For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -उमेश कटारा

2122  2122 2122
--------------------------------------------
मर्ज बढ़ता जा रहा अब क्या रखा है
बेअसर होती दवा अब क्या रखा है

ढ़ूँढ ले अब हम सफर कोई नया तू 
मुस्करादे कब कज़ा अब क्या रखा है

रच रहे हम साजिशें इक दूसरे को 
साथ चलने में बता अब क्या रखा है

साथ आना जाना भी क्यों महफिलों में 

बन्द कर ये सिलसिला अब क्या रखा है

शहर पूरा है, मगर आया नहीं तू
बिन मिले ही मैं चला अब क्या रखा है

उमेश कटारा
मौलिक व अप्रकाशित



Views: 671

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 14, 2015 at 11:38pm

क्या बात है ! ग़ज़ल अच्छी हुई है. मतला विशेष प्रभावी है. दाद कुबूल कीजिये.

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 12, 2015 at 10:47am

बहुत सुंदर उमेश जी..बधाई आपको 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 11, 2015 at 9:00pm

आदरणीय उमेश भाई , लाजवाब गज़ल कही है , हार्दिक बधाइयाँ आपको ।

रच रहे हम साजिशें इक दूसरे को 
साथ चलने में बता अब क्या रखा है  -- ढेरों बधाइयाँ ।

Comment by umesh katara on May 11, 2015 at 7:00pm

आदरणीय MUKESH SRIVASTAVA जी ग़ज़ल की पसन्दगी के लिये आभार

Comment by MUKESH SRIVASTAVA on May 11, 2015 at 1:55pm

 nice sundar gazal mtira  - badhaee ho

Comment by umesh katara on May 10, 2015 at 12:15pm

आदरणीय Samar kabeer जी ग़ज़ल की पसन्दगी के लिये आभार

Comment by Samar kabeer on May 10, 2015 at 10:27am
जनाब उमेश कटारा जी,आदाब,ख़ूबसूरत ग़ज़ल हुई है भाई ,दाद के साथ ममुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं ।
Comment by umesh katara on May 10, 2015 at 8:04am

आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी ग़ज़ल की पसन्दगी के लिये आभार

Comment by umesh katara on May 10, 2015 at 8:04am

आदरणीय Shyam Narain Verma जी ग़ज़ल की पसन्दगी के लिये आभार

Comment by umesh katara on May 10, 2015 at 8:03am

आदरणीय वीनस केसरी जी ग़ज़ल की पसन्दगी के लिये आभार

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
3 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service