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आज हुआ मौसम भी इस तरह ख़राब ....

आज हुआ मौसम भी इस तरह ख़राब 
तुम लगो गुलाब से नजर हुयी शराब   
सांवले से रुख  पे है बनारसी समां 
शाम अवध की है तेरे हुस्न की किताब  
जुल्फ तेरी नागिन सी या लगें घटा 
अब हटा लो आप रुख पे जो पड़ा हिजाब 
जादू नजर का है हुआ या हो गया नशा  
बैठिये भी खोलिए ये इश्क की किताब
तेरी अदा है लग रही अजंता की गुफा 
कोई सवाल पूछिए, या दीजिये जवाब
जुल्फ मत बिखेरिये संभालिये जरा 
होश खो न दे कहीं ये लखनवी नवाब 
बेसबर हुए है हम या इश्क में फ़ना 
सज रहा है ये शहर तो आइये जनाब   
---------- सागर सुमन ( आशीष श्रीवास्तव ) 
मौलिक एवं अप्रकाशित  

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Comment by Ashish Srivastava on August 6, 2013 at 10:00am

अरुण जी , धन्यवाद , राणा सर की बातों पर ध्यान देने का प्रयास जारी है ..... 

Comment by अरुन 'अनन्त' on August 5, 2013 at 12:46pm

आदरणीय आशीष भाई जी बहुत ही सुन्दर प्रयास हुआ आदरणीय राणा सर जी पूर्णतया सहमत हूँ. बहरहाल प्रस्तुति पर बधाई स्वीकारें.

Comment by Ashish Srivastava on August 4, 2013 at 7:18am

आदरणीय Rana Pratap Singh जी , मैंने गजल ही कहने का प्रयास किया था , आपका मार्गदर्शन के लिए आभार , 

प्रयास करूँगा की त्रुटियों को दूर कर सकूँ 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on August 3, 2013 at 11:02pm

आशीष जी अच्छा प्रयास है| रवायती शायरी में ऐसी बातें बहुत कही गई हैं, आपने भी अच्छी तरह से बुना है| मुझे लगता है की आप इसे ग़ज़ल के रूप में प्रस्तुत करना चाह रहे थे ...जिसमे आपने काफिये भी बखूबी निभाये है..वज्न कहीं कहीं गड़बड़ है...व्याकरण की भी त्रुटि है| नज्रेसानी कर लें| शुभकामनाएं|

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