For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सोचने भर से यहाँ कब क्या हुआ

सोचने भर से यहाँ कब क्या हुआ

चल पड़ो फिर हर तरफ रस्ता हुआ

 

जिंदगी तो उम्र भर बिस्मिल रही

मौत आयी तब कही जलसा हुआ

 

रोटियां सब  सेंकने में थे लगे

घर किसीका देखकर जलता हुआ

 

जख्म देकर दूर सब हो जायेंगे

आ मिलेंगे देखकर भरता हुआ

 

चाहिए पत्थर लिए हर हाथ को

इक शजर बस फूलता-फलता हुआ 

               

बिस्मिल = ज़ख्मी 

 

मौलिक और अप्रकाशित 

Views: 672

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr Lalit Kumar Singh on August 15, 2013 at 6:47am

आदरणीय Saurabh Pandey जी का दिल से शुक्रिया 

सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 14, 2013 at 3:01pm

आदरणीय ललितजी, आपकी प्रस्तुत ग़ज़ल दिल से वाहवाहियाँ ले रही है. हर शेर जबर्दस्त हुआ है.

दाद कुबूल कीजिये

सादर

Comment by राजेश 'मृदु' on August 12, 2013 at 4:07pm

बहुत सुंदर रचना है, सादर

Comment by Dr Lalit Kumar Singh on August 12, 2013 at 6:46am

सभी आदरणीय मित्रों एवं सुधीजनों का दिल से शुक्रिया 

Comment by विवेक मिश्र on August 12, 2013 at 4:01am
हालांकि ग़ज़ल छोटी है पर हरेक शे'र बेहतरीन हुआ है। दिली दाद कबूल करें ललित जी।
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 11, 2013 at 5:15pm

रोटियां सब  सेंकने में थे लगे

घर किसीका देखकर जलता हुआ...........वास्तविकता लिए हुआ , शेर

बधाई आदरणीय डा. ललित जी

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 11, 2013 at 2:27pm

ललित भाई , सीधे साधे सरल शब्दों मे बहुत अच्छी ग़ज़ल कही आपने , बधाई !!

चाहिए पत्थर लिए हर हाथ को

इक शजर बस फूलता-फलता हुआ ---------- वाह !!

Comment by annapurna bajpai on August 11, 2013 at 1:50pm

रोटियां सब  सेंकने में थे लगे

घर किसीका देखकर जलता हुआ........................... एकदम सही बात , पक्का यथार्थ । बहुत बधाई आपको आदरणीय ललित जी ।

Comment by Abhinav Arun on August 11, 2013 at 12:52pm

चाहिए पत्थर लिए हर हाथ को

इक शजर बस फूलता-फलता हुआ 

ati sundar sameecheen ghazal adarneey !! bahut badhai is sashakt kriti ki prastuti hetu .

{slow net pe hindi nahi type ho raha hai so roman me likh raha hoon }

Comment by अरुन 'अनन्त' on August 11, 2013 at 12:43pm

वाह वाह आदरणीय शानदार ग़ज़ल कही है आपने सभी अशआर पसंद आये खासकर इस अशआर हेतु अधिक दाद कुबूल फरमाएं

जिंदगी तो उम्र भर बिस्मिल रही

मौत आयी तब कही जलसा हुआ वाह वाह

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय / आदरणीया , सपरिवार प्रातः आठ बजे भांजे के ब्याह में राजनांदगांंव प्रस्थान करना है। रात्रि…"
7 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द ठिठुरे बचपन की मजबूरी, किसी तरह की आग बाहर लपटें जहरीली सी, भीतर भूखा नाग फिर भी नहीं…"
yesterday
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

चित्र से काव्य तक

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोंत्सव" में भाग लेने हेतु सदस्य इस समूह को ज्वाइन कर ले |See More
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय। ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद  रीति शीत की जारी भैया, पड़ रही गज़ब ठंड । पहलवान भी मज़बूरी में, पेल …"
yesterday
आशीष यादव added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला पिरितिया बढ़ा के घटावल ना जाला नजरिया मिलावल भइल आज माहुर खटाई भइल आज…See More
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Nov 17

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Nov 17

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Nov 17

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Nov 17

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Nov 17
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 16

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service