For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (18,927)

लघु कथा : चमक - दमक

बर्तन की जाली में एक लोटा और कुछ चम्मच थे | सारे चम्मच लोटा को दुनिया का सबसे अच्छा बर्तन मानते थे, उसकी जय-जयकार करते थे, लोटा हमेशा उनको चमक - दमक की दुनिया से बचने नसीहतें देता था, हमेशा उनको बताता था कि दुनिया वैसी नहीं है जैसी दिखती है, चम्मचों ! परदे के पीछे का खेल देखने की कोशिश किया करो, सच्चाई वहाँ छुपी होती है, बहुत लोग तुमको ऐसी नकली दुनिया में घसीटने की कोशिश करेंगे ऐसे लोगों से दूर रहो,,, और भी जाने क्या क्या .....…

Continue

Added by वीनस केसरी on July 17, 2013 at 2:04am — 19 Comments

गज़ल / दिलीप तिवारी

ग़मों के घाव अभी भरे नही i
दवा में लगता मिला ज़हर है i i

बेनाम बस्ती में लोग रहते है  i
उन्ही बस्तियों से बना शहर है  i i

आदमी -आदमी को नहीं जाना  i
ज़िन्दगी सात दिनों का सफ़र है  i i

नदियाँ  भी डरती है भरने से  i
उनसे लगी बड़ी सूखी नहर है  i i

खामोश आज सभी हवायें है  i
वक़्त का उनपर भी असर है  i i

मै  भूला अपना रास्ता आज  i
पता नहीं जाना मुझे किधर है  i i

मौलिक /अप्रकाशित

दिलीप कुमार तिवारी

Added by दिलीप कुमार तिवारी on July 16, 2013 at 10:37pm — 7 Comments

दर्पण पे धूल

दर्पण पे जमी हो धूल तो श्रृंगार कैसे हो,

भूखा हो जब आदमी तो प्यार कैसे हो .

पढ़ लिख कर सब बन गए दफ्तर के बाबू ,

खेतों में अनाज की अब पैदावार कैसे हो .

मंहगाई को जीद है अब छूने को आसमां,

गरीबों के घर तीज और त्यौहार कैसे हो .

मतलब नहीं है देश के आदमी को देश से,

राम जाने इस देश का बेड़ा पार कैसे हो .

ले चल मुझे अब दूर कहीं मुर्दों के शहर से ,

मुर्दों के शहर में गजल का कारोबार कैसे हो.

.…

Continue

Added by Neeraj Neer on July 16, 2013 at 10:30pm — 13 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
शपथ (लघु कथा)

इतना ओवर री एक्ट क्यूँ कर रही हो ऋतिका! मुंह कब तक फुलाए रखोगी ऐसा  क्या कर दिया मैंने? तुम ही तो चाहती थी कि मैं तुम्हारी तरह समाज सेवा करूँ इसी लिए तो उस एक्सीडेंट के केस को अपनी कार  में उठा के लाया पूरी कार ब्लड से गन्दी भी करवाई ,अपने हॉस्पिटल में एडमिट भी किया और ट्रीट मेंट भी कर रहा हूँ और क्या चाहिए तुमको ? और अच्छी खासी रकम  भी तो ली है ये क्यूँ नहीं कहते!!! ,ऋतिका का दबा गुस्सा मानो अचानक ज्वाला मुखी बनकर फूट  निकला ,केवल दो…

Continue

Added by rajesh kumari on July 16, 2013 at 9:42pm — 15 Comments

!!! दुर्मिल सवैया !!!

!!! दुर्मिल सवैया !!!   ......8 सगण

बदरा बरसे हरषे धरती, नदिया-सर-खेत भरे जल से।

वन-बाग झकोर हवा पहिरे, फल जामुन-आम पके जल से।।

हर ओर घटा घन घोर घिरी, मन-मोर-चकोर कहे जल से।
विरही मन नारि छली मचली, नहि प्यास बुझे बरखा जल से।।

के0पी0सत्यम/ मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on July 16, 2013 at 9:27pm — 10 Comments

राज़ नवादवी: एक अपरिचित कवि की कृतियाँ- ३९

तुम्हारे साथ की सारी कोमल टहनियां! 

--------------------------------------------

 

कोई परिंदा भी हो

कि खलिहानों में फसलें उगाई जाएँ,

कोई पखेरू भी हो

कि दीवारों पे पानी रखा जाए,

कोई भूला भटका राही भी हो

कि कोई राह निकाली जाए

कुछ शिकस्ता भी हो कि जो जोड़ा जाए,

कोई सरगिराँ भी हो कि जिसे मनाया जाए

कोई याद भी आता हो कि जिसे भूला जाए...

 

वीरान दयारों में वरना.....

क्या शहनाइयां क्या सिसकियाँ?…

Continue

Added by राज़ नवादवी on July 16, 2013 at 7:36pm — 2 Comments

"चाँद की हकीकत"

जब भी देखता था रात को जमी से चाँद को  

यही सोंचता था,कि

अगर चाँद  इतनी  दूर से  इतना  खूबसूरत, इतना  चमकदार  नजर  आता  है

तो पास जाकर क्या नजारा होगा ? 

यही सोंचकर एक दिन चाँद पर जा पहुंचा

पर  वहां ना वो खूबसूरती नजर आई ना वो चमक

कुछ नजर आया तो बस चाँद के गाल में गड्ढे

और  चाँद  जला  जला  सा....... 

तब  समझ  आया  कि ,

मै    चाँद  कि  जिस  चमक को  चाँद  की खूबसूरती  समझता  था

वो  उसकी  चमक  नहीं थी 

कमबख्त  जलाता  था खुद  को  रातों …

Continue

Added by Kavi Pawan "Baddan" on July 16, 2013 at 5:00pm — 1 Comment

राज़ नवादवी: मेरी डायरी के पन्ने-४५

गाँव की ज़िंदगी में एक सुकून सा क्या है? खाली, काली, सरपट दौड़ती सडकों की तनहाई और दोनों बगल खड़े मुख्तलिफ (विभिन्न) दरख्तों की खामोशी भी क्यूँ अच्छी लगती है? दूर खेतों और ढलानों में चर रहीं बकरियों और गायों को देख के ऐसा क्यूँ लगता है कि ये दुनिया की सबसे बेहतरीन आर्ट गैलरी है?....जीती, जागती, पल पल नक्शोरंग बदलती.

 

मंडला मध्यप्रदेश सूबे का मानों दिल हो- हरियाली और ताज़गी से भरा, कहीं पहाड़ियों के आँचल से ढका तो कहीं जंगलों के बेल बूटों से सज़ा. गाँव गाँव आदिम प्रजाति के…

Continue

Added by राज़ नवादवी on July 16, 2013 at 4:20pm — 6 Comments

राज़ नवादवी: मेरी डायरी के पन्ने-४९

मेरी मां मुझे रोज़ १० पैसे देती थी, स्कूल जाने के पहले. वही बहुत था मेरे लिए टिफ़िन में पाचक खरीद के खाने के लिए- एक पैसे के न जाने कितने हुआ करते थे, सफ़ेद अथवा पीले-सुनहरे रंग की पारदर्शी प्लास्टिक की पन्नी में, बच्चों की उँगलियों से भी बहुत पतले और सतर, ...लम्बे लिपटे हुए.  

 

कुछ न सही तो कभी लेमनचूस की अंडाकार चपटी गोलियां ही सही.... संतरे के रस अथवा कालेनमक के स्वाद वाली नारंगी-बैंगनी गोलियां जिन्हें खा कर हमारी जीभ का रंग भी बदल जाता था और हम जीभ निकाल-निकाल के अपनी बहन…

Continue

Added by राज़ नवादवी on July 16, 2013 at 4:09pm — 2 Comments

राज़ नवादवी: मेरी डायरी के पन्ने-५१

जुलाई की एक सर्द और भीगी-भीगी सी शाम आस्ताने (चौखट) पे आके खड़ी थी अन्दर आने को, दिन के उजाले कब के जा चुके थे दरीचों के रास्ते, बस बादलों के पीछे जैसे उनके सायों ने कुछ देर के लिए शाम के वुजूद को नुमूदार (ज़ाहिर) कर रखने का एहसान किया हो. कूचों में बहती पानी की धारें नालियों में जाके गिर रही थीं, तो नालियों में बहते तेज़ चश्मे (झरने, पानी के रेले) की घरघराहट आने वाली सन्नाटगी का खमोशियों से ऐलान कर रही थी. कभी-कभार किसी शख्स के गुजरने की आवाज़ उसके भारी जूतों की चरमराहट से कानों से आके…

Continue

Added by राज़ नवादवी on July 16, 2013 at 4:05pm — No Comments

आज कुर्सी पे बैठा तो रब हो गया

देश में कैसा बदलाव अब हो गया
नंगपन है रईसी ग़ज़ब हो गया  

जबसे इंग्लिश मदरसे खुले, बाप और  
माँ को आँखें दिखाना अदब हो गया

हाथ जोड़े थे जिसने कभी वोट को
आज कुर्सी पे बैठा तो रब हो गया

अब गधों की फ़तह, मात घोड़ों की हो
दौर दस्तूर कैसा अजब हो गया  

हर्फ के कुछ उजाले लुटा प्यार से   
"दीप" खुर्शीद सा जाने कब हो गया

संदीप पटेल "दीप"

(मौलिक व अप्रकाशित)  

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 16, 2013 at 4:01pm — 8 Comments

सलवटें करवटें औ याद सहर से पहले

मिली हैं करवटें औ याद सहर से पहले

पिए हैं इश्क़ के प्याले जो जहर से पहले  



जो दिल के खंडहर में अब बहें खारे झरने  

यहाँ पे इश्क की बस्ती थी कहर से पहले



ग़ज़ब हैं लोग खुश हैं देख यहाँ का पानी

नदी बहती थी जहाँ एक नहर से पहले



कहाँ उलझा हुआ है गाफ़ अलिफ में अब तक

रदीफ़ो काफिया संभाल बहर से पहले



नहीं आसां है उजालों का सफ़र भी इतना  

जले है दीप सारी रात सहर से पहले



संदीप पटेल "दीप"…

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 16, 2013 at 2:30pm — 6 Comments

मेरा अभीष्ट

मेरे जीवित होने का अर्थ -

-ये नहीं कि मैं जीवन का समर्थन करता हूँ  !

-ये भी नहीं कि यात्रा कहा जाय मृत्यु तक के पलायन को  !

 

ध्रुवीकरण को मानक आचार नही माना जा सकता !

मानवीय कृत्य नहीं है परे हो जाना !

 

मैं तटस्थ होने को परिभाषित करूँगा किसी दिन !

संभव है-

कि मानवों में बचे रह सके कुछ मानवीय गुण !

मेरा अभीष्ट देवत्व नहीं है !

.

.

.

……………………................………… अरुन श्री…

Continue

Added by Arun Sri on July 16, 2013 at 1:38pm — 17 Comments

कितना तुमको जीना है //रवि प्रकाश (Kitna Tumko Jeena Hai By Ravi Prakash)

सदियाँ बीत गई हैं फिर भी,जीने का आधार नहीं;

धड़कन लीक बदलती है पर,सांसों में आभार वही।

गरमी के खेमे उठ जाते,अगले पल में रिमझिम है;

जग के झूठे व्यापारों में,परिवर्तन ही अन्तिम है।

दुख की दीवारें पक्की हैं,सुख का परदा झीना है।

अपने में ही सब कुछ हो कर,कितना तुमको जीना है॥

सागर होना बहुत सरल है,नदिया बन गाना मुश्किल;

शिखरों सा उठना संभव है,गल कर बह जाना मुश्किल।

छाले भी सहलाने होंगे,गिरती-पड़ती राहें हैं;

सुर में गा पाना बहुत कठिन,स्वर में तपती आहें… Continue

Added by Ravi Prakash on July 16, 2013 at 6:00am — 14 Comments

ये शाम ....

सूरज की लालिमा और 

उसे इस कदर थका हुआ देख ... 

पंक्षियों को लौटते देख 

दरख्तों के साये लंबे होते देख 

ये आभास हुआ कि

सूरज डूबने वाला है 

बच्चों का कलरव 

गाड़ियों का सड़क पर 

अचानक भागते हुये देख 

यह एहसास हुआ 

कि.... 

ये दिन डूबने वाला है 

फिर आंखे मूंदकर 

मैंने डूबते सूरज से कुछ मांगा 

इस बात से बेपरवाह 

कि डूबती हुयी चीज 

किसी को कुछ नहीं दे सकती 

जो खुद अँधेरों मे डूब रहा…

Continue

Added by Amod Kumar Srivastava on July 15, 2013 at 10:30pm — 6 Comments

शून्य

कभी यूं ही बैठकर सोचते हुए

कल्पना की असीम गहराइयों में

डूबते उतराते

भाव ध्वनियां बनकर

खुद रूप लेने लगते हैं

शब्द का।

 

शब्द बोलते हैं

एक भाषा

और फिर

गडमड हो जाते हैं

एक दूसरे में।

 

रह जाती है

एक ध्वनि

एक स्वर

वह जो

परम भाव है

परम ध्वनि

परम अक्षर!

 

जहां से उपजे

वहीं समा गए

परम शून्य में।

निर्विकार शान्ति!

 

भाव…

Continue

Added by बृजेश नीरज on July 15, 2013 at 10:00pm — 31 Comments

लघुकथा- चादर

आखिर आज वही बात सच हुई, जिसकी चेतावनी युगल  ने  नितिन को चार माह पूर्व  दी थी।
नितिन के पिता रामेश्वर जी के पास बटवारे के बाद केवल पांच एकड़ जमीन मिली थी। नितिन और विपिन दो भाई है। 
नितिन के पिता रामेश्वर रोटी राम है, नितिन और विपिन ने आठ माह पहले दो एकड़ जमीन बेच के व्यवसाय के लिए डाउन पेमेंट पर ट्रेक्टर लिया था। चार माह पहले ही नितिन की शादी हुयी, नितिन के घर की पहली ही शादी है जिसे पारम्परिक रूप से…
Continue

Added by जितेन्द्र पस्टारिया on July 15, 2013 at 9:00pm — 26 Comments

सरस्वती आराधना /दिलीप तिवारी

वीणाधारी  विद्यावाली , मातु शारदे तुम्हे नमन i 

शव्द अर्थ के पुष्पों का ,व्याकरण बना तुमको अर्पण i i 

संज्ञाए सेवाये करती ,सर्वनाम तेरे अनुचर i

क्रिया विशेषण की तारों से ,निकले वीणा के स्वर i i

नवरस के घुगरू प्यारे अलंकार  की है झांझर i

काव्य गद्य श्रगारित तुमसे ,गीतवना  महिमा गाकर i i

अनुपम छटा सवाँरे  ,भाषाए है चरणो पर i

आलोडित मन मंदिर मेरा नेह सुधा तेरी पाकर i i

मुझको तेरा वरदान मिले ,चरणों में तेरे स्थान मिले i 

शीख रहा माँ कविता  करना ,अंतर मन…

Continue

Added by दिलीप कुमार तिवारी on July 15, 2013 at 8:22pm — 5 Comments

अलादीन का चिराग हूँ मैं

अलादीन का चिराग हूँ मैं

एक हसीन ख्वाब हूँ मैं

 

मचलती सुबह हूँ मैं

खिलखिलाती शाम हूँ मैं

 

हँसी का अंदाज हूँ मैं

प्रीत हूँ प्यार हूँ मैं

 

पहचान मेरी मुझसे है

दो कुलों की शान हूँ  मैं

 

दायरों मे बंधी हूँ मैं

शर्म से सजी हूँ मैं

 

छाया हूँ बाबुल के आंगन की

पिया की परछाई हूँ मैं

मौलिक व अप्रकाशित

Added by Pragya Srivastava on July 15, 2013 at 8:00pm — 11 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
विरह मधुर ज्यों प्रीत (दोहे)//डॉ० प्राची

प्रियतम कैसा यह विरह, तन्हाँ मैं निश-प्रात ,

मधुरिम-मधुरिम वेदना, पिया प्रेम सौगात  //१//

अथक चला अब सिलसिला, मन ही मन संवाद ,

कसमें वादे नित गुनूँ, उर झूमे आह्लाद //२//

जुल्फों के छल्ले बना, खेले मन बेचैन,…

Continue

Added by Dr.Prachi Singh on July 15, 2013 at 8:00pm — 36 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service