For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : थका तो हूँ मगर हारा नहीं हूँ

बह्र : मुफाईलुन मुफाईलुन फऊलुन

--------------------

न ऐसे देख बेचारा नहीं हूँ

थका तो हूँ मगर हारा नहीं हूँ

 

है मुझमें रौशनी, गर्मी नहीं पर

मैं इक जुगनू हूँ अंगारा नहीं हूँ

 

यकीनन संगदिल भी काट दूँगा

तो क्या जो बूँद हूँ धारा नहीं हूँ

 

सभी को साथ लेकर क्यूँ मिटूँगा?

मैं शबनम हूँ कोई तारा नहीं हूँ

 

हवा भरना तुम्हारा बेअसर है

मैं इक रोटी हूँ गुब्बारा नहीं हूँ

 

मेरी हर बात को अंतिम न मानो

मैं पूरा हूँ मगर सारा नहीं हूँ

 

कभी मैं रह न पाऊँगा महल में

मैं इक झरना हूँ फव्वारा नहीं हूँ

 

कभी मुझमें उतरकर देख लेना

समंदर हूँ मगर खारा नहीं हूँ

----------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 836

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 26, 2013 at 4:06pm

कभी मैं रह न पाऊँगा महल में

मैं इक झरना हूँ फव्वारा नहीं हूँ

इस ग़ज़ल के होने पर ढेरों बधाइयाँ, आदरणीय सज्जनजी.

सादर

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 25, 2013 at 8:43pm

बहुत बहुत धन्यवाद आशीष नैथानी 'सलिल' जी

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on August 25, 2013 at 7:07pm

वाह वाह, हर शेर बेहतरीन है  !
मतला और मक्ता विशेष प्रभाव रखते हैं |   साथ ही ये शेर भी उम्दा हैं   !!

है मुझमें रौशनी, गर्मी नहीं पर

मैं इक जुगनू हूँ अंगारा नहीं हूँ  ||

हवा भरना तुम्हारा बेअसर है

मैं इक रोटी हूँ गुब्बारा नहीं हूँ ||

कभी मैं रह न पाऊँगा महल में

मैं इक झरना हूँ फव्वारा नहीं हूँ ||

वाह वाह वाह !!!

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 25, 2013 at 7:01pm
बहुत बहुत शुक्रिया manjari pandey जी
Comment by mrs manjari pandey on August 25, 2013 at 4:41pm

   आदरणीय धर्मेन्द्र जी बहुत ही उम्दा शेर एक से बढकर एक . यूं तो सभी बहुत अच्छे हैं  पर कुछ खास 

   

मैं इक रोटी हूँ गुब्बारा नहीं हूँ

 

मेरी हर बात को अंतिम न मानो

मैं पूरा हूँ मगर सारा नहीं हूँ

 

कभी मैं रह न पाऊँगा महल में

मैं इक झरना हूँ फव्वारा नहीं हूँ

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 19, 2013 at 11:19pm

बहुत बहुत शुक्रिया Dr.Prachi Singh जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 19, 2013 at 11:18pm

बहुत बहुत शुक्रिया Abhinav Arun जी, दिल की गहराई तक उतर जाने वाले तो आपके शब्द हैं जिन्होंने मेरा हौसला बहुत बढ़ा दिया है। स्नेह बनाये रखें।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on August 19, 2013 at 7:36pm

आदरणीय धर्मेन्द्र जी बहुत दमदार अशआर लिखे हैं...

कभी मैं रह न पाऊँगा महल में

मैं इक झरना हूँ फव्वारा नहीं हूँ

 

कभी मुझमें उतरकर देख लेना

समंदर हूँ मगर खारा नहीं हूँ...............बहुत सुन्दर 

हार्दिक बधाई 

Comment by Abhinav Arun on August 19, 2013 at 7:26pm

बार बार पढ़ी और गहराई तक अपने साथ ह्रदय को बहा ले जाने वाली सशक्त ग़ज़ल बेहतरीन नायाब हर शेर मुहावरों की मानिंद ज़बान पर चढ़ जाने वाला है श्री धर्मेन्द्र जी -

ख़ास बधाई इन शेरो के लिए --

सभी को साथ लेकर क्यूँ मिटूँगा?

मैं शबनम हूँ कोई तारा नहीं हूँ



हवा भरना तुम्हारा बेअसर है

मैं इक रोटी हूँ गुब्बारा नहीं हूँ



मेरी हर बात को अंतिम न मानो

मैं पूरा हूँ मगर सारा नहीं हूँ



कभी मैं रह न पाऊँगा महल में

मैं इक झरना हूँ फव्वारा नहीं हूँ

क्या संकेत हैं आदरणीय जादुई असर वाले ... जश्न तो होना चाहिए और सबको निमंत्रण भी ... कम से कम खबर तो मिले फिर तो हम सब चहुंप ही जायेंगे :-)

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 19, 2013 at 7:14pm

बहुत बहुत धन्यवाद गीतिका 'वेदिका' जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service