" आप बस एक बार कह दो कि ये उन लोगों ने किया है , बाक़ी तो हम देख लेंगे " , मोहल्ले के तथाकथित धर्म गुरु काफी आवेश में थे | मौका अच्छा था और तमाम लोग इंतज़ार में थे इसका फायदा उठाने के लिए |
चच्चा सर झुकाये बैठे थे , चेहरा आँसुओं से तराबोर था | उनकी तो दुनिया ही मानो उजड़ गयी थी , जवान बेटे को खो चुके थे | लेकिन धीरे से सर उठा कर बोले " क़ातिल का कोई मज़हब नहीं होता "|
मौलिक एवम अप्रकाशित
Added by विनय कुमार on January 14, 2015 at 1:40am — 24 Comments
आत्मायें,
बिक चुकीं हैं,
बेचीं जा रहीं हैं,
कुछ असहाय,बिचारीं हैं,
कुछ म्रत्प्रायः,
कुछ मर चुकी हैं !
शरीर,
उन मृत आत्माओं का,
बोझ ढोए जा रहें हैं !
शब्द,
खो चुके अपना अर्थ,
उन अर्थहीन शब्दों से,
अच्छे दिनों के नारे लगा रहें हैं !
पैर,
चलना नहीं चाहते,
उन अनिच्छुक पैरों को ,
अच्छे दिनों की आस में,
कंटक पथों पर जबरन चला रहें हैं !
ईश्वर,
रंगमंच पर विद्यमान…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on January 14, 2015 at 1:08am — 19 Comments
नाम तुम्हारे दीवारों पे लिख छोड़ा सन्देशा
तुम भी लिखना खत मुझको,जो इसको देखा
अंजान नगर,अंजान डगर तुम बिल्कुल अन्जानी
पर अपने ठोढ़ी के तिल से जाती हो पहचानी
जब हंसती हो गालों पे खिंच जाती है रेखा |
नाम तुम्हारे..........
गोरी कलाई में पहने थी तुम कंगन काला
बालों की लट ऐसे बिखरे जैसे हो मधुबाला
जिससे बोलोगी वो तुम पे जान लुटा ही देगा |
नाम तुम्हारे ..........
खन-खन करती बोली तुम्हारी जैसे चूड़ी…
ContinueAdded by somesh kumar on January 13, 2015 at 11:00pm — 9 Comments
बाउजी, आखिरकार वो “रोडियो वाली फिल्म” ने झंडे गाड़ दिए ,सनसनी पैदा कर दी है, और साहब सुना है की हीरो ने और जिसने फिल्म बनाई है उसने “करोड़ों रूपये अन्दर कर लिए हैं “ !
“हाँ बात तो सही कह रहा है तू .........तूने देखी है वो फिल्म ?”
नहीं साहब पैसे नहीं जुटा पाया, मैं लोगों के जूते सिलता ,पॉलिश करते हुए यहीं लोगों से उसकी कहानी सुनता रहता हूँ !!
© हरि प्रकाश दुबे
"मौलिक व अप्रकाशित"
Added by Hari Prakash Dubey on January 13, 2015 at 10:33pm — 19 Comments
दिये की बाती मैं
धुए में घिर जाती हूं
कुछ पल को घबराती
तो कुछ पल इठलाती हूँ
चीर तिमिर की छाती मैं
भू को ज्योतिर्मय कर जाती हूँ
अनिल तूफानी तेज हुए
भावुक मन और उत्तेजित हुए
ज्योति शिखर पे नर्तन करती
लिपट दिये के अंतस में
क्षण भर को शर्माती
और सहज धीर बढ़ाती हूँ
राग अनोखे गाती मैं
रागिनी को अपना पाती हूँ
आह समेटे... चाह लिए
क्षणभंगुर आतुर जीवन में
खाक हुई... पीर छिपाई
ज़र्रे ज़र्रे को रोशन करती
अपलक रास रचाती…
Added by anand murthy on January 13, 2015 at 8:45pm — 8 Comments
कई रोज से खाली पेट थी
संभाल न सकी भूख
पसीज कर
दया करूणा ने
दो रोटी दस रूपये में
इतना भरा उसका पेट
फिर नौ माह
फूला रहा
वो कुत्ता बिल्ली नहीं थी
बिना किसी एवज
भूख मिटा दी जाती
विक्षिप्त थी तो क्या
थी तो स्त्री…
Added by asha pandey ojha on January 13, 2015 at 8:30pm — 30 Comments
Added by Rahul Dangi Panchal on January 13, 2015 at 3:00pm — 44 Comments
आप मेरे पाँव के आबलों को देखिये
फिर मेरी तै की हुई दूरियों को देखिये
गोद में वादी लिए हो कोई खरगोश ज्यूं
घाटियों में आप इन बादलों को देखिये
रो रहा है फूटकर आसमां किस बात पर
आँसुओं की है झड़ी बारिशों को देखिये
दुश्मनों की चाल से बाख़बर हरदम रहे
दोस्तों की भी ज़रा साज़िशों को देखिये
रहजनों से रास्ता पूछते हैं बारहा
मंज़िलों से बेख़बर रहबरों को देखिये
आपके सर पर चलो एक छत है तो…
ContinueAdded by khursheed khairadi on January 13, 2015 at 9:30am — 18 Comments
आदित्य ,
तुम जीवन दाई हो
तुम्हारे ताप से जीवन चलता है
प्रेम भरा स्नेह मिलता है ,
समस्त धरा को ,
तूम दिनकर हो
रजनी को विदा करते हो
अनंत काल से ,
जीवन की मुस्कराहट आती है
तुम्हारे आगमन से ,
प्रभा आती है हरियाली में जिसके
ऊष्मीय स्नेह से प्रभाकर .,
दिन के नरेश , तुम्हारी सत्ता
धरती माँ को आभा देती है ,
खिलखाते है पुष्प .
फिर सोना उगले हरियाली ,
तुम्हारे ही तेज से ,भास्कर !
तुम समस्त जीवन…
ContinueAdded by aman kumar on January 12, 2015 at 5:00pm — 13 Comments
2122 1221 2212
************************
चाँद आशिक तो सूरज दीवाना हुआ
कम मगर क्यों खुशी का खजाना हुआ
****
बोलने जब लगी रात खामोशियाँ
अश्क अम्बर को मुश्किल बहाना हुआ
****
मिल भॅवर से स्वयं किश्तियाँ तोड़ दी
बीच मझधार में यूँ नहाना हुआ
****
जब पिघलने लगे ठूँठ बरसात में
घाव अपना भी ताजा पुराना हुआ
****
देख खुशियाँ किसी की न आँसू बहे
दर्द अपना भी शायद सयाना…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 12, 2015 at 12:30pm — 23 Comments
२१२२ १२१२ २२ /११२
फिर से उगता हुआ जो पर देखा
तो बहुत झूम झूम कर देखा
धूप में झुलसा हर बशर देखा
तन पसीने से तर ब तर देखा
जल सके आग, कोशिशें देखीं
दिल में सुलगा हुआ शरर देखा
कारवाँ साथ था चला लेकिन
खुद को ही खुद का हम सफ़र देखा
सर परस्ती रही सियासत की
ज़ुर्म कर जो झुका न सर देखा
हद के बाहर दुआ में हाथ उठे
हर ,…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on January 12, 2015 at 10:42am — 25 Comments
२१२२--२१२२--२१२
आपके किरदार को समझा चलो
नाग की फुफकार को समझा चलो
हार कर संसार से हर दौड़ में
वक़्त की रफ़्तार को समझा चलो
मोल कुछ पाया नहीं अख़्लाक़ का
ख़ुद ग़रज़ बाज़ार को समझा चलो
कहता है कोई शिफ़ा मेरी नहीं
वो मेरे आज़ार को समझा चलो
सर गँवा कर भी बचा ली आबरू
क़ीमती दस्तार को समझा चलो
दोस्त था लेकिन अदू से जा मिला
मैं भी इक अय्यार को समझा चलो
ख़ामोशी…
ContinueAdded by khursheed khairadi on January 11, 2015 at 7:47pm — 15 Comments
तेरा कुछ भी मुझ पर बक़ाया नहीं है
मुझे मार कर क़्यों ज़लाया नहीं है
..
सज़ा बे-बज़ह ही मिली है क़सम से
क़िसी को भी मैंने सताया नहीं है
..
गया तू नज़र से,मेरी ज़ान लेक़र
मग़र जहर क्यों कर पिलाया नहीं है
..
मोहब्बत में कर दूँ ज़रा भी मिलावट
व़फा ने ये मुझको सिख़ाया नहीं है
..
मुझे कह रही हैं मुसलसल ये हिचकी
अभी तक भी तूने भुलाया नहीं है
मौलिक व अप्रकाशित
उमेश कटारा
Added by umesh katara on January 11, 2015 at 7:30pm — 27 Comments
लग गयी हमारे-तुम्हारे प्यार को,
कुछ हवा शायद जो नज़र होती है !
और नज़र उतारती थी जो अम्मा,
अब कौन जानता किधर सोती है !
मुस्कराते थे पनघट, जो हम पर ,
उनकी हँसी अब उन्हीं पर रोती है !
लगे हमारे तुम्हारे मिलन पर पहरे,
दीवार हर बात- बात पर रोती है !
मिल नहीं पाता मैं अब तुमसे ,
तुमसे ख्वाबों में मुलाकात होती है !
दिन नहीं होता धरती पर अब ,
अब धरती पर सिर्फ रात होती…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on January 11, 2015 at 4:30pm — 19 Comments
" बहुत बहुत बधाई जन्मदिन की, आज तो पार्टी बनती है " , ऑफिस पहुँचते ही सहकर्मियों ने घेर लिया शर्माजी को | एक बारगी तो वो सोच ही नहीं पाये कि कैसे प्रतिक्रिया दें इस पर , उनसठवां जन्मदिन था उनका | अगले साल सेवानिवृत्त हो जायेंगे और घर में बेरोज़गार पुत्र एवम शादी के योग्य पुत्री |
चेहरे पे फीकी मुस्कान लाते हुए सबका आभार व्यक्त करने लगे और आवाज लगायी " सबके लिए नाश्ते का इंतज़ाम आज मेरी तरफ से कर देना भोला " | सब प्रसन्न थे पर उनके मन में यही चल रहा था कि ऐसा जन्मदिन किसी का न हो | …
Added by विनय कुमार on January 11, 2015 at 2:14pm — 17 Comments
२२२१
ये अखबार
सच बीमार
कैसा धर्म
गो,तलवार
सच की राह
है दुश्वार
मरघट देगा
रिश्तेदार
आ ऐ मौत
कर उद्धार
जग गुमनाम
किसका यार
मौलिक व अप्रकाशित
आपकी समालोचना की प्रतीक्षा है
Added by gumnaam pithoragarhi on January 11, 2015 at 11:53am — 12 Comments
1 2 2 |
|
भला क्या ? |
बुरा क्या ? |
|
खुदी से |
मिला क्या… |
Added by मिथिलेश वामनकर on January 11, 2015 at 4:26am — 13 Comments
भूमिका(कविता)
अश्रु-पूरित चन्दन से भी
अगर टीकूँ|
है असम्भव अब तुम्हारा
लौट आना||
मैं इस मंच पर अभी कुछ
और खेलूँगा|
तुमकों जो अभिनय जँचे
तो मुस्काना ||
था टिका सम्बन्ध जिस पर
घुना वो आलम्ब|
हो सके तो उसपे कुछ
रेह लगाना||
हो सघन तिमिर जब कोई
राह ना सूझे|
तुम करना मेरा पथ-प्रशस्त
टिमटिमाना |
सोमेश कुमार(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by somesh kumar on January 11, 2015 at 1:23am — 6 Comments
नयन सखा डरे डरे, प्रमाद से भरे भरे......
सबा चले हजार सू फिज़ा सिहर सिहर उठे
भरी भरी हरित लता खिले खिले सुमन हँसे
चिनार में कनेर में खजूर और ताड़ में
अड़े खड़े पहाड़ पे घने वनों की आड़ में
उदास वन हृदय हुआ उदीप्त मन निशा हरे.............
शज़र शज़र खड़े बड़े करें अजीब मस्तियाँ
विचित्र चाल से चले बड़ी विशेष पंक्तियाँ
सदा कही नहीं मगर दिलो-दिमाग कांपता
मधुर मधुर मृदुल मृदुल प्रियंवदा विचिन्तिता
विचारशील कामना प्रसंग से…
ContinueAdded by मिथिलेश वामनकर on January 10, 2015 at 11:30pm — 34 Comments
नहीं वे जानते मुझको, दुश्मनी करके बैठे हैं ,
मेरे कुछ मिलने वाले भी, उन्हीं से मिलके बैठे हैं ,
समझकर वे मुझे कायर, बहुत खुश हो रहे नादाँ
क़त्ल करने मुझे देखो , कब्र में घुस के बैठे हैं .
गिला वे कर रहे आकर , हमारे गुमसुम रहने का ,
गुलूबंद को जो कानों से , लपेटे अपने बैठे हैं .
हमें गुस्ताख़ कहते हैं , गुनाह ऊँगली पे गिनवाएं ,
सवेरे से जो रातों तक , गालियाँ दे के बैठे हैं .
नतीजा उनसे मिलने का , आज है सामने आया ,
पड़े हम…
Added by shalini kaushik on January 10, 2015 at 11:00pm — 7 Comments
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