पिता की मृत्यु के बारह दिन गुज़र गये थे, नाते-रिश्तेदार सभी लौट गये। आखिरी रिश्तेदार को रेलवे स्टेशन तक छोड़कर आने के बाद, उसने घर का मुख्य द्वार खोला ही था कि उसके कानों में उसके पिता की कड़क आवाज़ गूंजी, "सड़क पार करते समय ध्यान क्यों नहीं देता है, गाड़ियाँ देखी हैं बाहर।"
उसकी साँस गहरी हो गयी, लेकिन गहरी सांस दो-तीन बार उखड़ भी गयी। पिता तो रहे नहीं, उसके कान ही बज रहे थे और केवल कान ही नहीं उसकी आँखों ने भी देखा कि मुख्य द्वार के बाहर वह स्वयं खड़ा था, जब वह बच्चा था जो डर के…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on December 3, 2016 at 6:58pm — 9 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on December 3, 2016 at 6:00pm — 9 Comments
Added by Arpana Sharma on December 3, 2016 at 4:00pm — 5 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on December 2, 2016 at 4:30pm — 17 Comments
Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on December 2, 2016 at 12:00pm — 8 Comments
बह्र : 2122 2122 2122 212
आदमी की ज़िन्दगी है दफ़्तरों के हाथ में
और दफ़्तर जा फँसे हैं अजगरों के हाथ में
आइना जब से लगा है पत्थरों के हाथ में
प्रश्न सारे खेलते हैं उत्तरों के हाथ में
जोड़ लूँ रिश्तों के धागे रब मुझे भी बख़्श दे
वो कला तूने जो दी है बुनकरों के हाथ में
छोड़िये कपड़े, बदन पर बच न पायेगी त्वचा
उस्तरा हमने दिया है बंदरों के हाथ में
ख़ून पीना है ज़रूरत मैं तो ये भी मान लूँ
पर…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 2, 2016 at 10:23am — 16 Comments
221 2121 1221 212
जो खोजते हैं रोज़ कोई मुद्दआ मिले
तफ़्सील में गये तो वो ख़ुद से ख़फ़ा मिले
नफरत मिली है देखिये नफरत से इस तरह
मजबूरियों में तेल ज्यूँ पानी से जा मिले
हारे हुए मिलेंगे जहाँ खार कुछ तुम्हें
मुमकिन है उस जगह से मिरा भी पता मिले"
हम दिल से चाहते हैं उन्हें दाद हो अता
जो नेवले की जात हो, साँपों से जा मिले
बादल बरस के साथ ही ऐलान कर गया
क़िस्मत ही फैसला करे, अब तुझको क्या…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on December 2, 2016 at 9:30am — 28 Comments
2122 1122 1122 22
अश्क आए तो निगाहों को सजा क्या दोगे ।
है पता खूब वफाओं को सिला क्या दोगे।।
खत जो आया था मुहब्बत की निशानी लेकर ।
लोग पूछें तो जमाने को बता क्या दोगे ।
सुन लिया मैंने तेरे प्यार के किस्से सारे ।
टूट जाए जो मेरा दिल तो खता क्या दोगे ।।
मेरी किस्मत ने मुझे जब भी पुकारा होगा ।
मुझको मालूम मेरे घर का पता क्या दोगे ।।
आशियाँ जब भी उजाड़ोगे तो मुश्किल होगी ।
तेरी हस्ती ही नही मुझको हटा क्या दोगे…
Added by Naveen Mani Tripathi on December 2, 2016 at 2:30am — 16 Comments
बंद हुए बैंक नोट का आत्मकथ्य
दाँव पर लगता रहा मैं
आँख में सबकी बसा मैं।1
रूप बदला, रंग बदला,
रात-दिन चंचल चला मैं।2
बन जिगर का पुरशकूं क्षण
घर भरा,कितना सहा मैं।3
फिर चलन से दूर होकर
बे-चलन अब हो गया मैं।4
रो रहा,जगता 'बटोरू',
चैन से अब सो रहा मैं।5
मौलिक व अप्रकाशित@मनन
Added by Manan Kumar singh on December 1, 2016 at 4:30pm — 10 Comments
2122 1122 1122 22
मांग इनसे न दुआ जख़्म दिखाने वाले ।
दौलते हुस्न में मगरूर ख़जाने वाले ।।
जो निगाहों की गुजारिश से खफा रहता है ।
कितने जालिम हैं अदाओं से जलाने वाले ।।
एक मुद्दत से तेरी राह पे ठहरी आँखें ।
क्या मिला तुझ को हमे छोड़ के जाने वाले ।।
था रकीबों का करम शाख से टूटा पत्ता ।
यूं निभाते है यहां फर्ज ज़माने वाले ।।
टूट जाते है वो रिश्ते जो कभी थे चन्दन ।
इश्क़ क्यों जुर्म है मजहब को चलाने वाले ।।
मेरी…
Added by Naveen Mani Tripathi on December 1, 2016 at 4:00pm — 13 Comments
कुण्डलिया छंद
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तिल हो गोरे गाल पर, निखरे गोरे गाल,
अला बला फटकें नहीं, किसकी गलती दाल
किसकी गलती दाल, पस्त हो सबकी हिम्मत
रखें फटें में पाँव, कौन की खोटी किस्मत |
चन्दा के भी दाग, सिन्धु में प्रेम सलिल हो
सुन्दरता का चिन्ह, अगर गौरी के तिल हो |
- लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 1, 2016 at 3:30pm — 10 Comments
Added by Mahendra Kumar on December 1, 2016 at 1:30pm — 10 Comments
नयी ग़ज़ल
बह्र - २१२२ २१२२ २१२
अजनबी हमसे सदा रहता नहीं
चाहता है फिर गिला रहता नहीं
वो जफ़ा कर क्यों खफा तुमसे हुआ
बा वफ़ा साथी जुदा रहता नहीं
आईना टूटा तभी तो रो दिये
नूर आँखों का बुझा रहता नहीं
दोस्त तेरा प्यार मुझ पे इस कदर
टूटकर भी वो ख़फा रहता नहीं
तू मना ले चाह कर भी ऐ “निधी”
नाखुशी से वो ख़ुदा रहता नहीं
मौलिक और अप्रकाशित
Added by Nidhi Agrawal on November 30, 2016 at 11:00am — 4 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on November 29, 2016 at 11:49pm — 12 Comments
क्षण भर पीर को सोने दो .....
क्षण भर पीर को सोने दो
चाह को मुखरित होने दो
जाने चमके फिर कब चाँद
अधर को अधर का होने दो
क्षण भर पीर को सोने दो .....
आलौकिक वो मुख आकर्षण
मौन भावों का प्रणय समर्पण
अंतस्तल को तृप्त तृषा का
वो छुअन अभिनंदन होने दो
क्षण भर पीर को सोने दो .....
बीत न जाए शीत विभावरी
विभावरी तो विभा से हारी
अंग अंग को प्रीत गंध का
अनुपम उपवन होने दो
क्षण भर पीर…
ContinueAdded by Sushil Sarna on November 29, 2016 at 8:34pm — 6 Comments
लिपट चंद्रिका चंद्र, करें वे प्रणय परस्पर।
निरखें उन्हें चकोर, भाग्य को कोसें सत्वर।।
हाय रूप सुकुमार, कंचु अरुणाभा वाली।
स्वर्ग परी समरूप, सिन्धु सी नयनों वाली॥
व्याकुल हुए चकोर, मेघ चंदा को ढक ले।
रसधर सुन्दर अधर, हृदय कहता है छू ले।।
सीमा अपनी जान, लगे सब रीता खाली।
स्वर्ग परी समरूप, सिन्धु सी नयनों वाली॥
रहे उनीदे नैन, सजग अब निरखे उनको।
देख देख हरषाय, तृप्त करते निज मन को।।
हुए अधूरे आप, नहीं वह मिलने वाली।
स्वर्ग परी…
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on November 28, 2016 at 10:30pm — 8 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on November 28, 2016 at 7:48pm — 13 Comments
2122 2122 2122 212
रेत को आब-ए-रवाँ और धूप को झरना लिखा
बेखुदी में तूने मेरे दोस्त ये क्या-क्या लिखा
वो तो सीधे रास्ते पर था मगर यह देखिये
नासमझ लोगो ने उसका हर क़दम उल्टा लिखा
एक मुद्दत से अदब में है सियासत का चलन
मैं अलग था नाम के आगे मेरे झूठा लिखा
जब तेरे दिल में कभी उभरा जो मंज़र शाम का
तूने काग़ज़ पर महज मय सागर-ओ-मीना लिखा
अब मुहब्बत पर अक़ीदत ही नहीं है लोगों को
इसलिए पाक़ीज़गी को ही…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on November 28, 2016 at 2:30pm — 20 Comments
Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on November 28, 2016 at 11:02am — 16 Comments
अरकान – 2122 12 12 22
कुछ भी मिलता न सच बताने से |
फिर तो हम क्यों कहें ज़माने से|
कोशिशें लाख हमने की लेकिन,
इश्क छुपता नहीं छुपाने से|
कहकहे उनके गूंजते हरज़ा,
हम तो डरते हैं मुस्कुराने से
लाख सोचा कि भूल जाऊँ पर,
याद आते हो तुम भुलाने से|
मिन्नतें मैंने लाख की लेकिन
क्या मिला मुझको सर झुकाने से
या ख़ुदा कुछ न पा सका ‘मिंटू’
रायगाँ ज़िन्दगी गँवाने से…
ContinueAdded by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on November 27, 2016 at 8:30pm — 4 Comments
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