स्वर्ग है फिर आपका क्या काम?
अमरनाथ गुफा हो, बद्रीनाथ, केदारनाथ, मान सरोवर, आदि प्राकृतिक स्थल की यात्रा हो...हर व्यक्ति लौटकर एक ही जवाब देता है......क्या स्वर्ग है. क्या देव भूमि है ...समझ में नहीं आता जब वो देव भूमि है, स्वर्ग है...तो आप वहां क्यों जा रहे हैं? देवों की पवित्र भूमि पर आप धरतीवासी कदम रखकर उनकी भूमि को अपवित्र क्यों कर रहे हो? क्या वहां जाने वाले सभी शुद्ध मन, विचार के होते हैं? क्या जिंदगी में दो नंबर का धन कमाने वाले भ्रष्ट आचरण के लोग वहां जाने से परहेज करते हैं?…
ContinueAdded by dinesh solanki on July 7, 2013 at 9:22am — 6 Comments
२१२२ २१२२ २१२ १२
हाथ मिला के जो हमे तन्हा जता गया
साथ मन में चल रहा था वो बता गया
उस को केसे में दयालु मेरे दिल लिखूँ
जेसे वो भगवान बन दुनिया सता गया
फिर चलेंगे तो हमारी होगी कहानी
फिर क्या वो राह हम से कर खता गया
राह कब उस शहर की तरफ मुझे ले गई
राहबर जिस का जाते हुए दे पता गया
दरख्त बूढ़े पै बैठा तन्हा पक्षी मगर
जिंदगी का सच्च राही को बता…
ContinueAdded by मोहन बेगोवाल on July 7, 2013 at 8:00am — 1 Comment
ग़ज़ल
आईनों से मिले थे बड़ी हसरत में,
हम और कोई निकले शिनाख्त में।
क्या आज फिर शह्र में लहू बरसा है?
अख़बार की सुर्खियाँ हैं दहशत में।
मुफ़लिसी क्या इतनी बुरी चीज़ है? मुफ़लिसी - निर्धनता
आये हैं दोस्त भी मुख़ालफ़त में। मुख़ालफ़त - विरोध
जल्द ही इमारती शह्र उग आएगा,
बो तो दिये गये हैं पत्थर दश्त में। दश्त - जंगल
उसे लगा आस्मां मुझे…
ContinueAdded by सानी करतारपुरी on July 7, 2013 at 3:30am — 1 Comment
Added by कवि - राज बुन्दॆली on July 6, 2013 at 6:19pm — 14 Comments
यूं ही बचपन गया शरारत में
औ' जवानी गयी मुहब्बत में
और जो वक़्त जिंदगी के बचे
वो भी गुज़रे फ़क़त तिजारत में
बादे मुश्किल मिले जो पल वो भी
हो गए रायगाँ शिकायत में
मुफ्लिसों को भला बुरा कहना
है शुमार आज सबकी आदत में
फूल बेलपत्र के अलावा शिव
जान मांगे है अब ज़ियारत में
फ़ासला तू औ' मैं का जब न मिटे
तो मज़ा ख़ाक है मुहब्बत में
गाँव से वो कपास की कतरन
जाके चुनता है शह्रे सूरत…
Added by Sushil Thakur on July 6, 2013 at 5:00pm — 5 Comments
सुन्दरता इसको घेरी है
मादकता इसमें पिरोई है
मीठे में मिश्री जैसा मेरा गाँव
सबसे प्यारा सबसे न्यारा मेरा गाँव
उंच नीच का भेद नहीं है
शहरों जैसा क्लेश नहीं है
फूलों में गुलशन जैसा मेरा गाँव
सबसे प्यारा सबसे न्यारा मेरा गाँव
सुन्दरता तरुओं की प्यारी
मादकता सरसों की सारी …
Added by Devendra Pandey on July 6, 2013 at 2:30pm — 4 Comments
प्रकृति का नर्तन
(उत्तराखण्ड आपदा के संदर्भ में)
हमने भी देखा है,
माथे पर स्वर्ण-टीका लगाये
संध्या को,
शैल-शिखरों पर अभिसार करते हुए.
देवदार कुछ लजीले, कुछ शरमाए
चीड़ चंचल उत्पात करे,
मौन इशारे करते कुछ बहके -
देखा है रात ने,
भँवरे को कमल संग रमन करते हुए.
प्रातः मधुरस लिये भँवरा
गुँजन करता चमन चमन,
इस कान में कुछ स्वर
उस सुमन को देता कुछ मकरंद.
सौगात बाँटता वन उपवन…
Added by coontee mukerji on July 6, 2013 at 12:30pm — 4 Comments
ऊद्धव कन्हैया से जाकर सिर्फ इतना बता दीजियेगा ।
हे कृष्ण प्रेमी जनों की अब कुछ तो खबर लीजियेगा ।
उनकी खातिर दिलों जाँ लुटाया ।
और ज़माने को दुश्मन बनाया ।
उनके पीछे ये दुनिया भुलायी ।
उनकी राहों में पलकें बिछायी ।
उनके बिन बृज में क्या हो रहा है हाल सारा सुना दीजियेगा ।
हे कृष्ण प्रेमी जनों की अब कुछ तो खबर लीजियेगा ।
उनके बिन अपनी हालत न पूछो ।
कैसी है दिल में चाहत न पूछो ।
हम तो मर मर के जीने लगे हैं ।…
Added by Neeraj Nishchal on July 6, 2013 at 8:00am — 4 Comments
मैं क्या लिखूँ
कहाँ से पकड़ू
कहाँ से जोड़ू
न भाव है
न आधार है
अंतहीन है सिलसिला
गुजरता जाता है
सब कुछ इस जहां मे
निराकार है, निराधार है
लालसाए हैं
न ठिकाना है, न ठहरना है
फैले हुये शब्दों के जंजाल
महत्वाकांक्षाएं, मौलिकता
सब दिखावा है
क्या लिखूँ
यह व्यथा की कथा है
शब्दों का सूनापन है
क्या लिखूँ
न भाव हैं ... न ही आधार है…
ContinueAdded by Amod Kumar Srivastava on July 6, 2013 at 7:30am — 5 Comments
बता दो क्या कर लोगे
सूरज के ही आगे पीछे रहती है बस धूप,
बता दो क्या कर लोगे
उनका पेट भरेगा, तेरी भांड में जाए भूख ,
बता दो क्या कर लोगे
तेरे ही काँधे पर चढ़कर छोड़ेंगे बन्दूक,
बता दो क्या कर लोगे
बेटा उनका आगे होगा, तुम्ही जाओगे छूट,
बता दो क्या कर लोगे
काला होगा धन उनका जब तेरा पैसा लूट,
बता दो क्या कर लोगे
कुर्सी तेरी वो बैठेंगे, तुम बस देना घूस,
बता दो क्या कर लोगे
मौलिक और…
ContinueAdded by Dr Lalit Kumar Singh on July 5, 2013 at 10:00pm — 16 Comments
पाये अध्यादेश से, भोजन जन गन देश |
चारो पाये तंत्र के, दिये हमें पर क्लेश |
दिये हमें पर क्लेश, दिये टिमटिमा रहे हैं |
हुआ तैल्य नि:शेष, काल ने प्राण गहे हैं |
है आश्वासन झूठ, मूठ हल की जब आये |
पाये हल हर हाल, जियें मानव चौपाये ||
मौलिक/अप्रकाशित
Added by रविकर on July 5, 2013 at 9:01pm — 4 Comments
ऑफिस के बाहर खड़ा मै फोन पे बात कर रहा था,तभी अचानक एक लड़का मेरे पास आकर खड़ा हो गया ! कुछ देर देखने के बाद मैंने उससे पूछा क्या?
तो उसने मेरे पैरों की तरफ इशारा किया...मै समझा नहीं फिर मै उसके कपड़े जो बहुत ही पुराने और फटे थे ,देखने लगा!!
इतने में उसने अपने थैले से बूट पोलिश करने का ब्रश और एक डिबिया निकाल ली...फिर तो मै समझ गया यह क्या कह रहा था !!
मुझे भी दया आ गयी कहा चालो भाई अब पोलिश कर ही दो...
मैंने जूते निकाले और वो अपने काम में मस्त…
Added by ram shiromani pathak on July 5, 2013 at 7:00pm — 16 Comments
ओ.बी.ओ. के पावन मंच और गुरुजनों को सादर प्रणाम करता हूँ. समयाभाव के चलते नियमित रूप से मंच से जुड नही पा रहा हूँ इसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ और आप सबके बीच कुछ मुक्तक निवेदित कर रहा हूँ. कृपया मार्गदर्शन करें .सादर
क्यूँ कभी प्रेम की ये निशानी लगे.
अश्रुपूरित कभी ये जवानी लगे.
ओस बन खो गये हैं हवा में कहीं,
बूँद पानी की ये जिंदगानी लगे.
प्रेम की बागवानी पुरानी सही.
कृष्ण-राधा की प्यारी कहानी सही.
तुम लिखो फूल…
ContinueAdded by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on July 5, 2013 at 1:30pm — 12 Comments
तमस मंथरा
के निवास में
ईच्छा जब
पग धरती है
**दश रथों की
धीर धुरी भी
विकल हाथ
बस मलती है
ऐसे में
अक्सर ही संयम
दूर भरत सा
रहता है
हो अधीर कुछ
मनस लखन भी
चाप चढ़ाए
फिरता है
बस विवेक तब
राम रूप में
सबको पार
लगाते हैं
ज्ञान तापसी
वेश सिया धर
बढ़ते चल
कह जाते हैं
इतना ही तो
लिखा हुआ है
तुलसी…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on July 5, 2013 at 12:01pm — 9 Comments
वज्न 2122 2122 2122 212
बह्र ए रमल मुसम्मन महज़ूफ
लमहा-लमहा याद कोई दिल को आने क्यूँ लगे
रफ़्ता-रफ़्ता वर्क़े-माज़ी वो हटाने क्यूँ लगे
इस मरासिम लफ़्ज़ से ही आजिज़ी होने लगी
फ़ासिले हम को रिफ़ाकत में रुलाने क्यूँ लगे
बेगुमाँ भाग आए थे जिनसे निगाहें हम बचा …
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on July 5, 2013 at 10:30am — 24 Comments
१~
बदलता अब कौन अपना आचरण है,
मधुर-स्मिति दर्द का ही आवरण है,
अनकहे शब्दों ने ढूँढी राह है ये
बादलों के बीच मे कोई किरण है !
२~
कोई छोटे हैं तो कोई बड़े हैं न,
हम सभी मुखौटे लिए खड़े हैं न,
असली चेहरा न तलाशिये हुज़ूर
एक चेहरे पर कई चेहरे जड़े हैं न !
३~
एक अनबुझी प्यास लिए हम गहरे कुएं हुए,
कभी लगी जो आग मित्र,हम उठते धुंएं हुए,
सजे हुए हैं हम…
Added by प्रो. विश्वम्भर शुक्ल on July 5, 2013 at 12:25am — 4 Comments
Added by वेदिका on July 5, 2013 at 12:00am — 43 Comments
बिपदा बढ़ती बहु-गुणा, बा-शिंदे बेहाल |
बस-बेबस बहते बहे, बज-बंशी भूपाल |
बज बंशी भूपाल, बहर बंदिशें सुरीली |
मनमोहन मदमस्त, मगन मीरा शर्मीली |
चले अचल छल-चाल, भयंकर नदी बिगडती |
चारो तरफ बवाल, हमारी बिपदा बढ़ती ||
मौलिक / अप्रकाशित
Added by रविकर on July 4, 2013 at 11:00pm — 7 Comments
आया था लुत्फ़ लेने नवाबों के शह्र में
हैरतज़दा खड़ा हूँ नक़ाबों के शह्र में
आलूदा है फज़ाए बहाराँ भी इस क़दर
खुशबू नहीं नसीब गुलाबों के शह्र में
तहज़ीबे कोहना और तमद्दुन नफासतें
आया हूँ सीखने में नवाबों के शह्र में
ऐसी हसीं वरक़ को यहाँ देखता है कौन
हर सम्त जाहेलां है किताबों के शह्र में
बेहोश होने का न गुमां हमको हो सका
हर शख्स होश में है शराबों के शह्र में
चेहरे पे सादगी है तो जुल्फें…
ContinueAdded by Sushil Thakur on July 4, 2013 at 10:30pm — 13 Comments
मैंने ख्वाबों में देखा है, कल आयेंगे घर सजना
आज सुबह से थिरक रहे हैं,चंचल चित,व्याकुल नयना
घनघोर घटा घर आंगन छाना,तुझमें ही छुप जाऊंगी
व्यथित ढूंढ जब होंगे प्रिय, तुरत सामने आ जाऊंगी
लग जाऊंगी जब सीने से, झूम बरसना तुम अंगना
मैंने ख्वाबों में देखा है, कल आयेंगे घर सजना
पी-कहाँ, पपीहे कहते थे तुम, कल तडके घर आ जाना
मेरे साथ ही तुझको भी है, गीत ख़ुशी के फिर गाना
द्वार मिलन पर पलक बिछाए ठुमक रहे मेरे…
ContinueAdded by Dr Lalit Kumar Singh on July 4, 2013 at 10:00pm — 20 Comments
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