For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (19,138)

कागज़ी आज़ादी

एक बार फिर दिल से, गुस्ताखी माफ़ अगर लगे दिल पे 

 .

आज कल हर कोई  स्वतंत्रता दिवस के रंग में रंगा है, ऐसे में मेरे मन में कुछ विचार आये है ... जो शायद  क्रांति नहीं ला सकते और न ही उनमे कोई बोद्धिकता है | फिर भी लिख रहा हूँ और आप सबके साथ साँझा कर रहा हूँ ....

 .

बात तब की है, जब मैं बचपने की गोद में खेला करता था, दूरदर्शन पर  स्वतंत्रता दिवस के दिन मनोज कुमार की शहीद दिखाई गयी, फिल्म इतनी अच्छी लगी कि मुझे भारत माँ के  सबसे महान और वीर बेटे  भगत सिंह ही नज़र आने…

Continue

Added by Sumit Naithani on August 14, 2013 at 6:00pm — 12 Comments

सदा देश है प्यारा |

सार छंद | १६-१२ पर यति , अंत दो गुरु |

 

पवन वेग से दीप बचाना, छा ना जाये अंधेरा | 
बढ़ते जाओ चढ़ते जाओ, तोड़ो यम का  डेरा |  …
Continue

Added by Shyam Narain Verma on August 14, 2013 at 1:00pm — 12 Comments

कुछ स्वतंत्र लाइनें

आगे बढ़ती भारत माँ के, पैरों में चुभ रहे काँटे !

आओ हम मिल कर उसके, एक एक दर्द को बाँटे !



समता, करूणा, वैभवशाली, भारत माँ की शान निराली !

धर्म ,प्रांत , जाति में बँटकर, हमने इसकी आभा बिगाड़ी !



जिस किसी ने भारत माँ पर, बुरी निगाह गड़ाई है ।

हमारे सपूतों ने हिम्मत से, उन्हें गर्त दिखाई है।



हिन्दू मुस्लिम सिख इसाई, इन नामों को बदलो भाई।

हम सब तो बस बन्दे है, इस झंझट में क्यूं पड़ते हैं।



कोई ना रहेगा पराया तब, सब अपने बन जायेंगे…

Continue

Added by D P Mathur on August 14, 2013 at 12:00pm — 11 Comments

संस्कार (लघुकथा )

संस्कार 
********
महीमा जी पर बहू  को प्रताड़ित करने का मामला न्यायालय में चल रहा था . 
आज एक महत्वपूर्ण गवाही थी . 
श्रीमती उषाकिरण ने अपनी गवाही में बताया -
महीमा जी मेरी बहू  की माँ है और मै अपनी बहू  को बेटी की तरह रखती हूँ . 
इनकी बेटी भी मुझे माँ से कहीं बढ़कर स्नेह देती  है. 
जिस बहू में ऐसे सुंदर संस्कार हो भला उसकी माँ अपनी बहू को कैसे प्रताड़ना का शिकार 
बना सकती है !!!!
बातों में…
Continue

Added by AVINASH S BAGDE on August 13, 2013 at 11:00pm — 9 Comments

ग़ज़ल : न गाँधी से न मोदी से न खाकी से न खादी से

बह्र : १२२२ १२२२ १२२२ १२२२

--------

न गाँधी से न मोदी से न खाकी से न खादी से

वतन की भूख मिटती है तो होरी की किसानी से

 

ये फल दागी हैं मैं बोला तो फलवाले का उत्तर था

मियाँ इस देश में सरकार तक चलती है दागी से

 

ख़ुदा के नाम पर जो जान देगा स्वर्ग जायेगा

ये सुनकर मार दो जल्दी कहा सबने शिकारी से

 

ये रेखा है गरीबी की जहाजों से नहीं दिखती

जमीं पर देख लोगे पूछकर अंधे भिखारी से

 

चुने जिसको, सहे उसके…

Continue

Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 13, 2013 at 11:00pm — 40 Comments

!!! बृज की बाला श्याम पुकारे !!!

बृज की बाला श्याम पुकारे, पिउ ज्यों रटे चकोर।

सावन है मन भावन अब तो,आजा मन के चोर।

बदरा बरसे रिमझिम हरषे, मन सरसै तन मोर।।

मेरी  करूण  सुने  बनवारी, मेह  बड़े  चितचोर।

बृज की बाला श्याम पुकारे, पिउ ज्यों रटे चकोर।।1

गोरी का साजन मन झूठा, कैसा यह परदेश।

जग के बन्धन-संशय भरते, तू सत्य अनमोल।।

तन की माटी तुझे बुलाए, भ्रम में करता शोर।

बृज की बाला श्याम पुकारे, पिउ ज्यों रटे चकोर।।2

जीवन बड़ा जुगाड़ु पग-पग, निश-दिन करता…

Continue

Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 13, 2013 at 10:30pm — 10 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
मै शापित पत्थर कलजुग में राम कहाँ से लाऊँ

गीत

*********              

मै शापित पत्थर कलजुग में राम कहाँ से लाऊँ

मै दरिद्रता से दरिद्र हूँ

तुम नृप के भी हो नृपराज

पूर्ण चन्द्र की दीप्ति तुम्हारी

मै हूँ अमा की काली रात  …

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on August 13, 2013 at 7:30am — 13 Comments

जो मै नेता होती ( हास्य कविता )

यदि होती नेता मै  

सिंहासन पर बैठती

अगल बगल प्यादे

लंबी मोटर कार होती

तिजोरी भर धन होता

यहाँ कुछ वहाँ होता  

षटरस व्यंजन खाती

गिनती एक न करती

देना तो दूर की बात

सब छीन ले आती

भूखे कितने भी भूखे

दो रोटी की थाली

बनवाती संग मे

चावल , कटोरी दाल

बोनस कह कद्दू देती

उन्नति का ठेंगा

पड़े रहते सब नेता

जो बिचारे फिरते है

वोट मांगते रहते है

अंत मे मौन रहे साध

आँख…

Continue

Added by annapurna bajpai on August 12, 2013 at 10:30pm — 15 Comments

ग़ज़ल - मैं कितनों के लिए पुल सा रहा हूँ

दिलों को जोड़कर रखता रहा हूँ -

मैं कितनों के लिए पुल सा रहा हूँ -



मैं लम्हा हूँ, मगर सदियों पुरानी

किसी तारीख़ का हिस्सा रहा हूँ -



हजारों मस'अले हैं ज़िन्दगी में

मैं इक इक कर उन्हें सुलझा रहा हूँ-



ग़मे दौरां में ख़ुशियाँ ढूँढ़ना सीख

तुझे कबसे ऐ दिल! समझा रहा हूँ -



नहीं मुमकिन है मेरी वापसी अब

फ़क़त शतरंज का प्यादा रहा हूँ -



तुम्हारे नाम का इक फूल हर साल

क़िताबे दिल में, मैं रखता रहा हूँ -



किनारे…

Continue

Added by विवेक मिश्र on August 12, 2013 at 10:30pm — 20 Comments

वतन की कौन सोचेगा अगर तुम हम नहीं तो

ल ला ला ला  ल ला ला ला  ल ला ला ला  ल ला ला 

वतन की कौन सोचेगा अगर तुम हम नहीं तो 

पहन लो हाथ में चूड़ी अगर हो दम नहीं तो 

लुटी है आबरू जिसकी वो बिटिया इस चमन की 

वो है जल्लाद गर है आँख किंचित नम नहीं तो 

हसी मंजर हसी रुत ये भला किस काम के हैं 

सफ़र में साथ जब अपने हसी हमदम नहीं तो 

मजा क्या आएगा हम को भला इस जिन्दगी का 

खुशी के साथ थोडा सा कहीं गर गम नहीं तो 

सुखा देती जिगर के घाव तेरी…

Continue

Added by Dr Ashutosh Mishra on August 12, 2013 at 9:49pm — 8 Comments

सावन गीत (राजेश कुमार झा)

सांवरी सुन सांवरी

आई मधुर मधुश्रावणी



नभ मीत हृद पर दामिनी

नव ताल से इठला रही

या दिगंबर को उमा

अपनी झलक दिखला रही



सुन सौरभे, हर-गौर,…

Continue

Added by राजेश 'मृदु' on August 12, 2013 at 4:00pm — 19 Comments

लघु -कथा - अधूरा काम

बूढी दादी अपने पोते गोलू को लेकर गाँव के प्राथमिक विद्यालय में गई . उनको देखकर मास्टर साहब कहने लगे कि आपने इतना कष्ट क्यों किया . दादी जी बोली -गोलू पढ़ेगा इसी विद्यालय में लेकिन दोपहर का खाना ये घर पर ही खायेगा . बस एक ही बात कहने को आयी हूँ कि इसके पिता ने हमें शहीद की माँ होने का गौरव दिया है और इसे उसके अधूरे काम को पूरा करने के लिए जिन्दा रहना है .

शुभ्रा शर्मा 'शुभ '

मौलिक और अप्रकाशित

Added by shubhra sharma on August 12, 2013 at 1:30pm — 31 Comments

धूप का टुकड़ा.....

दरख़्तों से छुपा-छुपी खेलता हुआ

वो तीखी धूप का एक टुकड़ा

मेरे कमरे तक आने को बेचैन

हवा ज्यों तेज़ हो जाती

वो ताक कर मुझे

वापस लौट जाता

इतना रौशन है वो आज कि

उसके ताकने भर से

अँधेरे से बंद कमरे की

आंखें उसकी चमक से

तुरन्त खुल जाती हैं

बहुत नींद में रहता है कमरा

आंखें मिचमिचाता है

कुछ देर तक यूँही देख

फिर आँखें बंद कर लेता है

हम्म ....मुझे लग रहा है

आज धूप का ये टुकड़ा

बारिश…

Continue

Added by Priyanka singh on August 12, 2013 at 12:13am — 30 Comments

प्यास के मारों के संग ऐसा कोई धोका न हो

दोस्तों, पिछले डेढ़ महीने, मंच से नादारद था  ... एक ताज़ा ग़ज़ल के साथ पुनः हाज़िरी दर्ज करता हूँ ....

प्यास के मारों के संग ऐसा कोई धोका न हो

आपकी आँखों के जो दर्या था वो सहरा न हो 

उनकी दिलजोई की खातिर वो खिलौना हूँ जिसे

तोड़ दे कोई अगर तो कुछ उन्हें परवा न हो

आपका दिल है तो जैसा चाहिए…

Continue

Added by वीनस केसरी on August 11, 2013 at 10:30pm — 16 Comments

रूप तुम्हारे -(रवि प्रकाश)

मंदिर-मंदिर सजने वाली,

अक्षत,चंदन-सज्जित थाली।

या तुम कोई दीपशिखा हो,

जिस पर जीवन-जोत लिखा हो।

पूजन कोई नमन पुकारे,

जाने कितने रूप तुम्हारे॥



रात का भीगा अश्रु-कण हो,

नव विहान की प्रथम किरण हो।

तपी दोपहर अलसाई सी,

सन्ध्या थोड़ी सकुचाई सी।

चन्द्रलेख हो पंख पसारे,

जाने कितने रूप तुम्हारे॥



फागुन की मादक बयार भी,

पावस की पहली फुहार भी।

कार्तिक की हल्की सी ठिठुरन,

पौष-माघ की ठण्डी सिहरन।

तुझमें खिलते मौसम… Continue

Added by Ravi Prakash on August 11, 2013 at 9:00pm — 25 Comments

नींद चीज है बड़ी

नींद चीज है बड़ी  उंघते रहिए

बेफिक्री में आंखे मूंदते रहिए

आग लगती है लगे हमको क्‍या

आम दशहरी जनाब चूसते रहिए

मौका मिले तो तंज कर लो

नहीं तो मस्‍ती में झूमते रहिए

आसां नहीं है अ‍हम को तोड़ना

दुनिया अजब है घूमते रहिए

अदाकार आप खूब है जनाब 

सूत्रधार की भूमिका निभाते रहिए

बातें विक्षिप्‍त की है आपसे बाहर

हंसी चेहरे पर कूटिल दिखाते रहिए 

"मौलिक…

Continue

Added by रौशन जसवाल विक्षिप्‍त on August 11, 2013 at 8:00pm — 6 Comments

सूरज के घोड़े

सूरज के घोड़े चलते हैं निरंतर,

इस कोने से उस कोने तक ताकि

प्रकाश फैले कोने कोने में.

लेकिन घोड़ों के घर ही में रहता है अँधेरा.

प्रकाश उनसे ही रहता है दूर.

लेकिन उन्हें बोलने की इजाजत नहीं   

मांगना उन्हें वर्जित है

घोड़े के मुंह में लगा होता है लगाम

उन्हें रूकने, हांफने और सुस्ताने की भी इजाजत नहीं

उन्हें बस चलते रहना है ताकि सूरज चल सके

निरंतर, निर्बाध.

डर है, रुके तो हिनहिना उठेंगे .

उनके आँखों पर लगी होती…

Continue

Added by Neeraj Neer on August 11, 2013 at 7:52pm — 13 Comments

पत्थर

पत्थर चुप हैं

वे ज्यादा बोलते नहीं

ज्यादा खामोश रहते हैं

 

खामोश रहना

जीवन की

सबसे खतरनाक क्रिया होती है

आदमी पत्थर हो जाता है

 

खामोशी का कोई भेद नहीं

कोई वर्गीकरण नहीं

बस,

दो शब्दों के

उच्चारण के बीच का अन्तराल

जहां कोई ध्वनि नहीं,

दो अक्षरों के बीच की

खाली जगह

जहां कुछ नहीं लिखा;

कोरा

 

ऐसे ही पत्थर होते हैं

जहां कुछ नहीं होता

वहां पत्थर…

Continue

Added by बृजेश नीरज on August 11, 2013 at 5:00pm — 28 Comments

!!! गीत !!!

!!! गीत !!!



तुम राष्ट् के कर्णधार देवदूत हो,

यदि शांति का, मार्ग दर्शन कर सकोगे?

नित नये नूतन किसलय अरूणिमा में,

या सांझ की श्याम धुन बांसुरिया हो।

धूप भी चन्दन लगेगा दोपहरिया में,

राष्ट् को यदि कीर्ति गौरव दे सकोगे? 1

तुम मनुष्य हो कर्म का फल भूल जाओ,

देश-धर्म हित लड़ो स्व भूल जाओ।

प्यार की पवि़त्र गंगा हर कहीं हो,

राष्ट् को यदि एक भगीरथ दे सकोगे? 2

सत्यम आहिंसा प्रेमु धन खूब लुटाओ,

राजपथ का मार्ग…

Continue

Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 11, 2013 at 4:51pm — 14 Comments

साहित्य के नाम-वरों से बचना जरूरी

मै क्या लिखूं ,ये कैसे लिखूं और वो कितना लिखूं ,क्या शुद्ध है और परिष्कृत है और क्या अस्वीकार्य है? ये वरिष्ठ साहित्यकारों की जमात  नहीं मेरे समझने वाले पाठक तय करेंगे तो मुझे खुशी होगी और मेरा सृजन सफल होगा ! मुझे किसी वरिष्ठ पर कोई विश्वास नहीं,हो सकता है वो अपनी आलोचनाओं से मेरी ठीक-ठाक रचना का कबाडा कर दे ! मुझे अपने से जूनियर और अपने समकालीन मित्र से अपनी सृजन पर समीक्षा लिखवाना अच्छा लगता है और इससे मुझे और लिखने का हौसला मिलता है ! मुझे नहीं लगता कि आपके द्वारा सृजित सामग्री को किन्ही…

Continue

Added by शिवानन्द द्विवेदी सहर on August 11, 2013 at 3:30pm — 73 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185

परम आत्मीय स्वजन, ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 185 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..  सादर"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
Tuesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Monday
Sushil Sarna posted blog posts
Nov 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Nov 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service