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नाम बड़ा है उस घर का
जित असर नज़र के डर का
प्यास बुझाना प्यासे की
कब है काम समंदर का
बिना बात बजते बर्तन
दृश्य यही अब घर-घर का
बोल कहे और जय चाहे
क्या है काम सुख़नवर का?
महल दुमहले जिसके हैं
वही भिखारी दर-दर का।
'राणा' सच कहते रहना
रंग न छूूटे तेवर का।
मौलिक/अप्रकाशित
Posted on April 23, 2018 at 6:30am — 4 Comments
122 122 122 122
वफ़ा की क्यों उम्मीद मैनें लगाई
लिखी मेरी किस्मत में थी बेवफाई
जमीं पर मिटे वो जो चाहे जमीं को
जमीं में ही माँ जिसको देती दिखाई
दिखाई नहीं वार देता जुबाँ का
सलीके से उसने अदावत निभाई
अटकता नहीं है कोई काम उसका
रही मन में जिसके सभी की भलाई
जो हारे वही जीत जाता हो जिसमें
बता कौन-सी ऐसी होती लड़ाई
मौलिक अप्रकाशित
Posted on March 22, 2018 at 6:52pm — 6 Comments
यह वर्ष नया मंगलमय हो
कोंपल फूटी है तरुवर पर
नव पल्लव का निर्माण हुआ
टेसू की लाली उभरी है
पुलकित हर तन, हर प्राण हुआ
हर मन से बाहर हर भय हो
यह वर्ष नया मंगलमय हो।
गेंहूँ बाली पूरी होकर
अब लहर लहर लहराती है
सरसों पर पीला रंग चढ़ा
भवरों को यह ललचाती है
भँवरों के गीतों-सी लय हो
यह वर्ष नया मंगलमय हो।
जाड़े को विदा किया हमने
गर्मी को दिया बुलावा है
हर चीज नई-सी लगती है
जब साल नया यह आया…
Posted on March 18, 2018 at 8:50am — 10 Comments
हल्की फुल्की गीतिका(गजल)(16-16)
सर्दी में तुम जान पकौड़े
बारिश की हो शान पकौड़े
पढ़-लिखकर अब क्या करना है?
जब देते सम्मान पकौड़े।
रोटी गर तुम पाना चाहो
तलो कढ़ाई तान पकौड़े।
कुछ इज्जत हमको भी बख्शो
कर दो ये एहसान पकौड़े।
तेज मसाला प्याज हो महँगा
खा ले क्या इंसान पकौड़े।
'राणा' मय के साथी अच्छे
बस जुमला ना मान पकौड़े।
मौलिक एवं अप्रकाशित
Posted on February 25, 2018 at 12:30pm — 3 Comments
नूतन वर्ष 2016 आपको सपरिवार मंगलमय हो। मैं प्रभु से आपकी हर मनोकामना पूर्ण करने की कामना करता हूँ।
सुशील सरना
आदरणीय
सतविंदर कुमार जी,
सादर अभिवादन,
यह बताते हुए मुझे बहुत ख़ुशी हो रही है कि ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार में विगत माह आपकी सक्रियता को देखते हुए OBO प्रबंधन ने आपको "महीने का सक्रिय सदस्य" (Active Member of the Month) घोषित किया है, बधाई स्वीकार करें | प्रशस्ति पत्र उपलब्ध कराने हेतु कृपया अपना पता एडमिन ओ बी ओ को उनके इ मेल admin@openbooksonline.com पर उपलब्ध करा दें | ध्यान रहे मेल उसी आई डी से भेजे जिससे ओ बी ओ सदस्यता प्राप्त की गई है |
हम सभी उम्मीद करते है कि आपका सहयोग इसी तरह से पूरे OBO परिवार को सदैव मिलता रहेगा |
सादर ।
आपका
गणेश जी "बागी"
संस्थापक सह मुख्य प्रबंधक
ओपन बुक्स ऑनलाइन
भाई सतविंदरजी,
आपका हार्दिक धन्यवाद कि आपको मेरी विवेचना तोषकारी लगी है.
आप किसी आयोजन या इवेण्ट पर अपनी भावनाएँ उसी थ्रेड में पोस्ट किया करें. यदि आपने अपना धन्यवाद ज्ञापन संकलित लघुकथाओं के पोस्ट में ही किया होता या अब भी कर दें तो यह अधिक उचित होगा.
पुनः धन्यवाद, भाईजी
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