा से भी मिला हूँ मैं
-----
बिना ही तेल के जलता
रहा हूँ वो दिया हूँ मैं
-----
न पूछो हाल कैसा है
न पूछो क्यों जीया हूँ मैं
-----
चला जा तू दगा देकर
मगर फिर भी तेरा हूँ मैं
-----
बिना सावन बरसती है 
सदा ही वो घटा हूँ मैं

उमेश कटारा
मौलिक व अप्रकाशित

Added by umesh katara on April 24, 2015 at 6:43pm — No Comments

मन्दिर का घंटा



बिना लाग लपेट के 

बिना पाखण्ड के 

सुन लेता है 

समझ लेता है

ईश्वर मन की बात

जान लेता है आत्मा के भाव

फिर भी जाने क्यों 

मन्दिर का घंटा जोर जोर से

तीन बार बजाने पर हr

प्रार्थना पूर्ण होने का

पूर्ण सा अहसास होता है

आत्म-मन -चित्त को  

बडा ही भ्रमित है 

मेरा अल्पज्ञान 

ये सोच सोचकर 

भारहीन मौन प्रार्थना को

ईश्वर तक पहुँचाने के लिये 

मन्दिर के घंटे की आबाज 

का  भारी भरकम

भार क्यों लपेटा जाता है ?



मौलिक व…

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Added by umesh katara on April 23, 2015 at 9:01am — 21 Comments

बिना अपना बनाये ।।

लोग पहले
रिश्ता बनाते हैं
उसके बाद
रिश्तों की दुहाई देकर
दिल दुखाते हैं।।

मगर मैं
आश्चर्यचकित हूँ
तुम्हारे हुनर से
क्योंकि तुमने 
अपनों से भी बढ़कर
दिल दुखाया है मेरा
बिना रिश्ता बनाये
बिना अपना बनाये ।।

उमेश कटारा
मौलिक व अप्रकाशित



Added by umesh katara on April 17, 2015 at 10:22pm — 10 Comments

ग़ज़ल --

2122 2122 2122 212

---------------------------------------------

आँसुओं से भीगता है रोज अपना बिस्तरा

आपको भी दूर जाकर क्या पता है क्या मिला



एक अरसा हो गया है आपसे हमको मिले

पूछते हैं लोग फिर भी हाल हमसे आपका



खार बनकर चुभ रहे हैं फूल यादों के हमें

आपको भी मिल रही है क्या मुहब्बत की सजा



माँगने पर आजकल तो मौत भी मिलती नहीं

फिर मुहब्बत क्या मिलेगी लाजिमी है भूलना



शर्त पर करना मुहब्बत आपकी फितरत रही

खेलना मासूम दिल से…

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Added by umesh katara on April 13, 2015 at 10:00pm — 22 Comments

अभी तुम्हारे दिल में भीड बहुत है

अभी तुम्हारे दिल में 

भीड बहुत है

काफी शोर-शराबा है

नशा -ए -दौलत का  

अदा-ए-हुस्न का 

जोश-ए-जवानी का

आना जाना भी बहुत है

दिल फेंक प्रेमियों का

अभी तुम भी परेशान हो 

सोच-सोचकर 

किसको दिल में रखूँ 

किसे नहीं 

..

मगर 

जब ये भीड छट जाये

दिल हो जाये 

खाली खाली

उस वक्त मुझे कहना 

अपने दिल में रहने को 

मैं रहुंगा तुम्हारे दिल में

क्योंकि

मुझे अकेलापन 

बहुत पसन्द है



उमेश कटारा…

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Added by umesh katara on April 12, 2015 at 2:30pm — 14 Comments

कुत्ते की बेइज्जती

कुत्ते की बेइज्जती   

------------------------------------                                                                                                                                                                                                                                                    

एक बार सब मिलकर

हाथ जोडो

और कुत्ते की वफादारी को बेइज्जत

करना छोडो                                                                

कुत्ता जो एक टूक रोटी…

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Added by umesh katara on April 9, 2015 at 8:13am — 16 Comments

तुम नदी के तरह समर्पण तो करो

मैंने हमेशा,तुमको

एक शान्त ,स्थिर,

धैर्य चित्त रखते हुये 

एक समुद्र की तरह चाहा है

मगर क्या तुमने किया 

खुद को नदी की तरह 

मुझको समर्पित

कदाचित नहीं ।।



नदी ,समुद्र में कूद जाती है

खुद का अस्तित्व मिटाकर

मगर अमर हो जाती है

समुद्र की मुहब्बत बनकर

हमेशा के लिये 

और बहती रहती है 

युगों युगों तक समुद्र 

के हृदय में ।।



मैं समुद्र हूँ 

तुम नदी हो

मैं तुम्हें मनाने भी चला आऊँ

मगर मेरे…

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Added by umesh katara on April 7, 2015 at 8:00am — 10 Comments

गजल --तू मुस्करा के देख ले दिल से लगा के देख ले

2212  2212
तू मुस्करा के देख ले
दिल से लगा के देख ले

झुकना नहीं मंजूर अब
कोई झुका के देख ले

है नाम तेरे जिन्दगी
बस आजमा के देख ले

ये खेल है दिलकस बहुत
बाजी लगा के देख ले

बुझते मुहब्बत के चिराग
अब तो जला के देख ले

कोई नहीं हमसा यहाँ 
नजरें घुमा के देख ले

मौलिक व अप्रकाशित
उमेश कटारा

Added by umesh katara on April 3, 2015 at 8:10pm — 18 Comments

" हम " का बार बार बिखरना

चैन से रहते थे कभी

तीन कमरों की छत के साये में 

मैं ,मेरे माँ-बाबूजी

मेरी पत्नि 

मेरे बच्चे शामिल थे

एक 'हम ' शब्द में ।





धीरे धीँरे 

'हम ' शब्द बिखर गया

मा-बाबूजी बाहर वाले 

कमरे में भेज दिये गयेे

अब वो दोनों हो गये थे

' हम ' और माँ-बाबूजी 

अब हम ' का विस्तार 

मैं,मेरी पत्नि,मेरे बच्चों

तक सिमट गया था

माँ -बाबूजी 'और' हो चुके थे ।।





मेरा बेटा भी अब

बाल बच्चेदार हो गया हैे

'हम ' शब्द  आतुर है

एक…

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Added by umesh katara on April 2, 2015 at 9:38am — 22 Comments

दफन है बहुत आग सीने में जिसके ------ग़ज़ल उमेश कटारा

122 122 122 122



बहुत हो चुकी हैं शराफत की बातें

चलो अब करें कुछ व़गाव़त की बातें

....

हसद है उन्हें अब मेरी शौहरतों से

जो करते कभी थे रियाज़त की बातें

.....

दफन है बहुत आग सीने में जिसके

वो कैसे   करेगा नज़ाकत की बातें

.....

बुजुर्गों की सेवा जरूरी बहुत है

करो सिर्फ इनकी इवादत की बातें

......

मुआफी के काबिल नहीं बेवफाई

न मुझसे करो तुम नदामत की बातें

......

जिसे जिन्दगी देके मैंने बचाया

वो करने लगा है…

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Added by umesh katara on March 31, 2015 at 7:30pm — 17 Comments

सब्जी वाला है वो

गरीब है 

पर स्वाभिमानी बहुत है 

सब्जी की ढकेल 

शहर की कोलोनियों में 

घुमाता है

जोर जोर से सब्जियों के

नाम की आबाज

लगाता है

आखिर में ले लो साहब

कहकर जरूर चिल्लाता है

कुछ आदतें हो गयी हैं

उस पर हावी

कल की सब्जियों को भी 

कह जाता है ताजी

कुछ सब्जियाँ

पूरी बिक चुकी होती हैं

उनका भी नाम पुकार जाता है

बीच बीच में पानी के छींटों से

सब्जियों को सँवार जाता है

ऊँचे लोगों की नीची हरकतों को 

बखूबी पहचानता है

लाखों…

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Added by umesh katara on March 26, 2015 at 7:46pm — 24 Comments

ग़ज़ल---तू आज नहीं आयी तो जान ये जानी है

221 1222 221 1222



तू आज नहीं आयी तो जान ये जानी है

मैं रोज कहूँ ऐसा ये बात पुरानी है

......

कुछ वादे तेरे झूठे कुछ तोड दिये मैंने

ये कैसी मुहब्बत है ये कैसी कहानी है

...

बस चाँद सितारे हैं जो साथ जगे मेरे 

उनके ही सहारे से अब याद भुलानी है

..

जिस रोज उतर जाये उस रोज चले आना

कुछ दिन ही चलेगा बस ये जोश जवानी है

....

सच यार कहूँ दिल से हैं  बात ये सब झूठी

तेरा मैं  दिवाना हूँ तू मेरी दिवानी है

--------------…

Continue

Added by umesh katara on March 23, 2015 at 9:30am — 18 Comments

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