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सूरजमुखी - लघुकथा

"मणिधर, ये 'गिफ्ट पैक' 222 नंबर में मैडम को दे आओ।" सिक्योरटी इंचार्ज का आदेश मिलते ही उसके मन में एक विचार कौंध गया था और कुछ क्षण बाद ही वह एक हाथ में 'गिफ्ट' और दूसरे हाथ में चटक लाल रंग का गुब्बारा लिये मैडम के दरवाजे पर था।

बहुत ज्यादा दिन नही हुए थे उसे, इस मल्टीस्टोरी फ्लैटों से सुसज्जित सुंदर सोसायटी में सुरक्षा गार्ड की ड्यूटी पर आये हुए। आते-जाते लोगों की निगरानी के बीच खाली समय में वह अक्सर फ्लैटों पर अपनी नजरें घुमाया करता था। और इसी बीच सातवें माले के उस कार्नर फ्लैट की बड़ी…

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Added by VIRENDER VEER MEHTA on September 9, 2017 at 8:30pm — 23 Comments

गीत बन कर मिलो.....

गीत बन कर मिलो, गुनगुनाऊँगा मैं,

मेरी जाने ग़ज़ल, तुमको गाऊँगा मैं...

दूरियां दरमियां, और कब तक रहें,

ग़म जुदाई के हम, बोलो कब तक सहें,

और कब तक भला, आजमाऊँगा मैं,

मेरी जाने ग़ज़ल....

एक दस्तक हुई, आज दिल पे मेरे,

मेरी उम्मीद है, ये करम हो तेरे,

और कब तक यूँ ही, दिल जलाऊँगा मैं...

मेरी जाने ग़ज़ल....

दिन ये ख़ामोश हैं, रात में करवटें,

आरजू है धुआँ, याद में सिलवटें,

तुमको कैसे भला, भूल पाऊँगा मैं,

मेरी जाने…

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Added by Ravindra Pandey on September 9, 2017 at 2:30pm — 4 Comments

गजल(तंज कसे...)

22 22 22 22

तंज कसे फिर हाथ हिलाये।

लगता खुद पर ही पछताये।1



हाथ मिलाना,ख़ंजर लेकर,

यह चीनी लहजा कहलाये।2



बेमतलब का घुसपैठी बन

अरुणाचल पर आँख गड़ाये।3



बासठ बासठ करता रहता

सतरह में वह पीठ दिखाये।4



भारत के अंदर वह अपने

देश बने सामां बिकवाये।5



'आतंकी सब ढ़ेर करेंगे',

कह लेता,फिर फिर सहलाये।6



पाँच दिशा के दोस्त बुलाकर(ब्रिक देश)

अपना ही बाजा बजवाये।7



भूल गया सब चाल-बिसातें

पाँच… Continue

Added by Manan Kumar singh on September 9, 2017 at 12:03pm — 10 Comments

मेघदूत (उत्तर मेघ) के ४३ एवं ४४ वें छंद का काव्यानुवाद

प्रिये, स्वप्न दर्शन में जब तुम किसी भाँति हो मिल जाती

निष्ठुर भुजपाशों में भरने की ज्यों ही बेला आती

आतुर हो जब महा शून्य में अपना भुज मैं फैलाता   

 मेरी करुणा पर वन देवी  का दृग-अंचल भर आता 

 मोटे-मोटे मुक्ताहल से अश्रु कपोलों पर आते 

और पादपों के पल्लव पर  सहसा बरस बिखर जाते   (४३)

                

देवदार तरु के नैसर्गिक मुड़े हुए मृदु पातों को 

सहज खोल दक्षिण से आती हिमपर्वत की वातो को

जो उन पल्लव के फुटाव से बहते पय-निर्यासों…

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Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 9, 2017 at 11:30am — 5 Comments

सियाह ज़ुल्फ़ के साये में शाम हो जाये

1212 1122 1212 22*

ये ख्वाहिशें हैं कि दिल तक मुकाम हो जाये ।

सियाह ज़ुल्फ़ के साये में शाम हो जाये ।।



हैं मुन्तज़िर सी ये आंखे कभी तू मिल तो सही।

नए रसूख़ पे मेरा कलाम हो जाये ।।





बड़े गुरुर से उसने उठाई है बोतल ।

ये मैकदा न कहीं फिर हराम हो जाये ।।



फिदा है आज तलक वो भी उस की सूरत पर ।

कहीं न वो भी सनम का गुलाम हो जाये ।।



अदा में तेज हुकूमत की ख्वाहिशें लेकर ।

खुदा करे कि वो दिल का निजाम हो जाए ।।





किसी… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on September 9, 2017 at 1:30am — 9 Comments

मिरा दिल ये कैसे ....संतोष

मिरा दिल ये कैसे बदल गया,
फिर तिरी यादों से बहल गया ।

मैंने देखी जो फिर तस्वीर तिरी,
मिरा दिल फिर से मचल गया ।

लोग ज़ालिम हैं सब कुछ जाने है,
क़िस्सा फिर दुनियाँ में उछल गया ।

तिरी यादों में खोया मैं इस क़दर,
सुबह का सूरज शाम में ढल गया ।

दास्ताँ मिरी जो इक बुत को सुनाई,
वो पत्थर भी मोम सा पिघल गया ।
#संतोष
{मौलिक एवं अप्रकाशित}

Added by santosh khirwadkar on September 8, 2017 at 10:30pm — 7 Comments

काश!

दूर गगन को मैं छू पाऊँ,

काश! कभी ऐसा हो सकता

पाखी बन कर मैं उड़ जाऊँ,

काश! कभी ऐसा हो सकता ?



सारा अंबर घर हो मेरा ।

सदा धरा पर रहे बसेरा ।

इंद्र्धनुष भी मैं बन जाऊँ,

काश! कभी ऐसा हो सकता ?



फूलों की ख़ुशबू बन महकूँ ।

चिड़ियों की जैसी मैं चहकूँ ।

सारा गुलशन मैं महकाऊँ,

काश! कभी ऐसा हो सकता ?



चंदा की मैं ओढ़ चुनरिया।

तारों के संग छैयाँ छैयाँ ।

रोज़ चाँदनी सी झर जाऊँ,

काश! कभी ऐसा हो सकता ?



मौलिक… Continue

Added by Uma Vishwakarma on September 8, 2017 at 10:10pm — 3 Comments

ग़ज़ल - दिलबर तुम कब आओगे " सलीम रज़ा

22 22 22 22 22 22 22 2

...........................................

दिलबर तुम कब आओगे सबआस लगाए बैठे हैं "

देखो  फूलों  से  अपना  घर - बार सजाए बैठे हैं "

.

हम तो उनके प्यार का दीपक दिल में जलाए बैठे हैं " 

जाने  क्यों  वो  हमको  अपने  दिल से भुलाए बैठे हैं "

.

किसको ख़बर थी भूलेंगे वो बचपन की सब यादों को "

उनकी  चाहत आज तलक हम दिल में बसाए बैठे हैं "…

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Added by SALIM RAZA REWA on September 8, 2017 at 10:00pm — 5 Comments

लघु कथा

चिंता



"चलो जल्दी । सब बाहर निकलो । बाँध टूट चुका है। पानी बहुत तेज़ी से इधर की ओर आ रहा है ।" बाहर से कई आवाज़ें आ रही थी । आवाज़ सुनते ही शन्नो रसोई में घुस गई । पूरे घर में घुटने तक पानी भर चुका था । रसोई से दाल,चावल,आटा,नमक जितना कुछ उसके दुपट्टे में बँध सका, उसने बाँध लिया । ऊपर रखे डिब्बे में से गुड़मुड़ाए नोटों को निकलना कैसे भूल सकती थी ? निकालने को वो उचकी ही थी कि तभी "अरे! शन्नो जल्दी चल । सब छोड़ दे।" बाहर रफ़ीक चिल्ला रहे थे। "कहाँ मर गई ? जाने कौन सी कचौड़ी पका रही है… Continue

Added by Uma Vishwakarma on September 8, 2017 at 5:48pm — 6 Comments

घरोंदों को जलाया है किसी ने दोस्ती करके

१२२२ १२२२ १२२२ १२२२

घरोंदों को जलाया है किसी ने दोस्ती करके 

चिरागों को बुझाया है किसी ने दोस्ती करके 

सुकूं था जिसके जीवन में जिसे आती थी मीठी नींद 

उसे शब् भर जगाया है किसी ने दोस्ती करके 

जो दुश्मन था जमाने से जो प्यासा था लहू का ही 

उसी को अब बचाया है किसी ने दोस्ती करके 

अँधेरे में मेरा साया हुआ कुछ इस तरह से गुम

ज्यूँ रिश्ता हर भुलाया है किसी ने दोस्ती करके 

फकीरों की तरह जीता, था खुश तन्हाई…

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Added by Dr Ashutosh Mishra on September 8, 2017 at 5:27pm — 5 Comments

मुझे भी कुछ कहना है – लघुकथा -

 मुझे भी कुछ कहना है –  लघुकथा -

 "माँ, मुझे कुछ पल अकेला छोड़ दो। मुझे एकांत चाहिये"।

"ठीक है नीरू, पर तू अंधेरे में क्या कर रही है? तेरे दिमाग में कुछ ऐसा वैसा तो नहीं चल रहा"।

"माँ, आपकी बेटी इतनी कमजोर नहीं है"।

"मैं जानती हूँ। इसीलिये तो डर लगता है। तू यह लिखना छोड़ क्यों नहीं देती"?

"माँ, आप कैसी बात कर रहे हो? वह मेरी गुरू थी। मेरी आदर्श थी। उसे गोलियों से उड़ा दिया।  और मैं चुप हो कर बैठ जाऊँ। असंभव"।

"बेटी, मुझे तेरी जान की चिंता है। जिस काम…

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Added by TEJ VEER SINGH on September 8, 2017 at 11:06am — 10 Comments

है शिकायत दिल को ऐसा क्यूँ नहीं.....{.ग़ज़ल } संतोष

 अरकान : फ़ाइलातून   फ़ाइलातून  फ़ाइलुन  

है शिकायत दिल को ऐसा क्यूँ नहीं

जब तू मेरा है तो लगता क्यूँ नहीं



जब नज़र से मिल नहीं पाती नज़र

ख़्वाब से बाहर निकलता क्यूँ नहीं



लग रही है क्यूँ थमी दुनिया मुझे

तू भी मौसम सा बदलता क्यूँ नहीं



है ज़बाँ चुप और धड़कन तेज़ है

तू इशारों को समझता क्यूँ नहीं



जिस्म ठण्डा पड़ गया'संतोष'…

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Added by santosh khirwadkar on September 7, 2017 at 6:58pm — 14 Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ५२

बहरे रमल मुसम्मन सालिम

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन: 2122 2122 2122 2122

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है जिगर में कुछ पहाड़ों सा, पिघलना चाहता है

मौसम-ए-दिल हो चुका कुहना बदलना चाहता है

 

छोड़कर सब ही गये ख़ाली है दिल का आशियाना 

अश्क़ बन कर तू भी आँखों से निकलना चाहता है

 

चोट खाकर दर्द सह कर बेदर-ओ-दीवार होकर

दिल तेरी नज़र-ए-तग़ाफ़ुल में ही जलना…

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Added by राज़ नवादवी on September 7, 2017 at 5:30pm — 19 Comments

रंग बिरंगा हो गया हूँ

रंग बिरंगा हो गया हूँ,

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जैसे

कच्ची दोमट

मिट्टी का धेला

धीरे धीरे घुलता है

बारिस के पानी में

और पानी मटमैला मटमैला हो जाता है

मिट्टी की सोंधी सोंधी महक के साथ

बस ऐसी ही

तुम घुलती हो मुझमे

और घुलता जाता है

तुम्हारी आँखों की पुतली का

ये कत्थई रंग

सिर्फ आँखों का रंग ही क्यूँ

तुम्हारे काजल का गहरा काला

आँचल का आसमानी

गालों का गुलाबी

होंठो का मूँगिया

और तुम्हारी हंसी का दूधिया…

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Added by MUKESH SRIVASTAVA on September 7, 2017 at 4:39pm — 5 Comments

प्रेम-पचीसी-भाग 4 (प्रीत-पगे दोहे)

प्रेम-पचीसी--भाग 4(प्रीत-पगे दोहे)



पाप कहूँ किसको भला, किसको समझूँ पुन्न ।

मैं जानूँ इतनी गणित, तुम बिन जीवन सुन्न ।। ...1



तुम मोहन की बाँसुरी, मैं राधा का हास ।

साथ तुम्हारा जब मिले, जीवन हो इक रास ।। ...2



दर्शन दे दो साँवरे, तरस रहे हैं नैन ।

मर जाऊँ मैं चैन से, जीती हूँ बेचैन ।।...3



सुध-बुध जी की खो गई, जबसे लागा हेत ।

मैं इक मछली साँवरे, विरहा तपती रेत ।।...4



बरजा तो माना नहीं, अब रोवे दिन-रैन ।

नैन मिलाकर खो… Continue

Added by khursheed khairadi on September 7, 2017 at 12:48pm — 3 Comments

रहमतों से फ़ासला हो जाएगा

मत कहो हमसे जुदा हो जाएगा ।

वह मुहब्बत में फ़ना हो जाएगा ।।





इश्क के इस दौर में दिल आपका ।

एक दिन मेरा पता हो जाएगा ।।



धड़कनो के दरमियाँ है जिंदगी ।

धड़कनो का सिलसिला हो जाएगा ।।



इस तरह उसने निभाई है कसम ।

वह हमारा देवता हो जाएगा ।।



ऐ दिले नादां न कर मजबूर तू ।

वो मेरी ज़िद पर ख़फ़ा होजाएगा ।।



पत्थरो को फेंक कर तुम देख लो ।

आब का ये कद बड़ा हो जाएगा ।।



मत निकलिए इस तरह बे पैरहन ।

फिर चमन में हादसा… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on September 6, 2017 at 11:49pm — 8 Comments

ग़ज़ल (बह्र-22/22/22/22)

उसको फिर वापस आना है ,
मुझको भी तो समझाना है ।

अब उसकी यादों से हरदम ,
अपने दिल को बहलाना है ।

दूर सदा जो रहते भाई ,
उनको घर वापस लाना है ।

नाम इसी का जीवन देखो ,
हर मुश्क़िल से टकराना है ।

इस दुनिया में सबसे प्यारा ,
अब भारत देश बनाना है ।

मौलिक एवं अप्रकाशित ।

Added by Mohammed Arif on September 6, 2017 at 9:55pm — 8 Comments

आज की बेटी (क्षणिकाएं या अतुकान्त) / शेख़ शहज़ाद उस्मानी

पापा की बेटी

या

बाबा की बेटी।



देश की बेटी

या

वेश में बेटी।



स्वतंत्र बेटी

या

क़ैद में बेटी।



हेर-फेर में बेटी

या

डेरे-फेरे में बेटी।



हाथ बंटाती बेटी

या

'हाथ की सफाई' में बेटी।



गौरवशाली बेटी

या

कलंककारी बेटी।



उठती, उड़ती बेटी

या

उठाती, उड़ाती बेटी।



चौंकती बेटी

या

चौंकाती बेटी।



जीतती, जीती बेटी

या

हारती, मरती… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on September 6, 2017 at 9:09pm — 5 Comments

गैर मुरद्दफ़ ग़ज़ल..मेरे दीदा ए नम में तू ही तू-बृजेश कुमार 'ब्रज'

गैर मुरद्दफ़ ग़ज़ल
2122 1212 22
तेरी आँखें ज़हान की खुशबू
मेरे दीदा ए नम में तू ही तू

गीत ग़ज़लों में तू नुमायाँ है
तेरा ही चर्चा नज़्म में हर सू

याद किसकी शुरुर है किसका
किसलिये आँखों से रवां आँसू

तेरी जुल्फों की खुशबुएँ लेकर
कोई झोंका सबा का जाये छू

धर्म मजहब से ये हुआ हासिल
जल रहे हैं बशर यहाँ धू धु

राज है 'ब्रज' तेरी उदासी में
बेसबब आज फिर बहे आँसू
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on September 6, 2017 at 3:00pm — 2 Comments

ग़ज़ल

ग़ज़ल

2122 1212 22

अब सुनाओ भी फैसला हमको।
जुर्म की दो कोई सज़ा हमको।

तुमको चाहा गुनाह था भारी,
खूब महँगी पड़ी वफ़ा हमको।

सोचते हैं कि अब किधर जाएँ,
रास्ता तो कोई दिखा हमको।

कुछ मुरव्वत जरा दिखा हम पर,
हर दफा तो न आजमा हमको।

हम वो हैं जो कभी नहीं टूटे,
चाहे जी भर के तू सता हमको।

मंजूषा मन

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by मंजूषा 'मन' on September 6, 2017 at 11:19am — 6 Comments

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