कोई कितना चाह ले , शक्ति से क्या वो जीतेगा
शक्ति का एक मौन भी ,उसपर कहर सा बीतेगा
तोड़ क्या पाएगा कोई शक्ति का फिर हौसला
पूज के शक्ति स्वरूपा क्या वो अब बच पाएगा ?
अपने पैरों पर कुल्हाड़ी खुद ही उसने मार ली
घाव अब नासूर होगा कब तलाक सह पाएगा
कब्र में हों पैर जिसके ,आग से है खेलता
कोई क्या काँधे चढ़ेगा ,स्वयं चित में जल जाएगा
दम्भी अभिमानी का दम्भ ,ख़ाक में मिल जाएगा
मौलिक / अप्रकाशित
Added by Lata R.Ojha on April 12, 2014 at 10:30am — 4 Comments
Added by Pragya Srivastava on April 11, 2014 at 11:51pm — 10 Comments
सुन कर द्रोपदी की चित्कार
कलेजा धरती का फटा क्यों नहीं
देख उसके आँसुओं की धार
अंगारे आसमां ने उगले क्यों नहीं
चुप क्यों थे विदुर व भीष्म
नेत्रहीन तो घृतराष्ट्र थे
द्रोण ने नेत्र क्यों बंद कर लिए
नजरें क्यों चुरा लिए पाँचों पांडवों ने
कहाँ था अर्जुन का गांडीव
बल कहाँ था महाबली भीम का
क्या कोई वस्तु थी द्रोपदी
जिसे दाँव पर लगा दिया
ये कौन सा धर्म था धर्मराज ?
कहाँ थे कृष्ण,
वो तो थी सखी तुम्हारी …
Added by Meena Pathak on April 11, 2014 at 2:00pm — 23 Comments
2122 2122 2122 212
जानता हूँ देह के बेलौस प्यासे आप हैं
किन्तु जनता की नजर में संत खासे आप हैं
*
खुशमिजाजी आप की सन्देश देती और कुछ
लोग कहते यूँ बहुत पीडि़त जरा से आप है
*…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 11, 2014 at 11:00am — 14 Comments
Added by Sarita Bhatia on April 11, 2014 at 10:25am — 13 Comments
मेरी मृत्यु नहीं हुई थी,
इसलिए बिछड़ी नहीं
हमेशा के लिए |
उसने मुझे रहने को
दे दिया बड़ा सा वृद्धाश्रम
कई लोगों के साथ में
कई सालों के लिए
घर से बस थोड़ी सी दूर|
जो रहा था
बस नौ महीने
अकेला
मेरी छोटी सी कोख में |
** मौलिक और अप्रकाशित
Added by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on April 10, 2014 at 7:00pm — 16 Comments
1222 1222 1222 1222
कहीं कुछ दर्द ठहरा सा , कहीं है आग जलती सी
कभी सांसे हुई भारी , कभी हसरत मचलती सी
कभी टूटे हुये ख़्वाबों को फिर से जोड़ता सा मै
कभी भूली हुई बातें मेरी यादों में चलती सी
कभी होता यक़ीं सा कुछ , कहीं कुछ बेयक़ीनी है
तुझे पाने की उम्मीदें कभी है हाथ मलती सी
कभी महफिल में तेरी रह के मै तनहा सा रहता हूँ
कभी तनहाइयों में संग पूरी भीड़ चलती सी
कभी बेबात ही…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on April 10, 2014 at 4:00pm — 43 Comments
नन्ही गुड़िया चंचला ,खेले दौड़े खूब ।
नन्हे नन्हे पाँव हैं ,मनभावन है रूप ॥
मनभावन है रूप , तोतली बातें करती ।
बात बात मुस्कात ,सभी के मन को हरती॥
करे सभी से प्यार ,हमारी प्यारी मुन्नी ।
सभी लड़ाते लाड़, मोहिनी गुड़िया नन्ही ।।
अप्रकाशित एवं मौलिक
Added by annapurna bajpai on April 10, 2014 at 12:00pm — 14 Comments
रट्टू तोते की तरह, क्यों रटते दिन रात
दादा जी का नाम भी, गूगल पर मिलि जात
त्रेता के सज्जन कहैं, सबके दाता राम
कलियुग के ढोंगी कहैं, हमरे आशाराम
दिन भर आगे सेठ के, डरि के दुम्म हिलायँ
साँझ ढले पव्वा लगै, अउर शेर हुइ जायँ
हफ्ते में तो चार दिन, काटैं मदिरा माँस
बाकी के कुल तीन दिन, धरम करम उपवास
अबला से सबला हुई, नाच नचावैं आज
बाबू जी की खोपड़ी, बजा रहीं ज्यों साज
गुरु से चेला बीस अब, देय रहा है…
Added by VISHAAL CHARCHCHIT on April 9, 2014 at 10:59pm — 18 Comments
1
गिरते – गिराते
उठा-पटक
शातिर चालें
शह और मात
जूतम पैजार
चमकाते हथियार
भड़काते विचार
हो जाइए तैयार
फिर गरम है
चुनावी बाज़ार ।
2
चापलूसों की फौज
शहीदों का अपमान
गिरती इंसानियत
बेचते ईमान
लड़ते –लड़ाते
शोर मचाते
लक्ष्य है जीत।
3
झूठ पे झूठ
आरोप प्रत्यारोप
काम का दिखावा
बातों से…
ContinueAdded by नादिर ख़ान on April 9, 2014 at 9:00pm — 7 Comments
221 2121, 1221, 212 ,
इक ग़म में जब से मुब्तला रहने लगा हूँ मैं
अपने वुजूद से खफा रहने लगा हूँ मैं...
देखा था बेनकाब किसी रोज़ चाँद को
खिड़की के सामने खड़ा रहने लगा हूँ मैं ...
कागज़ पे इक रिसाले के छप कर मैं क्या करूँ
अब तेरे दिल में दिलरुबा रहने लगा हूँ मैं .....
दिल को नहीं सुहाता है शोरे तरब ज़रा
बज़्मे तरब में सहमा सा रहने लगा हूँ मैं....…
Added by Ajay Agyat on April 9, 2014 at 7:30pm — 4 Comments
एक स्त्री का जब जन्म होता है तभी से उसके लालन पालन और संस्कारों में स्त्रीयोचित गुण डाले जाने लगते हैं | जैसे-जैसे वो बड़ी होती है उसके अन्दर वो गुण विकसित होने लगते है | प्रेम, धैर्य, समर्पण, त्याग ये सभी भावनाएं वो किसी के लिए संजोने लगती है और यूँ ही मन ही मन किसी अनजाने अनदेखे राज कुमार के सपने देखने लगती है और उसी अनजाने से मन ही मन प्रेम करने लगती है | किशोरा अवस्था का प्रेम यौवन तक परिपक्व हो जाता है, तभी दस्तक होती है दिल पर और घर में राजकुमार के स्वागत की तैयारी होने लगती है | गाजे…
ContinueAdded by Meena Pathak on April 9, 2014 at 6:40pm — 18 Comments
चल रहे थे अकेले हम वो मिल गये
साथ उनका मिला बुझे दीप जल गये
बीत गये हमारे पल इंतजार के
बंध गये थे हम धागो में प्यार के
जिन्दगी में चाहत के फूल खिल गये
साथ उनका मिला बुझे दीप जल गये
चल रहे थे अकेले हम वो मिल गये
हर चाहतो को मेरी जानने लगे
आँखो की भाषा को पहचाने लगे
जीवन के रंग ढ़ग सभी बदल गये
साथ उनका मिला बुझे दीप जल गये
चल रहे थे अकेले हम वो मिल गये
इक दिन जाने कैसा आया जलजला
टूट गया उसके आने का…
Added by Akhand Gahmari on April 9, 2014 at 5:30pm — 10 Comments
फल, फूल, धूप, दीप, नैवेद्य,…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 9, 2014 at 10:30am — 26 Comments
सुगंध बनकर आ जाओ तुम
मेरे जीवन के मधुबन में
प्रेम सिंचित हरी वसुंधरा
पल पल में जीवन महकाओ
परितप्त ह्रदय के मरुतल पर
मेघा दल बन कर छा जाओ
बस जाओ न प्रतिबिम्ब बनकर
मेरे जीवन के दर्पण में.
सुगंध बनकर आ जाओ तुम
मेरे जीवन के मधुबन में ..
तुझ से ही है मेरा होना
तुझ से मिलकर हँसना रोना
तुम चन्दा , मैं टिम टिम तारा
अर्पण तुझ पर जीवन सारा
तुझ से दूर रहूँ मैं कैसे
आसक्त बंधा हूँ बंधन में
सुगंध बनकर आ जाओ…
Added by Neeraj Neer on April 9, 2014 at 10:01am — 14 Comments
चल पड़े राह जो गुनाह में थे ।
गुम गए वो सभी सियाह में थे ।
वो क्या थी अदा हमें दिखाई ,
जब हमारी रहे निगाह में थे ।
वो क्या ये बतायें तुझे अब ,
जब रहे वो न उस सलाह में थे ।
हम कहें भी क्या तो वेसा क्या ,
जब रहे हम उसी पनाह में थे ।
क्यों लगे वो यहीं रुके होंगे ,
जो सदा के लिए प्रवाह में थे।
"मौलिक व अप्रकाशित"
Added by मोहन बेगोवाल on April 9, 2014 at 1:00am — 7 Comments
खिलना नहीं है बाग में
मिलना है जिसको खाक में
ध्यान में उसका धरूँ
कितने दिनों के वास्ते ?
विश्वास अपनों का धरूँ
उपहास अपना क्यों करूँ ?
इतिहास अपना ही लिखूँ
कितने दिनों के वास्ते ?
अवसाद सपनों पर करूँ
फरियाद अपनों से करूँ
नित याद में खोई रहूँ
कितने दिनों के वास्ते ?
अभिमान मन की भूल है
अरमान मन की चूक है
इस चूक को वरदान समझूँ
कितने दिनों के वास्ते…
ContinueAdded by kalpna mishra bajpai on April 8, 2014 at 11:00pm — 22 Comments
सह विनाश या सह विकास
दुनियाँ
परमाणु बम पर बैठी हुयी है
बस एक हिट की –
ज़रूरत है ,
मनु – युग मे जाने की
ज़रूरत नहीं होगी
तब मालूम होगा
अस्तित्व
सह विनाश का ।
पर यदि
नयी उमर की नयी फसल -
देखनी है
तो सम्राट अशोक को
फिर से
बुद्ध के शरण मे आना होगा
गांधी और किंग की भावनाओं को
अपनाना होगा
फिर कल – कारखानों से
सुमधुर संगीत जो…
ContinueAdded by S. C. Brahmachari on April 8, 2014 at 9:47pm — 5 Comments
आंखों देखी – 15 बैरागी अभियात्री, साधारण इंसान
आसमान में बादल थे लेकिन दृश्यता (visibility) अच्छी होने के कारण छठे अभियान दल के दलनेता ने दक्षिण गंगोत्री आने का निर्णय लिया. नियमानुसार, जहाज़ के अंटार्कटिका पहुँचने के साथ ही अभियान की पूरी कमान नए दल के दलनेता के हाथों आ जाती है हालाँकि वे हालात के अनुसार लगभग सभी निर्णय शीतकालीन दल के स्टेशन कमाण्डर के साथ विचार-विमर्श करने के बाद ही लेते हैं. शिष्टाचार के अतिरिक्त इसका मुख्य कारण है शीतकालीन दल का विशाल अनुभव…
ContinueAdded by sharadindu mukerji on April 8, 2014 at 5:15pm — 4 Comments
देख चुनावी वर्ल्ड कप, का सज गया मैदान
ट्रोफी इसकी पाने को , सब नेतागन परेशान
सोच रहे हैं सब कैसे, मतदाता को रिझायें
कम ओवर मैं अब कैसे, रन तेजी से बनायें
कैसे उसे मनाये जो, मतदाता पहले से रूठा
निकल जाये न मैच, कैच जो हाथों से छूटा
जो बॉलर भी आये समक्ष, उसको मारो बल्ला
चाहे चौका लग न पाये, मचे छक्के का हल्ला
जीतेंगे है हर हाल मैं हमतो, ठोंक रहे हैं ताल
गति गेंद की तेज रहे चाहे, हो जाये नो…
Added by Sachin Dev on April 8, 2014 at 4:30pm — 8 Comments
2025
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2025 Created by Admin.
Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |