For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बशर जब से यहाँ पत्थर में ढलना चाहता है

ये बुत भी आज पत्थर से निकलना चाहता है

 

रिहाई मांगता है आदमी दुनिया से फिर भी

जहाँ भर साथ में लेकर निकलना चाहता है

 

तुम्हारी जिद कहाँ तक रोक पाएगी सफ़र को

ये मौसम भी किसी सूरत बदलना चाहता है

 

जिसे पत्थर कहा तूने अभी तक मोम है वो  

जरा सी आंच  तो दे दो पिघलना चाहता है

 

भले सूखा लगे दरिया, मगर पानी वहां पर

जरा सा खोद कर देखो, निकलना चाहता है

बशर= आदमी

 

मौलिक और अप्रकाशित

 

Views: 492

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr Lalit Kumar Singh on August 27, 2013 at 5:58pm
Comment by Dr Lalit Kumar Singh on August 27, 2013 at 5:54pm

बहुत बहुत शुक्रिया, अन्नपूर्ण बाजपाई जी 

सादर 

Comment by annapurna bajpai on August 26, 2013 at 8:03pm

आदरणीय ललित जी बहुत ही उम्दा अल्फ़ाजों से नवाज़ी गई आपकी  इस सुंदर गजल के लिए आपको बहुत बधाई ।

Comment by shubhra sharma on August 26, 2013 at 7:24pm

आदरणीय डॉ ललित जी ,
\जिसे पत्थर कहा तूने अभी तक मोम है वो
जरा सी आंच तो दे दो पिघलना चाहता है\
क्या खूब कही है आपकी गजल , वाह वाह .........बधाई

Comment by Shyam Narain Verma on August 26, 2013 at 5:55pm
बहुत ही सुन्दर! हार्दिक बधाई आपको!
Comment by विजय मिश्र on August 26, 2013 at 5:31pm
नरम दिल की सख्त मिजाजी का अच्छा फौरा है . खूबसूरत गजल ललितजी , बधाई .
Comment by Sonam Saini on August 26, 2013 at 2:43pm

भले सूखा लगे दरिया, मगर पानी वहां पर

जरा सा खोद कर देखो, निकलना चाहता है............ वाह वाह क्या खूब लिखा है आदरणीय ललित कुमार जी...

Comment by अरुन 'अनन्त' on August 26, 2013 at 12:59pm

वाह वाह आदरणीय बेहद शानदार धारदार ग़ज़ल आनंद आ गया अंतिम तीन अशआरों ने तो दिल को स्पर्श कर लिया उनके लिए विशेष तौर पर दिली दाद कुबूल फरमाएं.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 26, 2013 at 12:27pm
ललित भाई , लाजवाब गज़ल हुई है बधाई !!

भले सूखा लगे दरिया, मगर पानी वहां पर
जरा सा खोद कर देखो, निकलना चाहता ---------- बेहतरीन शे र वाह !!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
9 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
10 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
10 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Friday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Wednesday
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service