अधिकार भरी मादकता से,दृष्टिपात हुआ होगा;
मन की अविचल जलती लौ पर,मृदु आघात हुआ होगा।
साँसों की समरसता में भी,आह कहीं फूटी होगी;
सूरज के सब संतापों से,चन्द्रकिरण छूटी होगी।
विभावरी ने आते-जाते,कोई बात सुनी होगी;
सपनों ने तंतुवाय हो कर,नूतन सेज बुनी होगी।
कितने पल थम जाते होंगे,बंसीवट की छाँव तले;
मौन महावर पिसता होगा,आकुलता के पाँव तले।
सन्ध्या का दीप कहीं बढ़ कर,भोरों तक आया होगा;
मस्तक का चंदन अनायास,अलकों तक छाया होगा।…
Added by Ravi Prakash on July 23, 2013 at 12:00pm — 7 Comments
एक कोशिश विरह रस की कविता कहने की आशा है आप सब को पसंद आएगी
फिर से सावन की घटा छाई है
तन्हाई में मुझे तेरी याद आई है
क्यों है दूर मुझसे तू न जानू
क्यों है मजबूर मैं न जानू
है कुछ मेरी भी मज़बूरी
बिन तेरे मैं भी अधूरी
क्या बताऊ दिल का हाल
करता है मुझे ये बेहाल
तुमसे मैं क्या करू सवाल
मेरा क्या तुम बिन हाल
मैं कहु कैसे मेरी प्रियतम
सहा है कितना मैंने सितम
मैं समझती हूँ तेरे दिल का हाल
तेरे…
Added by Ketan Parmar on July 23, 2013 at 11:30am — 8 Comments
रात स्वप्न में, प्रभु थे खड़े
बोले मांगो वत्स क्या मांगते हो
जमीं चाहते हो या आस्मां चाहते हो
बड़ी गाडी बड़ा घर नोटों की गट्ठर
या सत्ता सुख कुर्सी से हो कर
जो चाहो अभी दे दूँ
एक नयी ज़िन्दगी दे दूँ
मैंने माँगा तो क्या माँगा
एक बेंच पुरानीं सी
वो पीछे वाली मेरे स्कूल की
चाहिए मुझे
वो बचपन के ज़माने
दोस्त पुराने
मदन के डोसे पे टूटना
चेतन का वो टिफिन लूटना
अपना टिफिन बचाने में
टीचर…
Added by shashiprakash saini on July 23, 2013 at 11:00am — 7 Comments
छोटी बह्र में गजल-2122, 2122
तुम मुझे अच्छी लगी हो।
मन से तुम सच्ची लगी हो।।
रोज गुल की कामना सी,
शहर की बच्ची लगी हो।
शाम की मुश्किल घड़ी में,
जीत की बस्ती लगी हो।
हुस्न की मलिका सुनो तुम,
आज फिर हस्ती लगी हो।
बाग के हर बज्म में तुम,
राग सी मस्ती लगी हो।
शोर है सागर में तूफां,
मौज की कश्ती लगी हो।
चढ़ गया छत पर पकड़ कर,
सांप सी रस्सी लगी हो।
तुम…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on July 22, 2013 at 8:51pm — 9 Comments
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on July 22, 2013 at 8:00pm — 22 Comments
सार छंद / ललित छंद [प्रथम प्रयास]
छन्न पकैया छन्न पकैया के स्थान पर
गुरु का आओ सम्मान करें
....................................................
गुरु का आओ सम्मान करें , 'गुरु' मतलब समझाएं
'गु' से होता अज्ञान तिमिर का, 'रु' से उसको हटाएँ
गुरु का आओ सम्मान करें ,गुरु पूर्णिमा आई
अज्ञान तिमिर का जो हर रहे ,सबके मन का भाई
गुरु का आओ सम्मान करें, अँधेरा दूर हटाएँ
गुरु दक्षिणा आज उसे देवें, ज्ञान प्रकाश…
Added by Sarita Bhatia on July 22, 2013 at 8:00pm — 7 Comments
याद आ गया फिर
मुझे मेरा बचपन ,
पिता की उंगली थामे,
नन्हें कदमों से नापना,
दूरियाँ, चलते चलते ,
वो थक कर बैठ जाना ,
झुक कर फिर पिता का ,
मुझको गोदी उठाना ,
चलते चलते मेहनत का,
पाठ वो धीरे से समझाना ।
बच्चों पढ़ना है सुखदाई,
मिले इसी मे सभी भलाई,
पहले कुछ दिन कष्ट उठाना,
फिर सब दिन आनंद मनाना,
फिर आ गया याद,
उनका ये गुनगुनाना ,
सिर पर वो उनका हाथ,
भर देता है मुझमे…
ContinueAdded by annapurna bajpai on July 22, 2013 at 6:30pm — 13 Comments
1
क्यूँ तुम खामोश रहे
पहले कौन कहे
दोनों ही तड़प सहे .
२
आसान नहीं राहे
पग पग में धोखा
थामी तेरी बाहें .
३
यह जीवन सतरंगी
राही चलता जा
है मन तो मनरंगी .
४
साचे ही करम करो
छल तो काला है
जीवन में रंग भरो .
- शशि पुरवार
मौलिक और अप्रकाशित
Added by shashi purwar on July 22, 2013 at 1:00pm — 9 Comments
मेरी पाती
मेरे नन्हे नन्हे पाँव,
पगडंडियों पर लम्बी दौड़,
पलकों में तिरती सुनहरी तितली,
फूलझड़ी से सपने -
सखी ! आज मैं उन सपनों को
मैके के झरोखों में टाँक आयी हूँ.
नभ का विस्तार,
धरती अम्बर का मिलन,
झिलमिल तारे पुँज,
सब मुझे लुभाते -
सखी ! मैं सितारों की चुनरी ओढ़
बाबुल का आकाश छोड़ आयी हूँ.
समुद्र की उत्ताल तरंगें,
रेत पर खींची लकीरें,
मेरे चुने हुए रंगीन सीपों का झुरमुट -…
Added by coontee mukerji on July 22, 2013 at 2:14am — 17 Comments
है ज़मी पर शोर कितना , आसमाँ खामोश है ।
मन में लाखों हलचलें हैं , आत्मा खामोश है ।
ना कभी करता सवाल , ना कभी देता जवाब ,
हमको देकर ज़िन्दगी , परमात्मा खामोश है ।
आदमीयत सड़ रही , लुट रहा बागे जहाँ ,
पर कहीं चुप चाप बैठा , बागबाँ खामोश है ।
चाहतें दुनिया की ज्यादा , देर तक चलती नहीं,
ताज़ की बरबादियों पर , शाहजहाँ खामोश है ।
जो हकीकत थे कभी, बनकर फ़साने रह गए ,
वक्त के हाथों लुटा , हर कारवाँ खामोश है…
ContinueAdded by Neeraj Nishchal on July 20, 2013 at 6:00pm — 18 Comments
शैक्षिक व्यस्तताओं तथा गाँव यात्रा के कारण काफी समय तक ओबीओ से दूर रहना पड़ा ! इतने दिनों में काफी याद आया अपना ये ओबीओ परिवार ! लगभग पाँच महीने बाद आज पुनः ओबीओ पर लौटा हूँ ! सर्वप्रथम सभी आदरणीय मित्रों को नमस्कार, तत्पश्चात ये एक छोटी-सी गज़ल नज़र कर रहा हू ! इसके गुणों-दोषों पर प्रकाश डालकर, मुझ अकिंचन को कृतार्थ करें ! सादर आभार !
अरकान : २१२२/२१२२
जिन्दगी की क्या कहानी !
गर नही आँखों में पानी !
भ्रष्टता…
ContinueAdded by पीयूष द्विवेदी भारत on July 20, 2013 at 4:30pm — 24 Comments
बहुत देर से
धूप ही धूप थी
दूर तक
कोई दरख्त नहीं
जिसकी छाँव तले मै
आ जाऊं !
बहुत दिनों से
कंठ सूखा था
दिनों तक कोई
लहर नहीं
जिसे जी भर मै
पी जाऊं !
कई जेठों से
स्वेद की कितनी बूंदें
माथे छलछलाती थीं
कब शीतल पुरवाई में
समा जाऊं !
आ जाओ
बस आ ही जाओ
मेरी जिन्दगी
छाँव, तृप्ति और श्वास
मेरी तुम !
-जीतेन्द्र…
ContinueAdded by जितेन्द्र पस्टारिया on July 20, 2013 at 4:00pm — 29 Comments
!!! चौपाई !!!
//प्रत्येक चरण में 16 मात्राएं, अन्त में दो गुरू या एक गुरू दो लघु होता है। जगण-121 तथा तगण-221 निषेध है//
मेघ तुम्हारा तन है काला।
मन है निर्मल गंगा वाला।!
चाल तुम्हारी गड़बड़ झाला।
बोल कड़क बिजली भय वाला।।
बरसे झम-झम हवा झकोरे।
रिसता तरल अमी वन भोरे।।
खेत खलिहान हुए विभोरे।
कृषक चले तन हल धर जोरे।।
हरषे रिम-झिम सावन जैसे।
छपरा झर-झर झरता…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on July 20, 2013 at 10:12am — 12 Comments
कभी कभी
खामोश हो जाते हैं शब्द।
जीवन में
कब अपना चाहा होता है
सब।
बहुत कुछ अनचाहा
चलता है संग।
इस दीवार से
झरती पपड़ियाँ;
दरारों में उगते
सदाबहार और पीपल;
गमले में सूखता
आम्रपाली।
दिये की रोशनी सहेजने में
जल जाती हैं उंगलियाँ।
गाँठ खोलने की कोशिश में
ढूंढे नहीं मिलता
अमरबेल का सिरा।
तुम
किसी स्वप्न सी खड़ी
बस…
ContinueAdded by बृजेश नीरज on July 20, 2013 at 10:00am — 25 Comments
वज़न-।ऽऽऽ ।ऽऽऽ ।ऽऽऽ ।ऽऽऽ
1. नहीं शिकवा नज़ारों से अगर नज़रें फिसल जाएँ,
भले ख़ामोश आहों में सुहाने पल निकल जाएँ।
तेरी मग़रूर चौखट पे नहीं मंज़ूर झुक जाना,
हमेशा का अकेलापन भले मुझ को निगल जाए॥
.
2. तुम्हारे रूप की गागर न जाने कब ढुलक जाए,
चटख रंगीनियों में भी पुरानापन झलक जाए।
मगर मेरी मुहब्बत तो सदानीरा घटाएँ है,
वहीं अंकुर निकलते हैं जहाँ पानी छलक जाए॥
.
3. किसी जुम्बिश में धड़कन के अभी अहसास बाक़ी है,
अपरिचित आहटों में भी तेरा…
Added by Ravi Prakash on July 20, 2013 at 7:00am — 15 Comments
औरत
मैंने
औरत बन जन्म लिया
हाँ मैं हूँ
एक औरत
और औरत ही
बनी रहना चाहती हूँ
क्यूंकि
मैं इक बेटी हूँ
मैं इक बहन हूँ
मैं इक पत्नी हूँ
सर्वोपरि इक माँ हूँ
मैं इक पूरी कौम हूँ
एवं
इनसे जुडे हर रिश्ते
की बिन्दू हूँ मैं
वो सभी घूमते रहते हैं
मेरे चारों ओर
एक वृत्त की तरह
और मैं
चाहे…
ContinueAdded by vijayashree on July 19, 2013 at 10:32pm — 15 Comments
द्रोणाचार्य आश्चर्यचकित थे। कुत्ते को बिना कोई नुकसान पहुँचाये उसका मुँह सात बाणों से भरकर बंद कर दिया था एकलव्य ने। ये विद्या तो द्रोणाचार्य ने कभी किसी को नहीं सिखाई। एकलव्य ने उनकी मूर्ति को गुरु बनाकर स्वाध्याय से ही धनुर्विद्या के वो रहस्य भी जान लिये थे जिनको द्रोणाचार्य अपने शिष्यों से छुपाकर रखते थे।
द्रोणाचार्य को रात भर नींद नहीं आई। उन्हें यही डर सताता रहा कि एकलव्य ने अगर स्वाध्याय से सीखी गई धनुर्विद्या का ज्ञान दूसरों को भी देना शुरू कर दिया तो द्रोणाचार्य के…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 19, 2013 at 9:00pm — 12 Comments
बरसे बदरा नीर बहाये
ज्यों गोरी घूँघट शरमाये
चाल चले ऐसी मस्तानी
ज्यूँ बह चली पुरवा रानी
बादल गरजे प्रेमी तड़पे
झलक तेरी को गोरी तरसे
आजा अंगना दरस दिखा जा
नयन मेरे तू शीतल कर दे
ज्यूँ घटा का रूप लेके
यूँ लटें चेहरे पर छाई
मोती सी पानी की बूंदें
छलक रही चेहरे पर ऐसे
स्पर्श तेरा स्वर्णिम पाने को
पानी की बूँदें भी तरसे.
"मौलिक व…
ContinueAdded by Aarti Sharma on July 18, 2013 at 10:30pm — 13 Comments
मात्रा बह्र
2 2 / 22 / 22 / 22 / 22 / 2
सोचा हमने तुमको इक ख़त लिख देंगे।
और तुम्हारी एक शिकायत लिख देंगे।।
ये जंग न हो दुनियाँ में मेरे मौला ।
दुनिया भर के नाम इबारत लिख देंगे।।
कर सकते हो हर एक खता दुनिया में।
हम ये तेरे नाम इजाजत लिख देंगे।।
मिलते मिलते बिछड़ा है वो भी मुझसे।
करता मेरा यार सियासत लिख देंगे।।
इक दिन मिट जायेगा पूरा ये ज़माना।
होगी जो मातम की सूरत लिख देंगे।।
दिल…
Added by Ketan Parmar on July 18, 2013 at 9:00pm — 17 Comments
देहरी लांघ चली
आशाएं
मुंह बाएं प्रीत
भगोना
अँखुवाती भर देह
विवशता
जिद अपनी छोड़े ना
आदिम सब
चट्टान…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on July 18, 2013 at 4:30pm — 5 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
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2015
2014
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