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विकास का सफ़र (व्यंग्य)राहिला

छः पहियाँ की रेलगाड़ी ,
पब्लिक उसमें बैठी ,ठाड़ी।
आगे -पीछे ,ऊपर- नीचे,
भरे पड़े थे नर और नारी।।

दबा-दबा के ठसा -ठसा के ,
मुँह सुकोड़े नाक दबा के।
एक पे पांच, एक पे पाँच
कंडेक्टर ठूँसे बुला- बुला के।।

पसीना चू रहा ,आ रही बास,
बीड़ी जल रही आस -पास।।
उसपर चूरन कृपा हत्यारी,
दूभर हो गया लेना सांस।।

पंखा झल रहे, फूं-फूं कर रहे,
बच्चा बिलख कर कूं -कूं कर रहे।।
क्वार महीना,चटक पसीना
बस में सब अंडे से उबल रहे।।

गड्डों में बलखाती बस,
लहर -लहर,लहराती बस।
क्षमता का गला घोंट कर ,
तिगुनी पर इतराती बस।।

खाकी टंगी ,घूस खूंटी पर ,
नियम कानून ,चूल्हे में धर
अपनी -अपनी सबने साधी
जनता जिये या जाए मर।

मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment by Rahila on October 15, 2017 at 8:21pm
बहुत शुक्रिया आदरणीय महेंद्र सर जी!सादर
Comment by Mahendra Kumar on October 6, 2017 at 9:54pm

व्यंग्यात्मक लहजे में बहुत ख़ूब कविता कही है आपने आ. राहिला जी. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.

Comment by Rahila on October 3, 2017 at 9:06am
बहुत शुक्रिया आदरणीय विजय सर जी!भुक्तभोगी का दर्द है जो फूट-फूट कर निकला ।सादर
Comment by Dr. Vijai Shanker on October 3, 2017 at 8:00am
आदरणीय सुश्री राहिला जी , बहुत बहुत बधाई , साक्षात् बस यात्रा करा दी आपने। सादर।
Comment by Rahila on October 2, 2017 at 9:40pm
बहुत शुक्रिया आदरणीय मिश्रा सर जी!आपको रचना पसंद आई मेरा लेखन सार्थक हुआ।सादर
Comment by Rahila on October 2, 2017 at 9:38pm
बहुत शुक्रिया आदरणीय कबीर साहब!आदाब।
Comment by Rahila on October 2, 2017 at 9:37pm
बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय उस्मानी जी!आपको रचना पसंद आई मेरे लिए हर्ष का विषय है।सादर
Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 1, 2017 at 6:29pm
आदरणीय राहिला जी सूंदर प्रस्तुति के किये हार्दिक बधाई। ये अंदाज भी खोइब् भाया।वाह
Comment by Samar kabeer on October 1, 2017 at 5:56pm
मोहतरमा राहिला जी आदाब,सुंदर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 1, 2017 at 12:51am
वाह...
कविता व्यंग्य में है लिख डारी,
सबको लग रई जा बहुतई प्यारी,
बुलेट-ट्रेन सी जा कलम चलत,
तुरतईं पोलें खोल रई अब सारी।

बेहतरीन सृजन के लिए बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरमा राहिला साहिबा। किसी छंद में पिरोने पर इस में चार चांद लग जायेंगे ।

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