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!!! वंदना !!!

वंदना......हरिगीतिका

हे!  ज्ञान  दाती   दुःख  हरती   प्रेम  ममता   वारती।

यम नियम नियमन दिशा दर्शन गगन गुरूता धारती।।

तुम सर्व हो  तुम गर्व हो  तुम आदि  गंगा गामिनी।

रति सौम्य सागर सती आगर मोक्ष वरदं दायिनी।।1

रघुवीर पूजें  कृष्ण कूंजे  शक्ति दुर्गा  दामिनी।

अभिमान ऐसा क्लेष जैसा पाप शापं नाशिनी।।

अरि नष्ट करती मित्र बनती हाथ सिर पर फेरती।

सुख सार भरणी कष्ट हरणी तोष निश-दिन टेरती।।2

मैं मूर्ख जातं आत्म…

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Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 22, 2013 at 7:52am — 22 Comments

कविता - छोड़ दे झंडे !

कविता - छोड़ दे झंडे !

 

छोड़ दे झंडे और झंखाड़े

उठाले परचम पकड़ अखाड़े

मत फंदों और जाल में फंस तू

ज़हर बुझे दातों से डंस तू

देख कोई भी बच न पाए

व्यूह तिमिर का रच न पाए

 

षड्यंत्रों की खाल उधेड़

ऊन भरम है ख़ूनी भेड़

भीतर भीतर काले दांत

मूल्य हज़म हों ऐसी आंत

कर पैने कविता के तीर

अन्धकार की छाती चीर

 

विमुखों और उदासीनों को

भाले बरछी संगीनों को

जो चेतन हैं तू उनको…

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Added by Abhinav Arun on August 22, 2013 at 6:29am — 22 Comments

कुंठित मन

वंजर धरती को जोते हम

डाल उर्वरक हरा बनाये

सालों साल वृथा मिटटी जो

आज हँसे लहके लहराए !

 

कुंठित मन को कुंठा से भर

दुखी रहें क्यों हम अलसाये

कुंठित बीज हरी धरती में

कुंठित फसल भी ना ला पायें !

 

नाश करें खुद के संग धरती

वंजर  वृथा ह्रदय अकुलाये

जोश उर्जा क्षीण हो निशि दिन

ख़ुशी हंसी मन को खा जाए !

 

सहज सरल भी चुभें तीर सा

बिन बात बतंगड़ बनती जाए

घुन ज्यों अंतर करे…

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Added by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on August 21, 2013 at 11:00pm — 14 Comments

पीछे हट जाने का डर है।

घोर तिमिर है, 

कठिन डगर है, 

आगे का कुछ नहीं सूझता,

पीछे हट जाने का डर है।

मन में इच्छाएं बलशाली 

शोणित में भी वेग प्रबल है,

रोज लड़ रहा हूँ जीवनसे

टूट रहा अब क्यों संबल है

मैंने अपनी राह चुनी है 

दुर्गम, कठिन कंटकों वाली 

जो ऐसी मंजिल तक पहुंचे 

जो लगे मुझे कुछ गौरवशाली

धूल धूसरित रेगिस्तानी हवा के छोंकें 

देते धकेल , आगे बढ़ने से रोकें 

सूखा कंठ, प्राण हैं अटके 

कब पहुंचूंगा निकट भला पनघट के

आगे बढ़ना भी दुष्कर…

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Added by Aditya Kumar on August 21, 2013 at 4:27pm — 21 Comments

रक्षा बंधन // कुशवाहा //

रक्षा बंधन // कुशवाहा //

---------------------------

अंधियारी बाग़ की पतली गलियों में माँ आयशा की अंगुली पकडे लगभग घिसटती सी चली जा रही सात वर्षीय अलीशा की नजरें सड़क के दोनों ओर दुल्हन सी सजी दुकानों को देख रही थी . कहीं मिठाई और कहीं सूत, राखी से सजी दुकान. ऐसा उसने कभी अपने गाँव में न देखा था. लगभग एक माह दुर्घटना में अब्बू का इंतकाल हो जाने पर पुष्पा दीदी , प्रसिद्ध समाज सेविका , आयशा और अलीशा को अपने घर ले आयीं थीं .

पुष्पा जी के घर में रक्षा बंधन के पावन पर्व पर जश्न…

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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on August 21, 2013 at 12:11pm — 9 Comments

बंधन रक्षा का है, यह दिलों का भी है

बंधन रक्षा का है, यह दिलों का भी है।

भाई-बहनों के पावन मिलन का भी है।

प्यारी बहना सलामत रहे हर सदा।

मेरी ख्वाहिश तुम्हारे दिलों में भी है। 

ले लो संकल्प बंधन के इस पर्व पर।

हर गली, हर मोहल्ले में बहना ही है। 

बंधन रक्षा का है ......................।

प्यारी बहना को उपहार देते समय,

उसको पुचकार औ प्यार देते समय।

दिल्ली की सड़कों की याद कर लो जरा,

अरसा पहले जो गुजरा नजारा वही,

याद कर लो जरा, बात कर लो जरा।

लो…

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Added by Atul Chandra Awsathi *अतुल* on August 21, 2013 at 11:04am — 1 Comment

!!! पिया के घर चली रजनी !!!

!!! पिया के घर चली रजनी !!!

गजल बह्र- 1 2 2 2, 1 2 2 2

सुहानी रात की रजनी,

सुमन सुख बेल सी रजनी।

बना है चांद दूल्हा जब,

सजी दुल्हन तभी रजनी।

चली बारात तारों की,

मगन आकाश सी रजनी।

करे परछन यहां आभा,

वहां सकुचा रही रजनी।

हवन आदित्य में पूरे,

किए फेरे जगी रजनी।

विदाई कर रहीं किरनें,

सिमट कर रो पड़ी रजनी।

किरन-आभा मिली जैसे,

फफक कर चीखती…

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Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 21, 2013 at 8:46am — 14 Comments

कवि का मन - (रवि प्रकाश)

छंद -15 गुरु अथवा 30 मात्राएँ (16 पर यति)



अम्बर कैसे झूला झूले,नदियाँ कैसे गाती हैं;

तारों की सौगातें ले कर,रातें मन बहलाती हैं।

सूरज के माथे पे आख़िर,किसके मद की लाली है;

अँगड़ाई लेते पत्तों पर,किसने शबनम डाली है।

किरणों के आभूषण पहने,भोरें क्यों इठलाती हैं;

कलियों की चटकीली गलियाँ,भौँरों को भरमाती हैं।

सुध-बुध अपनी खो कर कितना,दोपहरें अलसाती हैं;

दिन की पीड़ा हरते-हरते,साँझें क्यों सँवलाती हैं।

गुलमोहर की डाली से क्यों,चंदा उलझा रहता… Continue

Added by Ravi Prakash on August 21, 2013 at 5:30am — 7 Comments

बंधन रक्षा का है, यह दिलों का भी है..

बंधन रक्षा का है, यह दिलों का भी है।

भाई-बहनों के पावन मिलन का भी है।

प्यारी बहना सलामत रहे हर सदा।

मेरी ख्वाहिश तुम्हारे दिलों में भी है।

ले लो संकल्प बंधन के इस पर्व पर।

हर गली, हर मोहल्ले में बहना ही है।

बंधन रक्षा का है ......................।

प्यारी बहना को उपहार देते समय,

उसको पुचकार औ प्यार देते समय।

दिल्ली की सड़कों की याद कर लो जरा,

अरसा पहले जो गुजरा नजारा वही,

याद कर लो जरा, बात कर लो जरा।

लो शपथ और खाओ कसम फिर…

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Added by Atul Chandra Awsathi *अतुल* on August 20, 2013 at 10:00pm — 5 Comments

बन्दगी ज़िन्दगी की [सूफी गीत]

दिल से उतरा है रूह का तराना समझिये ।

उसकी बन्दगी में मिला ये नज़राना समझिये ।

दिल से दिल के तारों को जोड़कर ज़रा ,

मेरा ये अंदाजे बयाँ सूफियाना समझिये ।

........................................................................

बिन ताल कभी नाचा करिये, बिन सुर भी कभी गाया करिये |

अपने मुख पर एक गहन हंसी बेवज़ह कभी लाया करिये ।

फूलों ने कौन वज़ह मांगी गुलशन महकने से पहले ।

पक्षियों ने रब से क्या चाहा डालों पे चहकने से पहले…

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Added by Neeraj Nishchal on August 20, 2013 at 9:30pm — 5 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
!!!! खुद भी आज़ाद हो गईं !!!!

अंतस मे उमड़ती भावनायें,

उचित शब्द टटोलते,

शब्द कोशों को पार कर,

निष्फल प्रयासों से हार कर,

अंततः आवारा हो गईं !

और फिर आँखों के रास्ते ,

अश्रु बून्द के रूप में,…

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Added by गिरिराज भंडारी on August 20, 2013 at 7:30pm — 10 Comments

कब तलक (नज़्म)

कब तलक लोगों को लूटते जाओगे ,

वो दिन कब आएगा जब पछताओगे !

जिनकी दुआओं से राजा बन बैठे हो ,

उनकी ही नज़र से एक दिन गिर जाओगे !

मंदिर मज़्जिद के नाम पे खूब लूटा ,

एक दिन वहां भी दरवाज़ा बंद पाओगे !

रूह भी छोड़ देगी इस गंदे जिस्म को ,

फिर इस जिस्म को लेकर कहाँ जाओगे!

सिकंदर भी ना ले जा पाया जहाँ से 

खाली हाँथ आये थे खाली हाँथ जाओगे !!

राम शिरोमणि पाठक"दीपक "

मौलिक व्…

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Added by ram shiromani pathak on August 20, 2013 at 5:03pm — 10 Comments

हारे भारत दाँव, सदन हत्थे से उखड़े -

मौलिक / अप्रकाशित

उखड़े मुखड़े पर उड़े, हवा हवाई धूल ।

आग मूतते हैं बड़े, गलत नीति को तूल ।


गलत नीति को तूल, रुपैया सहता जाए ।

डालर रहा डकार, कौन अब लाज बचाए ।

बहरा मोहन मूक, नहीं सुन पाए दुखड़े ।

हारे भारत दाँव, सदन हत्थे से उखड़े ॥

Added by रविकर on August 20, 2013 at 1:42pm — 5 Comments

"रक्षाबंधन"

पावन पर्व
पवित्र धागे संग
प्रेम से भरा

भाई बहन
बाटें प्यार ही प्यार
रक्षाबंधन

रेशमी डोर
भाई की कलाई में
गुँथा है प्यार

कच्चे धागों में
झोली भर खुशियाँ
नेह बौछार

पवित्र रिश्ता
पावन गंगा जल
कभी न टूटे

राम शिरोमणि पाठक"दीपक"

मौलिक व् अप्रकाशित

Added by ram shiromani pathak on August 20, 2013 at 1:01pm — 19 Comments

दर्द को क्यों आज मेरी याद आई है ....

दर्द को क्यों आज मेरी याद आई है

हो रही मद्धम सफ़ों की रोशनाई है।



मुद्दत हुई जो तड़प हम भूल बैठे थे

वो ग़ज़ल फिरआज दिल ने गुनगुनाई है ?



आजमाता ही रहा मौला मुझे हर वक़्त

खूब किस्मत है गज़ब की आशनाई है।



माना जर्रा भी नहीं हम कायनात के

तेरे दर तक हर सड़क हमने बनाई है।



मेरे सूने से मकाँ में मेहमान बन के आ

बियाबाँ में बहारों की बज़्म सजाई है ।



दरिया के किनारों सा चलता रहा सफ़र

इस ओर ख्वाहिशें हैं उस ओर खुदाई है।…

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Added by dr lalit mohan pant on August 20, 2013 at 1:00pm — 15 Comments

//गज़ल// सार रेशमी डोरी में- कल्पना रामानी

12122222221212222

 

छिपा हुआ रक्षाबंधन का, सार रेशमी डोरी में।

गुंथा हुआ भाई बहना का, प्यार रेशमी डोरी में।

 

कहीं बसे बेटी लेकिन, हर साल मायके आ जाती,

सजी धजी लेकर सारा, अधिकार रेशमी डोरी में।

 

बड़ा सबल होता यह रिश्ता, स्वस्थ भाव, बंधन पावन,

गहन विचारों का होता, आधार रेशमी डोरी में।

 

विदा बहन होती जब कोई, एक वायदा ले जाती,

जुड़े रहेंगे मन के सारे, तार रेशमी डोरी में।

 

विनय यही हों दृढ़ जीवन…

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Added by कल्पना रामानी on August 20, 2013 at 11:01am — 24 Comments

ईदी - लघु कथा

रिजवान को पुलिस ने किसी मामले में पकड़ कर थाने में बिठा दिया। उसने थानेदार से अपनी माँ से फोन पर बात करवाने की प्रार्थना की। 
थानेदार बोला  … माँ का नाम और नंबर दो 
जी  … मंजूषा  . 
क्या !
ये कैसे हो सकता है !! ये तो हिन्दू है और तुम   …. 
जी! आप फोन तो लगाइए माँ को    …रिजवान ने जिद की। 
थानेदार ने फोन लगाया  …. मंजूषा जी ! क्या रिजवान आपका बेटा  है?
जी !सहजता से जवाब मिला। 
मगर हुआ क्या है ? … मंजूषा…
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Added by AVINASH S BAGDE on August 20, 2013 at 10:30am — 18 Comments

बहुत याद क्यों आज तू आ रही है ?

बहुत याद क्यों आज तू आ रही है ?



किसी ढीठ बच्ची सी नादानियों में

क्यों सुधियों के पन्नों को छितरा रही है ।

सुबह एक छोटी सी प्यारी सी गुड़िया

मेरे गाल पर फूल बिखरा गई थी ।

फुदकती हुई एक नन्हीं गिलहरी

थोड़ी देर गोदी में सुस्ता गई थी ।

अभी तक छुअन रेशमी-रेशमी सी

मेरे नर्म अहसास सहला रही है ।

मेरे सूने कमरे में कुछ देर खेलें

बुलाया था चंचल हवाओं को मैंने

मचलती चली आयें किलकारियाँ सब

कि खोला था मन की गुफाओं को…

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Added by Sulabh Agnihotri on August 20, 2013 at 10:14am — 14 Comments

उसे नहीं बनना सिन्ड्रैला



तुम्हारे उदार आमन्त्रण पर
अब नहीं आयेगी
परीकथा की नायिका
दौड़ाकर पवन के घोड़े
लुभावने इंद्रजाल को ओढ़े-
वह एक रात की

राजकुमारी...
नही... उसे नहीं
बनना सिन्ड्रैला!
काँटों में ही खिलता है
शोख जंगली गुलाब
गुलदान का बासी पानी 

चुरा लेता, उसकी आब
चौखटे में जड़ नहीं सकता  

वजूद उसका

मुखौटों की भीड़ में वह

गुमशुदा…
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Added by Vinita Shukla on August 20, 2013 at 9:37am — 14 Comments

ग़ज़ल - कहकहों के दायरे में ..{अभिनव अरुण}

ग़ज़ल - 

कहकहों के दायरे में दिल मेरा वीरान है ,

गाँव के बाहर बहुत खामोश एक सीवान है |

 

उंगलियाँ उठने लगेंगी जब मेरे अशआर पर ,

मान लूँगा मैं कि मेरे दर्द का दीवान है |

 

वो सुनहरे ख्वाब में है सत्य से कोसो परे ,

आदमी हालात से वाकिफ मगर अनजान है |

 

छू के उस नाज़ुक बदन को खुशबुओं ने ये कहा ,

ज़िन्दगी से दूर साँसों की कहाँ पहचान है |

 

बढ़ रहा है कद अँधेरे का शहर में देखिये ,

हाशिये पर गाँव का…

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Added by Abhinav Arun on August 20, 2013 at 5:04am — 27 Comments

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