मात्रिक छंद
हमसे रखो न खार, किताबें कहती हैं।
हम भी चाहें प्यार, किताबें कहती हैं।
घर के अंदर एक हमारा भी घर हो।
भव्य भाव संसार, किताबें कहती हैं।
बतियाएगा मित्र हमारा नित तुमसे,
हँसकर हर किरदार, किताबें कहती हैं।
खरीदकर ही साथ सहेजो, जीवन भर,
लेना नहीं उधार, किताबें कहती हैं।
धूल, नमी, दीमक से डर लगता हमको,
रखो स्वच्छ आगार, किताबें कहती हैं।
कभी न भूलो जो संदेश…
Added by कल्पना रामानी on June 17, 2014 at 2:30pm — 22 Comments
“ आज का मैच तो बड़ा रोमांचक है यार, बड़े जबर्दस्त फार्म में है टीम...”
“अरे हाँ यार! तेरे घर तो मैच देखने का आनंद ही अलग है, पर यार ये अन्दर से कराहने की आवाज तेरी मम्मी की आ रही है क्या..?”
“ आने दे यार! वो तो उनकी रोज की आदत है, बूढी जो हो गई है थोड़ी देर में सो जाएँगी. तू तो मैच देख मैच”
जितेन्द्र ’गीत’
( मौलिक व् अप्रकाशित )
Added by जितेन्द्र पस्टारिया on June 17, 2014 at 12:35pm — 36 Comments
चाहतों ने गुलज़मीं पे चाँदनी जब छा दिया
आहटों ने बढ़ तराना प्यार का तब गा दिया |
हाथ क़ैदी की तरह सहमे हुए थे क़ैद में
क़ैदख़ाने में किसी ने दिल थमा बहका दिया |
पाँव में थीं बेड़ियाँ, बेदम नज़र, मंजिल न थी
हौसले ने वक़्त पे सिर से कफ़न फहरा दिया |
होंठ काँटों के हवाले खूँ से लथपथ थे पड़े
फूल की ख़ुशबू ने टाँके खींचकर महका दिया |…
ContinueAdded by Santlal Karun on June 16, 2014 at 9:00pm — 20 Comments
२२ २२ २२ २
शायद सूरज हार गया
छुप के दरिया पार गया
शाह हुए गुम हरमों में
कड़ी खिंचा बेकार गया
चुनाव आये फिर से तो
संसद गुनाहगार गया
कपडा जब हुआ…
ContinueAdded by gumnaam pithoragarhi on June 16, 2014 at 5:03pm — 5 Comments
1222 1222 1222 122
हमारे प्यार को वो अब निभाती भी नहीं है
जलाये क्यों हमारा दिल बताती भी नहीं है
लिखा जो गीत उसने वेवफाई पे हमारी
कभी वह गीत हमको तो सुनाती भी नहीं है
बनाया था महल मैनें कभी उनके लिये जो
पड़ा है आज भी सूना जलाती भी नहीं है
बड़े अरमान थे उनसे सजाये जिन्दगी में
मगर उनको कभी अब वो सजाती भी नहीं है
करें किससे शिकायत जिन्दगी की हम बताओ
कभी भी प्यार से मुझको बुलाती भी नहीं है
मौलिक व अप्रकाशित अखंड…
ContinueAdded by Akhand Gahmari on June 16, 2014 at 2:09pm — 17 Comments
122 122 122 122
मनाज़िर नए हैं, सवेरा नया क्या ?
वतन पूछता है, अँधेरा हटा क्या ?
नई खुशबुएँ हैं नई सुब्ह महकी
सदी से बुझा था जो चूल्हा जला क्या ?
परिंदा नया है नए पंख निकले
उड़ेगा कहाँ तक परों पे लिखा क्या ?
सभी कह रहे हैं शजर विष भरा है
तुम्ही ये बताओ बिना जड़ उगा क्या ?
वहीँ आग होगी धुआँ है जहाँ पर
हवा है गली में नया गुल खिला क्या ?
वो बुधवा की बेवा नहीं दी…
ContinueAdded by rajesh kumari on June 16, 2014 at 9:28am — 22 Comments
*******
1222 1222 1222 1222
*******
हुआ जाता नहीं बच्चा कभी यारो मचलने से
नहीं सूरत बदलती है कभी दरपन बदलने से
***
जला ले खुद को दीपक सा उजाला हो ही जायेगा
मना करने लगे तुझको अगर सूरज निकलने से
***
हमारी सादगी है ये भरोसा फिर जो करते हैं
कभी तो बाज आजा तू सियासत हमको छलने से
***
बता बदनाम करता क्यों पतित है बोल अब…
ContinueAdded by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 16, 2014 at 9:26am — 14 Comments
”बचपन आज देखो किस कदर है खो रहा खुद को ,
उठे न बोझ खुद का भी उठाये रोड़ी ,सीमेंट को .”
........................................................................
”लोहा ,प्लास्टिक ,रद्दी आकर बेच लो हमको ,
हमारे देश के सपने कबाड़ी कहते हैं खुद को .”
.......................................................................
”खड़े हैं सुनते आवाज़ें ,कहें जो मालिक ले आएं ,
दुकानों पर इन्हीं हाथों ने थामा बढ़के ग्राहक को .”…
Added by shalini kaushik on June 15, 2014 at 11:30pm — 3 Comments
पिता
गर बेटियाँ है तुम्हारा स्वाभिमान
फिर क्यों
समाज के विद्रूपताओं से भयभीत होकर
रोकते हो उसकी हर उड़ान
बनाने क्यों नहीं देते उसकी
स्वयं की साहसी पहचान
असुरक्षा के डर से
देना चाहते हो उसको
किसी का साथ
खर्च कर लाखोँ लाते हो
छान बिन कर एक जोड़ी अदद हाथ
जो बनेगा तुम्हारी बेटी का आजीवन रक्षक
पर क्या होता है सही ये फैसला
हर बार
वक्त के साथ देख बेटियों की दुर्दशा
क्या…
ContinueAdded by MAHIMA SHREE on June 15, 2014 at 3:00pm — 8 Comments
माँ
मान भरे ममता का आँचल
तो पिता
सर पर नीलाभ आसमान है
दोनों का स्नेह एक सामान है.
माँ
बच्चों के दर्द से बिलबिला जाती है
तो पिता की चिंता
दर्द की दवा बन जाती है.
माँ कोमलता से भरी है
तो पिता के परुष से
विपत्तियाँ भी डरी है.
बच्चों के लिए
दोनों का स्नेह ही
वेदना -निग्रही है.
डॉ.विजय प्रकाश शर्मा
(मौलिक और अप्रकाशित)
Added by Dr.Vijay Prakash Sharma on June 15, 2014 at 12:05pm — 10 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on June 15, 2014 at 11:57am — 10 Comments
2122/ 2122/ 212
मेरा ग़म लगता है हमसाया मुझे
जीने का फन ग़म ने सिखलाया मुझे
ये हवा मेरे मुताबिक तो नहीं
कौन तेरे शह्र में लाया मुझे
मुश्किलों में सिर्फ मेरी जाँ नहीं
खौफ़ में हर इक नज़र आया मुझे
हौसला, हिम्मत, दुआएँ, दोस्ती
तज़्रिबे ने बख़्शा सरमाया मुझे
धूप की शिद्दत बहुत थी राह में
माँ के आँचल से मिली छाया मुझे
कौन सा मैं रंग दूँ तुझको ग़ज़ल
ज़ीस्त के रंगों ने…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on June 15, 2014 at 8:00am — 6 Comments
1222 1222 1222 1222
किसी की याद रातो मे हमें सोने नहीं देती
कसम उसने दिया था जो हमे रोने नहीं देती
चली थी साथ मेरे जो कभी इक हमसफर बन कर
न जाने पास अपने क्यों हमें होने नहीं देती
सिखाया था हमें जिसने जमाने में रहें कैसे
वही अब प्यार भी हमको वहाँ बोने नहीं देती
नहीं है प्यार मुझसे अब मगर नफरत जरा देखो
किसी को लाश भी मेरी वो अब ढोने नहीं देती
हमारे गीत में छुपकर हमेशा जो चली आती
बने आवाज दिल की वो हमें खोने…
Added by Akhand Gahmari on June 15, 2014 at 1:30am — 5 Comments
जब से "छपास" का
रोग लगा है.
लिखना रुकता ही नहीं ,
कविता अतुकांत,
कहानी अनगढ़ी ,
बिना यात्रा किये
यात्रा वृतांत,
बिना मिले
विरह वर्णन,
बिना प्यार किये,
रोमांच का सच.
वृद्ध हाथों में
क्रांति की मशाल,
बिना सच जाने
चेतावनी!
क्या मजाल,
कि आप कुछ बोल दें.
जरा सा सच का पर्दा खोल दें
चैनलों पर रात-दिन देखिए,
पूरे देश में,
"नपुंसक बवाल".
डॉ. विजय प्रकाश शर्मा
(मौलिक व् अप्रकाशित…
Added by Dr.Vijay Prakash Sharma on June 15, 2014 at 12:30am — 14 Comments
मालिक और महा प्रबंधक कंपनी में चल रही हड़ताल को लेकर कुछ गंभीर विचार विमर्श कर रहे थे कि अचानक कुछ आवारा कुत्ते बंगले के अंदर आ घुसे। साहिब का खूंखार पालतू कुत्ता बड़ी फुर्ती से उन आवारा कुत्तों पर झपटा और उन्हें दूर तक खदेड़ आया, तभी एक नौकर धीरे से मालिक के कान में आकर फुसफुसाया
“साहिब, वो यूनीयन के दूसरी तरफ वाले लीडर आ गए है।”
मालिक के तनावग्रस्त चेहरे पर एकाएक कुटिल मुस्कुराहट आ गई, और उसने मांस का एक बड़ा सा टुकड़ा अपने वफादार कुत्ते के आगे फैंक दिया…
Added by Ravi Prabhakar on June 14, 2014 at 11:59am — 14 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on June 14, 2014 at 10:44am — 18 Comments
कायर हैं वे लोग यहाँ
नारी को आँख दिखाते हैं
कमतर कमजोर हैं वे नर भी
नारी को ढाल बनाते हैं
------------------------
कौरव रावण इतिहास बहुत से
अधम नीच नर बदला लेते
अपनी मूंछे ऊंची रखने को
नारी का बलि चढ़ा दिए
अंजाम सदा वे धूल फांक
मुंह छिपा नरक में वास किये
मानव -दानव का फर्क मिटा
मानवता को बदनाम किये
नाली के कीड़े तुच्छ सदा
खुद को भी फांसी टांग लिए
नारी रोती है विलख आज
क्या पल थे ऐसे…
ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on June 13, 2014 at 7:00pm — 16 Comments
सबकी ऐसे गुजर गयी
हिन्दू देखे ,मुस्लिम देखे इन्सां देख नहीं पाया
मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे में आते जाते उम्र गयी
अपना अपना राग लिए सब अपने अपने घेरे में
हर इन्सां की एक कहानी सबकी ऐसे गुजर गयी
अपना हिस्सा पाने को ही सब घर में मशगूल दिखे
इक कोने में माँ दुबकी थी , जब मेरी बहाँ नजर गयी
दुनिया जब मेरी बदली तो बदले बदले यार दिखे
तेरी इकजैसी सच्ची सूरत, दिल में मेरे उतर गयी
मौलिक और अप्रकाशित
मदन मोहन सक्सेना
Added by Madan Mohan saxena on June 13, 2014 at 4:55pm — 7 Comments
मफऊल फ़ायलात मुफ़ाईल फायलुन
आया था लुत्फ़ लेने नवाबों के शह्र में
हैरतज़दा खड़ा हूँ नक़ाबों के शह्र में
आलूदा है फज़ाए बहाराँ भी इस क़दर
खुशबू नहीं नसीब गुलाबों के शह्र में
तहज़ीबे कोहना और तमद्दुन नफासतें
आया हूँ सीखने में नवाबों के शह्र में
ऐसी हसीं वरक़ को यहाँ देखता है कौन
हर सम्त जाहेलां है किताबों के शह्र में
बेहोश होने का न गुमां हमको हो सका
हर शख्स होश में है शराबों के…
ContinueAdded by Sushil Thakur on June 13, 2014 at 4:00pm — 4 Comments
11212 11212 11212 11212
कई बाग़ सूने हुये यहाँ , कई फूलों में हैं उदासियाँ
कई बेलों को यही फिक्र है , कि कहाँ गईं मेरी तितलियाँ
कभी दूरियाँ बनी कुर्बतें, कभी कुरबतें बनी दूरियाँ
ये दिलों के खेलों ने दी बहुत , हैं अजब गज़ब सी निशानियाँ
कभी आप याद न आ सके, कभी हम ही याद न कर सके
रहे शौक़ में हैं लिखे मिले , कई गम ज़दा सी रुबाइयाँ
वो हक़ीक़तें बड़ी तल्ख़ थीं, चुभीं खार बनके इधर उधर
सुनो वो चुभन ही…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on June 12, 2014 at 9:30pm — 32 Comments
2025
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2025 Created by Admin.
Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |