Added by विवेक मिश्र on August 19, 2013 at 3:51pm — 10 Comments
कल तक, तो सुबह ही खटर - पटर ,ची . चु की आवाज़ सुनकर ही पता चल जाता था कि मेरे पड़ोसी अमर सिंह जी के बच्चो को लेने रिक्शाबाला आ गया है | उम्र 50 से एक -आध साल ही उपर होंगी , पर गरीब जल्दी बढता है , और जल्दी ही मरता है इसलिए लगता 70 साल का था | नाम कभी पता नही किया मैंने उसका , होंगा कोई राजा राम या बादशाह खान क्या फर्क पड़ता है नाम से ?
दाढ़ी भी पता नही किस दिन बनाता था ? जब भी देखा ,उतनी की उतनी , सफ़ेद काली , मिक्स वेज जैसी , न कम न ज्यादा ! पोशाक बिलकुल , भारतीय पजामा…
ContinueAdded by aman kumar on August 19, 2013 at 3:30pm — 4 Comments
सुनो तुम
न जाने कहाँ हो!
तुम्हें देख रही है मेरी आँखें
तुम्हें ताक रहीं है मेरी राहें
तुम्हें थाम रहीं है मेरी बाँहें
लेकिन तुम नहीं हो
बहुत दूर दूर तक
बहुत दूर ...के पार
हाँ! शायद तुम वहाँ हो
सुनो तुम...
जाने, तुम हो भी या नहीं
कभी तो लगता है यही
पर तुम्हें होना चाहिए
है न
पर मै नहीं हूँ
तुम्हारे होने तक
मेरी नज़रें
नही जातीं वहाँ तक
कि तुम जहाँ…
ContinueAdded by वेदिका on August 19, 2013 at 2:30pm — 25 Comments
नारी को दुर्गा, नारी को शक्ति, नारी को जननी , कह कर बुलाते हो
और जब वो नन्ही सी बेटी बन कर आये
इस खबर से क्यों तुम डर जाते हो…
जानते हो भलीभांति , जब खोली तुमने आँखें
तो पाया माँ का प्यार ,
बहन का दुलार
आगे किसी मोड़ पर जीवन-संगिनी भी मिली
सेवा समर्पण लिए
प्रश्न मेरा केवल इतना है तुमसे, लेकिन
क्या सीखा है तुमने ... केवल लेना ही लेना ???
तुमको तो बनाया है, सर्वथा-शक्तिशाली
उस सर्व-शक्तिमान ने
तभी तो…
ContinueAdded by AjAy Kumar Bohat on August 19, 2013 at 2:00pm — 5 Comments
वो अपनेपन का सोता खोल दिल की हर गिरह निकले ।
कगारी फाँद ओंठों की सुरीला गीत बह निकले ।
लरजकर चूम ले माथा, हुमक कर बाँह में भर ले
वो बिछड़ी रात भर की धूप बौरी जब सुबह निकले ।
फकत दो बूँद ने भीतर तलक सारा भिगो डाला
हमारे दिल भी ये कच्चे मकानों की तरह निकले ।
इन्हें पोंछो तो पहले कैफियत पीछे तलब करना
हर आँसू बेशकीमत है वो चाहे जिस वजह निकले
इस अपनी आदमी की देह से इतनी कमाई कर
कि तेरे बाद भी तेरे लिये दिल में…
Added by Sulabh Agnihotri on August 19, 2013 at 10:00am — 21 Comments
वह जो नहीं कर सकती वह कर जाती है ...
घंटों वह अपनी एक खास भाषा मे हँसती है
जिसका उसे अभी अधूरा ज्ञान भी नहीं
उसके ठहाके से ऐसे कौन से फूल झड़ते है
जो किसी खास जंगल की पहचान है .... ...
जबकि उसकी रूह प्यासी है
और वह रख लेती है निर्जल व्रत
सुना है कि उसके हाथों के पकवान
से महका करता था पूरा गाँव भर
और घर के लोग पूरी तरह जीमते नहीं थे
जब तक कि वे पकवान मे डुबो डुबो कर
बर्तन के पेंदे और
अपनी उँगलियों को चाट नहीं लेते अच्छी तरह…
Added by डॉ नूतन डिमरी गैरोला on August 19, 2013 at 9:00am — 11 Comments
Added by गिरिराज भंडारी on August 19, 2013 at 9:00am — 14 Comments
घर के नौकर छोटू ने नेता जी को सूचना…
ContinueAdded by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 18, 2013 at 11:30pm — 48 Comments
बहर : हज़ज़ मुसम्मन सलीम
१२२२, १२२२, १२२२, १२२२,
तुझे भूला हुआ होगा तुझे बिसरा हुआ होगा,
कहीं तो टूटके सीने से दिल बिखरा हुआ होगा,
बदलता है नहीं मेरी निगाहों का कभी मौसम,
असर छोटी सी कोई बात का गहरा हुआ होगा ,
तनिक हरकत नहीं करता सिसकती आह सुन मेरी,
अगर गूंगा नहीं तो दिल तेरा बहरा हुआ होगा,
जिसे अब ढूंढती है आज के रौशन जहाँ में तू,
तमस की गोद में बिस्तर बिछा पसरा हुआ होगा,
चली आई मुझे…
ContinueAdded by अरुन 'अनन्त' on August 18, 2013 at 10:30pm — 15 Comments
मै शब्द हूँ ।
मेरा जन्म हुआ है आप का अंतस बाहर लाने के लिए ।
मै उतना ही सशक्त होता हूँ, जितनी आप की भावनाएं…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on August 18, 2013 at 9:00pm — 12 Comments
फिर चुनावी दौर शायद आ रहा है
द्वेष का बाज़ार फिर गरमा रहा है
मेंमने की खाल में है भेड़िया जो
बोटियों को नोंच सबकी खा रहा है
इस तरह से सच भी दफ़नाया गया अब
झूठ को सौ बार वो दुहरा रहा है
क्या वफ़ादारी निभायी जा रही है
देवता, शैतान को बतला रहा है
बोझ दिल में सब लिए अपने खड़े हैं
ख़ुद-से ही हर शख़्स अब शरमा रहा है
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by नादिर ख़ान on August 18, 2013 at 8:00pm — 9 Comments
भाई है मेरा अटूट विश्वास
भाई संग रहे सुंदर अहसास
यही अहसास करा जाना
प्यारे भैया आ जाना
भाई मेरे कल का उज्जवल सपना
बनाए रखना सदा साथ अपना
सपना पूर्ण करा जाना
प्यारे भैया आ जाना
भाई हो दूर तो सूना मुझे लगे
बीते बचपन की यादें हैं जगे
बचपन याद दिला जाना
प्यारे भैया आ जाना
माँ के आंचल की छांव हो आप
हाथ हो सर पे जैसे माँ और बाप
फर्ज अपना निभा जाना
प्यारे भैया आ जाना
भाई मेरी…
Added by Sarita Bhatia on August 18, 2013 at 7:00pm — 10 Comments
वह पुराना बरगद
कहते है वह गवाह
उन शूर वीरों का
जो मर मिटे देश पर
इसकी आन औ शान
बचाने की खातिर
जाने कितने यूं ही
लटका दिये गये उन
शाखों पर जो देती
थीं दुलार प्यार व
हरे पत्तों की ठंडी
छाँव, ताजी हवा तब
वह बरगद जवां था
मजबूती से खड़ा हो
देखता सोचता था
अधर्मी पापियों एक
दिन वो भी आयेगा
जब तू भी यूं ही
मिटाया जाएगा
मै यहाँ खड़ा हो
देखूँगा तेरा भी…
ContinueAdded by annapurna bajpai on August 18, 2013 at 6:53pm — 14 Comments
ग़ज़ल -
किसी ने यूँ छुआ सा ,
मुझे कुछ कुछ हुआ सा |
मैं हर शब् हारता हूँ ,
ये जीवन है जुआ सा |
कसावट का भरम था ,
नरम थी वो रुआ सा |
नज़र खामोश उसकी ,
असर उसका दुआ सा |
कहीं कुछ टीसता है ,
कि धंसता है सुआ सा |
मैं हल खींचूँ अकेले ,
ले काँधे पर जुआ सा |
मधुर सी चांदनी है ,
मिला महुआ चुआ सा |
ये माँ का याद आना…
ContinueAdded by Abhinav Arun on August 18, 2013 at 6:30pm — 21 Comments
मुझे जलाओ पीडानल में, उस सीमा तक,
जिस पर अहंकार मरता है,
अभिमान आहें भरता है,
बाकि न कुछ द्वेष रहे,
और नहीं कुछ शेष रहे।
हे देव ! काट दो बंधन सारे ,
एक नहीं सब होवें प्यारे ,
न इर्ष्या का अवशेष रहे,
और नहीं कुछ शेष रहे।
चिंता छोड़ करें सब चिंतन
सुखमय हो जाए हर जीवन
उन्नति देश करे
और नहीं कुछ शेष रहे।
"मौलिक व अप्रकाशित"
शब्द्कार : आदित्य कुमार
Added by Aditya Kumar on August 18, 2013 at 5:00pm — 9 Comments
शज़र
मेरे सीने में कोई प्यासा शज़र, अब तक है,
उसके अंदाज़ में मौसम का असर, अब तक है|
उसको मंज़िल मिली, वो चैन से सोने को गया,
मेरे हिस्से मे कोई तन्हा सफ़र ,अब तक है|
वो नही, नींद नही, फिर भी मैं खुश हूँ, गोया,
उसकी मासूम दुआओं का असर अब तक है|
उसकी ख्वाहिश कहीं मुट्ठी में बंद रेत ना हो,
मेरे अहसास में पैबस्त ये डर अब तक है|
मुझ से पूछा है कई बार, ढलते सूरज ने ,
यूँ तो 'शेखर' है तेरा नाम,…
Added by ARVIND BHATNAGAR on August 18, 2013 at 1:30pm — 5 Comments
Added by Admin on August 18, 2013 at 12:00pm — 14 Comments
पहचान
हटा कर धूल जब देखा अतीत के आईने ने हमको,
उसने भी न पहचाना और अनजान-सा देखा हमको,
सालों बाद हमसे पूछे बहुत सवाल पर सवाल उसने,
हर सवाल के जवाब में हमने नाम तुम्हारा था दिया।
ऐसा…
ContinueAdded by vijay nikore on August 18, 2013 at 11:30am — 28 Comments
(आज से करीब ३२ साल पहले)
लगता है मुझे कोई बीमारी हो गई है. परसों पिताजी डॉक्टर के पास ले गए थे. नाक से बार बार खून आने लगा है. मां ने कहा है कि कुछ दिन मुझे नियमित रूप से दवा खानी होगी.
कल रात दवा खाई थी. नींद आ रही थी मगर आँख नहीं लग रही थी. देर रात बिस्तर पे करवटें बदलता रहा और सोचता रहा कि कब स्वस्थ होऊंगा. सुबह पौने छः बजे आँख खुली. ज़बरन बिस्तर से उठा, एक मदहोशी सी छाई थी. अकस्मात गुड्डी दादी के साथ हुई दुर्घटना ने सारे आलस्य को काफूर कर दिया. वो घर की…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on August 18, 2013 at 11:21am — 7 Comments
!!! प्याज मंहगे आ गए !!!
बह्र- 2122 2122 2122 212
पत्थरों के शहर में ये जीव कैसे आ गए।
लोभ है सत्ता से इनको होड़ करके आ गए।।1
श्वेत पोशाकों में सजते, खून से लथपथ सने।
रोज मरते सत से राही, कंस जब से आ गए।।2
धर्म बीथीं भी हिली है, भू कपाती हलचलें।
भाई से भाई लड़े हैं, जाति जनने आ गए।।3
नफरतों की आग फैली, द्वेष फलते पीढि़यां।
अम्न जिंदा जल रही है, घी गिराने आ गए।।4
वक्त ने हमको पढ़ाया,…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 18, 2013 at 7:32am — 26 Comments
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