For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लंपा(लघुकथा)राहिला

पिताजी चाहे सही करें या गलत, बड़की बुआ के लिए तो वह हमेशा सीधे सच्चे और साधु ही थे ।मज़ाल कि एक शब्द भी उनके खिलाफ सुन लें।
"ऐसा है कुसुम कुमारी!पिछले जनम में मोती दान किये होंगे ,तभई छुटके जैसन पति मिला।ये फिजूल का रोना- धोना करके छुटके की छवि मटियामेट करवे की कोशिश ना करो ।कछु समझी का नहीं?"
पिताजी का इस तरह पक्ष लेने पर सब्जी काटती सुगंधा अंदर तक सुलग गयी।
"जिज्जी मैं कब किसी से कुछ कह रही हूं?"उसने पल्लू से नीला पड़ा बाजू ढँकते हुए कहा।
"मेरे सामने बनो मत !खूब जान रही हूं तुम्हारी चालाकी ।बच्चों के मन में बाप के लिए ज़हर ऐसे ही भर गया क्या?सुकर करो इस युग में ऐसा सीधा ,साधू मेरा भाई मिल गया।भागसाली हो। " वह तीखी जुबान और कर्कश गले की जुगलबंदी कर बोली।

"सही है बुआ! तो आप क्या कम भागसाली हो ।पिताजी सरीखे फूफाजी भी तो सीधे सच्चे आपको भाग से मिले हैं।"पति से कई बार पुज चुकी बड़की बुआ को सुगन्धा की बात बुरी तरह चुभ गयी।
" आय -हाय मोड़ी!बड़ी फूफा की अम्माँ बन रई। बहुत जानत फूफा के लछन ।कबहुँ लम्पा देखा है ?तनिक पानी पड़ा नहीं कि लगा ऐंठने।"
"लंपा?"वही जंगली कांटा ना!,जो कपड़ो में घुस जाएं तो उल्टा -उल्टा चढ़ के चुभत है।"
"और का ।"
"हे राम!तो का फूफा को लम्पा कहिन चाह रई का? अपने मुद्दे पर आती हुई वह बोली।
"ऐसो है ,लुगाई हैं हम  उनकी और एक मर्द को वा की लुगाई से जादा कोई नहीं जान सकत।सो तुम तो रहन दो समझीं !"
"बस तो, आप भी रहन दो।"
वह बिना नज़र मिलाये मुँहजोरी कर ,उठ के फुर्ती से रसोई में जा घुसी।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 848

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Rahila on October 15, 2017 at 8:20pm
बहुत शुक्रिया आदरणीय महेंद्र सर जी!सादर
Comment by Mahendra Kumar on October 6, 2017 at 8:59pm

बढ़िया लघुकथा है आ. राहिला जी. आंचलिक भाषा का अच्छा प्रयोग किया है आपने. शीर्षक चयन शानदार है. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.

Comment by Rahila on September 30, 2017 at 9:33pm
बहुत-बहुत आभार आदरणीय श्रीवास्तव सर जी!आपने समय देकर रचना को सराहा ।शुक्रिया
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 30, 2017 at 5:44pm

एक मर्द को वा की लुगाई से जादा कोई नहीं जान सकत।-------------------सत्य बचन , बेहतरीन कथा , नारी विमर्श का विषय , बधाई राहिला जी .

Comment by Rahila on September 29, 2017 at 3:13pm
बहुत शुक्रिया आदरणीय उस्मानी साहब!सादर
Comment by Rahila on September 29, 2017 at 2:50pm
बहुत आभार आदरणीय तेजवीर सर जी!सादर
Comment by Rahila on September 29, 2017 at 2:49pm
बहुत आभार आदरणीय कबीर साहब।आदाब
Comment by Rahila on September 29, 2017 at 2:47pm
बहुत-बहुत आभार आदरणीय मिश्रा सर जी!सादर
Comment by Rahila on September 29, 2017 at 2:46pm
बहुत आभार आदरणीय अहमद साहब!सादर
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on September 29, 2017 at 8:46am
आपकी शैली में एक और बढ़िया प्रस्तुति के लिए सादर हार्दिक बधाई आदरणीया राहिला जी। आंचलिक भाषा में ऐसी रचनाएं असरदार हो जाती हैं।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


प्रधान संपादक
योगराज प्रभाकर replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"गत दो दिनों से तरही मुशायरे में उत्पन्न हुई दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति की जानकारी मुझे प्राप्त हो रही…"
13 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"मोहतरम समर कबीर साहब आदाब,चूंकि आपने नाम लेकर कहा इसलिए कमेंट कर रहा हूँ।आपका हमेशा से मैं एहतराम…"
48 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"सौरभ पाण्डेय, इस गरिमामय मंच का प्रतिरूप / प्रतिनिधि किसी स्वप्न में भी नहीं हो सकता, आदरणीय नीलेश…"
1 hour ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय समर सर,वैसे तो आपने उत्तर आ. सौरब सर की पोस्ट पर दिया है जिस पर मुझ जैसे किसी भी व्यक्ति को…"
2 hours ago
Samar kabeer replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"प्रिय मंच को आदाब, Euphonic अमित जी पिछले तीन साल से मुझसे जुड़े हुए हैं और ग़ज़ल सीख रहे हैं इस बीच…"
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, किसी को किसी के प्रति कोई दुराग्रह नहीं है. दुराग्रह छोड़िए, दुराव तक नहीं…"
9 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"अपने आपको विकट परिस्थितियों में ढाल कर आत्म मंथन के लिए सुप्रेरित करती इस गजल के लिए जितनी बार दाद…"
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय सौरभ सर, अवश्य इस बार चित्र से काव्य तक छंदोत्सव के लिए कुछ कहने की कोशिश करूँगा।"
9 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"शिज्जू भाई, आप चित्र से काव्य तक छंदोत्सव के आयोजन में शिरकत कीजिए. इस माह का छंद दोहा ही होने वाला…"
10 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"धन्यवाद आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब "
10 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"धन्यवाद आ. सौरभ सर,आप हमेशा वहीँ ऊँगली रखते हैं जहाँ मैं आपसे अपेक्षा करता हूँ.ग़ज़ल तक आने, पढने और…"
10 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. लक्ष्मण धामी जी,अच्छी ग़ज़ल हुई है ..दो तीन सुझाव हैं,.वह सियासत भी कभी निश्छल रही है.लाख…"
10 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service