[1]
रूप मनभावन है मंद मंद मुस्कराये
नन्हें नन्हें पाँव लिए दौड़ी चली आती है
बार बार सहलाती अपने कपोल वह
छोटी छोटी गोल गोल आँखें मटकाती है
अम्मा पहना के जब पायल संवारती हैं
दौड़ती तो झनक झनक झंझनाती है
कायल है दादा दादी नाना नानी सभी अब
ठुमक ठुमक कर खूब इतराती है ॥
[2]
दादी अम्मा भोजन कराएं तो सताती वह
आगे आगे भागे पीछे अम्मा को छकाती है
कापी छीन लेती लेखनी वो तोड़ देती भाई
को है वो…
ContinueAdded by annapurna bajpai on April 21, 2014 at 8:30pm — 14 Comments
माँ की छोटी कोख में, पूत रहा नौ माह,
माँ को आश्रम भेज कर, मिली पूत को राह |
मिली पूत को राह, नहीं माँ वहां अकेली |
घरको से थी दूर, बहुत पर मिली सहेली
कह लक्ष्मण कविराय, पूत करले चालाकी
उसका ही सम्मान, करे जो पूजा माँ की |
(२)
परछाई भी दिख रही, अपने बहुत करीब
हाथ बढ़ा कर छू सकूँ, ऐसा नहीं नसीब |
ऐसा नहीं नसीब, भ्रमित मन होता इतना
स्वप्न मात्र संयोग, मिले नसीब में जितना
कह लक्ष्मण कविराय, स्वप्न में फटी बिवाई
उसे…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 21, 2014 at 6:36pm — 8 Comments
खुदा के घर से किसी के दिल पर ,
ना हिन्दू ना मुसलमान की छाप लगकर आयी है ,
फिर क्यूँ तुमने हमपर जाती की तोहमत लगाई है ,
खुदा का वास्ता -
अब, ना हिन्दू ना मुसमान ना ईसाई बना हमको ,
इंसानियत हमारी ज़ात हैं ,कुछ और ना बना हमको
दिल जिगर गुर्दे ,तुम भी रखते हो ,हम भी रखते हैं ,
चाहो तो जंग के मैदान में आजमा सकते हो ,
और अगर चाहो तो -
ज़रूरतमंद को दान कर इंसान और इंसानियत ,
दोनों को बचा सकते हो
अप्रकाशित मौलिक
Added by Dr Dilip Mittal on April 21, 2014 at 4:33pm — 6 Comments
हाथ धरे बैठे नेताजि , नौका कैसे होवे पार !!
कैसे जीतें युद्ध चुनावी , लगा हुआ नेता दरबार !
सबके सब भिड गय जुगत मैं, रेडी खड़े सभी लठमार !!
भरा दिया पर्चा नेता का, भीड़ इकट्ठी हुई अपार !
लगा दिया फोटु भारी सा, होने लगा खूब परचार !!
पर्चा भर नेताजी पहुँचे , परम प्रभू भोले के द्वार !
परिक्रमा नेताजी करते , डोक लगाते बारमबार !!
मन मैं सिमर रहे नेताजि ,…
Added by Sachin Dev on April 21, 2014 at 1:30pm — 20 Comments
बह्र = 121 2122 2122 222
हर एक आदमी इंसान सा क्यूँ लगता है
खुदा तेरा मुझे भगवान् सा क्यूँ लगता है
हज़ारो लोग दौड़े आते हैं मंदिर मस्जिद
मुझे खुदा ही परेशान सा क्यूँ लगता है
कि सारी जिंदगी नाजों से था पाला जिसने
वो बूढ़ा बाप भी सामान सा क्यूँ लगता है
सियासी कूचों से होकर के गुजरने वाला
हर एक शख्स बे ईमान सा क्यूँ लगता है
इबादतों का कोई वक्त जो बांटूं भी तो
हर एक माह ही रमजान सा क्यूँ लगता है …
Added by Anurag Singh "rishi" on April 21, 2014 at 12:30pm — 26 Comments
कैसी शुष्कता है?
जो धूप में
बदन झुलसा रही..
भीतर इतनी आग
विरह की जो
केवल धुआँ
और धुआँ देती है
राख तक नसीब नहीं
जिसे रख दूँ संजो कर
तेरी हथेली पर
जब मिलन की बेला हो
और कहूँ कि....
यह पाया मैंने
तुझ बिन...!
जितेन्द्र ' गीत '
( मौलिक व् अप्रकाशित )
Added by जितेन्द्र पस्टारिया on April 21, 2014 at 11:00am — 58 Comments
आदरणीय गुरुजनों, अग्रजों एवं प्रिय मित्रों घनाक्षरी पर यह मेरा प्रथम प्रयास है कृपया त्रुटियों से अवगत कराएँ.
मनहरण - घनाक्षरी
क्रूरता कठोरता अधर्म द्वेष क्रोध लोभ
निंदनीय कृत्य पापियों का प्रादुर्भाव है,
दूषित विचार बुद्धि और हीन भावना है,
आदर सम्मान न ह्रदय में प्रेम भाव है,
नम्रता सहृदयता विवेक न समाज में,
सभ्यता कगार पर धर्मं का आभाव है,…
Added by अरुन 'अनन्त' on April 21, 2014 at 10:30am — 19 Comments
ये लोक तंत्र है
कहने के लिए
हम चुनते हैं
अपना प्रतिनिधि
वोट देकर
संविधान द्वारा स्थापित
प्रक्रिया
का सम्मान कर कर
लोकतंत्र की गरिमा
का
मन रख,
पर मिलता है हमें
धोखा
सरकार बने
फिर कैसी जनता
कैसा जनतंत्र?
संविधान हमारा
छत है
धुप, बारिश, पानी
सबसे बचाना इसका
काम है
पर अब
लगता है की
इस छतरी में छेद है.
जिसका पैसा
उसका कानून
और
फैसले भी उसके
पक्ष में.
क्या यही अवधारणा…
Added by ABHISHEK SHUKLA on April 21, 2014 at 12:44am — 5 Comments
नारी नेता जीव दो, लीला अपरम्पार
नेता देश उजाड़ते, रचती घर को नार
नेता हमको चाहिए, बूझे जन की बात
सूरज बन चमका करे, दिन हो या फिर रात
वोट जरूरी है बहुत, देना सोच विचार
निर्भय हो मत डालना, जन्म-सिद्ध अधिकार
धर्म-कर्म के नाम पर, मत डालो तुम वोट
गरल बहुत हम पी चुके, रहे न कोई खोट
सात बजे से शुरू हो, छः पर होता अंत
कार्य करें सब समय से, रखते गुण यह संत
साथ-साथ हम सब चलें, पावन यह त्यौहार…
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 20, 2014 at 10:00pm — 16 Comments
वो गंगा की धारा
वो निर्मल किनारा
जहाँ माँ थी लेटी
हमें कुछ न कहती
हमें याद है वो
निर्मल सा चेहरा
अभी कुछ था कहना
अभी कुछ था सुनना
याद आ रहा था
माँ का तराना
जिसे गाया करती थी
माता हमारी ...
उठाया करती
वो गाकर तराना
मगर आज वो लेटी
हमे कुछ न कहती
पानी था निर्मल
वो अश्रु की धारा
रोके न रुकी थी
वो आँखों की धारा
वही था वो सूरज
वही था…
ContinueAdded by Amod Kumar Srivastava on April 20, 2014 at 7:54pm — 6 Comments
पलक पर अश्क मत लाओ मेरे जो बाद बाकी है
फ़साना खत्म है मेरा मगर कुछ याद बाकी हैं
मेरा चर्चा करेंगे लोग महफिल में के जश्नों में
समझलेना दिवाने आज भी आबाद बाकी हैं
हजारों मिन्नतें करलीं खुदा के वास्ते उनसे
रहीं कुछ हसरतें बाकी फकत फरियाद बाकी हैं
मेरे कातिल मेरे दुश्मन जरा कुछ हौंसला रखना
बचाने को मेरी खातिर के कुछ इमदाद बाकी हैं
अ़मन के दुश्मनों से भी जरा कहदो जहाँ वालो
अभी तक आज तक इस देश में आजाद…
ContinueAdded by umesh katara on April 20, 2014 at 7:26pm — 17 Comments
आदमी
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ऊँची ऊँची अट्टालिकाएं
बौने लोग
विकृति और स्वभाव
एक दूजे के
पर्यायवाची
चाहरदीवारी के मध्य
शून्य…
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 20, 2014 at 6:41pm — 34 Comments
छाँह में छिपना चाहता हूँ ...
तुम कहते हो मैं भी
चाँद की चाँदनी को पी लूँ ?
कल हर भूखे का
भोजन निश्चित है क्या ?
आशा-अनाशा की उलझी
परस्पर लड़ती हुई हवाएँ…
ContinueAdded by vijay nikore on April 20, 2014 at 2:09pm — 20 Comments
2122/ 2122/ 2122/ 212
उँगलियों पर हो निशाँ आँखों में पर पट्टी नहीं
मुल्क की जम्हूरियत बस इंतिखाबी ही नहीं
है यही मौका कि बदलें देश की तक़दीर हम
ये न फिर कहना पड़े उम्मीद ही बाकी नहीं
हाल क्या होगा हमारा गर्म होगी जब धरा
होगा आँखों में समंदर पर कहीं पानी नहीं
गिर पड़ा वो आखरी पत्ता शजर से टूट के
अब रही कोई बहारों की निशानी भी नहीं
सूख जायेगा चमन होगी हवा में आग सी
फूल होगा याद में…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on April 20, 2014 at 9:35am — 18 Comments
क्यों गाती हो कोयल होकर इतना विह्वल
है पिया मिलन की आस
या बीत चुका मधुमास
वियोग की है वेदना
या पारगमन है पास
मत जाओ न रह जाओ यह छोड़ अम्बर भूतल
क्यों गाती हो कोयल होकर इतना विह्वल
तू गाती तो आता
यह वसंत मदमाता
तू आती तो आता
मलयानिल महकाता
तू जाती तो देता कर जेठ मुझे बेकल
क्यों गाती हो कोयल होकर इतना विह्वल
कलि कुसुम का यह देश
रह बदल कोई वेष
सुबह सबेरे आना
हौले से तुम गाना…
Added by Neeraj Neer on April 19, 2014 at 8:30pm — 9 Comments
अश्क आँखों में …
अश्क आँखों में हमारी ......हैं निशानी आपकी
जान ले ले न हमारी .......ये बेज़ुबानी आपकी
आपकी खामोशियों का ......शोर अब होने लगा
हो न जाए आम ये .....दिल की कहानी आपकी
लाख चाहा अब न देखें ...आपके ख़्वाबों को हम
क्या करें कम्बख़्त नीदें भी ...हैं दिवानी आपकी
आप मुज़मिर हैं हमारी ...रातों की तन्हाईयों में
बिस्तर की सलवटों में हैं ...यादें सुहानी आपकी
जीने के वास्ते जिस्म से ..सांसें ज़ेहद…
ContinueAdded by Sushil Sarna on April 19, 2014 at 3:26pm — 2 Comments
बह्र : रमल मुसम्मन महजूफ
वज्न : २१२२, २१२२, २१२२, २१२
मध्य अपने आग जो जलती नहीं संदेह की,
टूट कर दो भाग में बँटती नहीं इक जिंदगी.
हम गलतफहमी मिटाने की न कोशिश कर सके,
कुछ समय का दोष था कुछ आपसी नाराजगी,
आज क्यों इतनी कमी खलने लगी है आपको,
कल तलक मेरी नहीं स्वीकार थी मौजूदगी,
यूँ धराशायी नहीं ये स्वप्न होते टूटकर,
आखिरी क्षण तक नहीं बहती ये आँखों की नदी,
रात भर करवट बदलना याद करना रात भर,
एक अरसे से…
Added by अरुन 'अनन्त' on April 19, 2014 at 2:30pm — 40 Comments
गुणीजनों की शान में, हाज़िर दोहे पाँच
मिले ज्ञान जो छंद का, कभी न आए आँच
करें ब्रह्म का ध्यान हम, पीटें नहीं लकीर
भेदभाव सब छोड़ दें, रंग-जाति तकदीर
सबसे पहले हम जगें, जागे फिर संसार
करें कर्म अपने सभी, सुमिरें पवन कुमार
मज़ा सवाया और है, मज़ा अढ़ाई और
मज़ा मिले तब आम का, घने लगे जब बौर
कन्या पूजन वे करें, राखें उनकी लाज
होती अम्बे की कृपा, बनते सारे काज
वाणी कबिरा की भली, प्रेम राह जग जोत…
ContinueAdded by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 19, 2014 at 10:30am — 31 Comments
2122 1212 22 /112
आज फिर से बवाल लेते हैं
प्रश्न कोई उछाल लेते हैं
प्यास का हल कोई हमीं करलें
वो समझने में साल लेते हैं
उनको आँखों में सिर्फ अश्क़ मिले
वो जो सब का मलाल लेते हैं
तेग वो ही चलायें, खुश रह लें
आदतन, हम जो ढाल लेते हैं
आज कश्मीर पर हो हल कोई
आओ सिक्का उछाल लेते हैं
भूख, उनके खड़ी रही दर पर
रिज़्क जो- जो हलाल लेते…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on April 18, 2014 at 5:00pm — 40 Comments
रदीफ़ -के लिये
काफ़िया -शुभकामनाओं ,संभावनाओं , याचनाओं
अर्कान -2122 ,2122 ,2122 ,212
है बहाना आज फिर शुभकामनाओं के लिये
आँधियों की धूल में संभावनाओं के लिये .
नींद क्यों आती नहीं ये ख्वाब हैं पसरे हुये
हो गई बंजर जमीनें भावनाओं के लिये .
है बड़ा मुश्किल समझना जिंदगी की धार को
माँगते अधिकार हैं सब वर्जनाओं…
Added by dr lalit mohan pant on April 18, 2014 at 1:29am — 21 Comments
2025
2024
2023
2022
2021
2020
2019
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