“माँ ! मैं तुम्हारे और दोनों भाइयों के हाथ जोडती हूँ, मुझे कुछ पैसे दे दो या दिलवा दो.. भगवान् के लिए मदद करो.. चार दिनों बाद बेटी की शादी है..”
“देखो दीदी..! .. हमने हर समय तुम्हारा बहुत साथ दिया है.. यहाँ तक कि तुम्हारी दोनों बेटियों की शादी का पूरा खर्च वहन करने की सोचे थे. बेटे को भी काम-धंधे पर लगवा देंगे.. लेकिन तुमने निकम्मे जीजाजी.. और लोगो के कहने पर हम पर ही मुकदमा दायर कर दिया.. ? क्या तो हिस्सा पाने की खातिर ?!! ”
“माँ, तुम तो कुछ बोलो, तुम्ही समझाओ न.. इन…
Added by जितेन्द्र पस्टारिया on June 10, 2014 at 1:00am — 14 Comments
तुम नीलाभ
नीरव गगन में
ध्रुवतारे की तरह
अविचल
कैसे रह लेते हो?
शायद तुममें
मानव-मन की
विचलन
का बोध नहीं .
या स्थितिप्रज्ञ हो गए हो.
विजयप्रकाश
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Dr.Vijay Prakash Sharma on June 10, 2014 at 12:00am — 11 Comments
दायें बायें देख के, खुद को कर तैयार
राह सुरक्षित हो तभी, करना उसको पार ||
सड़क सुरक्षा के लिए, नियमों का कर ध्यान
राह बनेगी सरल तब और मिलेगा मान ||
ट्रैफिक सिग्नल के नियम, रखते हैं जो ध्यान
मंजिल मिलती है उन्हें, पथ होता आसान ||
तीन रंग का खेल है ,समझ न इसको खेल
पीला नीचे लाल के संग हरे का मेल ||
दिखे लाल बत्ती अगर, झट से रुकना यार
खतरे का हो सामना, किया अगर जो पार ||
पीली बत्ती देख के, हो जाना…
ContinueAdded by Sarita Bhatia on June 9, 2014 at 8:20pm — 12 Comments
सोचते ही रहे खेत जोता नहीं
प्यार के फूल क्यों कोई बोता नहीं
लुट गई देख अबला कि अस्मत यहाँ
शर्म से कोई आँखे भिगोता नहीं
तोड़ कर कोई जाता न दिल प्यार में
साथ अपनो का अब कोई खोता नहीं
सोच हैरान क्यों रोज इज्जत लुटे
चैन की नी़ंद क्यो़ं कोई सोता नहीं
क्या भरोसा करें हम किसी का सनम
आदमी आदमी का ही होता नहीं
बात में बात सबकी मिलाता रहूँ
आदमी हूँ सनम कोई तोता नहीं
मौलिक एवं…
ContinueAdded by Akhand Gahmari on June 7, 2014 at 6:30pm — 3 Comments
आँसुओं से हम गजल लिखते रहे
कागजों में दर्द बन बिकते रहे
वो पराये हो चुके थे अब तलक
और हम अपना समझ झुकते रहे
पीठ पर वो बार करने का हुनर
उम्र भर हम याद ही करते रहे
हद से ज्यादा हम हुये जब गमजदा
बारबा वो खत तेरा पढ़ते रहे
तू गया कितने जलाकर आशना
आशना वो आज तक जलते रहे
हम समझ कर आदमी को आदमी
साथ हम शैतान के चलते रहे
उमेश कटारा
मौलिक व अप्रकाशित…
Added by umesh katara on June 7, 2014 at 3:00pm — 14 Comments
संस्कारों की कमी से , मनचले होते रहेंगे
कुछ न बदलेगा जहां में , हादसे होते रहेंगे.
दोष इसका दोष उसका मूल बातें गौण सारी
तालियाँ जब तक बजेंगी , चोंचले होते रहेंगे .
मौन धरने उग्र रैली , जल बुझेगी मोमबत्ती
आड़ में कुछ बाड़ में कुछ सामने होते रहेंगे .
आबकारी लाभकारी लाडला सुत है कमाऊ
और भी तो रास्ते हैं , फायदे होते रहेंगे .
ये गवाही वो गवाही, है बहुत ही चाल धीमी
जानता है हर दरिंदा , फैसले होते …
Added by अरुण कुमार निगम on June 7, 2014 at 12:00am — 14 Comments
एक अस्पताल में भर्ती बुजुर्ग की आप बीती---उनके ही मुख से-
"मेरे दो लडके हैं, दोनों एक्सपोर्ट इम्पोर्ट का कारोबार करते हैं.
दो लड़कियां विदेश में हैं, दामाद वहीं सेटल हो गए हैं.
मेरा एक भगीना बड़े अस्पताल में डॉक्टर है ...मुझे उसका टेलीफोन नंबर नहीं मिल रहा ..आप पताकर बताएँगे क्या?
आज मेरे घाव का ओपेरेसन होनेवाला है. मेरा लड़का आयेगा ...ओपेरेसन के कागजात पर हस्ताक्षर करने."
लड़का आया भी और हस्ताक्षर कर चुपचाप चला गया. मैंने महसूस किया दोनों में कोई विशेष बात…
ContinueAdded by JAWAHAR LAL SINGH on June 6, 2014 at 8:00pm — 21 Comments
1.
शेल्फ़ किताबों के लिए हो सकती है
किताबें शेल्फ़ के लिए नहीं होतीं
शेल्फ़ में किताबों को रख छोड़ना
किताबों की सत्ता का अपमान है.
2.
कुछ पृष्ठों के कोने वो मोड़ देता है…
Added by Saurabh Pandey on June 6, 2014 at 5:30pm — 43 Comments
2122 2122 2122 212
***
शब्द अबला तीर में अब नार ढलना चाहिए
हर दुशासन का कफन खुद तू ने सिलना चाहिए
***
लूटता हो जब तुम्हारी लाज कोई उस समय
अश्क आँखों से नहीं शोला निकलना चाहिए
***
गिड़गिड़ाने से बची कब लाज तेरी द्रोपदी
वक्त पर उसको सबक कुछ ठोस मिलना चाहिए
**
हर समय तो आ नहीं सकता कन्हैया तुझ तलक
काली बन खुद रक्त बीजों को कुचलना चाहिए
**
फूल बनकर दे महक उपवन को यूँ तो रोज तू…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 6, 2014 at 12:47pm — 31 Comments
"चीख चीख कर पूछ रहा है ,ये उद्वेलित मन मेरा मुझसे ,
इस अन्धकार में कितनी सदियाँ और बिताना बाकी है ?
चूड़ियाँ पहने पड़ी इस सुषुप्त व्यवस्था को धिक्कारने में
अब भी यूँ ही कितनी मोमबत्तियाँ और जलाना बाकी है ?
इस कुण्ठित दानवता के कुकृत्यों से लज्जित ,
आज मानवता कितनी बेबस पानी पानी है ?
मोड़ मोड़ पर खड़े ये दुर्योधन और दु:शासन ,
दुर्गा पूजती सभ्यता की क्या यही निशानी है ?
कोरे कागज़ी कानूनों के फूल चढ़ाये ,यूँ अर्थियाँ उठाते,
कितने…
Added by Kedia Chhirag on June 6, 2014 at 9:30am — 4 Comments
२१२२ १२१२ २२/११ २
.
देख तेरा जो हाल है प्यारे
ज़िन्दगी का सवाल है प्यारे.
.
लोग मुर्दा पड़े हैं बस्ती में,
बस तुझी में उबाल है प्यारे.
.
आम कहता है ख़ुद को जो इंसाँ,
उसकी रंगत तो लाल है प्यारे.
.
उसकी थाली में मुझ से ज़्यादा घी,
बस यही इक मलाल है प्यारे.
.
हम ने अपना लहू भी वार दिया,
सबको लगता गुलाल है प्यारे.
.
ख़ाक ही ख़ाक बस उड़ेगी अब,
ये हवाओं की चाल है प्यारे.
.
अब तो…
ContinueAdded by Nilesh Shevgaonkar on June 5, 2014 at 9:30pm — 21 Comments
विरह तुम्हारा सह न पाऊं, कैसे मै मन को समझाऊ
तुमसे ही मै जीवन पाऊं, तुमबिन न स्वागत कर पाऊं
बिछे ह्रदय में पलक-पाँवड़े,मेंह बाबा मै तुम्हे रिझाऊं
ताल तलैया जग के सूखे,स्वर्ग लोक से…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on June 5, 2014 at 6:00pm — 16 Comments
अपने मौसम को ………
तुम ही तो थे
मेरे नेत्रों के वातायन से
असमय विरह पीर को
बरसाने वाले
मुझे अपने बाहुपाश में
प्रेम के अलौकिक सुख का
परिचय कराने वाले
मेरी झोली में विरह पलों को डालने वाले
क्या आलिंगन के वो मधुपल भ्रम थे
पर्दे के पीछे मेरी विरह वेदना को
सिसकियों में पिघलते
मूक बन कर देखते रहे
क्यों एक बार भी हाथ बढ़ा कर
मेरे व्यथित हृदय को
ढाढस…
Added by Sushil Sarna on June 5, 2014 at 4:56pm — 16 Comments
इन कंक्रीटों के जंगल में नहीं लगता है मन अपना
जमीं भी हो गगन भी हो ऐसा घर बनातें हैं
ना ही रोशनी आये ना खुशबु ही बिखर पाये
हालात देखकर घर की पक्षी भी लजातें हैं
दीबारें ही दीवारें नजर आये घरों में क्यों
पड़ोसी से मिले नजरें तो कैसे मुहँ बनाते हैं
मिलने का चलन यारों ना जानें कब से गुम अब है
टी बी और नेट से ही समय अपना बिताते हैं
ना दिल में ही जगह यारों ना घर में ही जगह यारों
भूले से भी मेहमाँ को ना नहीं घर में टिकाते हैं
अब…
ContinueAdded by Madan Mohan saxena on June 5, 2014 at 3:09pm — 9 Comments
छप्पय छंद
बेटी होना पाप, त्रास में जीवन सारा ।
जन्म पूर्व ही घात, उसे कितनों ने मारा ।।
कंपित होती सांस, वायु है दूषित सारी ।
छेड़ छाड़ हर पाद, नगर गांव बलात्कारी ।।
गली गली में भेडि़या, नोचें बेटी मांस को ।
जीवित होकर लाश हैं, बेटी सह इस त्रास को ।।
.................
मौलिक अप्रकाशित
Added by रमेश कुमार चौहान on June 5, 2014 at 3:00pm — 14 Comments
जिया जरे दिन रात हे पीऊ
तड़प के रात बिताऊं
----------------------------------
भोर उठूँ जब बिस्तर खाली
गहरी सांस ले मन समझाऊँ
दुल्हन जब कमरे से झाँकू
पल-पल नैन मिलाती
अब हर आहट बाहर धाती
'शून्य' ताक बस नैन भिगोती
फफक -फफक मै रो पड़ती पिय !
फिर जी को समझाती
जी की शक्ति आधी होती
दुर्बल काया कैसे दिवस बिताऊं ?
जिया जरे दिन रात हे पीऊ
तड़प के रात…
Added by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on June 5, 2014 at 1:30pm — 16 Comments
2122 2122 2122 22
मैं कभी तुझसे बिछुड़ने का न मंजर देखूँ
मछलियों से ना कभी ख़ाली समंदर देखूँ
कब जमीं आकाश दोनों इस जहाँ में मिलते
मैं ये संगम तो सदा दिल के ही अन्दर देखूँ
हर सितारा तेरी किस्मत का बुलंदी पर हो
मैं न कोई हार से टूटा सिकंदर देखूँ
झेल लूँ मैं वार खुद तेरी परेशानी के
जीस्त में गड़ता हुआ ग़म का न खंजर देखूँ
जिंदगी में काश कोई दिन न आये…
ContinueAdded by rajesh kumari on June 5, 2014 at 10:58am — 29 Comments
जिन्होंने रास्तों पर खुद कभी चलकर नहीं देखा
वही कहते हैं हमने मील का पत्थर नहीं देखा
.
मिलाकर हाँथ अक्सर मुस्कुराते हैं सियासतदाँ
छिपा क्या मुस्कराहट के कभी भीतर नहीं देखा
.
उन्हें गर्मी का अब होने लगवा अहसास शायद कुछ
कई दिन हो गए उनको लिए मफलर नहीं देखा
.
सड़क पर आ गई थी पूरी दिल्ली एक दिन लेकिन
बदायूं को तो अब तक मैंने सड़कों पर नहीं देखा
.
फ़क़त सुनकर तआर्रुफ़ हो गया कितना परेशां वो
अभी तो उसने मेरा कोई भी तेवर नहीं…
Added by Rana Pratap Singh on June 5, 2014 at 10:26am — 19 Comments
Added by विजय मिश्र on June 5, 2014 at 9:51am — 25 Comments
2122 1212 22/112
मुल्क़ में किस्सा इक नया तो हो
अब अज़ीयत की इंतिहा तो हो अज़ीयत =यातना
ग़म से किसको मिली नजात यहाँ
मर्ज़ कहते हो फिर दवा तो हो
जी उठेगा फिर अपनी राख से पर
वो मुकम्मल अभी जला तो हो
दीनो-ईमाँ की बात करते हैं
हो हरम दिल में बुतकदा तो हो हरम =मस्जिद, बुतकदा =मंदिर
ज़ह्र अपनी ज़बान से छूकर
कह रहे हैं कि तज़्रिबा तो…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on June 4, 2014 at 9:32pm — 24 Comments
2025
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2025 Created by Admin.
Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |