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दिल धड़कने लगता है क्यूँ मेरा इतनी ज़ोर से-ग़ज़ल

2122/ 2122/ 2122/ 212

इस ख़मोशी से कभी तो एक मुबहम शोर से

दिल धड़कने लगता है क्यूँ मेरा इतनी ज़ोर से

 

कौन सा है रास्ता महफूज़ जाऊँ किस तरफ़

आफ़तें तो आफ़तें हैं आयें चारों ओर से

 

एक झटके में बिखर जाते हैं रिश्ते टूटकर

इतना क्यूँ मुश्किल इन्हें है बाँधना इक डोर से

 

और कितने राज़ अँधेरा अब छुपा ही पाएगा

इक किरण उठने लगी आफ़ाक़ के उस छोर से

 

बेसदा टूटा है दिल मेरा ये हालत हो गई

आँसुओं के नाम पर टपका लहू बस कोर से*

 

मुबहम =अस्पष्ट, आफ़ाक़ =दुनिया

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Comment by Saurabh Pandey on July 21, 2014 at 10:39pm

ग़ज़ल तो काबिले तारीफ़ तो है ही, विशेषकर मतले ने दिल खुश कर दिया, शिज्जू भाईजी.

दाद कुबूल करें..

Comment by mrs manjari pandey on July 17, 2014 at 8:09pm
आदरणीय शिज्जू शकूर जी उम्दा ग़ज़ल.

कौन सा है रास्ता महफूज़ जाऊँ किस तरफ़
आफ़तें तो आफ़तें हैं आयें चारों ओर से

एक झटके में बिखर जाते हैं रिश्ते टूटकर
इतना क्यूँ मुश्किल इन्हें है बाँधना इक डोर से

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Comment by शिज्जु "शकूर" on July 15, 2014 at 4:20pm

आदरणीय गुमनाम जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया


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Comment by शिज्जु "शकूर" on July 15, 2014 at 4:19pm

आदरणीय कल्पना जी आप जैसी वरिष्ठ रचनाकार की सराहना से उत्साह दोगुना हो जाता है आपका हार्दिक आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 15, 2014 at 4:18pm

आदरणीय गिरिराज सर रचना की सराहना के लिये आपका तहेदिल से शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 15, 2014 at 4:17pm

आदरणीय करुण सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by gumnaam pithoragarhi on July 15, 2014 at 4:06pm

एक झटके में बिखर जाते हैं रिश्ते टूटकर

इतना क्यूँ मुश्किल इन्हें है बाँधना इक डोर से

"बेसदा टूटा है दिल मेरा ये हालत हो गई

आँसुओं के नाम पर टपका लहू बस कोर से

बहुत बधाई ॥

Comment by कल्पना रामानी on July 14, 2014 at 10:50pm

एक झटके में बिखर जाते हैं रिश्ते टूटकर

इतना क्यूँ मुश्किल इन्हें है बाँधना इक डोर से.....वाह! क्या शानदार शेर कहा है

इस सुंदर गजल के लिए आपको बहुत बधाई आदरणीय शिज्जु जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 14, 2014 at 9:12pm

आदरणीय शिज्जु भाई , बहुत उम्दा ग़ज़ल कही है , आपको दिली बधाइयाँ ॥

एक झटके में बिखर जाते हैं रिश्ते टूटकर

इतना क्यूँ मुश्किल इन्हें है बाँधना इक डोर से ---- लाजवाब बात कही भाई , बहुत बधाई ॥

Comment by Santlal Karun on July 14, 2014 at 8:06pm

आदरणीय शिज्जू शकूर जी,

उम्दा ग़ज़ल, विशेष रूप से यह शेर --

"बेसदा टूटा है दिल मेरा ये हालत हो गई

आँसुओं के नाम पर टपका लहू बस कोर से"

 ...हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ !

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