एक बार फिर दिल से, गुस्ताखी माफ़ अगर लगे दिल पे
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आज कल हर कोई स्वतंत्रता दिवस के रंग में रंगा है, ऐसे में मेरे मन में कुछ विचार आये है ... जो शायद क्रांति नहीं ला सकते और न ही उनमे कोई बोद्धिकता है | फिर भी लिख रहा हूँ और आप सबके साथ साँझा कर रहा हूँ ....
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बात तब की है, जब मैं बचपने की गोद में खेला करता था, दूरदर्शन पर स्वतंत्रता दिवस के दिन मनोज कुमार की शहीद दिखाई गयी, फिल्म इतनी अच्छी लगी कि मुझे भारत माँ के सबसे महान और वीर बेटे भगत सिंह ही नज़र आने…
ContinueAdded by Sumit Naithani on August 14, 2013 at 6:00pm — 12 Comments
सार छंद | १६-१२ पर यति , अंत दो गुरु |
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Added by Shyam Narain Verma on August 14, 2013 at 1:00pm — 12 Comments
आगे बढ़ती भारत माँ के, पैरों में चुभ रहे काँटे !
आओ हम मिल कर उसके, एक एक दर्द को बाँटे !
समता, करूणा, वैभवशाली, भारत माँ की शान निराली !
धर्म ,प्रांत , जाति में बँटकर, हमने इसकी आभा बिगाड़ी !
जिस किसी ने भारत माँ पर, बुरी निगाह गड़ाई है ।
हमारे सपूतों ने हिम्मत से, उन्हें गर्त दिखाई है।
हिन्दू मुस्लिम सिख इसाई, इन नामों को बदलो भाई।
हम सब तो बस बन्दे है, इस झंझट में क्यूं पड़ते हैं।
कोई ना रहेगा पराया तब, सब अपने बन जायेंगे…
Added by D P Mathur on August 14, 2013 at 12:00pm — 11 Comments
Added by AVINASH S BAGDE on August 13, 2013 at 11:00pm — 9 Comments
बह्र : १२२२ १२२२ १२२२ १२२२
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न गाँधी से न मोदी से न खाकी से न खादी से
वतन की भूख मिटती है तो होरी की किसानी से
ये फल दागी हैं मैं बोला तो फलवाले का उत्तर था
मियाँ इस देश में सरकार तक चलती है दागी से
ख़ुदा के नाम पर जो जान देगा स्वर्ग जायेगा
ये सुनकर मार दो जल्दी कहा सबने शिकारी से
ये रेखा है गरीबी की जहाजों से नहीं दिखती
जमीं पर देख लोगे पूछकर अंधे भिखारी से
चुने जिसको, सहे उसके…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 13, 2013 at 11:00pm — 40 Comments
बृज की बाला श्याम पुकारे, पिउ ज्यों रटे चकोर।
सावन है मन भावन अब तो,आजा मन के चोर।
बदरा बरसे रिमझिम हरषे, मन सरसै तन मोर।।
मेरी करूण सुने बनवारी, मेह बड़े चितचोर।
बृज की बाला श्याम पुकारे, पिउ ज्यों रटे चकोर।।1
गोरी का साजन मन झूठा, कैसा यह परदेश।
जग के बन्धन-संशय भरते, तू सत्य अनमोल।।
तन की माटी तुझे बुलाए, भ्रम में करता शोर।
बृज की बाला श्याम पुकारे, पिउ ज्यों रटे चकोर।।2
जीवन बड़ा जुगाड़ु पग-पग, निश-दिन करता…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 13, 2013 at 10:30pm — 10 Comments
गीत
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मै शापित पत्थर कलजुग में राम कहाँ से लाऊँ
मै दरिद्रता से दरिद्र हूँ
तुम नृप के भी हो नृपराज
पूर्ण चन्द्र की दीप्ति तुम्हारी
मै हूँ अमा की काली रात …
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on August 13, 2013 at 7:30am — 13 Comments
यदि होती नेता मै
सिंहासन पर बैठती
अगल बगल प्यादे
लंबी मोटर कार होती
तिजोरी भर धन होता
यहाँ कुछ वहाँ होता
षटरस व्यंजन खाती
गिनती एक न करती
देना तो दूर की बात
सब छीन ले आती
भूखे कितने भी भूखे
दो रोटी की थाली
बनवाती संग मे
चावल , कटोरी दाल
बोनस कह कद्दू देती
उन्नति का ठेंगा
पड़े रहते सब नेता
जो बिचारे फिरते है
वोट मांगते रहते है
अंत मे मौन रहे साध
आँख…
ContinueAdded by annapurna bajpai on August 12, 2013 at 10:30pm — 15 Comments
दिलों को जोड़कर रखता रहा हूँ -
मैं कितनों के लिए पुल सा रहा हूँ -
मैं लम्हा हूँ, मगर सदियों पुरानी
किसी तारीख़ का हिस्सा रहा हूँ -
हजारों मस'अले हैं ज़िन्दगी में
मैं इक इक कर उन्हें सुलझा रहा हूँ-
ग़मे दौरां में ख़ुशियाँ ढूँढ़ना सीख
तुझे कबसे ऐ दिल! समझा रहा हूँ -
नहीं मुमकिन है मेरी वापसी अब
फ़क़त शतरंज का प्यादा रहा हूँ -
तुम्हारे नाम का इक फूल हर साल
क़िताबे दिल में, मैं रखता रहा हूँ -
किनारे…
Added by विवेक मिश्र on August 12, 2013 at 10:30pm — 20 Comments
ल ला ला ला ल ला ला ला ल ला ला ला ल ला ला
वतन की कौन सोचेगा अगर तुम हम नहीं तो
पहन लो हाथ में चूड़ी अगर हो दम नहीं तो
लुटी है आबरू जिसकी वो बिटिया इस चमन की
वो है जल्लाद गर है आँख किंचित नम नहीं तो
हसी मंजर हसी रुत ये भला किस काम के हैं
सफ़र में साथ जब अपने हसी हमदम नहीं तो
मजा क्या आएगा हम को भला इस जिन्दगी का
खुशी के साथ थोडा सा कहीं गर गम नहीं तो
सुखा देती जिगर के घाव तेरी…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on August 12, 2013 at 9:49pm — 8 Comments
सांवरी सुन सांवरी
आई मधुर मधुश्रावणी
नभ मीत हृद पर दामिनी
नव ताल से इठला रही
या दिगंबर को उमा
अपनी झलक दिखला रही
सुन सौरभे, हर-गौर,…
Added by राजेश 'मृदु' on August 12, 2013 at 4:00pm — 19 Comments
बूढी दादी अपने पोते गोलू को लेकर गाँव के प्राथमिक विद्यालय में गई . उनको देखकर मास्टर साहब कहने लगे कि आपने इतना कष्ट क्यों किया . दादी जी बोली -गोलू पढ़ेगा इसी विद्यालय में लेकिन दोपहर का खाना ये घर पर ही खायेगा . बस एक ही बात कहने को आयी हूँ कि इसके पिता ने हमें शहीद की माँ होने का गौरव दिया है और इसे उसके अधूरे काम को पूरा करने के लिए जिन्दा रहना है .
शुभ्रा शर्मा 'शुभ '
मौलिक और अप्रकाशित
Added by shubhra sharma on August 12, 2013 at 1:30pm — 31 Comments
दरख़्तों से छुपा-छुपी खेलता हुआ
वो तीखी धूप का एक टुकड़ा
मेरे कमरे तक आने को बेचैन
हवा ज्यों तेज़ हो जाती
वो ताक कर मुझे
वापस लौट जाता
इतना रौशन है वो आज कि
उसके ताकने भर से
अँधेरे से बंद कमरे की
आंखें उसकी चमक से
तुरन्त खुल जाती हैं
बहुत नींद में रहता है कमरा
आंखें मिचमिचाता है
कुछ देर तक यूँही देख
फिर आँखें बंद कर लेता है
हम्म ....मुझे लग रहा है
आज धूप का ये टुकड़ा
बारिश…
ContinueAdded by Priyanka singh on August 12, 2013 at 12:13am — 30 Comments
दोस्तों, पिछले डेढ़ महीने, मंच से नादारद था ... एक ताज़ा ग़ज़ल के साथ पुनः हाज़िरी दर्ज करता हूँ ....
प्यास के मारों के संग ऐसा कोई धोका न हो
आपकी आँखों के जो दर्या था वो सहरा न हो
उनकी दिलजोई की खातिर वो खिलौना हूँ जिसे
तोड़ दे कोई अगर तो कुछ उन्हें परवा न हो
आपका दिल है तो जैसा चाहिए…
ContinueAdded by वीनस केसरी on August 11, 2013 at 10:30pm — 16 Comments
Added by Ravi Prakash on August 11, 2013 at 9:00pm — 25 Comments
नींद चीज है बड़ी उंघते रहिए
बेफिक्री में आंखे मूंदते रहिए
आग लगती है लगे हमको क्या
आम दशहरी जनाब चूसते रहिए
मौका मिले तो तंज कर लो
नहीं तो मस्ती में झूमते रहिए
आसां नहीं है अहम को तोड़ना
दुनिया अजब है घूमते रहिए
अदाकार आप खूब है जनाब
सूत्रधार की भूमिका निभाते रहिए
बातें विक्षिप्त की है आपसे बाहर
हंसी चेहरे पर कूटिल दिखाते रहिए
"मौलिक…
Added by रौशन जसवाल विक्षिप्त on August 11, 2013 at 8:00pm — 6 Comments
सूरज के घोड़े चलते हैं निरंतर,
इस कोने से उस कोने तक ताकि
प्रकाश फैले कोने कोने में.
लेकिन घोड़ों के घर ही में रहता है अँधेरा.
प्रकाश उनसे ही रहता है दूर.
लेकिन उन्हें बोलने की इजाजत नहीं
मांगना उन्हें वर्जित है
घोड़े के मुंह में लगा होता है लगाम
उन्हें रूकने, हांफने और सुस्ताने की भी इजाजत नहीं
उन्हें बस चलते रहना है ताकि सूरज चल सके
निरंतर, निर्बाध.
डर है, रुके तो हिनहिना उठेंगे .
उनके आँखों पर लगी होती…
ContinueAdded by Neeraj Neer on August 11, 2013 at 7:52pm — 13 Comments
पत्थर चुप हैं
वे ज्यादा बोलते नहीं
ज्यादा खामोश रहते हैं
खामोश रहना
जीवन की
सबसे खतरनाक क्रिया होती है
आदमी पत्थर हो जाता है
खामोशी का कोई भेद नहीं
कोई वर्गीकरण नहीं
बस,
दो शब्दों के
उच्चारण के बीच का अन्तराल
जहां कोई ध्वनि नहीं,
दो अक्षरों के बीच की
खाली जगह
जहां कुछ नहीं लिखा;
कोरा
ऐसे ही पत्थर होते हैं
जहां कुछ नहीं होता
वहां पत्थर…
ContinueAdded by बृजेश नीरज on August 11, 2013 at 5:00pm — 28 Comments
!!! गीत !!!
तुम राष्ट् के कर्णधार देवदूत हो,
यदि शांति का, मार्ग दर्शन कर सकोगे?
नित नये नूतन किसलय अरूणिमा में,
या सांझ की श्याम धुन बांसुरिया हो।
धूप भी चन्दन लगेगा दोपहरिया में,
राष्ट् को यदि कीर्ति गौरव दे सकोगे? 1
तुम मनुष्य हो कर्म का फल भूल जाओ,
देश-धर्म हित लड़ो स्व भूल जाओ।
प्यार की पवि़त्र गंगा हर कहीं हो,
राष्ट् को यदि एक भगीरथ दे सकोगे? 2
सत्यम आहिंसा प्रेमु धन खूब लुटाओ,
राजपथ का मार्ग…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 11, 2013 at 4:51pm — 14 Comments
मै क्या लिखूं ,ये कैसे लिखूं और वो कितना लिखूं ,क्या शुद्ध है और परिष्कृत है और क्या अस्वीकार्य है? ये वरिष्ठ साहित्यकारों की जमात नहीं मेरे समझने वाले पाठक तय करेंगे तो मुझे खुशी होगी और मेरा सृजन सफल होगा ! मुझे किसी वरिष्ठ पर कोई विश्वास नहीं,हो सकता है वो अपनी आलोचनाओं से मेरी ठीक-ठाक रचना का कबाडा कर दे ! मुझे अपने से जूनियर और अपने समकालीन मित्र से अपनी सृजन पर समीक्षा लिखवाना अच्छा लगता है और इससे मुझे और लिखने का हौसला मिलता है ! मुझे नहीं लगता कि आपके द्वारा सृजित सामग्री को किन्ही…
ContinueAdded by शिवानन्द द्विवेदी सहर on August 11, 2013 at 3:30pm — 73 Comments
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