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तुम प्रेम प्रतिज्ञा भूल गई

तुम प्रेम प्रतिज्ञा भूल गई,

मैं भूल गया दुनिया दारी,

पहले दिल का बलिदान दिया,

हौले - हौले धड़कन हारी.

खुशियाँ घर आँगन छोड़ चली,

तुम मुझसे जो मुँह मोड़ चली,

मैं अपनी मंजिल भटक गया,

इन दो लम्हों में अटक गया,

मुरझाई खिलके फुलवारी,

हौले - हौले धड़कन हारी.

मन व्याकुल है बेचैनी है,

यादों की छूरी पैनी है,

नैना सागर भर लेते हैं,

हम अश्कों से तर लेते हैं,

हर रोज चले दिल पे आरी,

हौले - हौले धड़कन हारी...

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by अरुन 'अनन्त' on August 8, 2013 at 4:50pm

हृदयतल से हार्दिक आभार आदरणीय जीतेंद्र भाई जी

Comment by अरुन 'अनन्त' on August 8, 2013 at 4:48pm

हार्दिक आभार आदरणीय बृजेश भाई जी

Comment by अरुन 'अनन्त' on August 8, 2013 at 4:47pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय विजय सर

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 8, 2013 at 4:19pm

"मन व्याकुल है बेचैनी है,

यादों की छूरी पैनी है,

नैना सागर भर लेते हैं,

हम अश्कों से तर लेते हैं,".......... मर्म को छू लेने वाली पंक्तियाँ , सच! यादों में जीवन बिताना बहुत दुःख दायी  है, सिर्फ रोना ही रोना है  

आदरणीय अरून अनंत जी, विरह की वेदना, को स्पष्ट बताती हुयी रचना पर, हार्दिक बधाई  

Comment by बृजेश नीरज on August 7, 2013 at 8:39pm

बहुत ही सुन्दर! मजा आ गया! आदरणीय अरुन भाई हार्दिक बधाई!

Comment by विजय मिश्र on August 7, 2013 at 12:41pm
अरुनजी , बहुत मधुर है आपकी यह रचना . हार्दिक बधाई .
Comment by अरुन 'अनन्त' on August 7, 2013 at 10:15am

आदरणीय एडमिन महोदय सादर नमस्कार, मेरी इस रचना पर किसी कारणवश टिपण्णी बॉक्स बंद है कृपया खोलने की कृपा करें.

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