For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

फूल चम्पा के सब खो गए
जब से हम शह्र के हो गए

रात फिर बेसुरी धुन बजाती रही
दोपहर भोर पर मुस्कुराती रही
रतजगों की फसल
काटने के लिए
बीज बेचैनी के बो गए

प्रश्न पत्रों सी लगने लगी जिंदगी
ताका झाकी का मोहताज़ है आदमी
आयेगा एक दिन
जब सुनेंगे यही
लीक पर्चे सभी हो गए

मौल श्री से हैं झरते नहीं फूल अब 

गुलमोहर के तले है न स्कूल अब
अब न अठखेलियाँ
चम्पई उंगलियाँ
स्वप्न आये न फिर जो गए

(मौलिक अवं अप्रकाशित)

Views: 1131

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 15, 2013 at 10:12am

प्रश्न पत्रों सी लगने लगी जिंदगी
ताका झाकी का मोहताज़ है आदमी 
आयेगा एक दिन
जब सुनेंगे यही
लीक पर्चे सभी हो गए.....सुंदर रचना ...सादर बधाई के साथ 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on August 8, 2013 at 9:33am

आदरणीय  Laxman Prasad Ladiwala जी गीत पसंद करने के लिए शुक्रिया|


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on August 8, 2013 at 9:32am

आदरणीय राज़ नवादवी  साहब आपने गीत को सराहा मेरा लेखन सफल हुआ| मशकूर हूँ|


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on August 8, 2013 at 9:30am

आदरणीया Dr.Prachi Singh जी आपकी सकारात्मक टिपण्णी ही मेरा संबल है| हार्दिक धन्यवाद|


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on August 8, 2013 at 9:29am

आदरणीय  vijay nikore जी गीत को सराहने के लिए हार्दिक धन्यवाद|


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on August 8, 2013 at 9:28am

आदरणीया  Vasundhara pandey जी गीत पसंद करने के लिए शुक्रिया|


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on August 8, 2013 at 9:27am

आदरणीय Arun Srivastava जी गीत पसंद करने के लिए आभार|

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 7, 2013 at 11:52am

मौल श्री से हैं झरते नहीं फूल अब 

गुलमोहर के तले है न स्कूल अब
अब न अठखेलियाँ
चम्पई उंगलियाँ 
स्वप्न आये न फिर जो गए

'फूल चम्पा के सब खो गए 
जब से हम शह्र के हो गए' -----बहुत सुन्दर और भापूर्ण रचना के लिए हार्दिक बधाई श्री राना प्रताप सिंह जी 

Comment by राज़ नवादवी on August 7, 2013 at 11:45am

'फूल चम्पा के सब खो गए 
जब से हम शह्र के हो गए'

'मौल श्री से हैं झरते नहीं फूल अब 

गुलमोहर के तले है न स्कूल अब'

एक एक पंक्ति दिल से निकली और दिल को छू जाने वाली.... समीचीन, समसामयिक, और उतनी ही भाव और भंगिमा से पूर्ण. एक झरना पहाड़ियों से अभी निकला और अभी ओझल हो गया....आपकी कविता कुछ इस गति से बढ़ती और अपने उत्कर्ष पे पहुँचती है. बधाई स्वीकार करें. 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on August 7, 2013 at 11:15am

गहन भावानुभूतियों को सुकोमल हृदयस्पर्शी शब्दरूप दे नवगीत में ढाला है..

हर बंद नें रोक लिया कुछ पल खामोशी से डूबने उतराने के लिए....इन तीनों बन्दों की अनुगूँज मनसपटल पर दीर्घकालिक स्पंदन छोड़ने में सक्षम है..

बहुत बहुत बधाई इस अभिव्यक्ति पर आदरणीय राणा प्रताप सिंह जी 

सादर.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
16 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
23 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
yesterday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service