Added by Manan Kumar singh on May 28, 2016 at 6:30pm — 12 Comments
Added by MOHD. RIZWAN (रिज़वान खैराबादी) on May 28, 2016 at 3:30pm — 6 Comments
Added by Rajendra kumar dubey on May 28, 2016 at 3:30pm — 10 Comments
Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on May 28, 2016 at 10:06am — 2 Comments
Added by Rahila on May 28, 2016 at 7:00am — 4 Comments
Added by Ashok Kumar Raktale on May 27, 2016 at 10:48pm — 7 Comments
Added by VIRENDER VEER MEHTA on May 27, 2016 at 10:46pm — 8 Comments
Added by रामबली गुप्ता on May 27, 2016 at 3:00pm — 5 Comments
कलाधर छंद............धन्यवाद ज्ञापन
(१)
धन्यवाद ज्ञाप आज आपका विशेष श्लेष वंदना करूं यथा प्रणाम राम-राम है.
दूर - दूर से यहां पधार के पवित्रता सुमित्रता दिया हमें अवाम राम-राम है.
शब्द भाव भक्ति ज्ञान दे रहे सुवृत्ति मान सत्य सूर्य-चंद्र मस्त श्याम राम-राम है.
आपके सुयोग से रचे गये सुपंथ मंत्र भव्य का प्रणाम ब्रह्म- धाम राम-राम है.
(२)
धन्य-धन्य भाग्य है कि धन्य है सुभारती कि धन्य स्थान काल दिव्य आरती…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 27, 2016 at 9:00am — 8 Comments
अपनी क़बा में .....
अहसासों की कभी
हदें नहीं होती
नफ़स और नफ़स के दरमियाँ
ये ज़िंदा रहते हैं
ये तुम्हारा वहम है कि
तुम मुझसे दूर हो
तुम जहां भी हो
मेरी साँसों की हद में हो
तुम कस्तूरी से
मेरी रूह में बसे हो
हर शब मैं तुम्हारी महक से लिपट
परिंदा बन जाती हूँ
तुम से मिलने की
इक अज़ीब सी ज़िद कर जाती हूँ
बंद पलकों में
तुम्हारे ख़्वाबों की दस्तक से
रूह जिस्मानी क़बा से
बाहर आ…
Added by Sushil Sarna on May 26, 2016 at 8:14pm — 2 Comments
ब्रेकिंग समाचार
भैंस ने दूधिये कों मारी लात
दूध देने से किया इनकार
भ्रस्टाचार अब सहन नही
भैंस संघ का पलट वार
भैंस बोली सुनो ओ दूधिये
भ्रष्टाचार से तेरा गहरा नाता
देती मैं तुझको दूध खालिस
तू जी भर उसमे पानी मिलाता
चकित दूधिया पलट कर बोला
ये तों मेरा जन्म सिद्ध अधिकार
जानो वंशागत तेरी मेरी गति
सुन दूध देना तेरा है संस्कार
खालिस दूध कोई हजम न कर पाए
पी भी गया तों शीघ्र डाक्टर बुलवाए
दूधिया बोला सुन तू काली…
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 26, 2016 at 12:00pm — 2 Comments
कभी यूं भी हुआ ,
मैं हारा ,
कोई गम नहीं।
हौसला कितनों का टूटा ,
किसी ने गिना नहीं।
--------
लोग दंग थे ,
जो जीता ,
उसे भी ,
कुछ मिला नहीं ।
--------
मैं हार कर भी खुश था ,
कुछ गया नहीं।
वो जीत कर भी ,
रोया , हाय , कुछ ,
कुछ भी , मिला नहीं।
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Dr. Vijai Shanker on May 26, 2016 at 11:00am — 6 Comments
1222-1222-1222-1222
ग़ज़ल
बदलना भी ज़रूरी है सदा अच्छा नही रहता
खुदा से प्यार करते हो तो फिर पर्दा नही रहता
हमारे सामने देखो बना अफसर से वो माली
दिनों का फेर है साहिब सदा पैसा नहीं रहता
बने गद्दारहै जो घूमें करें हैं देश से धोखा
उन्हें फिर मौत मिलती है निशां उनका नहीं रहता
जमीं तिड्की हलक प्यासे तडपते है परिंदे भी
लगाये पेड़ जो होते तो फिर सूखा नही रहता
ये नफरत की हैं दीवारें इन्हें तुम तोड़ दो वरना…
Added by munish tanha on May 26, 2016 at 9:30am — 3 Comments
Added by shree suneel on May 26, 2016 at 12:32am — 6 Comments
Added by Shyam Narain Verma on May 25, 2016 at 5:21pm — 4 Comments
कितनी बंदिशें ज़िन्दगी में,
कितनी रुकावटें,
दिल नाशाद
दिमाग में रंजिशें।
बेपरवाह होके जीना,
इक गुनाह
घुट घुट के जीना,
इक सज़ा
न यह सही है न यह ग़लत
तिसपर भी ज़िन्दगी के हैं उसूल
औ नियम ,...... अनगिनत।
चाहा तो बहुत था
सब रहे सलामत
पर कब, कैसे बिगड़ गया,
याद भी नहीं रह गया
अब ये आलम है कि..... क्या है ,
क्या नहीं ,
पड़ता कहीं कोई फ़र्क़ नहीं।
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha on May 25, 2016 at 5:01pm — 10 Comments
उदास चेहरा ...
तुम आये
और मैं तुम्हें
बंद पलकों से
निहारती रही
तुम्हारी हर आहट को
मैं अपने अंदर समेटती रही
वो चुप सा
तुम्हारा उदास चेहरा
मेरी मजबूरी को कचोटता रहा
तुम्हारे हाथों के गुलाब की
इक इक पंखुड़ी
अश्कों में भीगी
मुझपर गिरती रही
मैं तुम्हारे अश्कों की आतिश में
इक शमा सी पिघलती रही
तुम ज़मीं तक
मुझपर झुकते चले गए
बेबस पुकार मुझसे टकराकर
कहीं खला में खो गयी
तुम मेरी लहद में
आ…
Added by Sushil Sarna on May 25, 2016 at 1:49pm — 12 Comments
Added by डॉ पवन मिश्र on May 25, 2016 at 12:12am — 11 Comments
अरकान - 2 2 2 2 2 2 2 2 2 2 2
पैसों का व्यापार हमारी दिल्ली में|
गुंडों की सरकार हमारी दिल्ली में|
साँप–सपोले जब से संसद जा पहुंचे ,
ज़हरों का व्यापार हमारी दिल्ली में|
लूट रहे है अस्मत मिलकर सब देखो,
हैं भारत माँ लाचार हमारी दिल्ली में|
जाति-धरम के नाम पे मिलती नौकरियाँ
हम जैसे बेकार हमारी दिल्ली में |
लालकिला, जंतर-मंतर सब रोते हैं,
अब गुल ना गुलज़ार हमारी दिल्ली…
ContinueAdded by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on May 24, 2016 at 6:00pm — 7 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on May 24, 2016 at 2:30pm — 10 Comments
2025
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
Switch to the Mobile Optimized View
© 2025 Created by Admin.
Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |