For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

*अनुवांशिक गुण*(लघुकथा)राहिला

पिताजी हमेशा के लिए शांत हो चुके थे ।और अपने पीछे छोड़ गए थे अपने ग़ुस्सैल स्वभाव ,बुरी आदतों और थोपे गए फैसलों के अनगिनत किस्से ।साथ ही बड़े और मंझले भाई के रूप में अपनी छाया।लेकिन अपने गिरेवान में झांकने की जुर्रत कौन करता ।भूल से यदि कोई उन्हें आईना दिखा देता, तो झट अनुवांशिक लक्षणों की आड़ में ठीकरा, पिता के सिर पर फूटता ।आज पिताजी के फूल थे।और घर की बैठक में घरु लोगों की बैठक जमी थी।
"अब बुआ !मुझे कोई क्यों दोष दे,गुस्सा तो पिताजी की ही देन है ।स्वभाव और व्यक्तित्व एक दिन में थोड़ी ना बन जाता है।"बात-बेबात पर आसमान सिर पर उठा लेने वालेे बड़े भैया ने अपनी सफाई दी।
"अब जिनके बाप के कर्म पूरी ज़िंदगी ऐसे रहे हों,तो उनके पूतों को क्या कोसना।गुन तो पूरे उन्हीं के आ गए ,इसमें हम क्या कर सकते थे।बल्कि मैनें तो बहुत चाहा फूफाजी! कोई काम जमा लूँ,लेकिन उनकी कुढ़ -कुढ़ के कारण कभी कुछ नहीं कर पाया ।"अफ़सोस की मुद्रा में
कुर्सी पर बेतरतीब से बैठे मंझले भैया ने अपना आवारापन और अलाली भी पिताजी पर डाल दी।
"अरे तो अब डाल लो कोई काम ,अभी कौन सी देरी हो गयी ।"
"फूफाजी !हर काम की एक उम्र होती है ।अब वैसा मन भी नहीं रहा।"
"काम ना करने के सौ बहाने हैं ।यही हाल तेरे बाप का था।यदि अनुकंपा की अनुकंपा नहीं हुई होती तो तुम सब भीख मांग रहे होते।"बुआ तुनक कर बोली।
तभी अचानक छोटे को जाने क्या हुआ वह तेजी से उठा और बैठक से बाहर निकल गया।पीछे से ऊँची आवाज में बड़े भैया ने उसे टोका ।
"अरे तुम्हें क्या हुआ !तुम कहाँ चले?"आवाज़ सुन , वह रुका और बैठक की ड्योढ़ी तक वापस लौट के बोला-
"कुछ नहीं भैया !बस यूँ ही"
"नहीं-नहीं कुछ बात तो है।जिस तेवर में तुम उठ कर जा रहे थे ऐसा आभास होता है जैसे तुम्हें कोई बात बुरी लग गई हो।"
"बिल्कुल बुरी लगी होंगी भाईसाहब!इसे हमारी बातें। ये अम्माँ पर गया है ना ।"मंझले ने ऐसे माहौल में भी चुटकी ली।
"नहीं भाईसाहब ! बुरी तो क्या ,लेकिन मरे हुए व्यक्ति को अब इस तरह से कोसना कहाँ तक उचित है?और ये क्या बात हुई कि अम्माँ पर गया हूँ ।गया तो आप दोनों की तरह मैं भी पिताजी पर ही हूँ।वह भी मरते दम तक ज़िद्दी और अडिग रहे अपनी सोच,अपने फैसलों पर, और मैं भी ज़िद्दी और अडिग हूँ उन्हीं की तरह अपनी सोच और अपने फैसलों पर।सफल जीवन का असली गुर तो वही सिखा कर गए मुझे।तो उनके लिए ऐसी बातें कुछ असहनीय हो गई थीं।"
"ज़रा हम भी तो सुने ,ऐसा क्या सिखा गए तुझे!" मंझले भैया ने कुर्सी सीधी कर ,त्योरियां चढ़ाई।
"यही कि किसी भी स्थिति में उन जैसा नहीं बनना हैं ।"वह उन सब की प्रतिक्रिया देखे बगैर ,एक संक्षिप्त,
सपाट सा उत्तर देकर मां के कमरे की ओर बढ़ गया।




मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 721

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Rahila on September 21, 2017 at 6:52am
आप सभी आदरनीय सुधिजनो का बहुत-बहुत आभार।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on September 14, 2017 at 4:25pm

सुंदर कथा हुई है आदरणीय राहिला जी | हार्दिक बधाई |

Comment by ARUNESH KUMAR 'Arun' on September 12, 2017 at 9:10pm

बेहद सुन्दर लघु कथा है ।

Comment by Mohammed Arif on September 12, 2017 at 2:27pm
आदरणीया राहिला जी आदाब, अच्छी लघुकथा । बधाई स्वीकार करें तथा गुणीजनों की बातों पर गौर करें ।
Comment by पंकजोम " प्रेम " on September 12, 2017 at 9:58am
वाह दी बहुत खूब
Comment by Rahila on September 12, 2017 at 6:38am
आदरणीय महेंद्र सर जी!बहुत-बहुत आभार रचना पर प्रतिक्रिया के लिए।बेशक़ रचना थोड़ी लंबी हो गयी।शायद किसी भी पात्र की वार्ता और प्रतिक्रिया को ना हटा पाने के मोह ने गुंजाइश पैदा कर दी।फिर काम करूंगी इसपर ।रही बात टाइपिंग समस्या की तो मैंने आदरणीय रवि सर जी!से मेसेंजर पर काफी पहले ये प्रॉब्लम शेयर की है।शायद व्यस्तता के चलते उन्होंने msg पर प्रतिक्रिया नहीं की। और समय नियोजन का प्रयास कर, मंच पर और लोगों की रचना पर प्रतिक्रिया देने की अवश्य कोशिश करूंगी।सादर
Comment by Mahendra Kumar on September 11, 2017 at 9:38pm

आ. राहिला जी, लघुकथा अच्छी है किन्तु सम्पादन की गुंजाइश मौजूद है. मेरी तरफ़ से हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. इस मंच पर आ रही टाइपिंग सम्बन्धी समस्या के लिए मुझे लगता है कि आपको कार्यकारणी सदस्यों या आ. प्रधान सम्पादक जी से संपर्क करना चाहिए. आ. समर सर की बात से मैं भी सहमत हूँ. निश्चित ही दूसरी रचनाएँ भी आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया का इंतज़ार करती हैं. सादर.

Comment by Rahila on September 11, 2017 at 8:41pm
आदरणीय तेजवीर सर जी !सादर आभार।
आदरणीय कबीर सर जी!आदाब,सर जी !बड़ी मुश्किल से व्यस्तता के बाबजूद खुद को सक्रिय रख पा रही हूं।दूसरी बड़ी समस्या ये है कि इस मंच पर पता नहीं क्यों टाइपिंग सपोर्ट नहीं करता।मैं कहीं और टाइप कर, कट पेस्ट से रचनाएँ और कमेंट पोस्ट करती हूँ।यहाँ जो भी टाइप करती हूं शब्द से अक्षर बन जाता है।कुछ टाइप नहीं होता ।इसलिए इस मंच से और दूर हो गयी हूँ।रचना की सराहना हेतु आभार।
Comment by Samar kabeer on September 11, 2017 at 6:00pm
मोहतरमा राहिला जी आदाब,अच्छी लगी आपकी लघुकथा,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
एक निवेदन ये कि पटल की दूसरी रचनाएँ भी आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रया का इन्तिज़ार करती हैं,कृपया मंच पर अपनी सक्रियता बनाये रखें ।
Comment by TEJ VEER SINGH on September 11, 2017 at 5:46pm

हार्दिक बधाई आदरणीय राहिला जी।बेहतरीन लघुकथा।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। आ. नीलेश भाई ने अच्छा मार्गदर्शन किया है। इससे यह…"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। यूँ तो पूरी गजल ही लाजवाब हुई है पर ये दो शेर पर अतिरिक्त बधाई…"
5 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदरणीय निलेश शेवगाँवकर जी नमस्कार बहुत खूब ग़ज़ल हुई है हार्दिक बधाई स्वीकार करें सभी शैर बहुत अच्छे…"
5 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदरणीय निलेश नूर जी, ग़ज़ल पर अपकी टिप्पणी के लिए आभार पर कुछ विस्तार से मार्ग दर्शन करते तो अच्छा…"
6 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदरणीय अजय गुप्ता 'अजेय' जी नमस्कार बहुत शुक्रिया आपका अपने समय दिया कुछ त्रुटियों की…"
6 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ग़ज़ल का बहुत अच्छा प्रयास है। तीन शेर 4,5, व 6 तो बहुत अच्छे लगे। बधाई…"
6 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"अंत आतंक का हुआ तो नहींखून बहना अभी रुका तो नहीं में कुछ ग़ल़त नहीं है। हुआ अपने आप में पूर्ण शब्द…"
6 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी टिप्पणी के अनुसार काफिया में कोई कमी हे तो स्पष्ट समझायें। कुछ उदाहरण…"
6 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"तौर-ए-इमदाद ये भला तो नहीं  शहर भर में अब इतना गा तो नहीं     मर्ज़ क्या है समझ…"
7 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आ. दयाराम जी, ग़ज़ल का मतला भरपूर हुआ है। अन्य शेर आयोजन के बाद संवारे जाने की मांग कर रहे…"
7 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"धन्यवाद आ दयाराम मैठानी जी। आपके द्वारा इंगित मिसरा ऐसे ही बोला जाता है अतः मैं इसे यथावत रख रहा…"
7 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"धन्यवाद आ. अजय जी"
7 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service