ग़ज़ल –
गिरते गिरते संभलता रहा रात भर ,
मैं था टूटा बिखरता रहा रात भर |
उसके रुखसार का चाँद दामन में था ,
चांदनी में निखरता रहा रात भर |
मुझको मंजिल नहीं बस सफ़र चाहिए ,
दो कदम चल ठहरता रहा रात भर |
गो कि पलकें उठीं आईना हो गयीं ,
आईनों में संवरता रहा रात भर |
था हकीकत या सपना यही सोचकर ,
अपनी ऊँगली कुतरता रहा रात भर |
अर्श तक मैं चढ़ा उंगलियाँ थामकर…
ContinueAdded by Abhinav Arun on August 18, 2013 at 5:30am — 17 Comments
फासलों की
हर पर्त को चीरते
चंद शब्द...
जिनका चेहरा,
कभी दिखाई ही नहीं देता..
आखिर देखूँ भी तो क्यों ?
लुका छिपी में उलझाते मुखौटे !
जिनकी आवाज,
कभी सुनायी ही नहीं देती..
आखिर सुनूँ भी तो क्यों ?
कृत्रिमता में गुँथे बंधित अल्फाज़ !
जिनके अर्थ,
कभी बूझने नहीं होते..
आखिर बूझूँ भी तो क्यों ?
सिर्फ भ्रमित करते से दृश्य तात्पर्य !
जबकि,
हृदय गुहा…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on August 18, 2013 at 12:00am — 39 Comments
सहरा में कहीं खो जायें न हम, आवाज़ हमें देते रहना ।
नयी राहों का नयी मंजिल का, आगाज़ हमें देते रहना ।
माना कि उदासी के सायें कभी हमको घेर भी लेते हैं ,
खुश रहकर जीने का अपना, अन्दाज़ हमें देते रहना ।
जब गिरने लगे ये तनहा मन घनघोर निराशा के तल में,
ऐसे में अपनी उल्फत की, परवाज़ हमें देते रहना ।
भावों की लहर जब उठती है, शब्दों के शहर बह जाते हैं ,
वो प्यार सहेजने को अपने, अल्फ़ाज़ हमें देते रहना ।
जो दिल में हमारे रहती…
ContinueAdded by Neeraj Nishchal on August 18, 2013 at 12:00am — 12 Comments
बह्र : मुफाईलुन मुफाईलुन फऊलुन
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न ऐसे देख बेचारा नहीं हूँ
थका तो हूँ मगर हारा नहीं हूँ
है मुझमें रौशनी, गर्मी नहीं पर
मैं इक जुगनू हूँ अंगारा नहीं हूँ
यकीनन संगदिल भी काट दूँगा
तो क्या जो बूँद हूँ धारा नहीं हूँ
सभी को साथ लेकर क्यूँ मिटूँगा?
मैं शबनम हूँ कोई तारा नहीं हूँ
हवा भरना तुम्हारा बेअसर है
मैं इक रोटी हूँ गुब्बारा नहीं हूँ
मेरी हर बात…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 17, 2013 at 10:08pm — 35 Comments
मौलिक / अप्रकाशित
गुड्डी-गुड़ी गुमान में, ऊँची भरे उड़ान |
पेंच लड़ाने लग पड़ी, दुष्फल से अन्जान |
दुष्फल से अन्जान, जान जोखिम में डाली |
आये झँझावात, काट दे माँझा-माली |
लग्गी लेकर दौड़, लगाने लगे उजड्डी |
सरेआम लें लूट, गिरी माँझा बिन गुड्डी ||
Added by रविकर on August 17, 2013 at 2:43pm — 5 Comments
Added by Vindu Babu on August 17, 2013 at 9:27am — 17 Comments
अंतर मन…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on August 16, 2013 at 10:30pm — 18 Comments
Added by Neeraj Nishchal on August 16, 2013 at 8:42pm — 11 Comments
Added by इमरान खान on August 16, 2013 at 11:55am — 19 Comments
ख्वाबों की परिधि मे
आलते का इकरार सुनाई देता है
मौन रहती उस मृगनयनी के
आँखों से झंकार सुनाई देता है
कोतूहल के इस कोहरे मे
कस्तुरी संस्कार सुनाई देता है
सम्बोधन के अरुनिम मे
रुनझुन करता गान सुनाई देता है
हृदय के स्निग्ध लबों से
तरुवर का व्याख्यान सुनाई देता है
कोकिला के कुहुक मे
सम्बन्धों मे आन सुनाई देता है
बच्चे की किलकारी मे
माँ के गर्वित मन का भान सुनाई देता है
शिक्षक के सहपाठी बनने मे
विस्तृत होता…
Added by एल गुनेश्वर राव on August 16, 2013 at 11:17am — 10 Comments
तिरंगे को लहराता देख
लगता है
हम आज़ाद हैं
आज़ादी सापेक्ष होती है
आज़ाद हैं अंग्रेजों से
जिंदगी तो अब भी वैसी ही है
वही साँसें
वही चीथड़े
वहीं चाँद
टूटता तारा
वही कुआँ खोदना
फटी जेबें
वही बिवाइयाँ।
कहाँ बदला कुछ
राजाओं के रंग बदल गये
भाषा वही है
सत्ता का चेहरा बदलता है
चरित्र नहीं
आजादी का मतलब
निरंकुशता की समाप्ति तो…
ContinueAdded by बृजेश नीरज on August 16, 2013 at 7:00am — 18 Comments
Added by Ravi Prakash on August 15, 2013 at 10:18pm — 7 Comments
अपनी इस ग़ज़ल के साथ सभी को स्वतंत्रता दिवस की बधाई देता हूँ
आये लौट आज़ादी आज अपनी जवानी में ।
के फहरा दो तिरंगा फिर हवाओं की रवानी में ।
उड़ा दो फिर वही बादल आसमाँ में गुलालों के ,
गुलाबी रंग मिल जाए आज फिर आसमानी में ।
हिमालय की पनाहों में शहीदों को सलामी दे ,
कोई तो गीत गूँजेगा आज गंगा के पानी में ।
बनायें उनके सपनों का चलो आज़ाद भारत हम ,
जिन्होंने ख्वाब देखा था ये अपनी जिंदगानी में ।
आँखों…
ContinueAdded by Neeraj Nishchal on August 15, 2013 at 2:00pm — 19 Comments
गुमशुदा खुशियाँ कहाँ रहने लगी है आज छुप कर
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दर्द कैसे कम हुआ ये आंसुओं पूछ लेना
क्या अन्धेरों से डरे थे, तुम दियों से पूछ लेना
खुद जले थे,और कैसे, वो अन्धेरों से लडे थे
जानना चाहो अगर तो,जुगनुओं से पूछ लेना…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on August 15, 2013 at 8:00am — 33 Comments
मेरे आजाद देश की
बेहतरीन खिलाडी
बिना डोपिंग परिक्षण के,
महंगाई हो गई है
दौड़ती है सबसे आगे
तेज धावक की तरह
मारती है सबसे ऊँची
छलांग
पहुंचना चाहती है
सबसे पहले
बाहरवें आसमान|
और रुपया बेचारा
मुंह उतारे
लुढ़क रहा है नीचे नीचे
अपना ही बाजार सौतेला हो गया जिसके लिए
जैसे इस मंडी से नाराज
वह मुंह छुपाना चाहता हो
प्रचलन से बाहर किसी तरह से
निकल आना चाहता हो
वह…
ContinueAdded by डॉ नूतन डिमरी गैरोला on August 15, 2013 at 6:00am — 13 Comments
बार बार हमसे क्यों आकर उलझ उलझ कर
उलझ चुके कितने ही मुद्दे सुलझ सुलझ कर
ऐसे मुद्दे सुलझाने में वक्त करें क्यों जाया
अब तक सुलझा कर, बतला दो क्या पाया
उनको अपना स्वागत सत्कार समझ ना आया
किश्तवाड़ में हमें ईद त्यौहार समझ न आया
इतना सब कुछ हो जाने पर भारत चाहेगा मेल ?
शायद भारत को डर हो, कहीं रुक न जाये खेल।
रत्ती का व्यापार नहीं है, चिंदी भर आकार नहीं है
भारत के उपकारों का उनको कुछ आभार नहीं है
कभी कभी मुझको लगता है, भारत…
ContinueAdded by Aditya Kumar on August 14, 2013 at 9:46pm — 8 Comments
कौन हो तुम ?
जन गण मन के अधिनायक.
कहाँ रहते हो ?
मैं तुम्हारी जय कहना चाहता हूँ.
बरसों से हूँ मैं तुम्हारी खोज में,
तुम शून्य हो या हो सर्वव्यापी,
ईश्वर की तरह .
कौन हो तुम ?
तुम भारत भूमि तो नहीं ,
भारत तो माता है,
माता कभी अधिनायक तो नहीं होती .
तुम हो भारत भाग्य विधाता .
फिर बदला क्यों नहीं भारत का भाग्य.
भारत के भाग्य का ऐसा क्यों लिखा विधान.
कैसे विधाता हो ?
तुम्हारा स्वरुप तुम्हारी…
ContinueAdded by Neeraj Neer on August 14, 2013 at 9:11pm — 13 Comments
अनेकता में एकता --अपना भारत
प्रिय दोस्तों और ..मेरे नन्हे मुन्ने मित्रों आप सब को भ्रमर की तरफ से स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभ कामनाएं ...
मेरा भारत महान है , हम सब की शान है अपनी जान हैं गौरव है यह एक शब्द नहीं है अपितु हर भारतवासी के दिल की धड़कन है। ये अपनी पहचान है। हम इस पवित्र भूमि में पैदा हुए हैं। हमारे लिए यह उतना ही महत्त्वपूर्ण है जितना कि हमारे माता-पिता हम सब के लिए । भारत केवल एक भू-भाग का नाम नहीं है बल्कि यह हो इस भू-भाग में बसे लोगों, उसकी…
ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on August 14, 2013 at 8:30pm — 6 Comments
मनुष्य स्वभावतः उत्सव प्रिय एवं प्रकृति प्रेमी है । ग्रीष्म ऋतु के अवसान के पश्चात जब आषाढ़ और सावन आकाश मे काले काले घुमड़ते बादल झमझमाती बारिश लेकर आते है तब शुष्क और तपती हुई धरा धीरे धीरे तृप्त होती जाती है । सावन का महीना लगते ही हरियाली हरियाली ही दिखाई देती है । इस ऋतु परिवर्तन पर प्रकृति की मन भावन सुषमा एवं सुंदर परिवेश को पाकर मानव मन आन्नादित हो उठता है और ऋतुओं के अनुसार पर्व एवं त्योहार भी आरंभ हो जाते है । सावन के महीने मे ही तीज , नागपंचमी और सावन का अंत श्रावणी पूर्णिमा यानि…
ContinueAdded by annapurna bajpai on August 14, 2013 at 7:30pm — 1 Comment
मेरे वतन
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देश खड़ा चौराहे पर
मुखिया करते हैं मक्कर
घर घुस हमको मार रहे
प्रेम से बोलते उन्हें तस्कर
सांझ सवेरे युगल गीत सुन
कायर अरि प्रतिदिन बहक रहा
मत टोक मुझे मत रोक मुझे
अंगार ह्रदय में दहक रहा
पिया दूध माँ तेरा हमने
अमृत, वो नही था पानी
आकर तुझको आँख दिखाये
जियूं में व्यर्थ ऐसी जवानी
नभ में तिरंगा फहरेगा
माँ न कर तू दिल मे मलाल
भले शीश गिरे धरती पर
धरा रक्त से हो जाय लाल …
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on August 14, 2013 at 6:44pm — 7 Comments
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