For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आज़ाद कोई नहीं , सब डोर से बंधे हैं --- डॉ o विजय शंकर

बंधे सब डोरियों से हैं,
ये अलग बात है कि
किसकी डोर , मूलतः , किसके हाथ है ।
कोई अपनी डोरी में बस थोड़ी सी ढील चाहता है,
अपने साथ वाले की डोर बस थोड़ी टाइट चाहता है ।
किसी की खींच ली गई , किसी को ढील मिल रही है ,
किसी की फंस गई है , उनकी फंसी थी,निकल गई है ।
अब किसी को क्या कहें , जिस के हाथ अपनी डोर है ,
वही उसे दबाए बैठा है ।

चाहतें ऐसी ऐसी , उसकी डोर मेरे हाथ आ जाए ,
मेरी डोर काश यहाँ से छूटे , उसके पास पहुँच जाए
उनके तो हाल ही निराले हैं, अपने ही उनकी डोर ऐसी
कसना चाहती हैं कि बस , पूरे वश में रहें उनके ।
वैसे तो कहना है उनका कि वे किसी लायक नहीं हैं ,
वो महान है कि घास डाल दी उन्होंने ,
वरना हैं तो वे पूरे निठ्ठले के निठ्ठले ।
लेकिन फिर भी उनकी सोच है , क्या कहने उसके ,
उनको लगता है कि विश्व की समस्त नारियां छोड़ के
अपना अपना सारा काम-काज बैठी हैं बस डोरे लिए हुए
उनके निठ्ठले पे डालने के लिए ।
अब उनकों कौन समझाए , वही सबको समझाती हैं कि
वो टाइट न रखें तो क्या क्या न हो जाए ॥

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 677

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 18, 2015 at 8:43am
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी, आभार , आपकी परख एवं बधाई के लिए ह्रदय से धन्यवाद , सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 17, 2015 at 8:16pm

आदरणीय विजय भाई , रिश्तों की डोर होती ही ऐसी है , लोग हमारी पकड़ मे रहें पर हम खुद स्वतंत्र रहें । एक सच्चाई बयान की है आपने , बधाई आपको ॥

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 17, 2015 at 10:50am
सबसे अदृश्य डोर तो उसकी है, और उसके ही हाथों में है , रचना को स्वीकार करने के लिए आभार, प्रिय जीतेन्द्र जी , बधाई के लिए ह्रदय से धन्यवाद , सादर।
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 17, 2015 at 10:37am

एक अदृश्य डोर का बहुत सटीक चित्रण किया है, आपने रचना में. जो है तो जीवन के मायने, न मानो तो बंधन. प्रस्तुति पर बहुत-बहुत बधाई आदरणीय डा. विजय जी

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 17, 2015 at 10:15am
प्रिय मिथिलेश जी, बस यूँ ही, लिख रहा था , लिखता चला गया , आपको अच्छा लगा , जानकर बहुत अच्छा लगा , आभार , बधाई हेतु ह्रदय से धन्यवाद , सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on February 17, 2015 at 10:14am
आदरणीय हरी प्रकाश दुबे जी, बस यूँ ही, लिख रहा था , लिखता चला गया , आपको अच्छा लगा , जानकर बहुत अच्छा लगा , आभार , बधाई हेतु ह्रदय से धन्यवाद , सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 17, 2015 at 1:38am

आदरणीय डॉ विजय शंकर सर, डोर के माध्यम से विभिन्न परिस्थितियों में नियंत्रण शक्ति और उसके प्रभाव क्षेत्र पर सुन्दर कविता, हार्दिक बधाई निवेदित है. 

Comment by Hari Prakash Dubey on February 16, 2015 at 7:23pm

बंधे सब डोरियों से हैं,
ये अलग बात है कि
किसकी डोर , मूलतः , किसके हाथ है ।..... बहुत सुन्दर आदरणीय डॉ विजय शंकर सर, हार्दिक बधाई !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Sunday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service