For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सोच बदलेगी न जब तक.........अरुण कुमार निगम

संस्कारों की कमी से , मनचले होते रहेंगे
कुछ न बदलेगा जहां में , हादसे होते रहेंगे.


दोष इसका दोष उसका मूल बातें गौण सारी
तालियाँ जब तक बजेंगी , चोंचले होते रहेंगे .


मौन धरने उग्र रैली , जल बुझेगी मोमबत्ती
आड़ में कुछ बाड़ में कुछ सामने होते रहेंगे .


आबकारी लाभकारी लाडला सुत है कमाऊ
और  भी  तो  रास्ते  हैं , फायदे  होते रहेंगे .


ये गवाही वो गवाही, है बहुत ही चाल धीमी
जानता  है  हर  दरिंदा , फैसले  होते  रहेंगे.


अश्क हैं घड़ियाल जैसे दाँत हाथी की तरह दो
रंग  गिरगिट सा  बदलते  वो  हरे  होते रहेंगे .


ठोस दावे ठोस वादे, ढोल-सी आवाज इनकी
सोच बदलेगी न जब तक,खोखले होते रहेंगे.

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 703

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 18, 2014 at 1:35am

आदरणीय अरुण भाईजी.. जिस बेफ़िक्र अंदाज़ में यह ग़ज़ल हुयी है वह आपकी सिद्धहस्तता की परिचायक है.
हर शेर मूल्यवान है मगर जिस शेर ने बहुत कुछ लपेट कर साझा किया है --
ये गवाही वो गवाही, है बहुत ही चाल धीमी
जानता  है  हर  दरिंदा , फैसले  होते  रहेंगे.

इस शेर के लिए विशेष बधाई. .

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 11, 2014 at 6:29pm
प्रिय अरुण जी , रचना बहुत ही सुन्दर है , इन समस्याओं से हम सब त्रस्त हैं , फिर वे कौन हैं जो सब जानते हुए , देखते हुए भी मस्त हैं , उनकों ये बताना ही होगा , हौसले कितने ही मजबूत क्यों न हों ,अच्छाई के लिए न हों तो तोड़ दिए जाते है . आपकी अनुमति की प्रत्याशा में ये पक्तियां आपकी ही बात को आगे बढ़ाते हुए , प्रस्तुत हैं -----
कौन सा बल है जो दबाया जा सकता नहीं
कौन सा सर है जो झुकाया जा सकता नहीं .
हार मन से मान ली , हौसले उनके बढ़ते रहे ,
संस्कार हों , विश्वास हो , इच्छा का सम्बल हो
कौन राक्षस है जिसको जीता जा सकता नहीं .
सस्नेह .
Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on June 10, 2014 at 2:12pm

आदरणीय अरुण भाईजी,

व्यक्ति , परिवार , समाज , देश  , नेता , अफसर सभी का नैतिक पतन तेजी से हुआ है। और भोगना आम आदमी को है । कड़वी सच्चाई  बयां करती इस रचना के लिए हार्दिक बधाई  

Comment by vandana on June 10, 2014 at 5:50am

अश्क हैं घड़ियाल जैसे दाँत हाथी की तरह दो 
रंग  गिरगिट सा  बदलते  वो  हरे  होते रहेंगे .

शानदार ग़ज़ल आदरणीय सादर नमन 

Comment by coontee mukerji on June 8, 2014 at 3:53pm

संस्कारों की कमी से , मनचले होते रहेंगे
कुछ न बदलेगा जहां में , हादसे होते रहेंगे....सच है जबतक आदमी की मानसिकता सकारात्मक सोच में न बदले तो समाज में हादसे होते रहेंगे...आदरणीय ....सादर

Comment by vijay nikore on June 8, 2014 at 3:52am

सच्चाई से भरपूर आपकी रचना को दाद देता हूँ। बधाई।

Comment by savitamishra on June 7, 2014 at 6:32pm

सच्चाई बया कर दी आपने हर लाइन में ..बहुत खुबसुरत

Comment by Meena Pathak on June 7, 2014 at 6:01pm

आदरणीय अरुण निगम जी , बहुत सुन्दर प्रस्तुति .. सादर बधाई 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 7, 2014 at 4:46pm

आदरणीय निगम जी ..बहुत ही उम्दा शेर ..वर्तमान पर्द्रिश्य पर शानदार कटाक्ष ..किसी शेर को बिशेष शेर कहना अन्य शेरो के साथ बेमानी होगा ..इस सुंदर रचना पर हार्दिक बधाई सदर 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 7, 2014 at 1:45pm

अश्क हैं घड़ियाल जैसे दाँत हाथी की तरह दो
रंग  गिरगिट सा  बदलते  वो  हरे  होते रहेंगे ..............बस यही सब कुछ चलता रहेगा,इस कटु सच्चाई को बयां करती रचना पर हार्दिक बधाई आपको आदरणीय अरुण जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" साहिब आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
7 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय निलेश शेवगाँवकर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद, इस्लाह और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
7 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी आदाब,  ग़ज़ल पर आपकी आमद बाइस-ए-शरफ़ है और आपकी तारीफें वो ए'ज़ाज़…"
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज भाईजी के प्रधान-सम्पादकत्व में अपेक्षानुरूप विवेकशील दृढ़ता के साथ उक्त जुगुप्साकारी…"
8 hours ago
Ashok Kumar Raktale commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"   आदरणीय सुशील सरना जी सादर, लक्ष्य विषय लेकर सुन्दर दोहावली रची है आपने. हार्दिक बधाई…"
9 hours ago

प्रधान संपादक
योगराज प्रभाकर replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"गत दो दिनों से तरही मुशायरे में उत्पन्न हुई दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति की जानकारी मुझे प्राप्त हो रही…"
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"मोहतरम समर कबीर साहब आदाब,चूंकि आपने नाम लेकर कहा इसलिए कमेंट कर रहा हूँ।आपका हमेशा से मैं एहतराम…"
10 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"सौरभ पाण्डेय, इस गरिमामय मंच का प्रतिरूप / प्रतिनिधि किसी स्वप्न में भी नहीं हो सकता, आदरणीय नीलेश…"
10 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय समर सर,वैसे तो आपने उत्तर आ. सौरब सर की पोस्ट पर दिया है जिस पर मुझ जैसे किसी भी व्यक्ति को…"
11 hours ago
Samar kabeer replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"प्रिय मंच को आदाब, Euphonic अमित जी पिछले तीन साल से मुझसे जुड़े हुए हैं और ग़ज़ल सीख रहे हैं इस बीच…"
14 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, किसी को किसी के प्रति कोई दुराग्रह नहीं है. दुराग्रह छोड़िए, दुराव तक नहीं…"
18 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"अपने आपको विकट परिस्थितियों में ढाल कर आत्म मंथन के लिए सुप्रेरित करती इस गजल के लिए जितनी बार दाद…"
18 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service