दुष्ट दुर्जन पशु बराबर हो गए,
आज कल इंसान पत्थर हो गए,
क़त्ल चोरी रेप दंगो के विषय,
सुर्ख़ियों में आज ऊपर हो गए,
स्वार्थ से कोमल ह्रदय को सींचकर,
प्रेम से वंचित हो ऊसर हो गए,
अंततः जब सत्य मैंने कह दिया,
प्राण लेने को वो तत्पर हो गए,
ढह गई दीवार आदर भाव की,
प्रेम के आवास खँडहर हो गए,
पथ प्रदर्शक जो कभी थे साथ में,
राह में वो आज ठोकर हो गए,
जो समय के साथ चलते हैं नहीं,
एक दिन वो बद से बदतर हो…
Added by अरुन 'अनन्त' on July 7, 2014 at 3:00pm — 22 Comments
२१२२, ११ २२, ११२२, २२/ ११२
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आप का, ग़म में हमारे कभी शामिल होना,
अपनी क़िस्मत में नहीं था ये भी हासिल होना.
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ये सफ़र ज़ीस्त का था, साथ चली रुसवाई,
देखना बाक़ी रहा...राह का मंज़िल होना.
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इक सफ़र चलता रहा उसके फ़ना होने तक,
एक हसरत थी लहर की, कभी साहिल होना.
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जश्न में डूबे हुए दिल में ख़लिश थी हरदम,
रोज़ महसूस किया, याद का...महफ़िल होना.
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बोझ नाक़ाम सी हसरत का उठाकर देखो,
कितना आसान है आसान का मुश्किल…
Added by Nilesh Shevgaonkar on July 7, 2014 at 2:00pm — 21 Comments
इक बार आ उस माँ से मिला दे मुझे ……
वक्त तेरे दामन . को मोतियों से भरूँ
इक बार बीते लम्हों से मिला दे मुझे
थक गया हूँ बहुत ..बिछुड़ के जिससे
इक बार आ उस माँ से मिला दे मुझे
इक बार आ उस माँ से मिला दे मुझे
पंथ के शूलों से हैं रक्त रंजित ये पाँव
नहीं दूर तलक कोई ममता का गाँव
अश्रु अपनी हथेली पे ले लेती थी जो
उस आँचल की छाँव में छुपा दे मुझे
इक बार आ उस माँ से मिला दे मुझे
मेरी अकथ व्यथा को पढ़ लेती थी…
Added by Sushil Sarna on July 7, 2014 at 12:30pm — 16 Comments
१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
ज़रा सी बात पर अनबन, भरोसे टूट जाते हैं
कि साथी सात जन्मों के पलों में छूट जाते हैं
ये दिल का मामला प्यारे नहीं दरकार पत्थर की
ज़रा सी बेरुखी से ही ये शीशे फूट जाते हैं
ये ऐसा दौर है साहिब कि आँखें खोल हम सोये
मगर हद है लुटेरे सामने ही लूट जाते हैं
ये माना बेखुदी में हो मगर कुछ होश भी रखना
बहुत जल्दी ही ख्वाबों के घरौंदे टूट जाते हैं
खुदी में दम…
ContinueAdded by sanju shabdita on July 6, 2014 at 9:26pm — 30 Comments
१२१२ ११२२ १२१२ २२/११२
अभी सुहाग कि मेहंदी हटीं न हाथों से
जहर उगलने लगे हैं बशर तो बातों से
जो घूमते थे सदा तान सीना जंगल में
वो शेर टूटे हैं जंगल में अपनी मातों से
हयात रो के गुजारी तमाम जनता नें
कहाँ ये लात के हैं भूत मनते बातों से ?
सुना है आज वो संसद है इक मंदिर सी
सुना था पहले जो चलती थी घूंसे लातों से
गले न मिलते हैं अब लोग इस सियासत में
कहीं न छीन ले कुर्सी ही कोई घातों…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on July 6, 2014 at 7:56pm — 8 Comments
बह्र : २१२ २१२ २१२
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जाल सहरा पे डाले गए
यूँ समंदर खँगाले गए
रेत में धर पकड़ सीपियाँ
मीन सारी बचा ले गए
जो जमीं ले गए हैं वही
सूर्य, बादल, हवा ले गए
सर उन्हीं के बचे हैं यहाँ
वक्त पर जो झुका ले गए
मैं चला जब तो चलता गया
फूट कर खुद ही छाले गए
जानवर बन गए क्या हुआ
धर्म अपना बचा ले गए
खुद को मालिक समझते थे वो
अंत में जो निकाले…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 6, 2014 at 2:00pm — 24 Comments
मैंने हिटलर को नहीं देखा
तुम्हें देखा है
तुम भी विस्तारवादी हो
अपनी सत्ता बचाए रखना चाहते हो
किसी भी कीमत पर
तुम बहुत अच्छे आदमी हो
नहीं, शायद थे
यह ‘है’ और ‘थे’ बहुत कष्ट देता है मुझे
अक्सर समझ नहीं पाता
कब ‘है’, ‘थे’ में बदल दिया जाना चाहिए
तुम अच्छे से कब कमतर हो गए
पता नहीं चला
एक दिन सुबह
पेड़ से आम टूटकर नीचे गिरे थे
तुम्हें अच्छा नहीं लगा
पतझड़ में…
ContinueAdded by बृजेश नीरज on July 6, 2014 at 1:30pm — 46 Comments
2122 2122 2
कुछ परायी कुछ हमारी सी
ज़िन्दगी क्यूँ है उधारी सी
अश्क़ों की नदियाँ थमीं तो हैं
सिसकियाँ अब तक हैं जारी सी
लोग कहते हैं कि जी ली, पर
ज़िन्दगी लगती गुजारी सी
बदलियों के सामने क्यों धूप
हो रही है इक भिखारी सी
आसमाँ रोया बहुत था कल
आज सूरत है निखारी सी
हर तरफ़ घायल हुआ हूँ मै
बात शायद थी दुधारी…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on July 6, 2014 at 12:04pm — 28 Comments
"तड़ाक !"
थप्पड़ बड़े जोर का था और साहब की उतनी ही तीखी आवाज़
"खाने में फिर बाल , दिखाई नहीं देता तुमको "|
बाई भी सहम गयी और सोचने लगी कि कल तो मेमसाब कह रहीं थीं कि कैसा मर्द है तुम्हारा, तुमको पी कर पीटता है , और साहब ने तो आज पी भी नहीं है |
( मौलिक और अप्रकाशित )
Added by विनय कुमार on July 6, 2014 at 11:30am — 11 Comments
हैप्पी इंडिपेंडेंस डे , आज़ादी की वर्षगांठ मुबारक | आतिशबाजियां छुड़ाते और एक दूसरे को मिठाई खिलाते हुए लोग चिल्ला रहे थे और एक दूसरे को इंडिपेंडेंस डे की शुभकामना भी दे रहे थे |
और सामने की मिठाई की दुकान पर छोटू दौड़ दौड़ कर लोगों को पानी दे रहा था और टेबल साफ़ कर रहा था |
( मौलिक और अप्रकाशित )
Added by विनय कुमार on July 6, 2014 at 12:30am — 14 Comments
हवा का शौक जब पर कुतरना हो गया है
तभी से इंकलाबी परिन्दा हो गया है
वो मेरी रहगुजर का उजाला हो गया है
उसे है जब भी देखा सवेरा हो गया है
तुम्हारे बिन गुजारा हमारा हो गया है
हमें जीनें का पक्का इरादा हो गया है
यहाँ बस्ती जली थी औ' ये अख़बार चुप था
तिरा आना ख़बर में धमाका हो गया है
शराफ़त,सच व ईमां हो सीरत आदमी की
मियाँ किस वहम में हो तुम्हें क्या हो गया है
ये मौसम संगदिल है या सूरज की…
ContinueAdded by भुवन निस्तेज on July 5, 2014 at 11:00pm — 17 Comments
गीतिका छन्द......पीपल का वृक्ष
सत्य संकल्पों सहित इक बीज बोया था कभी।
ब्रह्म का अवतार हितकर पूजते पीपल सभी।।
चंचला हैं पत्र निश्छल शक्ति शाखा भॉंपते।
छॉंव शीतल भाव भर कर शांति-सुख नित बॉंटते।।1
देव का उपकार पीपल दु:ख दारूण काटता।
सूर्य-शनि से मुक्त करके दीप लौ को साधता।।
वासना दूषित मन: को सत्य का परिणाम दे।
भूत-प्रेतों को शरण रख मुक्ति आठो याम दे।।2
कामना फलती सदा यदि साधना सत्कार हो।
धैर्य-साहस-चेतना गुण शोध का आधार…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on July 5, 2014 at 8:30pm — 14 Comments
भुलाये तो भुलाये हम तुम्हारे प्यार को कैसे
सुनाये हाल दिल का हम बता संसार को कैसे
चली जाना जरा रुक जा मनाने दे हमें खुशियाँ
बिना तेरे मनायेगें किसी त्यौहार को कैसे
लुटा कर जान भी अपनी बचा पाते मुहब्बत को
मिले खुशियाँ हमें कितनी बताये यार को कैसे
करो नफरत भले हमसे हमारी बात सुन लो तुम
गिराये आज नफरत की खड़ी दीवार को कैसे
नहीं दिखता जनाजा क्या तुझे अब जा चुके है हम
दिखाओगी भला अब तुम किये श्रृंगार को…
Added by Akhand Gahmari on July 5, 2014 at 5:19pm — 8 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on July 5, 2014 at 1:00pm — 13 Comments
“बहन ! ये औरतें गठड़ियों में क्या ले जा रही हैं ?”
”विधवा औरतों के लिए कैंप लगा है, वहां उन्हें महीने भर का राशन बांटा जा रहा है।”
पिछले तीन दिन से भूखी सुखिया ने नशे में धुत्त लेटे अपने पति को ऐसे देखा मानो आज उसे अपने “सुहागन” होने पर पछतावा हो रहा था.
(मौलिक और अप्रकाशित)
Added by Ravi Prabhakar on July 5, 2014 at 1:00pm — 9 Comments
१
देखूँ इसको मै शरमाऊं
मन का सारा हाल सुनाऊ
सांझ सवेरे इसको अर्पण
का सखी साजन ?ना सखि दर्पण
२.
चूमे होंठ लाल कर जाए
मन में शीतलता भर जाए
उस पल रहे ना कोई भान
का सखि साजन ? ना सखि पान
3.
लम्बा है इतना जैसे ऊँट
पहना नहीं है कोई सूट
तन के खड़ा है जैसे बन्ना
का सखि साजन ?ना सखी गन्ना
---------पारुल'पंखुरी'
(मौलिक औए अप्रकाशित)
Added by parul 'pankhuri' on July 5, 2014 at 10:00am — 15 Comments
2121 222 2121 222
मानसूनी बारिश के, क्या हसीं नज़ारे हैं।
रंग सारे धरती पर, इन्द्र ने उतारे हैं।
छा गया है बागों में, सुर्ख रंग कलियों पर,
तितलियों के भँवरों से, हो रहे इशारे हैं।
सौंधी-सौंधी माटी में, रंग है उमंगों का,
तर हुए किसानों के, खेत-खेत प्यारे हैं।
मेघों ने बिछाया है, श्याम रंग का आँचल,
रात हर अमावस है, सो गए सितारे हैं।
सब्ज़ रंगी सावन ने, सींच दिया है…
Added by कल्पना रामानी on July 5, 2014 at 9:30am — 10 Comments
बीबी जी, आप नौकरी क्यों करते हो ? आपके पास तो पैसे की कोई कमी नहीं है |"
"पैसा ही सब नहीं होता रे जिंदगी में, आखिर इतनी पढ़ाई लिखाई कब काम आएगी" मैंने अपनी काम वाली बाई को समझाते हुए कहा.
अभी कुछ दिन पहले ही जब उसने तनख्वाह बढ़ाने की प्रार्थना की थी मैंने बड़े ही कठोर लहजे में मना कर दिया था | आज शायद पढ़ाई लिखाई का महत्त्व बाई की समझ में आ गया था |
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by विनय कुमार on July 5, 2014 at 3:00am — 15 Comments
सपनो का गाँव,
पीपल की छावो,
नदी का वह तट ,
नहाती जहाँ झट -पट
किनारे के लोग कभी
नहीं देखते थे एकटक .
बदल गए वो भाव
बदल गया गाँव,
झूमर औ गीत गए
रिश्ते अब रीत गए
लक्ष्मी जब भाग गई
आँखों की लाज गई
अब दीदे हुए बेशर्म
गाँव का माहौल गर्म
आतंक, भूख , भय
राजनीती देती प्रश्रय
सुख गए अब खेत,
माटी बन गई रेत,
भागे सब शहर को
कौन करे अब सेत.
पसर रहा है मौन
जिम्मेवार है कौन?
विजय प्रकाश…
Added by Dr.Vijay Prakash Sharma on July 4, 2014 at 11:47pm — 15 Comments
1.
खर्चा-आमद एक सा, क्या नफरत क्या प्यार
छाना-फूँका पी लिया, फिर चिंता क्या यार
फिर चिंता क्या यार, गजब हूँ धुन का पक्का
रह-रह चढ़े तरंग, जगत भी हक्का-बक्का
रहता मस्त-मलंग, फाड़ता रह-रह पर्चा
और खुले ये हाथ, यहीं हर…
Added by Saurabh Pandey on July 4, 2014 at 10:00pm — 24 Comments
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