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ग़ज़ल - मधुर सी चांदनी है , मिला महुआ चुआ सा !

ग़ज़ल -

किसी ने यूँ  छुआ सा ,

मुझे कुछ कुछ हुआ सा |

 

मैं हर शब् हारता हूँ ,

ये जीवन है जुआ सा |

 

कसावट का  भरम था ,

नरम थी  वो रुआ सा |

 

नज़र खामोश उसकी ,

असर उसका दुआ सा |

 

कहीं कुछ टीसता है ,

कि धंसता है सुआ सा |

 

मैं हल खींचूँ अकेले ,

ले काँधे पर जुआ सा |

 

मधुर सी चांदनी है ,

मिला महुआ चुआ सा |

 

ये माँ का याद आना ,

लगे  मीठा पुआ सा |

 

              -अभिनव अरुण 

      {पुरानी डायरी से १८०८२०१३}

* सर्वथा मौलिक एवं अप्रकाशित - अरुण 

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Comment by Abhinav Arun on August 27, 2013 at 7:03am

आदरणीय अग्रज श्री ..अरसे बाद आपके दर्शन आशीष से कितार्थ हुआ ... पुरानी ग़ज़लें हैं वर्कशॉप में काम के दौरान थोड़ी बहुत मरम्मत की गयी है ..जल्दबाजी हुई है ..सलाह पर अमल होगा और ..फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया एक अच्छी ग़ज़ल के साथ !!अभिवादन !!!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 26, 2013 at 6:03pm

बड़ी नरम सी ग़ज़ल हुई है, भाईजी.

नरम-नरम शुभकामनाएँ.. . 

हाँ,  रुआ वाले शेर में बिल्ली के साथ-साथ ऊँट घुस आया है.  ऐसा मुझे लगा. देख लीजियेगा. संभव हुआ तो किसी एक को बाहर कर दीजियेगा.

हल वाला शेर कुछ अलग है. लेकिन पुआ की याद दिला कर सराबोर ही कर दिया आपने.

पुनः बहुत-बहुत बधाई. 

Comment by Abhinav Arun on August 25, 2013 at 7:14pm
आदरणीय मंजरी जी ,ग़ज़ल पसंद आई ,बहुत आभार प्रोत्साहन हेतु आपका !!
Comment by mrs manjari pandey on August 25, 2013 at 4:15pm

   आदरणीय जितनी सराहना की जाए उतना कम ही होगा. क्या सुन्दर भाव और् ..क्या.  क्या..

  

मधुर सी चांदनी है ,

मिला महुआ चुआ सा |

 

ये माँ का याद आना ,

लगे  मीठा पुआ सा |

Comment by Abhinav Arun on August 20, 2013 at 6:15pm

अश'आर पसंद आये धन्य हुआ आदरणीय राम शिरोमणि जी बहुत बहुत शुक्रिया .

Comment by ram shiromani pathak on August 20, 2013 at 2:41pm

मैं हर शब् हारता हूँ ,

ये जीवन है जुआ सा |

 

कसावट का  भरम था ,

नरम थी  वो रुआ सा |

 

नज़र खामोश उसकी ,

असर उसका दुआ सा |

 

कहीं कुछ टीसता है ,

कि धंसता है सुआ सा |///////////बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल आदरणीय  ,दिल को छू गयी //हार्दिक बधाई आपको 

Comment by Abhinav Arun on August 20, 2013 at 5:10am

ग़ज़ल को सराहा आ. डॉ साहिबा , बहुत बहुत नमन वंदन आपका !

Comment by Abhinav Arun on August 20, 2013 at 5:09am

हां ? बस ऐसे ही कुनबा जोड़ने की कोशिश हुई है अपना परिवार है सो जो भी किचेन में बनता है परोस देने में संकोच नहीं आ. गीतिका जी ! शुक्रिया बहुत बहुत आपकी टिप्पणी मेरा हौसला बढ़ाएगी !!

Comment by Abhinav Arun on August 20, 2013 at 5:08am

आ.जितेन्द्र जी , लिखना सार्थक हुआ आपके स्नेह से संपूरित हूँ ..आभार !

Comment by Abhinav Arun on August 20, 2013 at 5:07am

बहुत शुक्रिया आदरणीया अन्नपूर्णा जी रचना के अनुमोदन से बल मिला !!

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