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अक्सर मैं फूलों को बचाया करता हूँ,--ग़ज़ल

2212/2212/2212



अक्सर मैं फूलों को बचाया करता हूँ,



काँटो से मैं खुद को सजाया करता हूँ।







इन मन्दिरों में मस्जिदों में जाना क्या,



कुछ भूखे बच्चों को खिलाया करता हूँ।







रोता बहुत हूँ पर तुने जाना नही,



गम को मियाँ हँस कर छुपाया करता हूँ।







मुझसे भी मिलने गाँव तुम आया करो,



मै सब को आईना दिखाया करता हूँ।







मै प्यार मे जीता करूं ! चाहत नही,



मै प्यार मे… Continue

Added by Hemant kumar on May 10, 2017 at 11:47am — 8 Comments

उड़ती हुई पतंग

एक नवगीत

 

गायब हैं नकली रंगों में,

होली के हुडदंग.

नजर न आती आसमान में,

उड़ती हुई पतंग.

 

पड़ी ठण्ड जब रहे सिकुड़ते,

मिली न छत सबको,

मई जून में खूब तपाया,

सूरज ने…

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Added by बसंत कुमार शर्मा on May 10, 2017 at 9:31am — 6 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
ग़ज़ल - इब्न ए मरियम हैं, तो शिफ़ा करिये ( गिरिराज भंडारी )

( दूसरे शेर के ऐब ए तनाफुर को कृपया स्वीकार करें )

2122  1212   22/112

ज़ह’नियत यूँ न बरहना करिये

अपने जामे में ही रहा करिये

 

आब ठंडक ही दे हमें हरदम     

आग, गर्मी ही दे दुआ करिये

 

बेवफा हो गये हैं जो साबित    

उनसे क्या खा के अब वफ़ा करिये

 

जुगनुओं की चमक चुरायी है  

शम्स ख़ुद को न अब कहा करिये

 

सिर्फ बीमार कह के चुप न रहें

इब्न ए मरियम हैं, तो शिफ़ा…

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Added by गिरिराज भंडारी on May 10, 2017 at 8:00am — 12 Comments

"तरही ग़ज़ल , जनाब रवि शुक्ल साहिब की नज़्र"

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फाइलुन



पहले अपनी रूह का ये मक़बरा रोशन करें

और इसके बाद हम सोचें कि क्या रोशन करें



गर मयस्सर घी नहीं है,तेल का रोशन करें

मन्दिर-ओ-मस्जिद में जाएँ इक दिया रोशन करें



ये हमारी ज़िम्मेदारी है, हमारा फ़र्ज़ भी

नाम अपने बाप दादा का सदा रोशन करें



नफरतों के इन अँधेरों को मिटाने के लिये

हम चराग़ उल्फ़त के यारो जा ब जा रोशन करें



याद कर के नज़्म 'हाली'की,ज़ईफ़ा की तरह

झुटपुटे के वक़्त मिट्टी का दिया रोशन… Continue

Added by Samar kabeer on May 9, 2017 at 11:30pm — 26 Comments

चाँद तारे बना टाँकती रह गई

212  212 
झाँकती रह गई |
ताकती रह गई |


चाँद तारे बना
टाँकती रह गई |


अंत है कब कहाँ
आँकती रह गई |


चाशनी हाथ ले 
बाँटती रह गई |


साँच को आँच थी
हाँकती रह गई |


रेत में जब फँसी
हाँफती रह गई |


प्यास कैसे बुझे
बाँचती रह गई |
(मौलिक अप्रकाशित)

 

 

Added by Chhaya Shukla on May 9, 2017 at 9:30pm — 12 Comments

हिन्दी ग़ज़ल...जब सूर्य चले अस्ताचल को

22 22 22 22
जब सूर्य चले अस्ताचल को
गहराय तिमिर घेरे तल को

इक दीप जलाओ अंतस में
जगमग कर दो भूमण्डल को

आवाज बनो तुम गूंगों की
तूफान बना दो हलचल को

जब चलना है, तो साथ चलें
पग से नापें नभ जल थल को

दुःख दुनिया का पी लेंगें 'ब्रज'
रक्खो तैयार हलाहल को
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 9, 2017 at 7:00pm — 17 Comments

स्मृति पृष्ठ ...

स्मृति पृष्ठ ...

रजनी के

श्यामल कपोलों पर

मेघों की बूंदों ने

व्यथित यादों के

पृष्ठों पर जैसे

सान्तवना का

आभासीय श्रृंगार कर डाला

दृग कलशों से

सजल वेदना

प्रीत की

पराकाष्ठा को

चेहरे की लकीरों में

शोभित करती रही

प्राण और देह में

जीवन संघर्ष चलता रहा

किसी को विस्मरण करने के

सभी उपचार

रेत की भित्ति से

ढह गए

थके नयन

आशा क्षणों की

गहन कंदराओं में…

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Added by Sushil Sarna on May 9, 2017 at 3:59pm — 13 Comments

तरही गजल : फूल जंगल में खिले किन के लिये

2122 2122 212

कार्ड काफी था न लॉगिन के लिए

वो हमे भी ले गए पिन के लिए



चाँद पर जाकर शहद वो खा रहे

आप अब भी रो रहे जिन के लिए



शेर को आता है बस करना शिकार

फूल जंगल में खिले किन के लिए



गुठलियों के दाम भी वो ले गया

उसने शीरीं आम जब गिन के लिये



आ गई अब ब्रेड में बीमारियाँ

जी रहे थे क्या इसी दिन के लिए



आये थे जापान से कल लौट कर

फिर उड़े वो रूस बर्लिन के लिए



पास पप्पू एक दिन हो…

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Added by Ravi Shukla on May 9, 2017 at 11:46am — 27 Comments

कोई रिश्ता निभाया जा रहा है

मापनी -१२२२ १२२२ १२२

कोई रिश्ता निभाया जा रहा है

मुझे फिर से बुलाया जा रहा है

 

भले ही खिड़कियाँ हैं बंद घर की,

मगर परदा उठाया जा रहा है

 

पड़ीं हैं नींव में चुपचाप ईंटे,

भले बोझा बढाया जा रहा…

Continue

Added by बसंत कुमार शर्मा on May 9, 2017 at 10:00am — 19 Comments

नूर की हिंदी ग़ज़ल ..दर्पणों से कब हमारा मन लगा

२१२२/२१२२/२१२ 

.

दर्पणों से कब हमारा मन लगा

पत्थरों के मध्य अपनापन लगा. 

.

लिप्त है माया में अपना ही शरीर

ये समझ पाने में इक जीवन लगा.

.

तप्त मरुथल सी ह्रदय की धौंकनी

हाथ जब उस ने रखा चन्दन लगा.

.

मूर्खता पर करते हैं परिहास अब

जो था पीतल वो हमें कुन्दन लगा.

.

प्रेम में भी कसमसाहट सी रही

प्रेम मेरा आपको बन्धन लगा.

.

जल रहे हैं हम यहाँ प्रेमाग्नि में

और उस पर ये मुआ सावन लगा.…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on May 9, 2017 at 10:00am — 37 Comments

सही - गलत -- डॉo विजय शंकर

हम इसके गलत की बात करते हैं
उसके गलत की बात नहीं करते हैं ,
हम इसके उसके की बात करते हैं
सही गलत की बात नहीं करते हैं।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Dr. Vijai Shanker on May 8, 2017 at 8:00pm — 10 Comments

उल्फत न सही बैर निभाने के लिए आ.(समीक्षार्थ ग़ज़ल) :अलका ललित

221 1221 1221 122

***

उल्फत न सही बैर निभाने के लिए आ

चाहत के अधूरे से फ़साने के लिए आ

.

चाहत भरी दस्तक भी सुनी थी कभी दिल ने

वीरानियों को फिर से बसाने के लिए आ

.

शब्दों की कमी तो मुझे हरदम ही रही है

खामोश ग़ज़ल कोई सुनाने के लिए आ

.

सागर ये गमों का कहीं तट तोड़ न जाए

ऐ राहते जां बांध बनाने के लिए आ

.

रौशन दरो दीवार है झिलमिल है सितारे 

ऐ चाँद मेरे मुझको…

Continue

Added by अलका 'कृष्णांशी' on May 8, 2017 at 4:00pm — 10 Comments

साहस

कविता ने 

चूमा

उसके 

दिल को 

मायनों में

एक आदमी में 

कभी नहीँ

था

इतना 

साहस

(मौलिक एवं अप्रकाशित )

Added by narendrasinh chauhan on May 8, 2017 at 12:34pm — 5 Comments

राष्ट्र व इसके सपूतों को समर्पित

राष्ट्र मेरा है अलबेला है इसकी छवि निराली,

लाल हुए है पैदा ऐसे जिनके बोल गए न खाली।



क्या लाला क्या वल्लभ जी ?

गोद में अपनी इसने तो रानी लक्ष्मी भी है पाली ।



अरे उनकी तो बात ही क्या जो फाँसी चढ़ गए हँसते-हँसते,

न जाने कितने वीरों को दिखा दिए थे आजादी के रस्ते।



आजाद था आजाद रहेगा करलो चाहे जितनी मनमानी,

अभी तो बस शुरू हुई है उन आर्यों की ये अमर कहानी।



श्री राम की मर्यादा है जो हमने तुझको माफ़ किया,

मत भूल कि उस बिस्मिल ने फिर न… Continue

Added by साक्षी शर्मा on May 8, 2017 at 10:06am — 11 Comments

ख्वाब भी तेरा सताता है मुझे

एक ग़ज़ल का प्रयास

२१२२ २१२२ २१२

 

नींद में आकर सताता  है मुझे

ख्वाब भी तेरा जगाता है मुझे

 

झूमती आती घटायें बदलियाँ,

प्यार का मौसम बुलाता है मुझे

 

सर्दियों में सूर्य भाया था बहुत,  …

Continue

Added by बसंत कुमार शर्मा on May 8, 2017 at 10:00am — 14 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
ग़ज़ल - क्या कज़ा को हयात कहता है ? ( गिरिराज भंडारी )

2122  1212  22 /112

क़ैद को क्यों नजात कहता है

क्या कज़ा को हयात कहता है ?

 

तीन को अब जो सात कहता है

बस वही ठीक बात कहता है

 

क्यूँ न तस्लीम  उसको कर लूँ मैं

वो मिरे दिल की बात कहता है

 

कैसे कह दूँ कि वास्ता ही नहीं

रोज़ वो शुभ प्रभात कहता है

 

ऐतराज उसको है शहर पे बहुत

हाथ अक्सर जो हात कहता है

 

उसकी बीनाई भी है शक से परे   

जो सदा दिन को रात कहता है

 

जीत जब…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on May 8, 2017 at 10:00am — 21 Comments

गजल(कुर्सी के हाथ हुए पीले)

22 22 22 22

***********

कुर्सी के हाथ हुए पीले

साहब जी अब पड़ते ढ़ीले।1



पानी उतरा जाता उनका

दीख रहे टीले ही टीले।2



बिकते आये घोड़े माफिक

रंग रहे काफी चटकीले।3



याद सताती कुर्सी की तो

हो जाते हैं खूब हठीले।4



ढूँढ रहे वे रोज सनद ही

उम्मीद बँधे तो हैं फुर्तीले।5



कुर्सी ढ़ाढ़स देती,कहती-

पाँच बरस कैसे भी जी ले।6



रक्त पिये जायेगा कितना

थोड़ा-थोड़ा आँसू पी ले।7



अँधियारे में वस्त्र फटा… Continue

Added by Manan Kumar singh on May 8, 2017 at 7:00am — 12 Comments

ग़ज़ल: सूखे-सूखे जंगल अब

बह्र-22/22/22
सूखे-सूखे जंगल अब,
रूठे-रूठे बादल अब ।

.
वादे, नारे सब झूठे,
बदले-बदले हैं दल अब ।

.

देखो किसकी साज़िश है,
रिश्ते-नाते घायल अब ।

.

बोतल में ऊँचे दामों,
बिकता है गंगा जल अब ।

.

ग़रीब के घर भी यारों,
ख़ुशियों वाला हो पल अब ।

.
मौलिक एवं अप्रकाशित ।

Added by Mohammed Arif on May 7, 2017 at 9:00pm — 13 Comments


प्रधान संपादक
तरही ग़ज़ल-2 (आ० समर कबीर जी को समर्पित)

1222 1222 122
.
हमारा धर्म दहशत है? नहीं तो!

तो पूरी क़ौम सहमत है? नहीं तो!
.
तेरे हाथों में ख़ंजर है, मेरे भी
ये क्या अच्छी अलामत है? नही तो



फ़क़त मंदिर ओ मस्जिद के मसौदे,

यही क़ौमी क़यादत है? नही तो!  



अज़ीमुश्शां मक़ाबिर के जो खालिक,

कहीं उनकी भी तुर्बत है? नही तो!


जहाँ पत्थर की हर देवी सुरक्षित,

वहाँ बेटी…
Continue

Added by योगराज प्रभाकर on May 7, 2017 at 7:30pm — 18 Comments

ललक दिल को रिझाने की -लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’ (ग़ज़ल)

ग़ज़ल



1222 1222 1222 1222

ललक दिल को रिझाने की जो खूनी हो गई होगी

किसी का सुख किसी की पीर दूनी हो गई होगी।1।

सभी के हाथ में गुल हैं यहाँ जुल्फें सजाने को

न जाने किस चमन की शाख सूनी हो गई होगी।2।

हवा बंदिश की सुनते हैं बहुत शोलों को भड़काए

मुहब्बत यार कमसिन की जुनूनी हो गई होगी।3।

हमें तो सुख रजाई का मिला है शीत में यारो

किसी जंगल में फिर से तेज धूनी हो गई होगी।4।

नहीं उसको…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 7, 2017 at 1:19pm — 12 Comments

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