प्याजी दोहे.....
मंडी की छत पर चढ़ा, मंद-मंद मुस्काय
ढाई आखर प्याज का, सबको रहा रुलाय ||
प्यार जताना बाद में , ओ मेरे सरताज
पहले लेकर आइये, मेरी खातिर प्याज ||
बदल गये हैं देखिये , गोरी के अंदाज
भाव दिखाये इस तरह,ज्यों दिखलाये प्याज ||
तरकारी बिन प्याज की,ज्यों विधवा की मांग
दीवाली बिन दीप की या होली बिन भांग…
Added by अरुण कुमार निगम on August 26, 2013 at 11:14pm — 18 Comments
Added by Ashish Srivastava on August 26, 2013 at 11:00pm — 16 Comments
मिल कर आँखे चार करें
आजा रानी, प्यार करें
जग पर तम गहराया है
भेद इसे, उजियार करें
कैसे कैसे लोग यहाँ
छुपछुप पापाचार करें
नया पैंतरा दिल्ली का
भोजन का अधिकार करें
लीडर तेरा क्या होगा
वोटर जब यलगार करें
चलो यहाँ से 'अलबेला'
हम भी कारोबार करें
-अलबेला खत्री
मौलिक / अप्रकाशित
Added by Albela Khatri on August 26, 2013 at 10:00pm — 13 Comments
(आज से करीब ३२ साल पहले: भावनात्मक एवं वैचारिक ऊहापोह)
रात्रिकाल, शनिवार ३०/०५/१९८१; नवादा, बिहार
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मेरी ये धारणा दृढ़ होती जा रही है कि सत्य, परमात्मा, आनंद, शान्ति- सभी अनुभव की चीज़ें हैं. ये कहीं रखी नहीं हैं जिन्हें हम खोजने से पा लेंगे. ये इस जगत में नहीं बल्कि हममें ही कहीं दबी और ढकी पड़ी हैं और इसलिए इन्हें इस बाह्य जगत में माना भी नहीं जा सकता, खोजा भी नहीं जा सकता, और पाया भी नहीं जा सकता....स्वयं के…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on August 26, 2013 at 1:26pm — 6 Comments
श्रवण की बहन श्रद्धा सरकारी अस्पताल में भर्ती थी | विधवा माँ श्रद्धा से मिलने को व्याकुल थी |श्रवण असमंजस में था कि माँ को कैसे रोके | उसके सास ससुर श्रावण पूर्णिमा में गंगा स्नान करने को आ रहे थे |
श्रवण - माँ :तुम जानती हो रेखा कैसे घर से आयी है, उसे काम करने की आदत नहीं है |समय पर खाना ,नाश्ता देने को तो तुम्हे खुद ही रुक जाना चाहिए था |पर तुम्हे हमारे घर की इज्जत से क्या लेना देना ? तुम्हे तो केवल श्रद्धा चाहिए , वो मरी तो नहीं जा रही है | उसे रोग बढ़ा चढ़ा कर बताने की आदत है |
दो…
Added by shubhra sharma on August 26, 2013 at 12:44pm — 24 Comments
बहू बनाम बेटी
राधा जी घर मे अकेली थी , बेटा बहू के साथ उसकी बीमार माँ को देखने चला गया था । उसने कुछ पूछा भी नहीं बस आकार बोला – माँ हम लोग जरा कृतिका की माँ को देखने जा रहे है शाम तक आ जाएँगे । आपका खाना कृतिका ने टेबल पर लगा दिया है टाइम पर खा लेना , तुम्हारी दवाएं भी वही रखी है खा लेना भूलना मत ,और दरवाजा अच्छे से बंद कर लेना ।” कहता हुआ वो कृतिका के साथ बाहर निकल गया । पर बहू ने एक शब्द भी न कहा । “क्या वो कहती तो क्या मै मना कर देती । बहुयेँ कभी बेटी नहीं बन सकती आखिर…
ContinueAdded by annapurna bajpai on August 26, 2013 at 12:30pm — 21 Comments
"अबे तेरा दिमाग तो ख़राब नहीं हो गया ? बेगानों का साथ देकर अपनों से गद्दारी करेगा?
"वो साले बेगाने ज़रूर हैं, लेकिन दिहाड़ी भी तो डबल देते हैं."
Added by योगराज प्रभाकर on August 26, 2013 at 10:30am — 37 Comments
बहर: हज़ज़ मुसम्मन सालिम
१२२२, १२२२, १२२२, १२२२
मिलन अपना नहीं संभव जुदाई में समस्या है,
अधूरी प्रेम की पूजा कठिन दिल की तपस्या है,…
ContinueAdded by अरुन 'अनन्त' on August 25, 2013 at 10:30pm — 23 Comments
साँझ ढली तो आसमान से धीरे-धीरे
रात उतर आई चुपके-चुपके डग भरती
स्याह रंग से भरती कण-कण वह यह धरती
शांत हुआ माहौल और सब हलचल धीरे
कल-कल करती धारा का स्वर नदिया तीरे
वरना तो, सब कुछ शांत, भयावह रूप धरे
जीव सभी चुप हैं सहमे, दुबके और डरे
कुछ अनजानी आवाज़ें खामोशी चीरे
मन सहमा जब भीतर यह काली पैठ हुई
लोभ और मोह कितने उसके संग उपजे
भ्रम के झंझावातों में पग पल-पल बहके
साथ सभी छूटे, आभा सारी भाग…
ContinueAdded by बृजेश नीरज on August 25, 2013 at 10:00pm — 38 Comments
बशर जब से यहाँ पत्थर में ढलना चाहता है
ये बुत भी आज पत्थर से निकलना चाहता है
रिहाई मांगता है आदमी दुनिया से फिर भी
जहाँ भर साथ में लेकर निकलना चाहता है
तुम्हारी जिद कहाँ तक रोक पाएगी सफ़र को
ये मौसम भी किसी सूरत बदलना चाहता है
जिसे पत्थर कहा तूने अभी तक मोम है वो
जरा सी आंच तो दे दो पिघलना चाहता है
भले सूखा लगे दरिया, मगर पानी वहां पर
जरा सा खोद कर देखो, निकलना चाहता है
बशर=…
ContinueAdded by Dr Lalit Kumar Singh on August 25, 2013 at 9:44pm — 9 Comments
2122 2122 2122
पूछता मैं फिर रहा हूं हर किसी से
क्या निकल सकते हैं ऐसी बेबसी से
मंज़िलों के वास्ते कितने हैं पागल
हर किसी को पूछना है तिश्नगी से
इस क़दर तारीक़ियों…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on August 25, 2013 at 9:00pm — 36 Comments
बढ़े चलो - बढ़े चलो
स्वप्न सच किये चलो
जो भी आये राह में
लिये चलो - लिये चलो...
अड़्चनों - रुकावटों
चुनौतियों का सामना
दृढ़ प्रतिज्ञ बनके तुम
किये चलो - किये चलो...
अनुभवों से सीख लो
कमियों को सुधार लो
सबको ऐसी प्रेरणा
दिये चलो - दिये चलो...
आकलन से कम मिले
तो भी मुस्कुराओ और
बाकी पाने के लिये
लगे रहो - लगे रहो...
हार हो कि जीत हो
कि धूप हो कि छांव हो
तुम सदैव एक से
बने रहो - बने…
Added by VISHAAL CHARCHCHIT on August 25, 2013 at 8:34pm — 19 Comments
Added by Manav Mehta on August 25, 2013 at 8:30pm — 8 Comments
(मात्रिक विन्यास -- २१२२ २१२२ २१२ )
इतनी आसाँ ज़िंदगी होगी नहीं
मुश्किलों से दोस्ती होगी नहीं |
दर्द से कागज़ पे करना रौशनी
हर किसी से शाइरी होगी नहीं |
रुक न पाया सिलसिला जो बाँध का
कल के दिन भागीरथी होगी नहीं |
इस तरह कुचला गया जो हर गुलाब
फिर किसी घर में कली होगी नहीं |
मुद्दतों के बाद याद आया कोई
मेरे घर अब तीरगी होगी नहीं |
- आशीष नैथानी 'सलिल'
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by आशीष नैथानी 'सलिल' on August 25, 2013 at 7:00pm — 24 Comments
कल का किस को पता है
तुम कहते थे न
"कल का किस को पता है?"
और मैं इस पर हर बार ...
हर बार हँस देती थी,
इतिहास का वह सम्मोहक टुकड़ा
उढ़ते भूरे सफ़ेद बादल-सा
सैकड़ों कल को ले कर बीत गया,
कब आया, कब बूंद-बूंद रीत गया।
असंगत तर्कों के तथ्यों का विश्लेषण करती
सूक्ष्मतम मानसिक वृतियों से भयभीत,
आए-गए अब अपने अकेले में
मैं भी दुरहा दिया करती हूँ...
"कल का किस को पता…
ContinueAdded by vijay nikore on August 25, 2013 at 5:00pm — 12 Comments
!!! बने हम भोर-संध्या से!!!
विभा अब ढूंढ़ती किससे,
पढ़ाएं प्रेम की
पाती!
चपल सी आ गयी आभा,
चमकते शब्द
उपवन से।
पढ़ें पंछी, चहक चिडि़यां
धुनों में
गा रहे भौंरे।
कहे कोयल सुने सविता,
चमक कर
आ गयीं किरनें।
धरा पर छा गई मस्ती,
पवन इठला रही
उड़कर।
सुमन-शबनम मिली खिलकर,
गुलाबों की हसीं
बढ़कर।
बुलाती रोज दिनकर को,
हंसाती खूब
सर्दी में।
तराने ढ़ूढ़ते झरने,
उछलती
कूदती लहरें।
मिली मछली…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 25, 2013 at 12:43pm — 16 Comments
!!! प्यार का सौगात सावन !!!
2122 2122 2122 212
प्यार का मौसम सुहाना, शोख सावन भा गया।
पड़ गए झूले सखी री, कजरी गायन भा गया।।1
मेघ बरसे भूमि सरसे, मोर - पंछी नाचते।
बाग उपवन खूब झूमे, वायु सनसन भा गया।।2
फूल-शबनम मिल खिले हैं, खुशुबुओ का साथ है।
मस्त तितली उड़ रही है, भौंरा गुनगुन भा गया।।3
मन बड़ा संशय भरा है, राह पिउ की देखती।
फिर झरा छप्पर-घरौंदा टीन टनटन भा गया।।4
क्यों? उदासी प्रेम पाती,…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 25, 2013 at 12:00pm — 16 Comments
मेरे मन मे वह बसी है किस तरह ,
फूलों में सुगंध समाई हो जिस तरह ।
अपने से अलग उसे करूं किस तरह,
समाई है समुद्र में नदी जिस तरह ।
उसके बिना अपना अस्तित्व है किस तरह,
नीर बीन मीन रहता है जिस तरह ।
उसकी मन ओ जाने मेरी है किस तरह,
देह का रोम रोम कहे राम जिस तरह ।
अलग करना भी चाहू किस तरह,
वह तो है प्राण तन में जिस तरह ।
मौलिक अप्रकाशित - रमेशकुमार चैहान
Added by रमेश कुमार चौहान on August 24, 2013 at 8:49pm — 6 Comments
2 1 2 2 1 2 1 2 2 2
आज तेरा पयाम आया है
जैसे फिर माहताब आया है
देख लो सज गये दिवारो दर
घर मेरे कोई शाद आया है
अबके हो फैसला मेरे हक़ में
हांथ में इन्तखाब आया है
इल्म की रौशनी जली मुझमें
यूँ लगा आफ़ताब आया है
हो गये लाख़ रंग हसरत के
मेरा जोड़ा शहाब आया है
पयाम = सन्देश, माहताब = चाँद , शाद = ख़ुशी,
इन्तखाब = चुनाव, आफ़ताब = सूरज, शहाब = सुर्ख लाल रंग
अमित कुमार दुबे मौलिक व…
Added by अमित वागर्थ on August 24, 2013 at 8:19pm — 14 Comments
Added by ARVIND BHATNAGAR on August 24, 2013 at 7:30pm — 10 Comments
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