चुभन मत याद रखना तुम मिली जो खार से यारो
रहे बस याद फूलों की मिले जो प्यार से यारो
*****
नहीं शिव तो हुआ क्या फिर उपासक तो उसी के हम
गटक लें द्वेष का विष अब चलो संसार से यारो
*****
न समझो हक तम्हें तब तक सुमारी दोस्तो में है
रखो गर दुश्मनी भी तो मिलो अधिकार से यारो
*****
हमें जल के ही मरना था जलाया नीर ने तन मन
खुशी दो पल रही केवल बचे अंगार से यारो
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भरत वो हो नहीं सकता सदा …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 2, 2015 at 11:00am — 11 Comments
२२२२ २२२२ २२२२ २
शर्मिंदा आज किसी रूह की पैदाइश होगी---रूह में ह साइलेंट है
गैरों के आगे फिर सूरत की नुमाइश होगी
फिर से टूटेगा रब की रहमत का देख भरम
फिर आज किसी की किस्मत की आजमाइश होगी---(आजमाइश की मात्रा गिराकर अजमाइश किया है)
ज़र्रे ज़र्रे में महकेगी दौलत की खुशबू
नजरों नजरों में फिर कोई फर्माइश होगी
हँस हँस के मिटेगी जल जल के लुटेगी रात शमा
धज्जी धज्जी…
ContinueAdded by rajesh kumari on March 2, 2015 at 10:30am — 24 Comments
छन्द – छन्न पकैया
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छन्न पकैया छन्न पकैया , होली फिर से आई
बूढ़े बाबा की भी देखो , जागी है तरुणाई
छन्न पकैया छन्न पकैया , रंग प्यार का लेके
लूले लंगड़े भी दौड़े जो , चलते हैं ले दे के
छन्न पकैया छन्न पकैया, होली बड़ी निराली
कौवा रंग लगा के पूछे , कैसी लगती लाली
छन्न पकैया छन्न पकैया , आ जा भंग चढ़ायें
फिर बैठे बैठे घर में ही, आसमान तक जायें
छन्न पकैया छन्न पकैया , सूना…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on March 2, 2015 at 10:30am — 28 Comments
२११-२११-२११-२११-२११-२११
होली का कुछ और मज़ा था उस बस्ती में
जश्न नहीं था एक नशा था उस बस्ती में
दिल के जंगल में यादों के टेसू लहके
तेरा मेरा प्यार नया था उस बस्ती में
शहरों में क्या धूम मचेगी, होली पर वो
भांग घुटी थी रंग जमा था उस बस्ती में
चंग बजाते घर घर जाते रसियों के दल
हरदम दिल का द्वार खुला था उस बस्ती में
जोश युवाओं का भी ठंडा ठंडा है अब
बूढों का भी जोश युवा था उस बस्ती…
ContinueAdded by khursheed khairadi on March 1, 2015 at 9:00pm — 21 Comments
जनमत जिसके साथ में, उसकी होती जीत,
अहंकार जिसने किया, जनता करे न प्रीत |
जनता करे न प्रीत, जीत न उसे मिल पाए
जो भी चाहे जीत, काम जनता के आए
कह लक्ष्मण कविराय, मिटावे दिल से नफरत
जनहित की हो सोच, उसे ही मिलता जनमत |
दिल में भाव अभाव है,कोरा है वह चित्र
दुख में कभी न छोड़ता,वह है सच्चा मित्र |
वह है सच्चा मित्र, श्रेय न कभी वह लेता
कपट धूर्तता बैर, पास न फटकने देता
लक्ष्मण देती साथ,ह्रदय से पत्नी इसमें
रहे…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 1, 2015 at 7:30pm — 19 Comments
मैं हिला तक नहीं हूँ
उस जगह से
जहाँ तुमने छोडा था कभी
तुम लौट आये हो
कौनसा रास्ता आया है
लौटकर मुझ तक
खैर ! तुम्हारा कोई दोष नहीं है
तुम्हारे लौट आने में
ये रास्ते ही ऐसे हैं
घूम फिर कर
फिर आ पहुँचते हैं वहीं
जहाँ से चले थे कभी
राह से भटके हुये
ये भटकते हुये रास्ते
तुम लौट ही आये हो
तो कुछ देर आराम करलो
निकल जाना सुबह होते होते
फिर किसी भटकते हुये रास्ते के साथ
रोज कई रास्ते निकलते…
Added by umesh katara on March 1, 2015 at 5:00pm — 23 Comments
Added by शिज्जु "शकूर" on March 1, 2015 at 4:52pm — 22 Comments
दिल में रहने वाले मुझसे नकाब क्यों ?
इतना मुझे बता दे मुझसे हिज़ाब क्यों?
साकीं यह सुना तू है मदिरा का सागर
लाखों को तूने तारा मुझको जवाब क्यों?
मेरे गुनाह लाखों होंगे ये मैंने है माना
गैरों से कुछ न पूछा मुझसे हिसाब क्यों?
तूने जिसको अपनाया उसको खुदा बनाया
उनका नसीब है अच्छा मेरा खराब क्यों?
छोटी सी ये हस्ती में है कुल कमाल तेरा
बेहद का है तू दरीया फिर मैं हुबाब क्यों?
© हरि…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on March 1, 2015 at 2:34pm — 30 Comments
आम हूँ बौरा रहा हूँ
पीर में मुस्का रहा हूँ
मैं नहीं दिखता बजट में
हर गज़ट पलटा रहा हूँ
फल रसीले बाँट कर बस
चोट को सहला रहा हूँ
गुठलियाँ किसने गिनी हैं
रस मधुर बरसा रहा हूँ
होम में जल कर, सभी की
कामना पहुँचा रहा हूँ
द्वार पर तोरण बना मैं
घर में खुशियाँ ला रहा हूँ
कौन पानी सींचता…
ContinueAdded by अरुण कुमार निगम on March 1, 2015 at 2:00pm — 14 Comments
बहर-
2122 1212 22
खुशनुमा ये सफ़र है क्या कहिये
साथ मेरे वो गर है क्या कहिये
आ गई जान पर है क्या कहिये
चाक मेरा जिगर है क्या कहिये
इश्क में जीत कुछ नहीं होती…
ContinueAdded by MAHIMA SHREE on March 1, 2015 at 11:30am — 29 Comments
बहिष्कार
“क्यों री आंनद की अम्मा ?अपनी देवरानी को शादी में नहीं बुलाईं क्या ?”निमन्त्रण पत्र पकड़ते हुए भोली की अम्मा यानि मायादेवी ने पूछा
“आपकी भी तो जेठानी लगती हैं |आपहि कौन उन्हें रामायण में बुलाई रहीं !” बिंदियादेवी ने मुँह बनाते हुए कहा
“हमार कौन सगी है,ऊपर से काम ही ऐसा करी हैं कि उन्हें बिरादरी से बहिरिया देना चाहिए |अपनी लड़की ही काबू में नहीं |पता नहीं कहाँ से मुँह काला कर आई |”
“हाँ दीदी ,सुना है चौका बाज़ार में बदरी बनिया के बेटे का काम था |जात-बिरादरी…
ContinueAdded by somesh kumar on March 1, 2015 at 11:14am — 10 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on March 1, 2015 at 11:00am — 21 Comments
सब कुछ न आज आदमी किस्मत पे छोड़ तू
दरिया की तेज धार को हिम्मत से मोड़ तू
इस जिन्दगी की राह में दुश्वारियाँ बहुत
रहबर का हाथ छोड़ न रिश्तों को तोड़ तू
मेहनत के दम पे आदमी क्या कुछ नहीं करे
अपने लहू का आखिरी कतरा निचोड़ तू
जो कुछ है तेरे पास वही काम आएगा
बारिश की आस में कभी मटकी न फोड़ तू
मन की खुशी मिलेगी, तू यह नेक काम कर
टूटे हुए दिलों को किसी तर्ह जोड़ तू
दो गज कफन ही अंत में सबका नसीब है
अब छोड़ भी 'दिनेश'…
Added by दिनेश कुमार on March 1, 2015 at 1:00am — 12 Comments
२११--२११/२११--२११/२११ २
मंचों को तज गाँवों में जा अब शायर
धन को मत भज गुर्बत को गा अब शायर
दूर गगन पर तूने सपने जा टाँगे
इस धरती पर ज़न्नत को ला अब शायर
जाम बुझायेगें क्या तिसना इस मन की
गम को पिघला छलका गंगा अब शायर
आहों से भी ज्यादा ठंडी हैं रातें
फुटपाथों पर नंगे तन आ अब शायर
चाँद सितारों से मत बहला दुनिया को
इस माटी का कण कण चमका अब शायर
अच्छाई को ढाल बुराई की मत…
ContinueAdded by khursheed khairadi on March 1, 2015 at 12:30am — 10 Comments
Added by Samar kabeer on February 28, 2015 at 10:03pm — 12 Comments
लोग(समीक्षार्थ गज़ल प्रयास )
मन के कितने छोटे लोग
रहते क्या-क्या ओटे लोग
गंद डालकर चिल्लाते हैं
जितने भी हैं खोटे लोग
मन की नंगाई ना छोड़ें
लड़ते पहन लंगोटे लोग
टोटे वालों को खोटा बोलें
जो हैं मन के खोटे लोग
नाक़ाबिल परवान चढ़ रहे
तब्दीले-सूरत में कोटे लोग
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by somesh kumar on February 28, 2015 at 9:35pm — 9 Comments
दिवस तीस औ पक्ष दो, छह रितु बारह मास।
होली उत्सव को सभी, बता रहे हैं खास।१।
आता समता को लिए, होली का त्यौहार।
सारे जग को बांटता, नेह भरा उपहार ।२।
खुशियाँ खूब उलीचता, फाल्गुन पूनम रात।
ख़ुशी साल भर ना खले, यही सोच मन…
ContinueAdded by Satyanarayan Singh on February 28, 2015 at 8:54pm — 23 Comments
(१)
"मुई मई जान लेने आ गई"। मनफूला ने पंखा झलते हुए कहा। सुबह के दस बज रहे थे और दस बजे से ही गर्म हवा बहनी शुरू हो गई थी। गर्मी ने इस बार पिछले सत्ताईस वर्षों का रिकार्ड तोड़ दिया था। उनकी बहू राधा आँवले के चूर्ण को छोटी छोटी शीशियों में भर रही थी। उसका ब्लाउज पसीने से पूरी तरह भीग चुका था। उनका बेटा श्रीराम बाहर कुएँ से पानी खींचकर नहाने जा रहा था। घर के आँगन में दीवार से सटकर खड़ी एक पुरानी साइकिल श्रीराम का इंतजार कर…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 28, 2015 at 6:30pm — 16 Comments
221 1222 221 1222
चिलमन को ज़रा ऊपर , नज़रों से उठा दूँ तो
पर्दों की हक़ीक़त क्या , दुनिया को बता दूँ तो
ख़्वाबों में ख़यालों में , जीने का मज़ा क्या है
कुछ रंग हक़ीकत के , आज उसपे चढ़ा दूँ तो
ये उखड़ी हुई सांसे , लगतीं हैं बुलातीं सी
उन सांसों में मै अपनीं , सांसें भी मिला दूँ तो
नज़रों ने कही थी जो , नज़रों से कभी मेरी
वो बात सरे महफिल , मैं आज बता दूँ तो
राहे वफा में…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on February 28, 2015 at 3:44pm — 27 Comments
मदिरा सवैय्या (7 भगण +गुरु ) कुल वर्ण 22
चेतन-जंगम के उर में अविराम सुधा सरसावत है
रंग भरे प्रति जीवन में हिय आकुल पीर बढ़ावत है
बालक वृद्ध युवा सबके यह अंतस हूक जगावत है
पावन है मन-भावन है रुत फागुन की मधु आवत है
सुमुखी सवैय्या (7 जगण +लघु+गुरु ) कुल वर्ण 23
मरोर उठी वपु में जब से यह लक्षण भेद बताय गयी
सयान सबै सनकारि उठे तब भावज भी समुझाय गयी
हुयी अब बावरि वात अनंग अनीक अली नियराय गयी
मथै…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 28, 2015 at 1:00pm — 27 Comments
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