(1)
चाय-औ-नाश्ते पे "इस" त्रासदी की चर्चा करेंगे
सदन मे बैठ कर वो लफ्ज़ का खर्चा करेंगे
"" बहुत गमगीन हैं हम" , सारे नेता कह रहे हैं
बने जो गर विधायक "इस" हानि का हरज़ा भरेंगे
(2).
तेरे बर्फ से दोस्ती थी तेरी दरिया से खेलते थे वो
अब घूँट भर पीने को उनको नही मयस्सर पानी
ये क्या कर दिया तूने पल भर मे तोड़ दी यारी
ये कैसी दुस्मनी अपनो से ये कैसी बद-गुमानी
(3).
सभी ये चाहते है अब ज़िंदगी की सूरत बदल…
ContinueAdded by ajay sharma on July 4, 2013 at 10:00pm — 20 Comments
बहर : २१२ २१२
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जो सरल हो गये
वो सफल हो गये
जिंदगी द्यूत थी
हम रमल हो गये
टालते टालते
वो अटल हो गये
देख कमजोर को
सब सबल हो गये
भैंस गुस्से में थी
हम अकल हो गये
जो गिरे कीच में
वो कमल हो गये
अपने दिल से हमीं
बेदखल हो गये
देखकर आइना
वो बगल हो गये
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(मौलिक एवम् अप्रकाशित)
Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 4, 2013 at 9:48pm — 26 Comments
शहर के बड़े चैराहे पर
जो बड़ी दीवार है
उसके पास से गुजरते हुए
अक्सर मन होता है
लिख दूं उस पर
‘लोकतंत्र’
लाल स्याही से।
एक बड़ा लाल चमकता हुआ
‘लोकतंत्र’
जो दूर से साफ चमके।
जब भी होता हूं वहां
कांव कांव करता एक कौआ
आ बैठता है दीवार पर
मानो आहवाहन करता हो
‘आंव, आंव
लिख दो इस दीवार पर
जग जाएं पशु, पक्षी, लोग
ढूंढकर निकाली जा सके
फाइलों और योजनाओं…
ContinueAdded by बृजेश नीरज on July 4, 2013 at 8:00pm — 27 Comments
सुबह सुहानी आ गई ,लेकर शुभ सौगात |
अधर पर मुस्कान लिए, प्यार बसे दिन रात||
पूरे हों सपने सभी ,रहो न उनसे दूर |
गम का ना हो सामना ,ख़ुशी मिले भरपूर||
तारे सारे छुप गए ,आई प्यारी भोर |
आँगन खुशिओं से भरे ,मनवा नाचे मोर||
सुखद सन्देश जो मिले ,अधर आय मुस्कान|
खुशिओं से हो वास्ता ,मिले हमेशा मान||
पुष्प सी मुस्कान लिए ,रहो हमेशा पास |
होना ना उदास कभी क्योंकि आप हो ख़ास||
रविवार का दिवस अभी ,करलो…
ContinueAdded by Sarita Bhatia on July 4, 2013 at 4:00pm — 11 Comments
सोचता है मनुष्य
खुदगर्ज होकर
नहीं है बङा कोई उससे
हरा सकता है वह
अपने तिकङमबाज दिमाग से
प्रकृति को भी
भरोसा होता है उसे बहुत ज्यादा
अपने तिकङमबाज मस्तिष्क पर
समर्थन भी कर देती है
उसकी इस सोच का
शुरुआती सफलताएँ
नहीं सोचता वह ये
होते हैं प्राण प्रकृति में भी
होती हैं भावनाएँ प्रकृति में भी
करता जाता है मनुष्य
प्रकृति का विनाश
अपनी तिकङमों से
अपनी स्वार्थसिद्धि हेतु।
प्रकृति होती है नारी स्वरुपा…
Added by सतवीर वर्मा 'बिरकाळी' on July 4, 2013 at 2:00pm — 12 Comments
प्रकृति पुरुष सा सत्य चिरंतन
कर अंतर विस्तृत प्रक्षेपण
अटल काल पर
पदचिन्हों की थाप छोड़ता
बिम्ब युक्ति का स्वप्न सुहाना...
अन्तः की प्राचीरों को खंडित कर
देता दस्तक.... उर-द्वार खड़ा
मृगमारीची सम
अनजाना - जाना पहचाना...
खामोशी से, मन ही मन
अनसुलझे प्रश्नों प्रतिप्रश्नों को
फिर, उत्तर-उत्तर सुलझाता...
वो,
अलमस्त मदन
अस्पृष्ट वदन
गुनगुन गाये ऐसी…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on July 4, 2013 at 1:00pm — 43 Comments
एकाकीपन साँझ का, मन विचलित करजाय
इस पड़ाव पर उम्र के , बनता कौन सहाय |
सुन्दर हर पल वह घडी,अनुपम सा उपहार
साँस साँस की हर लड़ी,करती जैसे प्यार |
होठ छुअन अहसास ही, मुग्ध मुझे करजाय,
संयम त्यागा स्वपन में, चंचल मन भटकाय |
बहका बहका दिख रहा, खुद का ही व्यवहार
जैसे सब कुछ ख़त्म है, मन मेरा लाचार |
मेरे जीवन में बसे, रूप धरा श्रृंगार,
पोर पोर में बह रही, बनी सतत रसधार |
-लक्ष्मण…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 4, 2013 at 12:30pm — 21 Comments
नाद- लय की ये नदी, फिर सूखती क्यों है?
निःशब्द बहती चेतना, फिर डूबती क्यों है?
है अधूरी जिंदगी ,सारे सवालों के जवाब
वो पहाड़े याद कर, फिर भूलती क्यों है ?
जब पवन जल अग्नि, आकाश धरती से
है जन्म लेती मूरतें, फिर टूटती क्यों है ?
जान कर भी जो कभी, लौट कर आया नहीं
ये बावरी तृष्णा उसे, फिर ढूँढती क्यों है ?
खूब रोता दिल…
Added by dr lalit mohan pant on July 4, 2013 at 1:00am — 11 Comments
Added by Sushil Thakur on July 4, 2013 at 12:30am — 8 Comments
व्यस्तता ,ज़िंदगी ,खेद है ,
आपका तो वचन ,वेद है,
हैं मधुर आप,हम खुरदुरे
मित्र ,हम में यही भेद है !
*
दर्द के पुष्प आओ तजें,
हर्ष के पुष्प ही अब सजें,
एक स्मिति अधर पर धरें
नेह की बांसुरी से बजें !
*
उनको दिखना है अब ,नहीं न ,
छुपते रुस्तम दिखे,कहीं न ,
मुक्त आकाश में…
ContinueAdded by प्रो. विश्वम्भर शुक्ल on July 3, 2013 at 10:47pm — 6 Comments
अश्क आँखों में औ
तबस्सुम होठो पे है
सूखे गुल की दास्ताँ
अब बंद किताबो में है
बीते वक़्त का वो लम्हा
कैद मन की यादों में है
दिल में दबी है चिंगारी
जलती शमा रातो में है
चुभन है यह विरह की
दर्द कहाँ अल्फाजों में है
नश्वर होती है रूह
प्रेम समर्पण भाव में है
अविरल चलती ये साँसे
रहती जिन्दा तन में है
खेल है यह तकदीर का
डोर…
Added by shashi purwar on July 3, 2013 at 10:30pm — 8 Comments
एक ताज़ा ग़ज़ल ...
चुप तो बैठे हैं हम मुरव्वत में
जाएगी जान क्या शराफत में
किसको मालूम था कि ये होगा
खाएँगे चोट यूँ मुहब्बत में
पीटते हैं हम अपनी छाती…
ContinueAdded by वीनस केसरी on July 3, 2013 at 9:30pm — 40 Comments
कि इश्क सुन तिरे हवाले ताज करते हैं
कि प्यार कल भी था तुझी से आज करते हैं
हुकूमतों का शोख़ रंग यह भी है यारों
कि हम जहाँ नहीं दिलों पे राज करते हैं
बहुत लगाव है हमें वतन की मिटटी से
इसी पे जान दें इसी पे नाज़ करते हैं
नरम दिली नहीं समझते देश के दुश्मन
चलो कि आज हम गरम मिज़ाज करते
मिरे वतन के फौज़ियों सलाम है मेरा
तुझी से मान है तुझी पे नाज़ करते हैं
संजू शब्दिता मौलिक व अप्रकाशित
Added by sanju shabdita on July 3, 2013 at 9:00pm — 24 Comments
ये सच है पुराना जाता नहीं
तो नया आता नहीं
पर पुराना जब
टूट कर जाता है
तो उसे बहुत याद आता है
कल तक जिस टहनी पर
वह इतना इतराता था
इतना ईठलाता था
आज बेबस पड़ा है
सड़कों पर आ खड़ा है
जरा सी हवा आई
और उड़ा ले गई
कल तक जो हवा अपने
आँचल सहलाती थी
आज वही हवा
उसे दर-बदर कर रही है
तकदीर बदलते
देर नहीं लगती
कल तक हरा
आज धूप मे पड़ा
खड़खड़ा रहा…
ContinueAdded by Amod Kumar Srivastava on July 3, 2013 at 9:00pm — 6 Comments
!!! अभिनव प्यार !!!
प्रिया! जब तुम भूली,
तो मैं क्या लिखता ?
जब तुम थीं सब मेंरा था,
मैं याद भला क्या करता ?..... प्रिया! जब......
अब तुम नहीं पर प्यार तेरा,
मुझे बार बार दोहराता।
मैं भूल चला जीवन के पथ को,
स्मृति रोशन क्या करता ?...... प्रिया! जब...
पूर्ण अंधकार में इक जुगुनू,
इस झिलमिल जीवन को-
या अपनों से भूले रिश्तों का,
पथ प्रदर्शन क्या करता ?....... प्रिया! जब...
इस अभिनव प्यार संग,…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on July 3, 2013 at 7:52pm — 17 Comments
कुछ झोपड़ों को रोंद के जो घर बना रहा
इस दौर में वो सख्स ही मंजिल को पा रहा
जितना नहीं है पास में उतना लुटा रहा
कितना अमीर है ग़मों में मुस्कुरा रहा
अपनी ही गलतियों के हैं कांटे चुभे हमें
वरना सफर तो जिन्दगी का गुलनुमा रहा
कहने का शौक औ जुनूं उसका न पूछिए
बेबह्र भी कही ग़ज़ल वो गुनगुना रहा
शायद शहद झड़े है उसकी बात से यहाँ
इक झुण्ड मक्खियों सा क्यूँ ये भिनभिना रहा
जब मुल्क में…
ContinueAdded by SANDEEP KUMAR PATEL on July 3, 2013 at 5:46pm — 7 Comments
सुप्रभात दोहों से मैं, करती हूँ आगाज |
अधर पर मुस्कान लिए,सरिता बोले आज||
नई सवेर ले आए ,रोज सुखद सन्देश |
पूरी हो हर कामना ,संकट हरे गणेश||
आये कोई विघ्न ना ,सर पर रखना हाथ|
पूरी करना कामना ,हे नाथों के नाथ||
चूम उठाया भोर ने ,ख़ुशी से झूमा दिल|
सुबह संदेश आपका ,गया जैसे ही मिल||
बन जायेंगे आपके, सारे बिगड़े काम |
थके बिन बढते रहना, मन में धारे राम||
सुबह सुहानी ले आई बरसात की फुहार |…
Added by Sarita Bhatia on July 3, 2013 at 3:30pm — 9 Comments
बदी की राह से अब तो निकाल दे मुझको
खुदाया जब भी दे रिज्के हलाल दे मुझको
नहीं मैं राई को पर्वत, न तिल को ताड़ कहूं
ज़ुबान साफ़ औ' सादा ख़याल दे मुझको .
तेरे लिए भी ये आसां नहीं है फिर भी कभी
तू आके चुपके से हैरत में डाल दे मुझको
जुनूने इश्क़ कहीं कुफ्र तक न पहुँचा दे
तू अपने गोशाये दिल से निकाल दे मुझको
मुझे भी पी के बहकना कभी गंवारा नहीं
मगर जो गिरने पे आऊँ, संभाल दे…
ContinueAdded by Sushil Thakur on July 3, 2013 at 3:00pm — 12 Comments
बिछड़ा था हमसफ़र मेरा
Added by Sumit Naithani on July 3, 2013 at 2:00pm — 12 Comments
नियमों की सरहदें
उलझी हुई मानवीय अपेक्षाओं से अनछुआ
तुम्हारे लिए मेरा काल्पनिक अलोकित स्नेह
किसी सांचे में ढला हुआ नहीं था,
और न हीं वह पिंजरे में बंद पक्षी-सा
कभी सीमित या संकुचित था लगा।
एक ही वृक्ष पर बैठे हुए हम
दो उन्मुक्त पक्षिओं-से थे,
कभी तुम चली आई उड़ कर पास मेरे,
और मैं गद-गद हो उठा, और कभी मैं
हर्षोन्माद में आ बैठा डाल पर तुम्हारी।
शैतान हँसी की हल्की-सी फुहार…
ContinueAdded by vijay nikore on July 3, 2013 at 1:00pm — 27 Comments
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