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ख्वाबों की परिधि मे
आलते का इकरार सुनाई देता है
मौन रहती उस मृगनयनी के
आँखों से झंकार सुनाई देता है
कोतूहल के इस कोहरे मे
कस्तुरी संस्कार सुनाई देता है
सम्बोधन के अरुनिम मे
रुनझुन करता गान सुनाई देता है
हृदय के स्निग्ध लबों से
तरुवर का व्याख्यान सुनाई देता है
कोकिला के कुहुक मे
सम्बन्धों मे आन सुनाई देता है
बच्चे की किलकारी मे
माँ के गर्वित मन का भान सुनाई देता है
शिक्षक के सहपाठी बनने मे
विस्तृत होता ज्ञान सुनाई देता है
ख्वाबों की परिधि मे
स-हृदय आख्यान सुनाई देता है
भोर की सुगंधित शालीनता मे
सूरज की शीतलता का तान सुनाई देता है
हरित दूब की कोमलता मे
ॐ से रिसता रिमझिम प्राण सुनाई देता है

"मौलिक व अप्रकाशित"
गुनेश्वर

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 26, 2013 at 12:04am

आपकी कोई पहली रचना देख रहा हूँ.  आपकी कहन इस तथ्य के प्रति आश्वस्त करती है कि आपसे अपेक्षा करना गलत न होगा.

शुभेच्छाँएँ

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 21, 2013 at 9:41am

आ0 भुवनेश्वर भाई जी,  सादर प्रणाम!  स्नेह और धर्म रक्षार्थ रक्षाबंधन के पावन पर्व पर आपको सकुटुम्ब हार्दिक शुभकामनाएं।  वाह!  बहुत सुन्दर भाव में अद्भुत ख्वाबो की परिधि  को उकेरा है। आप बधाई के पात्र हैं आप......किन्तु आपकी कविता में कुछ अधूरापन झलक रहा है...इस कविता से कोई स्पष्ट संदेश नहीं मिला ....। कृपया इसे अन्यथा न लें। विचार अवश्य करें। शुभ-शुभ...  सादर,

Comment by एल गुनेश्वर राव on August 21, 2013 at 9:22am

उमेश कटारा दिली धन्यवाद भाई जी

Comment by एल गुनेश्वर राव on August 21, 2013 at 8:46am

जितेन्द्र गीत जी , अदित्या कुमार जी , सुमित नाइथनी जी , गिरिराज भण्डारी जी , डीपी माथुर जी , अन्नपूर्णा बाजपई जी आब सभी मेरी रचना पढ़ी और दिल सराहा इस के लिए आप सभी को दिल से और स-आदर धन्यवाद

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 18, 2013 at 6:44pm

आदरणीय गुनेश्वर जी, बड़ी सुंदर व् प्रभावशाली रचना पर, हार्दिक बधाई

Comment by Aditya Kumar on August 18, 2013 at 6:21pm

हार्दिक बधाई स्वीकारें आदरणीय भाई  L Guneshwar Rao जी बेहतरीन रचना के लिए 

Comment by Sumit Naithani on August 17, 2013 at 9:54am

baut hi sunder 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 17, 2013 at 9:12am

अति सुन्दर रचना , गुनेश्वर जी बधाई !!

Comment by D P Mathur on August 17, 2013 at 7:23am

भोर की सुगंधित शालीनता मे 
सूरज की शीतलता का तान सुनाई देता है 
हरित दूब की कोमलता मे 
ॐ से रिसता रिमझिम प्राण सुनाई देता है

सुन्दर प्रस्तुति की बधाई !

Comment by annapurna bajpai on August 16, 2013 at 11:23pm
आदरणीय राव जी बड़ी सुंदर रचना है , कुछ पंक्तियाँ अधिक प्रभावित करती है । जैसे .............
.मौन रहती उस मृगनयनी के
आँखों से झंकार सुनाई देता है

बच्चे की किलकारी मे
माँ के गर्वित मन का भान सुनाई देता है

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