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एक गाँव था ! वहां बहुत सारे पापी रहते थे ! पाप करते और पानी से धो लेते ! धोते-धोते एकदिन सारा पानी खत्म हो गया ! पानी खत्म होने पर उन पापियों के पाप से गाँव तपने लगा ! उस तपन को पापियों ने नज़रंदाज़ कर दिया और पहले की ही तरह पाप करते रहे ! तपते-तपते आखिर एकदिन बड़ी भयानक आग उठी और उन पापियों को जलाने के लिए बढ़ने लगी ! पानी तो था नही,  इसलिए पापियों ने आग से बचने के लिए उसपर खूब सारी मिटटी डाल दी ! आग दबने लगी, पापी खुश होने लगे कि तभी बड़ी जोर से आंधी आई और सारी मिट्टी उड़ गई ! अब हवा से परवाज पाकर आग और तेज हो उठी ! उसने सब पापियों को जलाकर राख कर दिया ! गाँव में क्रांति आ गई !

-पियुष द्विवेदी ‘भारत’

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on August 21, 2013 at 12:53pm

बहुत बहुत धन्यवाद, आदरणीय वसुंधरा जी !

Comment by Vasundhara pandey on August 9, 2013 at 4:28pm

क्या बात है.....

बहुत सुन्दर !

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on August 9, 2013 at 12:03pm

आदरणीय सीमा जी, सौरभ जी, अमन जी, जितेन्द्र जी, अविनाश भाई जी, गीतिका जी तथा अनुपमा जी, आप सभीने इस रचना को अपना बहुमूल्य समय दिया और इसे सराहा, ये सार्थक हुई ! आप सभीको बहुत बहुत धन्यवाद !

Comment by annapurna bajpai on August 8, 2013 at 11:47pm

adarniy piyush ji bahut badhiya chhap chhodti laghu katha ke liye badhai

 

Comment by वेदिका on August 8, 2013 at 11:15pm

बहुत खूब कथा, बढ़िया... सही बिम्ब चयन ने सही प्रभाव छोड़ा !

सादर !!  

Comment by AVINASH S BAGDE on August 8, 2013 at 10:21am

हार्दिक बधाई आदरणीय पियूष जी...अच्छी प्रस्तुति .

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 8, 2013 at 9:41am

"पापियों का देर से ही सही, पर अंत जरुर होता है"

हार्दिक बधाई आदरणीय पियूष जी

Comment by aman kumar on August 8, 2013 at 9:13am

सही सन्देश है पाप को छुपा नही सकते ................

आभार 

Comment by Saurabh Srivastava on August 7, 2013 at 10:59pm

गाँव में क्रान्ति आ गयी.... बहुत अच्छी लघुकथा.. बधाई!

Comment by seema agrawal on August 7, 2013 at 10:40pm

पाप का घडा कभी तो भरता ही है .......अच्छी प्रस्तुति 

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