For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

घर का माहौल ग़मगीन था, डॉक्टर ने दोपहर को ही बता गया था कि माँ बस कुछ देर की ही की मेहमान हैI माँ की साँसें रह रह उखड रही थीं, धड़कन शिथिल पड़ती जा रही थी किन्तु फिर भी वह अप्रत्याशित तरीके से संयत दिखाई दे रही थीI ज़मीन पर बैठा पोता भगवत गीता पढ़ कर सुना रहा था, अश्रुपूरित नेत्र लिए बहू और बेटा माँ के पाँवों की तरफ बैठे सुबक रहे थेI

“तुम्हें कुछ नहीं होगा माँ जी, तुम अच्छी हो जाओगीI” सास के मुँह में गँगाजल डालते हुए बहू की रुलाई फूट पड़ीI
“तुमने तो उम्र भर मेरी इतनी सेवा की जितनी मेरी अपनी बेटी भी न कर पातीI”
“हमे माफ़ कर देना माँ, गरीबी के कारण..." माँ के ठन्डे पड़ते हाथ-पाँव को मालिश करता हुआ बेटा बस इतना ही बोल पायाI
“अरे बेटा! मैं तो बहुत खुश खुश जा रही हूँI” माँ के चेहरे पर संतोष के भाव थेI
“माँ! रूखी सूखी खाकर भी तुमने कभी कोई शिकायत नहीं की....”
“न हम कुछ देने के लायक थे न तुम ने कभी कुछ माँगा...."
"अगर कोई इच्छा हो तो बताओ माँI"
“आज मैं एक चीज़ माँगूंगी तुमसे, इनकार मत करना बेटाI" डूबते हुए स्वर में माँ ने कहाI 
“हाँ हाँ, बोलो माँI"
“एक वचन चाहिए तुम दोनों सेI”
"मैं वचन देता हूँ माँ, तुम कहो तो...”
ठण्डे चूल्हे और आटे के खाली कनस्तर की तरफ ताकते हुए माँ ने कहा:
“वचन दो कि मेरे मरने के बाद तुम कभी मेरा श्राद्ध नहीं करोगे.”
(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 1337

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Mahendra Kumar on June 9, 2018 at 10:33am

बहुत ही मार्मिक और दिल को छू लेने वाली लघुकथा है सर. वाक़ई माँ, माँ ही होती है. मेरी तरफ़ से भी हार्दिक बधाई प्रेषित सर. सादर.

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on November 16, 2016 at 6:18pm
आदरणीय सर ,इस कथा के माध्यम से आपका यह सन्देश देना कि जहाँ इन संस्कारों को आडंबर समझा जाता है वे ये न ही करें तो अच्छा है । श्राद्ध में श्रद्धा न हो तो इस संस्कार के मायने ही नहीं रह जाते । आपकी सोच को नमन ।

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on October 14, 2016 at 10:47am

रचना के मर्म तक पहुँचने और उसकी मुक्तकंठ प्रशंसा के लिए दिल से आपका शुक्रिया अदा करता हूँ आ० राजेश कुमारी जी.


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on October 14, 2016 at 10:45am

लघुकथा की सराहना हेतु तह-ए-दिल से शुकरगुज़ार हूँ मोहतरम जनाब तसदीक़ अहमद खान साहिब.


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on October 14, 2016 at 10:44am

दिल से आपका शुक्रिया अदा करता हूँ आ० सुशील सरना जीI


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on October 14, 2016 at 10:31am
रचना पसंद करने हेतु हार्दिक आभार आ० अर्पणा शर्मा जीI
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on October 12, 2016 at 9:19pm

मोहतरम  जनाब योगराज   साहिब  ,  नई और पुरानी संस्कृति को बयान करती  और  सीख देती सुन्दर  लघु कथा   के  लिए दिल से मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 12, 2016 at 9:08pm

ठन्डे चूल्हे और खाली कनस्तर को देखते हुए माँ का कहना की मेरा श्राद्ध नहीं करना अपने में बहुत ही गूढता भाव समाये हुए है कोई भी माँ जीते जी तो क्या मरने के बाद भी अपने बच्चों को परेशान नहीं देखना चाहती जीते जी बच्चों ने दरिद्रता में भी माँ की इतनी सेवा की की वो तृप्त होकर संसार त्याग रही है फिर उस श्राद्ध में क्या रक्खा है जिसको बच्चे परेशानी में एक रीतिरिवाज समझकर निभाते रहें उस जंजीर से उस अंधी आस्था से मुक्ति देना चाहती है माँ अपने बच्चों को |दूसरा एक पहलु इस लघु कथा का ये भी है की इतने दरिद्र होते हुए भी बहू ने सास की निःस्वार्थ सेवा की है जो अमूमन खाते पीते घरों में देखने को नहीं मिलता यहाँ भी यह लघु कथा बहुत ही सार्थक सन्देश दे रही है |बहुत अच्छी लघु कथा लिखी है आद० योगराज जी बहुत बहुत बधाई  |प्रस्तुति पर थोड़ी देर से पँहुची जिसका खेद है |

Comment by Sushil Sarna on October 10, 2016 at 3:54pm

ठण्डे चूल्हे और आटे के खाली कनस्तर की तरफ ताकते हुए माँ ने कहा:
“वचन दो कि मेरे मरने के बाद तुम कभी मेरा श्राद्ध नहीं करोगे.”

वाह आदरणीय योगराज जी ... हकीकत बयाँ करती इस मार्मिक लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई कबूल फरमाएं सर। उपरोक्त पंच लाइन ने मार्मिकता, गहनता और भावों को जो जामा पहनाया है वो वाकई तारीफ़ के काबिल है। दिल से दाद कबूल फरमाये सर।

Comment by Arpana Sharma on October 10, 2016 at 3:34pm
एक सीधी-सरल परंतु गूढ़ -गहन भावनाओं से युक्त लघुकथा । जहाँ पुत्र दरिद्रता के विवश कातर महसूस करता हैं वहीं माँ जो कि सब परिस्थितियों को देखती आरही है , मरणोपरांत भी पुत्र के लिये, श्राद्ध के रूप में समस्या उत्पन्न नहीं करना चाहती। " ठंडा चूल्हा और आटे का खाली कनस्तर" उस घर की आर्थिक दशा और माँ की अंतिम इच्छा के पीछे मनोदशा को अत्यंत मार्मिक रूप से दर्शाता है। बहुत बधाई एवं साधुवाद आ.श्रीमान् प्रभाकर जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" साहिब आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
4 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय निलेश शेवगाँवकर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद, इस्लाह और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
4 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी आदाब,  ग़ज़ल पर आपकी आमद बाइस-ए-शरफ़ है और आपकी तारीफें वो ए'ज़ाज़…"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज भाईजी के प्रधान-सम्पादकत्व में अपेक्षानुरूप विवेकशील दृढ़ता के साथ उक्त जुगुप्साकारी…"
6 hours ago
Ashok Kumar Raktale commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"   आदरणीय सुशील सरना जी सादर, लक्ष्य विषय लेकर सुन्दर दोहावली रची है आपने. हार्दिक बधाई…"
6 hours ago

प्रधान संपादक
योगराज प्रभाकर replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"गत दो दिनों से तरही मुशायरे में उत्पन्न हुई दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति की जानकारी मुझे प्राप्त हो रही…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"मोहतरम समर कबीर साहब आदाब,चूंकि आपने नाम लेकर कहा इसलिए कमेंट कर रहा हूँ।आपका हमेशा से मैं एहतराम…"
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"सौरभ पाण्डेय, इस गरिमामय मंच का प्रतिरूप / प्रतिनिधि किसी स्वप्न में भी नहीं हो सकता, आदरणीय नीलेश…"
7 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय समर सर,वैसे तो आपने उत्तर आ. सौरब सर की पोस्ट पर दिया है जिस पर मुझ जैसे किसी भी व्यक्ति को…"
8 hours ago
Samar kabeer replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"प्रिय मंच को आदाब, Euphonic अमित जी पिछले तीन साल से मुझसे जुड़े हुए हैं और ग़ज़ल सीख रहे हैं इस बीच…"
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, किसी को किसी के प्रति कोई दुराग्रह नहीं है. दुराग्रह छोड़िए, दुराव तक नहीं…"
15 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"अपने आपको विकट परिस्थितियों में ढाल कर आत्म मंथन के लिए सुप्रेरित करती इस गजल के लिए जितनी बार दाद…"
16 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service