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All Blog Posts (19,112)

नहीं आया फिर वो बुला कर मुझे..( ग़ज़ल :- सालिक गणवीर)

122 122 122 12

नहीं आया फिर वो बुला कर मुझे

मज़ा ले रहा है सता कर मुझे

अगर मेरे अंदर समाया है तू

कभी आइने में दिखा कर मुझे

हमेशा मिला है तू रोते हुए

मिला कर कभी मुस्कुरा कर मुझे

सदा बस मुझे हुक्म देता है क्यूँ

सलाह मशवरा भी दिया कर मुझे

है डर कुर्सियों के नगर में यही

न वो बैठ जाए उठा कर मुझे

धड़कता हूँ मैं शोर करता नहीं

मैं दिल हूँ तेरा ही सुना कर…

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Added by सालिक गणवीर on August 30, 2020 at 5:30pm — 9 Comments

तमाम उम्र किया मैंने इन्तिज़ार तेरा (१२१ )

(1212 1122 1212 22 /112 )
तमाम उम्र किया मैंने इन्तिज़ार तेरा
नहीं रहा कभी मुमकिन भुलाना प्यार तेरा
**
न तेरी आहटों का सिलसिला रुका था कभी
हवाएँ करती रहीं ज़िक्र बार बार तेरा
**
सजा रखीं हैं करीने से दिल में यादें तेरी

कि दिल की धड़कनों पे अब भी इख़्तियार तेरा

**

अगरचे तुझ से मुलाक़ात अब है ना-मुमकिन

मगर है…
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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on August 30, 2020 at 4:00pm — 8 Comments

हवाओं के झोंके....(गजल)

122 122 122 12

 हवाओं के' झोंके मचलने लगे,

अदाओं के' आंचल सरकने लगे।1

दबे दिल के' कोने में ' जो थे कभी
परत दर परत राज खुलने लगे।2

बसाए फिरे जो जिगर में कभी
हकीकत बताने से बचने लगे।3

कहा था कभी, हम न होंगे जुदा,
मिले ही कहां,अब वो ' कहने लगे।4

नज़ाकत भरे थे जो लमहे कभी,
शरारत जदा आज डंसने लगे।5

"मौलिक व अप्रकाशित"
@

Added by Manan Kumar singh on August 29, 2020 at 4:36pm — 4 Comments

मुहब्बत की ज़मीँ देकर यक़ीं का आसमाँ दे दो (१२० )

( 1222 1222 1222 1222 )

मुहब्बत की ज़मीँ देकर यक़ीं का आसमाँ दे दो

रहोगे सिर्फ़ मेरे तुम मुझे बस यह ज़बाँ दे दो

न रक्खो चीज़ कोई तुम तअल्लुक़ जिसका ग़म से है

तुम्हारी सिसकियाँ आहें कराहें और फुगाँ दे दो

परख लें एक दूजे को किसी कोने में रह लूंगा

मुझे कुछ दिन किराये पर सनम दिल का मकाँ दे दो

मुहब्बत में नफ़'अ-नुक़्सान की परवाह किसको है

चलो रक्खो तुम्हीं सब फ़ायदा मुझको ज़ियाँ दे दो

मेरे जज़्बात की कुछ क़द्र करना सीख लो हमदम

मेरी परवाज़-ए-उल्फ़त को खुला तुम…

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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on August 28, 2020 at 5:30pm — 7 Comments

निर्दयी औलाद

दृश्य देखकर वृद्धाश्रम का,

रूह मेरी सिहर उठी।

क्यूं उन निर्दयी औलाद ने,

फ़र्ज़ का गला घोंट दिया।।

लाड़ प्यार से पाला जिनको,

बच्चों पर सर्वस्व लूटा दिया।

क्यों ऐसी ममता के साए को

निर्दयी औलाद ने भुला दिया।।

क्यूं कदम नहीं लड़खड़ाए उसके,

जब ऐसा उसने कृत्य किया।

क्यूं भूल गया वो उनका एहसान,

जिसने उसको अपना नाम दिया।।

आँख के तारे को बूढ़ी आँखों का ,

क्यूं दर्द दिखाई नहीं दिया।

फर्ज निभाने के समय

क्यूं फ़र्ज़ से पल्ला झाड़…

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Added by Neeta Tayal on August 28, 2020 at 8:31am — 3 Comments

चलो सहियर

छंद - मंदाक्रान्ता

(मातारा भानस नसल ताराज ताराज गागा = 17 वर्ण)यति =4,10,17

मेेले में ओ सहियर चलो आज जाए गुमेंगे,

आया है ये दिन लहरका मोज मस्ती करेंगे,

मेले की है रमझट बड़ी आ टहेले वहाँ पे,

खोजे मेरा प्रियतम मुझे ओ सखीरी चलो रे|

भागी भागी गुपचुप सखी मैं, बात कोई न जाने,

पानी का लें घट झपट से, लौटना जल्द माने,

मैंने लाई यह तुज लिए हा नयी ओढनी रे,

देखो कैसी तुम पर झझती ओढ ले ओढनी रे|

देखें मेला सहियर चलो ना रहे…

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Added by Mukulkumar Limbad on August 27, 2020 at 8:30pm — 3 Comments

स्वाधीन हो के भी कहाँ स्वाधीन हम हुए - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२१/२२२/१२१२



फेंका जो होता आप ने पत्थर सधा हुआ

दिखता जरूर भेड़िया घायल गिरा हुआ।१।

**

हर बार अपनी चाल जो होती नहीं सफल

है दुश्मनों से  आज  भी  कोई मिला हुआ।२।

**

स्वाधीन हो के  भी कहाँ स्वाधीन हम हुए

फिरता न यूँ ही हाथ ले फदली कटा हुआ।३।

**

रोटी मिली न मुझको न तुझको खुशी मिली

ऐसी गजल से बोल तो किस का भला हुआ।४।

**

कल तक जो हँसता खेल के चिंगारियों से था

रोता है आज  देख  के  निज  घर जला हुआ।५।

**

मैं जुगनुओं को मुँह…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 27, 2020 at 7:17pm — 4 Comments

ये जिंदगी का हसीन लमहा

(12122)×4

ये ज़िंदगी का हसीन लमहा

गुजर गया फिर तो क्या करोगी

जो जिंदगी के इधर खड़ा है

उधर गया फिर तो क्या करोगी

तुम्हें सँवरने का हक दिया है

वो कोई पत्थर का तो नहीं है

लगाये फिरती हो जिसको ठोकर

बिखर गया फिर तो क्या करोगी

कि जिनकी शाखों पे तो गुमां है

मगर उन्हीं की जड़ों से नफरत

"वो आँधियों में  उखड़ जड़ों से"

शज़र गया फिर तो क्या करोगी

जिसे अनायास कोसती हो

छिपाए बैठा है पीर…

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Added by आशीष यादव on August 25, 2020 at 2:30am — 6 Comments

मृग-बादल (तोटक छंद)

छंद - तोटक

(सलगा सलगा सलगा सलगा = 12 वर्ण)

नभ बादल बादल आज यहाँ,

चमकार करे सुन वीज यहाँ,

नभ काजल काजल मेश हुआ,

दिलका दव ठार तु यही दुआ|

मृग-बादल आज महेर दया,

दिलसे बरसो अब छोड़ हया,

गजराज जरा गरजे नभमें,

वनराज फिरे फिरसे वनमें|

टपके जलबुंद हजार कहीं,

झमकार सुनो जलधार यही,

जल-चुंबन अंबर से बरसे,

पल ये पल को धरती तरसे|

मधु सोडम जो प्रसरी भुवने,

तन वो मन हाश भरे सुखमें,…

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Added by Mukulkumar Limbad on August 24, 2020 at 11:30pm — 5 Comments

गीत (रोला छंद पर आधारित )

मेरा सीमित प्यार तुम्हे आयाम चाहिए

सीता बनना कठिन पर तुम्हे राम चाहिए
बाबुल का घर छोड़
आत्म अनुमति से आई
नर के दृढ भुजपाश
में सदा तृप्ति समाई
अब गंगोदक छोड़ तुम्हे क्यों जाम चाहिये …
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Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 24, 2020 at 2:55pm — 4 Comments

रोक लेते तुम अगर..

अपनी माटी गांव छोड़,हम

माया नगरी आए थे..

अम्मा बाबू और बच्चों के

सपने संग में लाए थे।



हाँफ रहे बेजान शहर मे

जीवन हमने डाला था..

अपने श्रम सीकर से इसको

हरा भरा कर डाला था।

टैम्पो रिक्शा खींचा हमने

उद्योगों के पहिये घुमाए थे

रहे सदा झोपड़ी मे हम

पर कितने महल बनाए थे।

समय का पहिया ऐसे घूमा

सारे पहिए जाम हुए...

तुम अपने थे,फिर यों कैसे

निष्ठुर बन अनजान हुए।

एक बार तो कहते हमसे

रूको यहाँ मत जाओ…

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Added by Sheela Sharma on August 24, 2020 at 10:00am — 3 Comments

सभी को स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं

पन्द्रह अगस्त फिर आया है

हमको यह याद दिलाने को,

स्वतंत्रता की खुशी मनाएं

पर ना भूलें बलिदानों को।

ये धरती, येअम्बर अब भी

साक्षी है उन दीवानों की,

सर्वस्व लुटाकर अमर हुए

आजादी के परवानों की।

ना सहन कर सके जो थे

भारत माता का बन्धन,

निज शीश चढ़ा आहुति में

करते थे राष्ट्र यज्ञ, वन्दन।

हम भूलें नहीं कभी भी

आजादी का वह नारा,

हम मिटें भले, लेकिन यह

लहराए तिरंगा प्यारा।

हम बंटे नहीं टुकड़ों में

यह शपथ हमें लेना है,

उन वीरों की यह…

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Added by Sheela Sharma on August 24, 2020 at 9:30am — 2 Comments

आत्मबोध

खालीपन का भारीपन

नहीं मालूम, नहीं मालूम मुझको

मेरा यह अनुभव केवल मेरा ही है

या है यह हर किसी का

कहीं कुछ खो देने की पीड़ा से निवर्त होने  का

अनवरत  प्रारम्भिक  प्रयास…

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Added by vijay nikore on August 24, 2020 at 7:30am — 4 Comments

कुछ क्षणिकाएँ :

कुछ क्षणिकाएँ :

1.

बहुत कुछ कह जाती हैं

कुछ

कहने से पहले

ये

ख़ामोश सी आँखें

............................

2.

गुंजित कर गईं

कितनी ही चुप सी दस्तकें

एक

जुगनू सी याद

.................................

3.

कब टूटा है

आसमान से चाँद

टूटते तो

तारे हैं

अतृप्त अभिलाषाओं के

आसमान से

दिल के

..............................

4.

करती रही बातें

बिस्तर पर

सोये सपनों से…

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Added by Sushil Sarna on August 23, 2020 at 9:50pm — 6 Comments

गजल(रात क्या क्या गुनगुनाती...)

2122  2122  212

रात क्या क्या गुनगुनाती रह गई

आपकी बस याद आती रह गई।1

सर्द मौसम हो गया कातिल बहुत

सांस अपनी सनसनाती रह गई।2

चांद में है दाग़,देखा आपने,

चांदनी यूं मुस्कुराती रह गई।3

सिलसिले सब याद में आते रहे

आरज़ू तो कुनमुनाती रह गई।4

गीत बनता लय पिरोकर,क्या कहूं?

बात दिल की ही लजाती रह गई।5

आंख हरदम जो बिछाती थी हवा,

इस दफा वह भाव खाती रह गई। 6

आशिया रौशन हुआ था बस…

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Added by Manan Kumar singh on August 22, 2020 at 9:44pm — 6 Comments

गीत , चाँद हमारे अँगना

झाँका , झाँका , देखो झाँका

चाँद हमारे अँगना

आने वाला है कोई 

बाजे मेरा कँगना

हो, हो , हो , हो

झाँका, झाँका , देखो झाँका

सुहाना समां है

खुला आसमां है

करतीं ठिठोली

तारों की टोली

झूमे , झूमे , देखो झूमे

आज हमारे अँगना 

आने....

बहे पुरवइया

डोले मन की नैया

मौसम की घड़ियाँ

जादू की छड़ियाँ

फेरें , फेरें , जादू फेरें

आज हमारे…

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Added by Usha Awasthi on August 21, 2020 at 11:35pm — 8 Comments

एकाकी मन........

21.8.20

एकाकी मन........ 

झूठ है

एकांत में

सिर्फ एकांत होता है

एकाकी मन

वहीं शांत होता है

थक जाता है ये एकाकी मन

ज़िंदगी के जालों को

सुलझाते सुलझाते

अनकहे अहसासों को

दबाते दबाते

भावनाओं की गठरी को

उठाते उठाते

अंधेरों की स्याह चादर में

अपने ही साये

एकाकीपन की देह को

नोचते नज़र आते हैं

सच तो ये है

एकांत में अनचाहे बवंडर

एकाकी मन के

एकाकीपन को लील जाते हैं

सुशील सरना…

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Added by Sushil Sarna on August 21, 2020 at 7:47pm — 8 Comments

हर सम्त अँधेरा है इसे दूर भगाओ...(ग़ज़ल-सालिक गणवीर)

221 1221 1221 122

हर सम्त अंँधेरा है इसे दूर भगाओ

है कोई मुनव्वर तो मिरे सामने आओ

क़ातिल हो तो क़ातिल की तरह पेश भी आओ

घायल हूँ मिरे ज़ख़्म पे मरहम न लगाओ

कोई न उठाएगा यहाँ बोझ तुम्हारा

शानों को ज़रा और भी मजबूत बनाओ

कश्ती को सँभालो न रहो चूर नशे में

गर डूबना है डूबो हमें तो न डुबाओ

काँटों की तो तासीर है वो चुभते रहेंगे

तुम फूल हो ख़ुशबू की तरह फैलते जाओ

ऐसे भी वो करता है सर-ए-आम…

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Added by सालिक गणवीर on August 21, 2020 at 12:00pm — 14 Comments

गजल(शायरी अब क्या रूठेगी...)

2122 2122 2122 212

शायरी अब क्या रूठेगी,सोचता हूं आजकल,

हो रही बुझती अंगीठी,सोचता हूं आजकल।1

शेर मुंहफट हो गए हैं,हर्फ लज्जित हो रहे,

शायरों की सांस फूली,सोचता हूं आजकल।2

मुंह चिढ़ातीं आज बहरें,खुल रहे हैं राज कुछ,

पिट रही कैसी मुनादी? सोचता हूं आजकल।3

राह अब अंधे दिखाते,झूठ ताना दे रहा,

हो रही सच की गवाही, सोचता हूं आजकल।4

शब्द सारे मौन लगते,अर्थ होता गौण है,

चल रही हैं गाली ' - ताली, सोचता हूं…

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Added by Manan Kumar singh on August 21, 2020 at 9:30am — 12 Comments

काँटों से बिँध फूल को आते - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२२२/२२२२/२२२२/२२२



शीशे को भी  रखने  वाले  पत्थर लोगों नहीं रहे

‌यौवन के अब पहले  जैसे  तेवर  लोगों नहीं रहे।१।

**

ढूँढा करते  हैं  गुलदस्ते  तितली  भौंरे  आज यहाँ

‌काँटों से बिँध फूल को आते मधुकर लोगों नहीं रहे।२।

**

केवल आँच जला देती है सावन में भी देखो अब

ज्लाला से लड़ बचने वाले वो घर लोगों नहीं रहे।३।

**

एक तो पहले से मुश्किल थी ये कोरोना क्या आया

‌रोज कमा खाने के भी अब अवसर लोगों नहीं रहे।४।

**…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 21, 2020 at 9:00am — 10 Comments

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