For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ABHISHEK SHUKLA
  • Male
  • meerut
  • India
Share on Facebook MySpace
 

ABHISHEK SHUKLA's Page

Profile Information

Gender
Male
City State
SIDDHART NAGAR
Native Place
SHOHRAT GARH
Profession
LAW
About me
Being lawyer and Born author.

दिमाग की बत्ती

पिछले कुछ दिनों से मेरे मन में एक प्रश्न कौंध रहा है  सही और गलत के परिभाषा को लेकर. सही क्या है और गलत क्या है इसके अतरिक्त  कुछ सोच नहीं पा रहा हूँ. कभी तर्क साथ छोड़ रहा है तो कभी बुद्धि सौतेला व्यवहार क़र रही है.बुद्धि और तर्क दोनों का ताल-मेल विगत कुछ दिनों से असंतुलित है. क्या कहुँ मेरा मस्तिष्क दो परस्पर विपरीत दिशा में काम क़र रहा है, एक वाला सही  खोजने में जुटा है वहीँ  दूसरा न जाने कहाँ से खोज-खोज क़र गलतियाँ ला रहा है. दिमाग की बत्ती जो पहले थोड़ी सांस भर रही थी अब बुझने के कगार पे  है. भ्रम से उपजे भावों ने मुझे विवेक शून्य बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है.
                मैंने बुद्धिजीवियों से संपर्क किया समाधान की प्रत्याशा लिए ; पर ऐसे कठिन उत्तर मिले कि उन्हें न समझना ही मुझे बेहतर लगा . मैं तो समाधान कि आस लिए गया था पर ज्ञान की ऐसी गठरी मेरे ऊपर फेंकी गयी कि मैं  संभाल नहीं पाया. क्या करूँ मेरे  समझने की क्षमता बड़ी सीमित है.बढ़ाने का प्रयत्न क़र रहा हूँ पर समझ मुझसे दूर भाग रही है.
ऐसा अक्सर होता है जब हम किसी बुद्धिमान व्यक्ति से अपने समस्या का समाधान चाहते हैं तो एक हज़ार सलाह और मशवरे  मुफ्त में मिल जाते हैं जो कहीं से भी प्रासंगिक नहीं कहे जा सकते, पर ज्ञानियों को समझाए कौन? उनका कहना जनता के लिए'' वेद-वाक्य''. वैसे भी ज्ञानियों की हाँ में हाँ मिलाने से हम निरर्थक बहस से बच जाते हैं. एक व्यथित व्यक्ति बहस करके और दुःख भला क्यों मोल ले?

मैंने अपने बड़ों से सुन रखा है कि समय के पास हर प्रश्न का समाधान होता है मैं भी प्रतीक्षा में हूँ कि कब मेरा समय आये और लगे हाथ कुछ सवाल करूँ ''समय'' से. समय के पास समय रहा तो जरूर बतायेगा अन्यथा ठेंगा दिखा के निकल लेगा.
 मेरे एक वरिष्ठ मित्र हैं उन्होंने   मुझे समझाया जिसे मैं अक्षरशः नीचे लिख रहा हूँ. इनका जवाब मुझे काफी अच्छा लगा   -'' यूँ तो सही कभी-कभी गलत लगता है और गलत कभी-कभी सही लगता है, सब समय का रचा चक्र है और इस चक्र को  जो छीनी-हथौड़ी से गढ़ने बैठ जाते हैं उनका बेडा पार हो जाता है और जिन्हे  छीनी-हथौड़ी से परहेज होता है वो किनारे पे चक्कर मारते हैं कि इस बार चक्र पर  चढ़ जाऊँगा पर अफ़सोस औधें मुंह गिरते हैं. कूदने वाले को गलत नहीं कहा जा सकता क्योंकि उतावलापन इंसानी फितरत है और फितरत की बात ही निराली है.''
   इतनी बातें सुन कर मेरे दिमाग की बत्ती तो गुल हो गयी जलाने की कोशिश क़र रहा हूँ पर हवा तेज़ है, बत्ती बुझ जा रही है, आप जलाये रखिये! उम्मीद है फिर मिलेंगे, शायद तब तक मेरे सवाल का जवाब मुझे मिल जाए...http://www.omjaijagdeesh.blogspot.com

(published on my blog)

ABHISHEK SHUKLA's Blog

कुछ भी

कभी-कभी खुद से बात करना
भी बड़ा अजीब सा होता है
कभी-कभी खुद को
सुनने का मन नहीं करता
जब सच खुद से बोला नहीं जा सकता
और
झूठ में जीना
मुश्किल लगता है.

ये मेरी अप्रकाशित रचना है.

अभिषेक शुक्ल 

Posted on August 29, 2016 at 5:10pm — 1 Comment

धोखा

ये लोक तंत्र है

कहने के लिए

हम चुनते हैं 

अपना प्रतिनिधि

वोट देकर 

संविधान द्वारा स्थापित 

प्रक्रिया 

का सम्मान कर कर 

लोकतंत्र की गरिमा 

का 

मन रख,

पर मिलता है हमें

धोखा

सरकार बने

फिर कैसी जनता

कैसा जनतंत्र?

संविधान हमारा 

छत है

धुप, बारिश, पानी

सबसे बचाना इसका 

काम है

पर अब 

लगता है की 

इस छतरी में छेद है.

जिसका पैसा 

उसका कानून

और

फैसले भी उसके 

पक्ष में.

क्या यही अवधारणा…

Continue

Posted on April 21, 2014 at 12:44am — 5 Comments

Comment Wall

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

  • No comments yet!
 
 
 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
7 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
21 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Nov 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service