मेलबोर्न, औस्ट्रेलिया यात्रा का एक सुखद संस्मरण बाँटना चाहूँगी । जैसे मै भीगी आपको भी यादों की बारिश में भिगोना चाहूँगी . बड़ी -बड़ी मिलों , कारखानों वाले क्षेत्रों को पार करते हुए , नेशनल पार्क में संरक्षित ,सड़कों के किनारे लगाई गई फेंसिंग के समीप तक आ गए कंगारुओं के झुण्ड का विहंगम अवलोकन करते हुए हम प्राचीन गाँव सोरेन्टो आ गए। . इतिहास को गर्भ में रखे हुए ऑस्ट्रेलियाई सभ्यता व् संस्कृति का भरपूर जायज़ा यहां लिया जा सकता है। यहाँ का समुद्री तट भी उतना ही रम्य.
सागर के सीने पे…
Added by mrs manjari pandey on July 15, 2014 at 2:30pm — 3 Comments
“आज तो आप कुछ ज्यादा ही देर से आईं है, आपने तीन पीरीयड मिस कर दिए" सरकारी स्कूल की अध्यापिका ने दूसरी अध्यापिका से कहा
“क्या बताऊँ, मुन्ने के स्कूल में आज ‘पेरेन्ट-टीचर मीट’ थी, सो वहाँ जाना बहुत ही जरूरी था, अब आप तो जानती ही हैं कि कान्वेंट स्कूलों में अनुशासन का कितना ध्यान रखा जाता है।”
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by Ravi Prabhakar on July 15, 2014 at 12:30pm — 7 Comments
2122 2122 2122 2122
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चल पड़ी नूतन हवा जब से शहर की ओर यारो
गाँव के आँगन उदासी, भर रही हर भोर यारो
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अब बुढ़ापा द्वार पर हर घर के बैठा है अकेला
खो गया है आँगनों से बचपनों का शोर यारो
**
ढूँढते तो हैं शिरा हम, गाँव जाती राह का नित
पर यहाँ जंजाल ऐसा मिल न पाता छोर यारो
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हो गये कमजोर रिश्ते, अब दिलों के धन की खातिर
मंद झोंके भी चलें तो टूटती हर डोर …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 15, 2014 at 11:08am — 11 Comments
2122 2122 2122 2
कोई तो मंज़र कभी अच्छा दिखाई दे
एक तो आदम कभी सच्चा दिखाई दे
आपा धापी से लगे हैं पस्त हर कोई
कोई तो मिल जाये जो ठहरा दिखाई दे
उथलों में कब ठहरा है बरसात का पानी
ढूँढता है ताल , जो गहरा दिखाई दे
भावनायें गूंगी हो कोनों में हैं सिमटीं
शब्द क़ैदी सा लगा, पहरा दिखाई दे
कोयला जो राख के नीचे दबा था कल
ये हवा कैसी ? कि वो दहका दिखाई दे…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on July 15, 2014 at 11:00am — 21 Comments
आई बरखा झूमती
कलियों का मुख चूमती
पवन झकोरे सर-सर करते
डाली –डाली झूमती
आँगन की महके है माटी
गमले में तुलसी लहराती
बैठ झरोके टुक –टुक देखूँ
भीगी मोरें नाचती
अंबर पर मेघों का पहरा
श्याम रंग फैला है गहरा
मेघों की धड़के है छाती
पपीहा टेर सुहाती
महक उठी कृषकों की पौरें
धीमी हो गई रहट की दौड़ें
गीली हो गई दिन और रातें
नई उमंगें झाँकती
मौलिक व…
ContinueAdded by kalpna mishra bajpai on July 14, 2014 at 11:00pm — 10 Comments
ऊपर क्या है
सुनील आसमान I
तारक , सविता , हिमांशु
सभी भासमान I
बीच में क्या है ?
अदृश्य ईथर
कल्पना हमारी I
क्योंकि
ध्वनि और प्रकाश
नहीं चलते बिना माध्यम के
वैज्ञानिक सोच है सारी I
नीचे क्या है ?
सर ,सरि, सरिता, समुद्र, जंगल, झरने
उपवन में है पंकज, पाटल ,प्रसून
आते है मिलिंद, मधु-कीट, बर्र
तितलियाँ रंग भरने I
चारो ओर मैदान, पठार .पर्वत, प्रस्तर
घाटी, गह्वर,…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 14, 2014 at 3:30pm — 21 Comments
वो घर ग़मज़दा था
ग़म का मैक़दा था
कुछ चिंगारियां थी
बाकी तो धुंआ था
हवा की सरसराहट
अजब सन्नाटा था
दरो दीवार सीली थी
वो रात भर रोया था
शक इक वज़ह थी
घर बिखर गया था
.
मुकेश इलाहाबादी ---
मौलिक/अप्रकाशित
Added by MUKESH SRIVASTAVA on July 13, 2014 at 11:00pm — 8 Comments
सुपरिष्कृत आस्था
भर्रायी आवाज़
महीने हो गए जाड़े को गए
क्यूँ इतनी ठिठुरन है आज
आस्था में, सचेतन में मेरे
आंतरिक शोर के ताल के छोर से छोर तक
ठेलती रही है आस्था मुझको, मैं इसको
पर आज बुखार में…
ContinueAdded by vijay nikore on July 13, 2014 at 8:00pm — 22 Comments
2122/ 2122/ 2122/ 212
इस ख़मोशी से कभी तो एक मुबहम शोर से
दिल धड़कने लगता है क्यूँ मेरा इतनी ज़ोर से
कौन सा है रास्ता महफूज़ जाऊँ किस तरफ़
आफ़तें तो आफ़तें हैं आयें चारों ओर से
एक झटके में बिखर जाते हैं रिश्ते टूटकर
इतना क्यूँ मुश्किल इन्हें है बाँधना इक डोर से
और कितने राज़ अँधेरा अब छुपा ही पाएगा
इक किरण उठने लगी आफ़ाक़ के उस छोर से
बेसदा टूटा है दिल मेरा ये हालत हो गई
आँसुओं के नाम पर…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on July 13, 2014 at 7:45pm — 17 Comments
२१२२ २१२२ २…
ContinueAdded by gumnaam pithoragarhi on July 13, 2014 at 1:01pm — 8 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on July 13, 2014 at 10:39am — 6 Comments
खिली रातरानी यहाँ,हुई रुपहली रात!
कानों में आ फिर कहो,वही प्यार की बात !!
अधरों से बातें करें,नयनों से आदेश!
घायल कर जाती सदा,झटके जब वे केश !!
कर में कर लेकर किया,हमने यूँ अनुबंध!
खिला रहे फूले फले,प्यारा मृदु सम्बन्ध !!
वही रुपहली रात है,सुन्दर सुखद प्रभात!
लेकिन तुम बिन हो प्रिये,किससे मन की बात !!
दीवाना कुछ यूँ हुआ,न दिवस दिखे न रात !
खुद से ही करने लगा,बहकी बहकी…
Added by ram shiromani pathak on July 12, 2014 at 6:00pm — 7 Comments
तुम्हारे फूल अलग रंग के क्यों लग रहे हैं आज
पत्तों का आकार भी बदला बदला सा है
तुम्हारे फूल और पत्ते ऐसे तो उगते न थे
पोषण किसी और श्रोत से तो प्राप्त नहीं करने लगे
जड़ या तना बदल तो नहीं लिया है तुमने
बेतुक की बडिंग तो नहीं करवा ली है
किसी और प्रजाति के पौधे से
प्रजातियाँ अच्छी बुरी तो नहीं होतीं
सभी अपनी जगह ठीक होतीं हैं
पर अपनी, अपनी होती है
तुक की होती है !
बात केवल स्वतंत्रता पर खत्म…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on July 12, 2014 at 9:00am — 18 Comments
" मेरे पास समय बहुत कम है , डाक्टर ने बता दिया है कि कैंसर अपने आखिरी स्टेज में है , प्लीज बेटे को बुला लो अब" | पापा की दर्द भरी आवाज सुनकर वो अपने आप को रोक नहीं सकी , आँसू बेशाख्ता आँखों से बह निकले | माँ तो जैसे जड़ हो गयी थी , सिर्फ सूनी सूनी आँखों से कभी पापा को , तो कभी उसे देखती रहती |
कैसे बताये उनको , कल ही तो उसने फोन किया था भाई को | पूरी बात सुनने से पहले ही बोल पड़ा " मैं बार बार नहीं आ सकता वहां , अभी १५ दिन पहले ही तो आया हूँ | इतनी छुट्टी नहीं मिल सकती मुझे , और हाँ…
ContinueAdded by विनय कुमार on July 12, 2014 at 4:30am — 15 Comments
२२ २२ २२ २२ २२ २२ २
पीते अश्क़ समंदर के आवारा ये बादल
लुटते हैं दुनिया के लिए हमेशा ये बादल
माँगा नहीं हिसाब कभी अपने अहसानो का
निभा रहे हैं दस्तूर भी निराला ये बादल
हर एक चेहरे पर देखो प्यास झुलसती सी
किसकी प्यास बुझाए एक अकेला ये बादल
कभी रुलाये कभी हसए बतियाये संग में
कजरारी आँखों की याद दिलाता ये बादल
गरजकर सुनाये हाले दिल भी अपना लेकिन
सब दरवाजे बंद खड़ा तनहा ये बादल
दुनिया में…
ContinueAdded by gumnaam pithoragarhi on July 11, 2014 at 4:00pm — 7 Comments
१२२/१२२/१२२/१२२
.
न कोई कशिश है न कोई ख़ला है,
ये दिल बावला था ये दिल बावला है.
.
गुनहगार ग़ैरों को क्यूँ कर कहें हम,
वो थे लोग अपने जिन्होंने छला है.
.
टटोला कई बार ख़ुद को तो पाया,
जहाँ धडकने थीं वहाँ आबला है..... आबला- छाला
.
चढ़ा था नज़र में, जिगर तक न पहुँचा,
नज़र से जिगर तक बड़ा फ़ासला है.
.
उठाऊंगा मुद्दा क़यामत के दिन ये,
मेरे हक़ का हर फ़ैसला क्यूँ टला है.
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समझना है मुश्किल…
ContinueAdded by Nilesh Shevgaonkar on July 11, 2014 at 2:30pm — 20 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on July 11, 2014 at 1:54pm — 10 Comments
“बेटा..! ऐसा मत कर, फेंक दे ये ज़हर की बोतल I ले हमने जमीन के कागज़ पर दस्तख़त कर दिए हैं. जा, अब मर्ज़ी इसे बेच या रख। बस अपनी पत्नी और बच्चों के साथ ख़ुशी से रह । हमारा क्या है बेटा, हम कुछ दिन के मेहमान हैं,जी लेंगे जैसे-तैसे...” माँ रुंधे हुए गले से कहा.
सभी निगाहें बेटे पर केंद्रित थीं जो जहर की बोतल को आँगन में ही फेंक दस्तखत किये हुए कागजों को समेटने में व्यस्त था. लेकिन उसी बोतल को उठाकर अपनी कोठरी में ले जाते बापू पर किसी की भी नज़र नही पडी थी.
…
ContinueAdded by जितेन्द्र पस्टारिया on July 11, 2014 at 11:30am — 30 Comments
दूब का चरित्र
दूब का चरित्र देखो, आम जन जैसा है,
सुख दुःख से विरक्त, संत मन जैसा है.
झुलसे न ग्रीष्म में भी, ओस को सम्हाल रही
ढांक ले मही को मुदित, पहली बौछार में ही
दूब अग्र तुंड को, चढ़ावे विप्र पूजा में,
जैसे हो नर बलि, स्वांग यह कैसा है ! दूब का चरित्र देखो, आम जन जैसा है,
गाय चढ़े, चरे इसे, बकरियों भी खाती है,
खरगोश के बच्चे को, मृदुल दूब भाती है.
क्रीडा क्षेत्र में भी, बड़े श्रम से पाली जाती है
देशी या…
ContinueAdded by JAWAHAR LAL SINGH on July 11, 2014 at 10:30am — 13 Comments
" क्या बात है वर्माजी , बड़े खुश नज़र आ रहे हैं आप , कोई लाटरी तो नहीं लग गयी इस उम्र में" |
" नहीं भाई , दरअसल अख़बार में खबर थी कि एक वृद्धाश्रम बन रहा है अपने शहर में , अब कम से कम बाक़ी जिंदगी तो अपनों में गुजरेगी "|
मौलिक एवँ अप्रकाशित
Added by विनय कुमार on July 11, 2014 at 2:30am — 10 Comments
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