For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मिट्टी के खिलौने

मन बच्चा है बहलाने को 

मिट्टी के खिलौने बनायें 

किसी के सिर पर रखकर चोटी 

किसी के माथे तिलक लगायें 

किसी के मुँह पर लगा के दाढ़ी

किसी को सुन्दर साड़ी पहनायें 

किसी के सिर पर रखकर टोपी 

किसी के सिर पगड़ी पहनायें 

 

काश मानव हों मिट्टी के खिलौने 

 

मौला, पंडित ,फादर ,भाई 

गूँथ इन्हें सबको मिलायें

मिली जुली इस मिट्टी से फिर

नए नए आकार बनायें 

दाढ़ी किसी की चोटी बन जाये 

चोटी में दाढ़ी छुपायें  

टोपी किसी की पगड़ी बन जाये 

पगड़ी में टोपी छुपायें 

किसमें कितना कौन छुपा है 

कौन बताये? कौन बताये ?

भेदभाव सारे मिट जायें 

आओ सच्चा मानव बनायें 

इंसानों में इंसानियत जगायें 

...................................

मौलिक एवं अप्रकाशित ..

Views: 913

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sarita Bhatia on February 19, 2015 at 10:20am

आदरणीय सोमेश कुमार जी हार्दिक आभार 

Comment by Sarita Bhatia on February 19, 2015 at 10:19am

आदरणीय परी श्लोक जी हार्दिक आभार 

Comment by Sarita Bhatia on February 19, 2015 at 10:18am

आदरणीय मिथिलेश जी .आदरणीय गिरिराज जी हार्दिक आभार 

Comment by Sarita Bhatia on February 19, 2015 at 10:17am

आदरणीय विरेंदर जी शुक्रिया 

Comment by Sarita Bhatia on February 19, 2015 at 10:16am

आदरणीय डॉ. गोपाल जी हार्दिक आभार 

Comment by Sarita Bhatia on February 19, 2015 at 10:15am

शुक्रिया आदरणीय विजय शंकर जी 

Comment by Sarita Bhatia on February 19, 2015 at 10:14am

आदरणीय हरी प्रकाश दूबे जी हार्दिक आभार 

Comment by somesh kumar on February 18, 2015 at 7:52pm

अलग अलग  चाकों से मिट्टी उठा कर उन्हें एक चाक पर घुमाने और सर्वमान्य  रचना को गढ़ने की अदभुत कल्पना पर हार्दिक बधाई |

Comment by Pari M Shlok on February 18, 2015 at 10:05am
आपको बधाई इस कविता हेतु कमाल की कल्पना ....!!

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 17, 2015 at 10:19pm

आदरणीया सरिता जी , बहुत प्यारी कल्पना की है आपने , काश ऐसा हो !! हार्दिक बधाइयाँ ॥

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर आपने सर्वोत्तम रचना लिख कर मेरी आकांक्षा…"
10 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे... आँख मिचौली भवन भरे, पढ़ते   खाते    साथ । चुराते…"
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"माता - पिता की छाँव में चिन्ता से दूर थेशैतानियों को गाँव में हम ही तो शूर थे।।*लेकिन सजग थे पीर न…"
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे सखा, रह रह आए याद। करते थे सब काम हम, ओबीओ के बाद।। रे भैया ओबीओ के बाद। वो भी…"
16 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"स्वागतम"
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

देवता चिल्लाने लगे हैं (कविता)

पहले देवता फुसफुसाते थेउनके अस्पष्ट स्वर कानों में नहीं, आत्मा में गूँजते थेवहाँ से रिसकर कभी…See More
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय,  मिथिलेश वामनकर जी एवं आदरणीय  लक्ष्मण धामी…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185

परम आत्मीय स्वजन, ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 185 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Wednesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..  सादर"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
Tuesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service