रंग में भीगी हवा,
चंचल चतुर इक नार सी,
गाने लगी है लोरियाँ।
ऋतु बसंती, पाश फैला कर खड़ी
फागुन प्रिया।
सकल जल-थल, नभचरों को खूब
सम्मोहित किया।
भंग में डूबी फिजा ने, खोल दीं मनुहार की,
भावों भरी बहु बोरियाँ।…
ContinueAdded by कल्पना रामानी on March 6, 2014 at 12:40pm — 17 Comments
1222 1222 1222 1222
हमारे दुख दिखाई कब दिए हैं देवताओं को
हमेशा आँकते वो कम हमारी आपदाओं को
*
मरें या जी रहे हों हम उन्हें पूजा करें हरदम
न जब भी पूज पाए हम निकल आए सजाओं को
*
नहीं फिर भी हुए खुश वो भले ही सब किया अर्पण
गरल रख पास शिव जैसा सदा सौपा सुधाओं को
*
पुकारा जब गया उनको दुखों से हो परेशा ढब
किया है अनसुना बरबस हमारी सब सदाओं को
*
लगा करता जरूरी नित न जाने क्यों उन्हे…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 6, 2014 at 11:30am — 17 Comments
नवगीत
जनसंख्या औ
मंहगार्इ बहने,
लम्बी गर्दन में
पहने गहने।।
तंत्र यंत्र सम
चुप्पी साधें,
स्रोत आयकर
रिश्वत मांगें।
शिवा-सिकन्दर
प्याज हुर्इ अब,
साड़ी पर साड़ी है पहने।।1
शासक वर की
पहुंच बड़ी है,
कन्या धन की
होड़ लगी है।
सैलाबों में
त्रस्त हुए शिव,
बेबस जन के टूटे टखने।।2
चोरी-दंगा
व्यभिचारों की,
उत्साहित
बारात सजी…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 5, 2014 at 8:51pm — 8 Comments
अहसासों को
प्रज्ञ तुला पर कब तक तोलूँ
चुप रह जाऊँ
या अन्तः स्वर मुखरित बोलूँ
जटिल बहुत है
सत्य निरखना-
नयन झरोखा रूढ़ि मढ़ा है,
यद्यपि भावों की भाषा में
स्वर आवृति को खूब पढ़ा है
प्रति-ध्वनियों के
गुंजन पर इतराती डोलूँ
प्राण पगा स्वर
स्वप्न धुरी पर
नित्य जहाँ अनुभाव प्रखर है
क्षणभंगुरता - सत्य टीसता
सम्मोहन की ठाँव, मगर है
भाव भूमि…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on March 5, 2014 at 8:30pm — 32 Comments
गजल- देश सोने की चिरैया----
जब बुजुर्गों की कमी होने लगी।
गर्म खूं में सनसनी होने लगी।।
नेक है दुनियां वजह भी नेक है,
दौर कलियुग का बदी होने लगी।
धर्म में र्इमान में सच्चे सभी,
घूस-चोरी अब बड़ी होने लगी।
प्यार हमदर्दी करें नेता यहां
सारी बातें खोखली होने लगी।
सिक्ख, हिन्दू और मुस्लिम भार्इ हैं,
घर में दीवारें खड़ी होने लगी।
देश सोने की चिरैया थी कभी,
खा गए चिडि़या गमी होने…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 5, 2014 at 7:37pm — 8 Comments
मौलवी साहिब के घर गहरी उदासी छाई हुई थी. उनके तीनो बच्चों को डॉकटरी जांच के दौरान पोलियों रोग से ग्रस्त पाया गया था. उम्र अधिक होने के कारण अब उन बच्चों का इलाज भी सम्भव नहीं था. अत: ज़िंदगी भर के लिए बच्चों के अपाहिज होने की कल्पना मात्र से ही हर कोई दुखी था. मोहल्ले के गरीब और निरक्षर परिवारों के दौड़ते भागते तंदरुस्त बच्चों को देखकर पढ़े लिखे मौलवी साहिब बार बार यही सोच रहे थे कि काश उन्होंने भी धार्मिक फतवों से ज्यादा अपने बच्चों की परवाह की होती।
मौलिक /…
ContinueAdded by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 5, 2014 at 7:00pm — 16 Comments
11212 11212 11212 11212
ये न पूछ शाम ढली किधर , तू ये देख चाँद निकल रहा
समाँ सुर्मयी था जो रात का , वो भी चंपई मे बदल रहा
***
ये तो हौसले की ही बात है ,बड़ी तेज धूप है चार सूँ
किसी सायबाँ का पता नही ,बिना आसरा कोई चल रहा
***…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on March 5, 2014 at 6:30pm — 16 Comments
221 2122 222 1222
बीरान जिन्दगी में वो आयी बहारों सी
सहरा में तपते जैसे कोई आबशारों सी
लगती है इक ग़ज़ल की ही मानिंद वो मुझको
उसकी तो हर अदा ही हो जैसे अशारों सी
जुल्फों को जब गुलों से है उसने सजाया तो
मुझको लगी अदा ये यारों चाँद तारों सी
जब साथ साथ चलके भी वो दूर रहती है
तब लगती इक नदी के ही वो दो किनारों सी
मौसम हसींन सर्द है गर हो गयी बारिश
होगी हसींन सी कली वो बेकरारों…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on March 5, 2014 at 3:30pm — 9 Comments
मुझे चिंता में डूबे देख
तुम दुहाई देते
जब तक मेरा हाथ है
तुम्हारे हाथ में
मेरी सांसें
तुम्हारी साँसों में महकती है
विश्वास है महत्वाकांक्षा के घोड़ों पर
जो हर बाधा पार कर लेंगे
जब तक हूँ मैं जीवित
तुम खुद को अकेला मत समझो
मैं हूँ ना हमेशा तुम्हारे साथ
तुम्हारा साया बनकर
वोही साया ढूढ़ती हूँ
चारों ओर
आठों पहर
शायद
साया खो गया है
मुझ में ही कहीं
जैसे दोपहर के सूर्य में
मेरी परिछाई
उसी से तो…
Added by Sarita Bhatia on March 5, 2014 at 10:40am — 20 Comments
(१ )
भारत की हम नार, बढ़ें खुद आज लिए नव छत्र चलो|
जीवन में अब हार, सहें मत ख़ार लिखें इक पत्र चलो|
ले कर में पतवार, करें तट पार रचें नव सत्र चलो|
साथ मिला कर हाथ, सधे हर काज बने शतपत्र चलो||
(2)
जीवन में नित प्यार, रहे दरकार बढ़े नव प्रीत चलो|
वर्ण मिलाकर आज, चलें इक साथ रचें इक गीत चलो||
पाँव बढ़े इक साथ, सभी नर नार बनें सत मीत चलो|
एक नया इतिहास, लिखें हम आज मिले नव जीत चलो||
(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Added by rajesh kumari on March 5, 2014 at 10:00am — 24 Comments
तुम बिन
तन्हा-तन्हा सी साँसें
पल-पल गुजरता रहा
वरष के जैसा
बेचैनी की धीमी-धीमी आग में
बसंत बीत ही गया
न जाने कैसे कटेगा..?
रंगों का महीना
तुम बिन तो है
बे-रंग सा फाल्गुन
दिन तो काटने ही हैं
इस तरह क्यों न थका लूँ तन को
कि शाम तक
चूर हो जाय !
ये तन्हा रातें
बिन करवट ही
बीत जायें ।
इस तन्हाई को मेरे भाग्य ने ही सौंपा है मुझे
क्या तुम्हें…
Added by जितेन्द्र पस्टारिया on March 5, 2014 at 8:19am — 28 Comments
तेलंगाना पे भिड़े, अपनी मुट्ठी तान।
अपने भारत देश की, लगी दाँव पे आन।।
कोई तोड़े काँच को, पत्र लिया जो छीन।
आगे पीछे भैंस के, बजा रहे हैं बीन।।
मिर्चें लेकर हाथ में, करे आँख में वार।
मानवता इस हाल पे, अश्रु बहाये चार।।
हिस्सा जाता देख कर, हुये क्रोध से लाल।
बरसीं गंदी गालियाँ, ये संसद का हाल।।
चढ़ा करेला नीम पर, अपनी छाती ठोक।
शक्ति संग सत्ता मिली, रोक सके तो रोक।।
(मौलिक व…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on March 5, 2014 at 8:00am — 20 Comments
त्रिभंगी - १०, ८, ८, ६ (जगण पृथक शब्द के रूप में प्रयुक्त नहीं हो सकता)
बैठी पदमासन, सब पर शासन, वरद अभय कर, मुसकाती |
वीणा रव सुन्दर, उर के अंदर, सब कुछ झंकृत, कर जाती ||
आशीष दयामयि, हे करुणामयि, सतत विमल हो, मति मेरी |
कोटिक रवि जागे, अघ तम भागे, जलधारा जनु, गति मेरी ||
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on March 4, 2014 at 5:00pm — 10 Comments
देखा है जब से तेरी तस्वीर को सनम
आँखो मे मेरे बस गइ खा के कहूँ कसम
कैसा है तुमसे रिश्ता हमको नही पता
पर बात अपने दिल की मैं तुमको दूँ बता
जैसे है तेरे साथ रिश्ता मेरा अहम
आँखो मे मेरे बस गइ खा के कहूँ कसम
देखा है जब से तेरी तस्वीर को सनम
देखा था मैनें सपना एक रात क्या कहूँ
आँखो से छलकते अश्कों के साथ मैं बहूँ
ये बात मेरी ऐसी नहीं हो तुझे हजम
आँखो मे मेरे बस गइ खा के कहूँ कसम
देखा है जब से तेरी…
ContinueAdded by Akhand Gahmari on March 4, 2014 at 4:48pm — 24 Comments
मैं नारी हूँ .. "कुसुम अवदात नहीं हूँ"
सौंदर्य बोध से गढ़ी हूँ
मानवता के लिए कड़ी हूँ
सबके के लिए अहिर्निश खड़ी हूँ
भावनाओं से नित जड़ी हूँ
कभी किसी से नहीं हूँ कम,
इस बात पर अड़ी हूँ
मैं नारी हूँ..... बिन स्वर का गान नहीं हूँ ।
दिल में उत्साह भरा है अपरिमित
हर वक्त सेवा में हूँ समर्पित
शक्तियों से हूँ मैं निर्मित
जो चाहूँ वो करती हूँ अर्जित
इससे हूँ में सदा ही गर्वित
मैं नारी…
ContinueAdded by kalpna mishra bajpai on March 4, 2014 at 4:00pm — 21 Comments
गीत
.
मन के पन्नों में ,मै.
गीत लिख रही हूँ
जो शब्द तुमनें दिए
वही बुन रही हूँ…..
दिल की धड़कन में
यादें सुबक रही हैं
जो दर्द तुमनें दिए
वही लौटा रही हूँ
मन के पन्नों में ,मै
गीत लिख रही हूँ…..
मौसमों की तरह
तुम बदल गए हो
और कितना सहूँ
मै भी बदल रही हूँ
मन के पन्नों में ,मै.
गीत लिख रही हूँ……
दो कदम ही चले थे
फिर खोगए तुम
राह सूनी सही
मैं अभी…
ContinueAdded by Maheshwari Kaneri on March 4, 2014 at 2:30pm — 4 Comments
कैलाश पर शिव लोक में
था सर्वत्र आनंद.
चारो ओर खुश हाली थी
सब प्यार में निमग्न.
खाना पीना था प्रचुर
वसन वासन सब भरपूर.
जंगल था, लताएँ थी
खूब होती थी बरसात,
स्वच्छ वायुमंडल ,
खुली हुई रात.
धीरे धीरे नागरिकों ने
काट डाले जंगल
बांध कर नदियों को
किया खूब अमंगल.
एक बार पड़ गया
बहुत घनघोर अकाल.
चारो ओर मचा
विभत्स हाहाकार.
नाच उठा दिन सबेरे
विकराल काल…
ContinueAdded by Neeraj Neer on March 4, 2014 at 9:10am — 14 Comments
मूक नहीं है वो लिखते जाना ही उसकी जात है ,
तम की स्याही से वो लिखती नित्य नव प्रभात है ।
उजियारा फैलाने को रोज नया सूरज वो लाती है ,
जो मूक हो जीते है उनकी जुबान वो बन जाती है ।
पढ़ लिख कर सम्मान की अलख वो जगाती है ,
झूठे हो चाहे जितने पर सच्चाई की धार लगाती है ।
अज्ञानता के घोर तमस को समूल उखाड़ भगाती है,
होती जिसके हाथ कलम ज्ञान भंडार लगाती है॰
पैनी कितनी भी हो तलवारें पर भीत नहीं ये खाती…
ContinueAdded by annapurna bajpai on March 3, 2014 at 10:30pm — 11 Comments
वह कथा कहूँ जो नहीं कही
अम्बर में कलानिधि घूम रहा
एक निर्झरिणी थी झूम रही
लहरी थी तट को चूम रही…
ContinueAdded by Vivek Jha on March 3, 2014 at 8:30pm — 7 Comments
इन्दु अपने मंडल की पेंशन प्रमुख थी, किसी भी बुजुर्ग महिला या बहन को पेंशन लगवानी होती तो झट उससे संपर्क करतीं ....
अपने मोहल्ले की अपनी कॉलोनी की सभी महिलाओं की चाहे वो वृद्ध हो, विधवा हो या तलाकशुदा हो उसने बिना किसी अड़चन के पेंशन लगवा दी थी.
समय ने करवट ली, उसके पति का आकस्मिक देहांत हो गया ...
कुछ समय बीत जाने पर उसकी एक ख़ास सहेली ने उसे सुझाव दिया ...
"भाभी आप ने पेंशन के लिए अपना फॉर्म भरवाया ?"
थोड़ा चुप रहकर फिर कहा ..
"यह तो सरकार दे रही है…
ContinueAdded by Sarita Bhatia on March 3, 2014 at 4:30pm — 19 Comments
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