Added by Ravi Prakash on March 11, 2014 at 2:33pm — 10 Comments
जो पाँच साल दहाड़े थे गिड़गिड़ाने लगे,
हमें ही वोट दो कहकर करीब आने लगे।
तुम्हारी ज़ात के नेता हैं हम तुम्हारे हैं,
ग़रीबों को ये बताकर गले लगाने लगे।
तुम्हारा हाल बदल देंगे एक मौका दो,
गली गली उसी ढपली को फिर बजाने लगे।
जो भीड़ आई है रैली में, है किराये की,
वो जिसके ज़ोर पे क़द को बड़ा दिखाने लगे।
बहा के ख़ून के दरिया सभी सियासतदां,
हर एक ख़ून के क़तरे से फ़ैज़ उठाने लगे।
ये देस लूट रहे हैं हमारे नेता जी,
जिसे आज़ाद कराने…
Added by इमरान खान on March 11, 2014 at 1:30pm — 20 Comments
छन्न पकैया, छन्न पकैया, दिन कैसे ये आए,
देख आधुनिक कविताई को, छंद,गीत मुरझाए।
छन्न पकैया, छन्न पकैया, गर्दिश में हैं तारे,
रचना में कुछ भाव हो न हो, वाह, वाह के नारे।
छन्न पकैया, छन्न पकैया, घटी काव्य की कीमत,
विद्वानों को वोट न मिलते, मूढ़ों को है बहुमत।
छन्न पकैया, छन्न पकैया, भ्रमित हुआ मन लखकर,
सुंदरतम की छाप लगी है, हर कविता संग्रह पर।
छन्न पकैया, छन्न पकैया, कविता किसे पढ़ाएँ,
पाठक भी…
ContinueAdded by कल्पना रामानी on March 11, 2014 at 9:30am — 20 Comments
होली के दिन सब मिलो लेकर सारे रंग
गाओ मिलकर फाग को सब यारों के संग /
सब यारों के संग धूम तुम खूब मचाओ
नीला पीला लाल हरा गुलाबी लगाओ
शिकवे सारे भूल चले आओ हमझोली
रंगों का त्योहार ,आ गया है अब होली //
.............मौलिक व अप्रकाशित............
Added by Sarita Bhatia on March 11, 2014 at 9:00am — 8 Comments
कह मुकरियाँ “ – पाँच
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मुझे छोड़ वो कहीं न जाये
इधर उधर की सैर कराये
साथ रहे जैसे हो धड़कन
क्या सखि साजन , नहीं सखि मन
…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on March 10, 2014 at 9:00pm — 15 Comments
2122/ 2122/ 2122/ 212
कातिलों के शह्र में अहले जिगर आते नहीं
भीड़ से होकर परे चहरे नज़र आते नहीं
मेरे चारों ओर किस्मत ने बना दी बाड़ सी
हाल ये है अब परिन्दे तक इधर आते नहीं
वक्त सा होने लगा है दोस्तों का अब मिजाज़
गर चले जायें तो वापस लौटकर आते नहीं
ज़ीस्त के कुछ रास्तों पे तन्हा चलना ठीक है
क्यूँकि अक्सर साथ अपने राहबर आते नहीं
नक्शे-माज़ी देखने को आते तो हैं रोज़-रोज़
खण्डहर…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on March 10, 2014 at 9:00am — 30 Comments
मन तरसे
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तन तरसे मन तरसे .
होली का रंग बरसे .
मै हो गई प्रेम दीवानी
मुझे देख मधुकर हरषे .
फूल गई सब कालिया
मै सुखी निकली घर से .
कोयल कूके पपीहा गाए
भटकी मै बावरी घर से .
लगी हुई विरह वेदना
इलाज नहीं होता हर से .
मेरे प्रियत्तम आ जाओ
मिटे वेदना उस पल से .
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मौलिक व अप्रकाशित"
ओमप्रकाश क्षत्रिय…
Added by Omprakash Kshatriya on March 10, 2014 at 7:00am — 18 Comments
रसिया
आज होली मनाओ रे रसिया
रंग में भीग जाओ रे रसिया
दिल से दिल को मिलाओ रे रसिया
दुश्मनी भूल जाओ रे रसिया.
आज होली मनाओ रे रसिया........
मस्तों की रंग - भंग है टोली
नैनों से मारे रंगों की गोली
छोड शर्मो हया मेरे हमजोली
आओ खेलेंगे मिल के हम होली...
दोस्तों को मिलाओ रे रसिया ..
प्यार दिल से जगाओ रे रसिया..
आज होली मनाओ रे रसिया..
रंग में भीग जाओ रे…
ContinueAdded by सूबे सिंह सुजान on March 9, 2014 at 11:00pm — 16 Comments
मैं गिड़गिड़ाता रहा हूँ
रात दिन
तुम सबके सामने
जितने भी सम्बन्ध हो
कल आज और कल के
इस उम्मीद के साथ /कि
तुम थोड़ा पिघलोगे
भले ही अनिच्छा से
मेरा मान रखोगे
यह भ्रम /जीवन भर
साथ चलता रहा है
इसीलिये सब सहा है
यह सुनते ही तुम
मेरे विरोध में
खड़े हो जाओगे
और शायद फिर
मुझे गिड़गिड़ाता पाओगे
मैं अपना वक्तव्य बदलता हूँ
और इसे सार्वभौम /करता हूँ
फिर तुम्हारी और अपनी
ओर से कहता हूँ
मैं
मुझे…
Added by dr lalit mohan pant on March 9, 2014 at 10:23pm — 14 Comments
फाग मास की पूर्णिमा रंगों का त्योहार
सरसों खिलती खेत में फाल्गुन बाँटे प्यार /
पहला दिन है होलिका दूजा है धुरखेल
भारत औ' नेपाल में खेलें हैं यह खेल /
आओ यारो सब मिलो लेकर रंग गुलाल
नीला पीला औ' हरा गुलाबी संग लाल /
सब करें होलिका दहन फिर लगाएं गुलाल
फाग से है धमार का मिला ताल से ताल /
काम महोत्सव तुम कहो या राग रंग पर्व
होली दिन है मेल का करते सारे गर्व /
आया है अब फाग जो रंगीन है फुहार
भूलो…
Added by Sarita Bhatia on March 9, 2014 at 9:02pm — 10 Comments
अब के बरस की होली में, कुछ ऐसा रंग जमाएंगे।
भ्रष्ट को कालिख पोतेंगे, सज्जन को गुलाल लगाएंगे।।
काले धन वालों को काला, और सभी को सतरंगी।
पिचकारी की तेज धार से, बदन सभी का भिगाएंगे।।
अब के बरस की होली में, कुछ ऐसा रंग…
ContinueAdded by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on March 9, 2014 at 6:30pm — 15 Comments
आत्मा अमर है
जीवन नश्वर है
संसार कुरक्षेत्र
जीवर समर है
कल क्या होगा,
किसे खबर है ?
ज्ञान ही अमृत
अज्ञान ज़हर है
श्रद्धा से देख तू
कण-२ ईश्वर है
मुकेश इलाहाबादी ---
(मौलिक और अप्रकाशित)
Added by MUKESH SRIVASTAVA on March 9, 2014 at 11:30am — 7 Comments
मेरा परिचय क्या है?
क्या एक मानवी का ?
अथवा किसी की दासी का,
क्या मेरा परिचय यही है?
कि मेरा कोई अस्तित्व नहीं है।
मैं बहुत कुछ होकर भी,
स्वयं में कुछ नहीं हूँ।
क्या पुरुष की सहचारिणी
होने के कारण,मैं अस्तित्वहीन हूँ?
क्या एक स्त्री होने के कारण,
मैं केवल अबला,असहाय हूँ?
क्या पत्नी होना कोई अभिशाप है,
जो स्त्री को पुरुष की दासी बना देता है,
अथवा पुरुष सर्वश्रेष्ठ है,
जो स्त्री और प्रकृति सबका
अधिकारी बन जाना चाहता है।
जो…
Added by Savitri Rathore on March 9, 2014 at 12:06am — 9 Comments
सीमाओं मे मत बांधो
सीमाओं मे मत बांधो, मैं बहता गंगा जल हूँ ।
गंगोत्री से गंगा सागर
गजल सुनाती आई
गंगा की लहरों से निकली –
मुक्तक और रुबाई ।
भावों मे डूबा उतराता , माटी का गीत गजल हूँ
सीमाओं मे मत बांधो , मैं बहता गंगा जल हूँ ।
यमुना की लहरों पर –
किसने प्रेम तराने गाये ?
राधा ने कान्हा संग –
जाने कितने रास रचाए ?
होंगे महल दुमहले कितने, मैं…
ContinueAdded by S. C. Brahmachari on March 8, 2014 at 5:14pm — 15 Comments
जज्बा रख यदि ठानले, लगे सफलता हाथ,
काम करे उत्साह से, मिले सभी का साथ
मिले सभी का साथ, सभी उत्साहित रहते
रखकर ऊँची सोच, मदद आपस में करते
करे सोच कर काम, लगे न कभी भी धब्बा
संकट जाता हार, जब हो कर्म का जज्बा |
(२)
यात्रा जैसे आइना, ज़रा गौर से देख
सुन्दरता वर्णन करे, विद्वानों के लेख
विद्वानों के लेख,से बहुत सा ज्ञान मिले
पढ़े जब शिलालेख,संस्कृति संज्ञान मिले
बिन यात्रा के आप, ले न सके ज्ञान वैसे
कही न मिलता…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 8, 2014 at 11:30am — 11 Comments
आठ सगण
(१)
जब से यह देश अजाद भयो, तब से हर ओर जहालत है |
अपना सब देइ दियो जग को, अबहूँ यह नागन पालत है |
घनघोर घटा, चमके बिजली परिधान सुखावन डालत है |
सब ओर भयानक दृश्य दिखे तज हीरक कांच निकालत है |
(२)
धन भाग धरो तन भारत में, तप युक्त मही अति पावन है |
सत मारग हो, शुभ नीति चलो, अरु प्रेम सुपाठ सिखावन है |
रितु आइ रही, रितु जाइ रही, नदियाँ रसवंत लुभावन है |
जग अंध भले निज सारथ में पर से यह प्रीत निभावन है…
ContinueAdded by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on March 7, 2014 at 10:00am — 4 Comments
संविधान की ले शपथ, उसको तोडनहार |
कछु पापी नेता भये, अनुदिन भ्रष्टाचार ||
जोड़ तोड़ के गणित में, लोकतंत्र भकुआय |
हर चुनाव समरूप है, गया देश कठुआय ||
अथ श्री निर्वाचन चालीसा | जिसने भी जनता को पीसा ||१||
वह नेता है चतुर सुजाना | लोकतंत्र में जाना माना ||२||
धन जन बल युत बाहुबली हो | हवा बहाए बिना चली हो ||३||
झूठी शपथ मातु पितु बेटा | सब को अकवारी भर भेटा ||४||
रसमय चिकनी चुपड़ी बातें | मुख में राम बगल में घातें ||५||
अपना ही घर आप उजाडू | झंडे पर…
Added by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on March 6, 2014 at 10:29pm — 8 Comments
हे हंस वाहिनी प्रमुदित स्वर दो
माँ कल्याणी करुणा कर दो
हे हंस .........
ध्यान करूँ माँ तेरा निस -दिन
मंद बुद्धि को नूतन अक्षर दो
अहंकार का नास करो माँ
वीणा पाणि जाग्रत कर दो
हे हंस ..........
जीवन में छाया अँधियारा
ज्योतिर्मय उर आँगन कर दो
हो जाए मन में उजियारा
वरद हस्त सिर पर माँ रख दो
हे हंस ...........
पल -पल चिंतन रहे चिरंतर
इतनी उर में शक्ति भर दो
स्वप्नों में…
ContinueAdded by kalpna mishra bajpai on March 6, 2014 at 9:30pm — 5 Comments
तुम गुलगुल गद्दा पर सोवौ, हमका खटिया नसीब नाहीं।
तुम रत्नजड़ित कुर्सिप बैठौ, हमका मचिया नसीब नाहीं।
तुम भारत मैया के सपूत, हम बने रहेन अवधूत सदा।
तुमरी बातेन का करम सोंचि, हम कहेन हमें है इहै बदा।
हर बातन मां तुम्हरी हम तौ, हां मां हां सदा मिलावा है।
तुमका संसद पहुंचावैक हित, तौ मारपीट करवावा है।
तबकी चुनाव मां बूथ कैंप्चरिंग, किहा रहै तौ अब छूटेन।
तुम्हरे उई दुईसौ रुपया मां, जेलेम खालर चुनहीं ठोकेन।
तुम निकरेव…
Added by Atul Chandra Awsathi *अतुल* on March 6, 2014 at 9:00pm — 2 Comments
राजनीति में पार्टियाँ निभा रहीं पहचान
डंडे पत्थर गालियों का आदान-प्रदान
जो बोले तू झूठ वो मैं बोलूँ वो तथ्य
लफ़्फ़ाज़ी के रंग में लिपा-पुता हर कथ्य
झंडे टोपी भीड़ से रोचक दिखे प्रसंग
देख जमूरा नाचता पब्लिक होती दंग …
Added by Saurabh Pandey on March 6, 2014 at 6:30pm — 20 Comments
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