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अहं के ताज़ को ……………

पूजा कहीं दिल से की जाती है
तो कहीं भय से की जाती है
कभी मन्नत के लिए की जाती है
तो कभी जन्नत के लिए की जाती है

कारण चाहे कुछ भी हो
ये निशिचित है
पूजा तो बस स्वयं के लिए की जाती है

कुछ पुष्प और अगरबती के बदले
हम प्रभु से जहां के सुख मांगते हैं
अपने स्वार्थ के लिए
उसकी चौखट पे अपना सर झुकाते हैं
अपनी इच्छाओं पर
अपना अधिकार जताते हैं
इधर उधर देखकर
प्रभु के परम भक्त होने पर इतराते हैं
अपने स्वार्थ के लिए
चन्द सिक्के दान कर
महा दानी बन जाते हैं
इस काया और माया पे
किसका अधिकार है
ये भी भूल जाते हैं
जानते हैं इस नश्वर संसार में
हर शै नाशवान है
फिर भी अपनी साँसों पे
कितना अभिमान है
मंदिर जाकर सर को झुकाकर
शायद भौतिक संतुष्टि तो हो जाएगी
मगर जब तक उसके दरबार में
अहं के ताज़ को तज कर सर न झुकायेंगे

न ईश हमें मिल पायेगा
न ईश के हम हो पायेंगे


सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Sushil Sarna on July 7, 2014 at 12:10pm

आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी रचना पर आपकी सुझावात्मक प्रशंसा का हार्दिक आभार।  भविष्य के लिए अवगत हुआ। आपके अमूल्य सुझाव का हार्दिक आभार। 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 7, 2014 at 12:12am

आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके इस वैचारिक कथ्य का मैं सादर अनुमोदन करता हूँ किन्तु इस प्रस्तुति को इतना सपाट नहीं रखना था. प्रस्तुतियों में कविताई के विन्दु और उभर कर आने चाहिये, आदरणीय. 

विश्वास है, मेरा कहा स्पष्ट हो पाया होगा.

सादर

Comment by Sushil Sarna on June 26, 2014 at 8:17pm

आदरणीया डॉ प्राची सिंह जी रचना की रूह हो अपनी स्वीकृति से अलंकृत कर आपने रचना को नया आयाम प्रदान किया इसके लिए मैं आपका हार्दिक आभारी हूँ 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on June 26, 2014 at 3:50pm

सहमत हूँ आदरणीय सुशील सरना जी

जब तक अहंकार मन में रहता है...पूर्ण समर्पण संभव ही नहीं 

पूर्ण समर्पण के बिना ईश्वर प्राप्ति कैसे हो सकती है?

इस वैचारिक अभिव्यक्ति के लिए मेरी बधाई स्वीकारिये 

Comment by Sushil Sarna on June 22, 2014 at 8:13pm

आदरणीय जवाहर लाल सिंह जी  रचना पर आपकी स्नेहात्मक  प्रशंसा का    का हार्दिक आभार 

Comment by Sushil Sarna on June 22, 2014 at 8:12pm

आदरणीया राजेश कुमारी  जी रचना पर आपकी मधुर प्रशंसा का  प्रतिक्रिया  का हार्दिक आभार 

Comment by Sushil Sarna on June 22, 2014 at 8:11pm

आदरणीया मीना पाठक  जी   रचना पर आपकी मधुर प्रशंसा का  प्रतिक्रिया  का हार्दिक आभार 

Comment by Sushil Sarna on June 22, 2014 at 8:10pm

आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी   रचना पर आपकी मधुर ऊर्जावान प्रतिक्रिया  का हार्दिक आभार 

Comment by Sushil Sarna on June 22, 2014 at 8:09pm

आदरणीय लक्ष्मण जी  रचना पर आपकी मधुर प्रतिक्रिया  का हार्दिक आभार 

Comment by Sushil Sarna on June 22, 2014 at 8:07pm

आदरणीया कुंती जी रचना पर आपकी स्नेहात्मक प्रशंसा का हार्दिक आभार 

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