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क्यों गाती हो कोयल : नीरज नीर

क्यों गाती हो कोयल होकर इतना विह्वल

है पिया मिलन की आस

या बीत चुका मधुमास

वियोग की है वेदना

या पारगमन है पास

मत जाओ न रह जाओ यह छोड़ अम्बर भूतल

क्यों गाती हो कोयल होकर इतना विह्वल



तू गाती तो आता

यह वसंत मदमाता

तू आती तो आता

मलयानिल महकाता

तू जाती तो देता कर जेठ मुझे बेकल

क्यों गाती हो कोयल होकर इतना विह्वल



कलि कुसुम का यह देश

रह बदल कोई वेष

सुबह सबेरे आना

हौले से तुम गाना…

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Added by Neeraj Neer on April 19, 2014 at 8:30pm — 9 Comments

अश्क आँखों में …

अश्क आँखों में …

अश्क आँखों में हमारी ......हैं निशानी आपकी

जान ले ले न हमारी .......ये बेज़ुबानी आपकी

आपकी खामोशियों का ......शोर अब होने लगा

हो न जाए आम ये .....दिल की कहानी आपकी

लाख चाहा अब न देखें ...आपके ख़्वाबों को हम

क्या करें कम्बख़्त नीदें भी ...हैं दिवानी आपकी

आप मुज़मिर हैं हमारी ...रातों की तन्हाईयों में

बिस्तर की सलवटों में हैं ...यादें सुहानी आपकी

जीने के वास्ते जिस्म से ..सांसें ज़ेहद…

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Added by Sushil Sarna on April 19, 2014 at 3:26pm — 2 Comments

ग़ज़ल : अरुन 'अनन्त'

बह्र : रमल मुसम्मन महजूफ

वज्न : २१२२, २१२२, २१२२, २१२

मध्य अपने आग जो जलती नहीं संदेह की,

टूट कर दो भाग में बँटती नहीं इक जिंदगी.



हम गलतफहमी मिटाने की न कोशिश कर सके,

कुछ समय का दोष था कुछ आपसी नाराजगी,



आज क्यों इतनी कमी खलने लगी है आपको,

कल तलक मेरी नहीं स्वीकार थी मौजूदगी,



यूँ धराशायी नहीं ये स्वप्न होते टूटकर,

आखिरी क्षण तक नहीं बहती ये आँखों की नदी,



रात भर करवट बदलना याद करना रात भर,

एक अरसे से…

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Added by अरुन 'अनन्त' on April 19, 2014 at 2:30pm — 40 Comments

दोहे (प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा )

गुणीजनों की शान में, हाज़िर दोहे पाँच

मिले ज्ञान जो छंद का, कभी न आए आँच

करें ब्रह्म का ध्यान हम, पीटें नहीं लकीर

भेदभाव सब छोड़ दें, रंग-जाति तकदीर

सबसे पहले हम जगें, जागे फिर संसार

करें कर्म अपने सभी, सुमिरें पवन कुमार

मज़ा सवाया और है, मज़ा अढ़ाई और

मज़ा मिले तब आम का, घने लगे जब बौर

कन्या पूजन वे करें, राखें उनकी लाज

होती अम्बे की कृपा, बनते सारे काज

वाणी कबिरा की भली, प्रेम राह जग जोत…

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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 19, 2014 at 10:30am — 31 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
ग़ज़ल '' आओ सिक्का उछाल लेते हैं '' ( गिरिराज भंडारी )

2122     1212     22 /112

 

आज  फिर से  बवाल  लेते हैं

प्रश्न   कोई   उछाल  लेते  हैं

 

प्यास का हल कोई हमीं करलें

वो  समझने में  साल लेते  हैं

 

उनको आँखों में सिर्फ अश्क़ मिले

वो जो सब का मलाल लेते हैं

 

तेग वो ही चलायें, खुश रह लें

आदतन, हम जो ढाल लेते हैं

 

आज कश्मीर पर हो हल कोई

आओ  सिक्का उछाल लेते हैं  

 

भूख, उनके खड़ी रही दर पर

रिज़्क जो- जो हलाल लेते…

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Added by गिरिराज भंडारी on April 18, 2014 at 5:00pm — 40 Comments

ग़ज़ल …. है बहाना आज फिर शुभकामनाओं के लिये

 रदीफ़ -के लिये 

काफ़िया -शुभकामनाओं ,संभावनाओं , याचनाओं 

अर्कान -2122 ,2122 ,2122 ,212 



है बहाना आज फिर शुभकामनाओं के लिये 

आँधियों की धूल में संभावनाओं के लिये . 



नींद क्यों आती नहीं ये ख्वाब हैं पसरे हुये 

हो गई बंजर जमीनें भावनाओं के लिये .



है बड़ा मुश्किल समझना जिंदगी की धार को 

माँगते अधिकार हैं सब वर्जनाओं…

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Added by dr lalit mohan pant on April 18, 2014 at 1:29am — 21 Comments

दोहे-१६-(खिचड़ी)

यह जीवन का चक्र है,पतझड़ फिर मधुमास!

बस कुछ दिन की बात है,हो क्यों मित्र उदास!!

नेता नित नित गढ़ रहे ,नये नये भ्रमजाल !

जनता भूखों मर रही,इनकी मोटी खाल !!

स्वाभिमान को बेचकर,क्रय कर लाये लोभ!

जानबूझकर ढो रहे,केवल कुंठित क्षोभ!!

झूठा ही इक बार तो,कर दो यूँ इकरार!

जीवित हो जाऊँ पुनः,कह दो मुझसे प्यार!!

माना तुमको है नहीं,अब तो मुझसे प्यार!

किया करो हँसकर कभी,बातें ही दो चार!!…

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Added by ram shiromani pathak on April 17, 2014 at 11:00pm — 16 Comments

चुनाव

         चुनाव

भरे नहीं थे पिछले घाव

लो फिर आगया चुनाव

मुद्दों की मलहम लेकर

घर-घर बाँट रहे हैं

फिर नए साजिश की

क्या ये सोच रहे हैं ?

धर्म मज़हब की लेकर आड़

करते नित नए खिलवाड़

फिर शह-मात की बारी है

सियासी जंग की तैयारी है

आरोप प्रत्यारोप का

भयंकर गोला बारी है

विकास की उम्मीद लिए

परिवर्तन पर परिवर्तन

लेकिन थमता नहीं यहाँ

कुशासन का ये नर्तन

कहीं मुँह बड़ा हुआ…

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Added by Maheshwari Kaneri on April 17, 2014 at 6:30pm — 8 Comments

ग़ज़ल : तभी जाके ग़ज़ल पर ये गुलाबी रंग आया है

बह्र : १२२२ १२२२ १२२२ १२२२

महीनों तक तुम्हारे प्यार में इसको पकाया है

तभी जाके ग़ज़ल…

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Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 17, 2014 at 5:30pm — 34 Comments

वो गयी न ज़बीं से

वो गयी न ज़बीं से …

आबाद हैं तन्हाईयाँ ..तेरी यादों की महक से

वो गयी न ज़बीं से .मैंने देखा बहुत बहक के

कब तलक रोकें भला बेशर्मी बहते अश्कों की

छुप सके न तीरगी में अक्स उनकी महक के

सुर्ख आँखें कह रही हैं ....बेकरारी इंतज़ार की

लो आरिज़ों पे रुक गए ..छुपे दर्द यूँ पलक के

ज़िंदा हैं हम अब तलक..... आप ही के वास्ते

रूह वरना जानती है ......सब रास्ते फलक के

बस गया है नफ़स में ....अहसास वो आपका

देखा न एक…

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Added by Sushil Sarna on April 17, 2014 at 5:13pm — 10 Comments

लक्ष्यहीन वाल्मिकी

मैं सबसे प्रेम करता था|

मेरे प्रेम को

एक मोबाइल कॉल की तरह अग्रेषित किया

मेरे अपनों ने ही

चमकते सिक्कों की ओर|

मेरे परिवार में मैं मूर्ख कहलाया |

मेरा लक्ष्य प्रेम था,

इसलिए…

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Added by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on April 17, 2014 at 12:44pm — 9 Comments

फ़ितूर (दीपक कुल्लुवी)

मेरे अंजुमन में रौनकें बेशक़ कम होंगी ज़रूर

क्या सोच के दोज़ख़ की तरफ़ चल दिए हज़ूर



आपने तो एक बार भी मुड़के देखा नहीं हमें

न जानें था किस बात का अपने आपपे गरूर



यह वक़्त किसी के लिए रुक जाएगा यहाँ 

निकाल देना चाहिए सबको दिमाग़ से यह फ़ितूर



चढ़ जाए एक बार तो हर्गिज़ उतरता ही नहीं

क़लम का हो शराब का हो या शबाब का हो सरूर



मासूम से थे हम 'दीपक' शायर 'कुल्लुवी'हो गए

हमसे क्या आप खुद से भी हो गए बहुत दूर

दीपक…

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Added by Deepak Sharma Kuluvi on April 17, 2014 at 11:30am — 12 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
जहाँ प्यार के, खिलें कँवल (मनमोहन छंद)

मनमोहन छंद : लक्षण: जाति मानव, प्रति चरण मात्रा १४ मात्रा, यति ८-६, चरणांत लघु लघु लघु (नगण) होता है.

अब तक थी जो ,सुलभ डगर

आगे साथी,कठिन सफ़र 

सँभल-सँभल कर ,रखें कदम

साथ चलेंगे ,जब- जब  हम

 

सब काँटों को ,चुन-चुन कर

फूल बिछाएँ,पग-पग पर

आजा चुन लें ,राह नवल

 जहाँ प्यार के ,खिलें कँवल 

 

 फूल हँसेंगे ,खिल-खिलकर

 कष्ट सहेंगे, मिलजुलकर

 पथ का होगा, सही चयन

 सही दिशा में,…

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Added by rajesh kumari on April 17, 2014 at 11:30am — 20 Comments

माँ के हाथों सूखी रोटी का मजा - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

2122        2122         212

आँसुओं को यूँ  मिलाकर  नीर में

ज्यों  दवा  हो  पी  रहा हूँ  पीर में

**

हाथ की रेखा  मिटाकर चल दिया

क्या लिखा है क्या कहूँ तकदीर में

**

कौन  डरता   जाँ  गवाने  के  लिए

रख जहर जितना हो रखना तीर में

**

हर तरफ उसके  दुशासन डर गया

मैं न था कान्हा  जो बधता चीर में

**

माँ के  हाथों  सूखी  रोटी का मजा

आ  न  पाया  यार  तेरी  खीर में

**

शायरी  कहता  रहा…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 17, 2014 at 10:30am — 15 Comments

मेरी साँसों में तुम ही हो,मेरा अन्दाज भी हो तुम

मेरी धडकन में हो तुम ही,मेरी आबाज भी हो तुम

मेरी साँसों में तुम ही हो,मेरा अन्दाज भी हो तुम 

यहाँ है अब तलक चर्चा हमारी ही मुहब्बत का

मगर मत भूल जाना तुम ,मेरे हमराज भी हो तुम

तुम्हारे ही निशाने पर रहा हूँ मैं हमेशा ही

कभी लगता है क्यों मुझको निशानेबाज भी हो तुम

कभी पल भर मैं ठहरा था, तेरी जुल्फों के साये मे

मुझे अहसास है अब तक ,मेरे सरताज भी हो तुम

गये लम्हों की कहकर थे ,कई अरसे गुजारे हैं

नहीं फिर…

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Added by umesh katara on April 17, 2014 at 8:12am — 14 Comments

कविता..........बृजेश

कविता -

शरीर में चुभे हुए काँटे

जो शरीर को छलनी करते हैं;

वह टीस 

जो दिल की धड़कन

साँसों को निस्तेज करती है

 

यह तुम्हें आनंद नहीं देगी

प्रेम का कोरा आलाप नहीं यह

वासना में लिपटे शब्दों का राग नहीं

छद्म चिंताओं का दस्तावेज़ नहीं

इसे सुनकर झूमोगे नहीं

 

यह तुम्हें गुदगुदाएगी नहीं

सीधे चोट करेगी दिमाग पर

तड़प उठोगे

यही उद्देश्य है कविता का

 

रात के स्याह-ताल…

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Added by बृजेश नीरज on April 16, 2014 at 10:09pm — 45 Comments

फायदा क्‍या गजल

2122 2122 1222

क्‍या शिकायत करू मैं इस जमानें से

फायदा क्‍या है किसी को बतानें से

अब मजारो की तरफ यूँ न देखो तुम

आ सकेगें हम न आँसू बहानें से

बदनसीबी साथ मेरे उम्र भर थी

सो रहा हूँ चोट खा कर जमानें से

यार मेरे तुम बहाओ न अश्‍को को

फायदा क्‍या अब यहाँ दिल जलानें से

रूठ कर हम से चले ही गये वो जब

साथ ना अब तो मिले कुछ बतानें से

मौलिक एवं अप्रकाशित अखंड गहमरी गहमर…

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Added by Akhand Gahmari on April 16, 2014 at 6:00pm — 16 Comments

ग़ज़ल ‘ ऐसा दिया है ज़हर ‘ --- 'चिराग'

221 2121 1221 212

 

बाज़ारे-इश्क़ सज गया पूरे उफान पर

शीला का नाम चढ़ गया सबकी ज़बान पर

 

धंधे की बात कीजिए कच्ची कली भी है

क्या कुछ नहीं मिलेगा मेरी इस दुकान पर

 

मुँह में दबाए पान मियाँ किस तलाश में

रंगीनियाँ भुला भी दो उम्र अब ढलान पर

 

कूंचे में आए हुस्न का बाज़ार देखने

चोरी से देखते है सभी इक निशान पर

 

रोज़ आते हैं दीवाने यहाँ गम को बाँटने

करते है वाह-वाह वो घुंघरू की तान…

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Added by Mukesh Verma "Chiragh" on April 16, 2014 at 5:00pm — 30 Comments

मेरे खतों को लगा दिल से चूमती है वो

१२१२     ११२२    १२१२     २२

हसींन जुल्फ कहीं पर बिखर रही होगी

हवा है महकी उधर से गुजर रही होगी

 

फलक पे चाँद है बेताब चांदनी गुमसुम

कहीं जमी पे वो बुलबुल निखर रही होगी

 

जमी पे आज हैं बिखरे तमाम आंसू यूं

ग़मों में डूबी ये शब किस कदर रही होगी

 

मेरे खतों को लगा दिल से चूमती है वो

खुदा कसम ये खबर क्या खबर रही होगी

 

जो जान हम पे छिड़कती उसे नहीं देखा

वो झिर्रियों से ही तकती नजर रही…

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Added by Dr Ashutosh Mishra on April 16, 2014 at 12:12pm — 17 Comments

इशारों को शरारत ही कहूं या प्यार ही समझूं

1222 1222 1222 1222

इशारों को शरारत ही कहूं या प्यार ही समझूं

कहूं मरहम इन्हें या खंजरों का वार ही समझूं

कशिश बातों में तेरी अब अजब सी मुझको लगती है

कहूं बातों को बातें या इन्हें इकरार ही समझूं

वो डर के भेडियो से आज मेरे पास आये हैं

कहूं हालात इसको या कि फिर एतवार ही समझूं

झरे आँखों से आंसू आज तो बरसात की मानिंद

कहूं मोती इन्हें या सिर्फ मैं जलधार ही समझूं

तेरी नजरों ने कैसी आग सीने में लगाई है …

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Added by Dr Ashutosh Mishra on April 16, 2014 at 11:00am — 8 Comments

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