है बहुत मजबूर वो जमाने से भागता होगा
नींद की ख्वाहिश में रात भर जागता होगा।
रौशनी के चंद कतरे रखे थे अँधेरों से छुपा
क्या पता था कोई दरारों से झाँकता होगा।
जमीं से उठते हुये ताकते रहे आस्माँ को हम
ये न सोचा था कभी वो हमें भी ताकता होगा।
आज समझा अहले दौराँ की तिज़ारत देखकर
शैतान भी इन्साँ से अब पनाहें माँगता होगा।
घटा घनघोर घिरती है गरजती है बरसती…
Added by dr lalit mohan pant on August 8, 2013 at 2:30am — 16 Comments
एक गाँव था ! वहां बहुत सारे पापी रहते थे ! पाप करते और पानी से धो लेते ! धोते-धोते एकदिन सारा पानी खत्म हो गया ! पानी खत्म होने पर उन पापियों के पाप से गाँव तपने लगा ! उस तपन को पापियों ने नज़रंदाज़ कर दिया और पहले की ही तरह पाप करते रहे ! तपते-तपते आखिर एकदिन बड़ी भयानक आग उठी और उन पापियों को जलाने के लिए बढ़ने लगी ! पानी तो था नही, इसलिए पापियों ने आग से बचने के लिए उसपर खूब सारी मिटटी डाल दी ! आग दबने लगी, पापी खुश होने लगे कि तभी बड़ी जोर से आंधी आई और सारी मिट्टी उड़ गई ! अब हवा से परवाज…
ContinueAdded by पीयूष द्विवेदी भारत on August 7, 2013 at 7:04pm — 10 Comments
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 7, 2013 at 1:33pm — 31 Comments
विश्व हिंदी संस्थान, कनाडा तथा हिंदी की मासिक ई-पत्रिका “प्रयास” के संयुक्त तत्वावधान में भारत के स्वाधीनता दिवस के उपलक्ष्य में एक “राष्ट्रभक्ति…
ContinueAdded by Prof. Saran Ghai on August 7, 2013 at 8:00am — 4 Comments
शिव बाबा की महिमा
शिव बाबा की कृपा से, सब काम हो रहा है
हम माने या न माने, कल्याण हो रहा है!
खुद विष का पान करके, अमृत किया हवाले,
आशीष सबको देते, विषधर गले में डाले.
तन में भभूत लिपटे, तिरसूल को सम्हाले
आये शरण में कोई, उसको गले लगा ले.
हम भक्त हैं उन्ही के, ये भान हो रहा है! हम माने या न माने कल्याण हो रहा…
ContinueAdded by JAWAHAR LAL SINGH on August 7, 2013 at 7:17am — 18 Comments
दोस्त बनकर भूल जाने का हुनर आता नहीं
लोग कहते हैं के दस्तूरे सफ़र आता नहीं
जब रहम की आस में दम तोड़ता है आदमी
क्यों किसी के दिल-जिगर में वो असर आता नहीं
दरहकीकत छांव दे जो इस जहाँ की धूप से
अब हमारे ख्वाब में भी वो शजर आता नहीं
रंग-ओ-खुशबू है मगर,यह टीस है कुछ फूल को
वक्त जब माकूल रहता, क्यों समर आता नहीं
जब मुकाबिल तोप की जद में बरसती आग हो
फिर बशीरत के, सिवा कुछ भी नज़र आता…
ContinueAdded by Dr Lalit Kumar Singh on August 7, 2013 at 5:54am — 7 Comments
1222122212221222
सुनहरी भोर बागों में, बिछाती ओस की बूँदें!
नयन का नूर होती हैं, नवेली ओस की बूँदें!
चपल भँवरों की कलियों से, चुहल पर मुग्ध सी होतीं,
मिला सुर गुनगुनाती हैं, सलोनी ओस की बूँदें!
चितेरा कौन है? जो रात, में जाजम बिछा जाता,
न जाने रैन कब बुनती, अकेली ओस की बूँदें!
करिश्मा है खुदा का या, कि ऋतु रानी का ये जादू,
घुमाकर जो छड़ी कोई, गिराती ओस की बूँदें!
नवल सूरज की किरणों में, छिपी…
ContinueAdded by कल्पना रामानी on August 6, 2013 at 10:00pm — 22 Comments
अधरों का कम्पन
पुष्प से कोमल कपोल
मनमोहक मादक अदा
मद मस्त अगड़ाई
गीले बालों का झरना
तिरछी मदभरी पलके
केश रूपी लतिका की
ओट से निहारना
हाय !उनका अनछुआ स्पर्श
अंग अंग से टपकती कामुकता
प्रेम की बहती शीतल बयार
नसों का रुधिर वेग बेकाबू
आलिंगन को मै बेकल
वातावरण जैसे
अदभुत जादुई ग्रह हो
पुर्णतः पाषाण शिला सा मैंने
निःशब्द प्रेम का आह्वान किया
राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक /अप्रकाशित
Added by ram shiromani pathak on August 6, 2013 at 7:00pm — 10 Comments
न मौसम बदलता है,
न एहसान चढाता है
न जलता-जलाता,
बस खुद को लुटाता है
समझता है .मेरी व्यथा
जी जान से
मेरी थकान मिटाता है
दुबला जाता कैसे
मेरे गम में
और पाकर मुझे
कुप्पे सा फूल जाता है
चाँद की बात न कर
वह तो हर रात नया रूप
यौवन भरपूर..
मुझे रिझाने में जुटा
उसका यह सिलसिला तो
सदियों से है...
उसके…
ContinueAdded by Vasundhara pandey on August 6, 2013 at 1:30pm — 25 Comments
पीड़ा ने जब कभी
शब्दों के दंश बनकर तुम्हें डंसना चाहा
प्रेम ने स्मिति बनकर अधरों को बाँध लिया...
उपेक्षाओं ने जब कभी
तुम्हारे जीवनपर्यंत त्याग का प्रण लिया
स्मृतियों की अलकों के आलिंगन ने और भी जकड़ लिया...
भावनाओं के उद्रेकों ने जब कभी
भावुकता से काम लिया
तुम्हारी परिस्थितिजन्य उदासीनता ने
मेरे विवेक को थाम लिया.....
मेरे जीवन में न होकर भी होने वाली
ओ मेरी महानायिका!
हमारा…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on August 6, 2013 at 12:38pm — 2 Comments
आप जब से मेरी जिन्दगी हो गई ।
आप जब से मेरी जिन्दगी हो गई ।
सारी दुनिया से मेरी दुश्मनी हो गयी ॥
आप को जो हमराज मै कह गया ।
तो दोस्तो से मेरी दुश्मनी हो गयी ॥ 1 ॥
नूर चेहरे का तेरे चाँदनी दे गया ।
देख कर चाँद भी तुझको शरमा गया ।
जो चाँद पूनम का मै तुम्हे कह गया ।
तो चाँद से भी मेरी दुशमनी हो गयी ॥ 2…
ContinueAdded by बसंत नेमा on August 6, 2013 at 11:30am — 33 Comments
वक़्त फिर बदल गया. कुछ नया तो नहीं, कुछ पुराना भी न रहा. ज़िंदगी खुद अपनी पैमाइश में छोटी होती गई. यादों के काफिले सच की राह को छोटा कर गए. मंजिल की धुन में मौजूदगी का ख़याल न रहा. मौजूदा में डूबे तो मंजिल को भूल गए. जो मिला उसमें मुहब्बत न देख पाए और जो न मिला, उसे मुहब्बत की लुटी दुनिया समझके रोते रहे. सच और परछाइयों की कशमकश में दोनों ही नुक्सानज़दा हुए क्योंकि सच परछाइयों का अक्स है और परछाइयां सच की रूमानियत- और ज़िंदगी दोनों के तवाज़ुन…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on August 6, 2013 at 10:18am — 2 Comments
दिल ने जब भी खुद को कुरेदा है, मेरे खून के इलावा नाखून से तेरा खून भी चिपका है. अजब है ये इत्तेफाक.... कि मुसर्रत (खुशी) का न सही तुझसे दर्द का तो रिश्ता है. शायद इसलिए ही कि दर्दज़दा हुए जब भी तो मुझे अपना दर्द गरां (भारी) लगा क्योंकि इसमें तेरे दर्द की भी न चाही गई आमेज़िश (मिश्रण) थी.
नाखून से चस्पां (चिपका) खून का इक ज़र्रा ये खबर दे गया कि तुम अभी कहाँ हो, किधर हो, किस हाल हो, तुम्हारे चेहरे का रंग ज़र्द है या सुर्ख, तुम्हारी नसों में दौड़ता खून अभी थका है या पुरजोश,…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on August 6, 2013 at 10:14am — 2 Comments
तुम प्रेम प्रतिज्ञा भूल गई,
मैं भूल गया दुनिया दारी,
पहले दिल का बलिदान दिया,
हौले - हौले धड़कन हारी.
खुशियाँ घर आँगन छोड़ चली,
तुम मुझसे जो मुँह मोड़ चली,
मैं अपनी मंजिल भटक गया,
इन दो लम्हों में अटक गया,
मुरझाई खिलके फुलवारी,
हौले - हौले धड़कन हारी.
मन व्याकुल है बेचैनी है,
यादों की छूरी पैनी है,
नैना सागर भर लेते हैं,
हम अश्कों से तर लेते हैं,
हर रोज चले दिल पे…
ContinueAdded by अरुन 'अनन्त' on August 6, 2013 at 9:30am — 7 Comments
हमने तुम्हारी जात पर,जब लिख दिया तो लिख दिया
कुछ बेतुके जज्बात पर;जब लिख दिया तो लिख दिया
कितना सुहाना मुल्क है, तुमने कहा अखबार में
बीमार से हालात पर जब लिख दिया तो लिख दिया
जब से खुले बाजार की रख्खी गयी है नींव तो
हरदिन लगे आघात पर जब लिख दिया तो लिख दिया
नक्कारखाना बन गया, सुनता नहीं, कोई कहीं
दिन-रात के उत्पात पर जब लिख दिया तो लिख दिया
कश्ती भंवर में है परेशां, नाखुदा कोई नहीं
फिर…
ContinueAdded by Dr Lalit Kumar Singh on August 6, 2013 at 6:30am — 18 Comments
हे शान्त स्निग्ध जल की धारा
तुम कलकल कलरव की हो गान
हो लिपटे बेलों की वितान
तुम वसुन्धरा की शोभा हो
हे आन मान सरिता महान
तुझमे दिखता जीवन सारा
हे शान्त स्निग्ध जल की धारा
तुझमे निज-छवि लखते उडगन
यह विम्ब देख हर्षाता मन
सुषमा ऐसी नयनों मे बसा
रहता बस मे किसका तन मन
दिखता तुझमे चन्दा प्यारा
हे शान्त स्निग्ध जल की धारा
हे मिट्टी की सोंधी सुगन्ध
बाँधे सबको जो पाश…
ContinueAdded by आशीष यादव on August 5, 2013 at 11:30pm — 15 Comments
तुम एक दिन तपकर तो देखो
अपने महलों से निकलकर तो देखो
आओ हम वहां चलते हैं
जहां ईंट बनती है
वो मिट्टी जो रात भर गलती है
बार –बार कटती है ,
तब सांचे में ढलती है
फिर भट्टी में तपती है
तब कहीं वो ईंट बनती है
जो आपके महलों की नींव बनती है
मौलिक व अप्रकाशित
Added by hemant sharma on August 5, 2013 at 11:00pm — 15 Comments
इसी रास्ते से गुजरते रहे हम
दुआ जानते थे सो करते रहे हम
अब आये कभी गम तो फिर देख लेंगे
यही सोच कर बस संवरते रहे हम
उठाते बिठाते जगाते रहे है
मुकद्दर को झोली में भरते रहे हम
कोई है जो अन्दर, यही देखता है
कब उसकी निगाहों में गिरते रहे हम
समझ लें जो खुद को यही बस बहुत है
‘जो मैं हूँ’ , उसीसे तो डरते रहे हम
मौलिक और अप्रकाशित
Added by Dr Lalit Kumar Singh on August 5, 2013 at 9:44pm — 8 Comments
वज्न / २१२२ २१२२ २१२
चाह थी जिनकी, हमारे मिल गये
गुम कहीं थे ख्वाब, सारे मिल गये.
एक धागा बेल के धड़ से मिला
बेसहारों को सहारे मिल गये
.
हम अकेले, भीड़ थी, तन्हाई थी
और तुम बाहें पसारे मिल गये
.
डूबती नैया के तुम पतवार हो
साथ तेरे हर किनारे मिल गये
.
देख तुमको, जी को जो ठंडक हुयी
यूँ कि नजरों को नजारे मिल गये
.
सच अगरचे, देख के अनदेख हो
झूठ जीतेगा, इशारे…
ContinueAdded by वेदिका on August 5, 2013 at 8:59pm — 49 Comments
( २१२२ २१२२ २१२ )
क्या हुआ कोशिश अगर ज़ाया गई
दोस्ती हमको निभानी आ गई |
बाँधकर रखता भला कैसे उसे
आज पिंजर तोड़कर चिड़िया गई |
चूड़ियों की खनखनाहट थी सुबह
शाम को लौटी तो घर तन्हा गई |
लहलहाते खेत थे कल तक यहाँ
आज माटी गाँव की पथरा गई |
कैस तुमको फ़ख्र हो माशूक पर
पत्थरों के बीच फिर लैला गई |
आज फिर आँखों में सूखा है 'सलिल'
जिंदगी फिर से तुम्हें झुठला गई |
-- आशीष नैथानी 'सलिल'…
Added by आशीष नैथानी 'सलिल' on August 5, 2013 at 8:00pm — 16 Comments
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