For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सकल दुख तरल रूप में आज वर्षित---ग़ज़ल, पंकज मिश्र

122 122 122 122
घनीभूत पीड़ा मनस व्योम क्षोभित
सकल दुख तरल रूप में आज वर्षित

अभीप्सा सुमन पर है मूर्च्छन प्रभावी
है निर्जीव सा तन हृदय ताल बाधित

कहाँ चाँदनी से क्षितिज था चमकना
कहाँ दामिनी ने किया पूर्ण भस्मित

पुनः लेखनी आज मानी न आज्ञा
गजल में किया है तुम्हें फिर सुशोभित

सजल चक्षुओं में कहाँ नींद होगी
निशा एक फिर से हुई तुझको अर्पित

न उद्देश्य किंचित भी चर्चा का लेकिन
तेरे नाम का मन्त्र बांचे पुरोहित

अमिय प्रीत की कामना थी अमित पर
गरल स्वार्थ का दान पंकज को प्रेषित

मौलिक अप्रकाशित

Views: 935

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on October 25, 2016 at 9:47pm
आदरणीय सौरभ सर सादर प्रणाम, शीघ्र ही संशोधन किया जायेगा

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 24, 2016 at 10:57am

आदरणीया राजेश कुमारी जी और भाई रामबली जी के सार्थक विन्दुओं के सापेक्ष प्रस्तुति में परिवर्तन आवश्यक होगा. 

प्रयास केलिए धन्यवाद. 

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on October 23, 2016 at 10:50pm
आदरणीय रामबली सर, उत्तम सुझाव के लिए सादर नमन स्वीकारें
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on October 23, 2016 at 10:49pm
आदरणीय राजेश दीदी सुझाव के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद तथा अनुरूप संशोधन करता हूं
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on October 23, 2016 at 10:47pm
आदरणीय अर्पणा जी बहुत-बहुत आभार स्वीकार करें
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on October 23, 2016 at 10:46pm
आदरणीय बाऊजी सादर प्रणाम।
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on October 23, 2016 at 10:45pm
आदरणीय सुरेश सर धन्यवाद।
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on October 23, 2016 at 10:44pm
आदरणीय सुशिल सर सादर आभार, आपकी प्रतिक्रिया से मेरा मानवर्धन हुआ है, सादर प्रणाम

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 10, 2016 at 6:27pm

कहाँ चाँदनी से क्षितिज था चमकना-----का  चमकना कर लें 

पुनः आज्ञा लेखनी ने न मानी--शायद आज्ञा को आपने २१२ में बांधा है जो ठीक नहीं है आज्ञा २२ में ही आएगा 

सजल चक्षुओं में कहाँ नींद होगी
निशा एक फिर से हुई तुझको अर्पित---वाह्ह्ह्ह 

अमिय प्रीत की स्पृहा थी अमित पर---इसे भी चेक करें ---

थोड़े से सुधार के पश्चात् रचना बेहतर हो जायेगी बहुत बहुत बधाई 

Comment by Arpana Sharma on October 10, 2016 at 5:00pm
बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति आ.श्रीमान् पंकज जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
1 hour ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
1 hour ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
2 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
3 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
5 hours ago
Profile IconSarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
9 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
yesterday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
yesterday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service