For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल दिनेश कुमार -- अंधेरा चार सू फैला दमे-सहर कैसा

1212-- 1122-- 1212-- 22

अंधेरा चार सू फैला दमे-सहर कैसा

परिंदे नीड़ में सहमे हैं, जाने डर कैसा

ख़ुद अपने घर में ही हव्वा की जात सहमी है 

उभर के आया है आदम में जानवर कैसा

अधूरे ख़्वाब की सिसकी या फ़िक्र फ़रदा की

हमारे ज़हन में ये शोर रात-भर कैसा

सरों से शर्मो हया का सरक गया आंचल 

ये बेटियों पे हुआ मग़रिबी असर कैसा

वो ख़ुद-परस्त था, पीरी में आ के समझा है 

जफ़ा के पेड़ पे रिश्तों का अब समर कैसा

दिनेश कुमार 

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 255

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by दिनेश कुमार on March 9, 2024 at 8:35am

बहुत बहुत शुक्रिया आपका आदरणीय समर साहब। ठीक करता हूं। 

देर से रिप्लाई के लिए माफ़ कीजिएगा।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 1, 2024 at 9:05am

आ. भाई दिनेश जी, अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।

Comment by Samar kabeer on December 19, 2023 at 3:22pm

जनाब दिनेश कुमार जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें I 

'परिंदे नीड़ में सहमे हैं, जाने डर कैसा'

इस मिसरे को उचित लगे तो यूँ कहें :-

'परिंदे सहमे हुए हैं है उनको डर  कैसा'

'ख़ुद अपने घर में ही हव्वा की जात सहमी है'

इस मिसरे में 'ज़ात' शब्द उचित नहीं लगता. इसकी जगह "बेटी" शब्द ठीक रहेगा ग़ौर करें I 

कुछ टंकण त्रुटियाँ देखें :-

अँधेरा 

दम-ए-

ज़ह्न 

शर्म-ओ-

आँचल  

Comment by Dr. Vijai Shanker on December 15, 2023 at 1:18am

बहुत सुन्दर प्रस्तुति , आदरणीय दिनेश कुमार जी , बधाई। सादर।

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on December 5, 2023 at 9:17pm

सुनन्दरम।

Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on December 4, 2023 at 12:21pm

वाह दिनेश जी वाह बहुत ही सुन्दर रचना 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
5 hours ago
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
13 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
13 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service