बह्र : २२११ २२११ २२११ २२
क्या क्या न करे देखिए पूँजी मेरे आगे
नाचे है मुई रोज़ ही नंगी मेरे आगे
डरती है कहीं वक़्त ज़ियादा न हो मेरा
भागे है सुई और भी ज़ल्दी मेरे आगे
सब रंग दिखाने लगा जो साफ था पहले
जैसे ही छुआ तेल ने पानी मेरे आगे
ख़ुद को भी बचाना है और उसको भी बचाना
हाथी मेरे पीछे है तो चींटी मेरे आगे
सदियों मैं चला तब ये परम सत्य मिला है
मिट्टी मेरे पीछे थी, है मिट्टी मेरे…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on October 9, 2016 at 6:30pm — 10 Comments
Added by रामबली गुप्ता on October 9, 2016 at 12:56pm — 10 Comments
घर का माहौल ग़मगीन था, डॉक्टर ने दोपहर को ही बता गया था कि माँ बस कुछ देर की ही की मेहमान हैI माँ की साँसें रह रह उखड रही थीं, धड़कन शिथिल पड़ती जा रही थी किन्तु फिर भी वह अप्रत्याशित तरीके से संयत दिखाई दे रही थीI ज़मीन पर बैठा पोता भगवत गीता पढ़ कर सुना रहा था, अश्रुपूरित नेत्र लिए बहू और बेटा माँ के पाँवों की तरफ बैठे सुबक रहे थेI
Added by योगराज प्रभाकर on October 9, 2016 at 10:00am — 25 Comments
Added by दिनेश कुमार on October 9, 2016 at 8:50am — 7 Comments
2122 2122 212
कनखियों से एक वादा फिर हुआ
हाँ, मुहब्बत का तकाजा फिर हुआ
हम तो समझे थे बहारें आ गयीं
मौत का सामान ताजा फिर हुआ
उल्फतें बढ़ती रहीं यह देखकर
इश्क का दुश्मन ज़माना फिर हुआ
रास बर्बादी मेरी आयी उन्हें
बाद मुद्दत मुस्कराना फिर हुआ
लौट आयेंगे सुना था एक दिन
किन्तु जीते जी न आना फिर हुआ
रूह रुखसत हो वहां उनसे मिली
और मंजर आशिकाना फिर…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 8, 2016 at 6:30pm — 22 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 8, 2016 at 4:10pm — 4 Comments
Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on October 8, 2016 at 4:00pm — 7 Comments
पूरे इलाके में हंगामा मचा हुआ था, अब तो पुलिस की गाड़ियां भी आ गयी थीं कि किसी अनहोनी को टाला जा सके| खैर, हुई तो बहुत अनहोनी बात ही थी इस दशहरा पर जिसे हजम कर पाना किसी के लिए सहज नहीं था|
हर साल की तरह इस बार भी रज्जन और उसका परिवार दशहरा के काफी दिन पहले से ही रावण का पुतला बनाने में जुट गया था, आखिर ये न सिर्फ उसका बल्कि उसके पुरखों का भी काम था| लेकिन इस बार वो हवा का रुख नहीं भांप पाया जो बदली हुई थी| और इसी वजह से उसने रामलीला समिति या गांव के सरपंच से पूछा भी नहीं| इधर गांव से…
Added by विनय कुमार on October 8, 2016 at 3:05pm — 2 Comments
तेरे आने से मेरा घर जगमगाया
पूर्णिमा का चंद्र जैसे मुस्कुराया
स्वांग रचकर रचयिता सबको नचाये
इस जगत को मंच इक अद्भुत बनाया
लाज कपड़ो में छुपाती थी कभी वो
आज उरियानी का कैसा दौर आया
आपदा जिसने न झेली जिन्दगी में
हौसलों की भी परख वो कर न पाया
पूछता दिल कटघरे में खुद को पाकर
इश्क ही क्यों हर कदम पे लड़खड़ाया
ज़िन्दगी भी पूछती है क्या बताऊँ
क्या मिला है और क्या मैं छोड़ आया
खोजती है हर नजर बस एक…
Added by नाथ सोनांचली on October 8, 2016 at 2:00pm — 6 Comments
Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on October 8, 2016 at 1:04pm — 5 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on October 8, 2016 at 10:30am — 14 Comments
Added by Manan Kumar singh on October 8, 2016 at 2:30am — 8 Comments
जो है दिल को शिकायत न हो ज़ेरेफुगाँ क्यों
न हो कहने का हक़ कुछ तो देते हो जुबां क्यों
मेरी खानाख़राबी सुबूतेआशिक़ी है
जो हो मजनूं तुम्हारा हो उसका आशियाँ क्यों
यूँ कारेआशिक़ी से है आती बू-ए-साज़िश
अदू जो हैं हमारे वो तेरे पासबाँ क्यों
मकीनेदिलबिरिश्ता-ओ-दश्तेगमनशीं था
वफ़ातेकैस पे फिर न हो ख़ुश गुलसितां क्यों
जो मुझसे निस्बतों की सभी बातें हैं झूठीं
सुनाते हो मुझे तुम तुम्हारी दास्ताँ…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on October 7, 2016 at 10:09pm — 10 Comments
2122 2122 2122 212
इक मुहब्बत का महल कब चुपके चुपके ढह गया
बिन किये आवाज सब आँखों का काजल कह गया
अनमनी सी वो अकेली रह गई किश्ती खड़ी
पाँव के नीचे से ही सारा समन्दर बह गया
वो खुदा भी उस फ़लक से देख कर हैरान है
आइना ये पत्थरों की मार कैसे सह गया
ठोकरों ने ही तराशे वो पशेमाँ पंख फिर
ताकते परवाज़ से पीछे गुज़शता रह गया
फूल से भी जो हथेली सुर्ख होती थीं कभी
उस हथेली में पिघल कर आज सूरज बह…
ContinueAdded by rajesh kumari on October 7, 2016 at 7:41pm — 18 Comments
Added by Arpana Sharma on October 7, 2016 at 3:20pm — 6 Comments
“रेहाना’i बहुत खुश दिख रहा था आनंद “आज रात के ग़ज़ल की कंसर्ट के दो टिकटों का इंतजाम कर लिया है मैंनेI बहुत पीछे की सीटें हैं, पर मिल गए ये ही क्या कम है I”
“मुबारक हो” रेहाना धीरे से बोली I
“अरे इतनी दूर ऑस्ट्रेलिया में अपने इतने जाने माने लोगों के ग़ज़ल ,गाने सुनने को मिलेंगे I तुम खुश नहीं हो i” आनंद चिढ कर बोला I
“हाँ नहीं हूँ खुश और मै जाऊंगी भी नहीं “ रेहाना उठने लगी I
“पाकिस्तानी हैं इसलिए ?” आनंद ने उसका हाथ पकड़ लिया “ तुम इतनी पढ़ी लिखी हो, यहाँ …
ContinueAdded by Pradeep kumar pandey on October 7, 2016 at 3:00pm — 2 Comments
वह अपने महल के अंदर बैठा हुआ था और अपने साथियों के साथ जश्न मनाने की तैयारी हो रही थी। उसके सैनिकों द्वारा छद्म वेश में जाकर दुश्मन देश के सैनिक अड्डे पर भीषण आक्रमण के परिणाम स्वरूप वहां पर भयंकर तबाही मची हुई थी और उस देश का अगुवा बौखला उठा थां । आज तक उससे कहा जा रहा था िकवह हमारा दोस्त है लेकिन इस तरह से पीठ के उपर छुरा मार कर घायल कर दिया गया था और उसी से वह छटपटा रहा था । उस देश के लगभग 50 सैनिक मौके पर ही मर गये थे। साजो सामान के नुकसान भी करोड़ों के उपर था। उसने अपने अनुचरों को…
Added by indravidyavachaspatitiwari on October 7, 2016 at 1:29pm — No Comments
प्रेमाभिव्यक्ति ......
प्रेम आस है
प्रेम श्वास है
प्रेम जीवन की अमिट प्यास है
प्रेम आदि है
प्रेम अन्त है
प्रेम जीवन का अमिट बसंत है
प्रेम चुभन है
प्रेम लग्न है
प्रेम जीवन की अमिट अगन है
प्रेम चंदन है
प्रेम बंधन है
प्रेम जीवन की अमिट गुंजन है
प्रेम रीत है
प्रेम जीत है
प्रेम जीवन की अमिट प्रीत है
प्रेम नीर है
प्रेम पीर है
प्रेम जीवन की प्रेम हीर…
Added by Sushil Sarna on October 7, 2016 at 1:15pm — 2 Comments
Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on October 7, 2016 at 10:56am — 2 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on October 7, 2016 at 9:25am — 2 Comments
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