For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - पर हृदय में आज भी जीती चुभन है - गिरिराज भन्डारी

2122    2122    2122

जब हवायें चल रहीं हैं क्यों घुटन है

सूर्य है उजला तो क्यों काला गगन है

 

कल बहुत उछला था अपनी जीत पर जो

आज क्यों हारा हुआ बोझिल सा मन है

 

चिन्ह घावों का नहीं है पीठ पर अब

पर हृदय में आज भी जीती चुभन है

 

मन ललक कर आँखों को उकसा रहा था

कह रहा संसार पर दोषी नयन है

 

सत्य तर्कों में समाया है भला कब ?

तर्क झूठों को बचाने का जतन है

 

क्या हृदय-मन, सोच जीती है कहीं पर

या कि जीता आ रहा जो , सिर्फ तन है

 

गालियाँ पारस सी होने लग गयीं क्या ?

जिसपे बरसी आज वो चमका रतन है

 

सिद्धि को सर पर उठाने की ललक में 

आज गाली खा रहा हर आचमन है

************************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

Views: 668

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 6, 2016 at 9:08am

आदरनीय अनुज भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया आपका ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 6, 2016 at 9:07am

आदरणीया राजेश जी , आपकी उपस्थिति और सराहना से ग़ज़ल सार्थक हुई , आपका हार्दिक आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 6, 2016 at 9:06am

आदरणीय बृजेश भाई , आपका तहेदिल से शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 6, 2016 at 9:05am

आदरणीय सुशील सरना भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका हृदय से आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 6, 2016 at 9:05am

आदरणीय राजेन्द्र भाई, सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 6, 2016 at 9:04am

आदरनीय समर भाई , हौसला अफज़ाई का तहेदिल से शुक्रिया आपका । आपकी सलाह सही है ' वो ' ज़ियादा सही है , मै अपनी कापी मे सुधार लिया हूँ , आपका आभार ।

Comment by Anuj on June 4, 2016 at 6:36pm

क्या हृदय-मन, सोच जीती है कहीं पर

या कि जीता आ रहा जो , सिर्फ तन है

गालियाँ पारस सी होने लग गयीं क्या ?

जिसपे बरसी आज वो चमका रतन है

आदरणीय गिरिराज जी आपके शेरों में एक खास तरह की बौद्धिकता और व्यंगात्मकता भी है जो अलग से आकृष्ट करती है. बधाईयाँ .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 4, 2016 at 5:14pm

चिन्ह घावों का नहीं है पीठ पर अब

पर हृदय में आज भी जीती चुभन है

 

मन ललक कर आँखों को उकसा रहा था

कह रहा संसार पर दोषी नयन है

 वाह वाह आ० गिरिराज जी बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुई हार्दिक बधाई |

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 4, 2016 at 9:30am

वाह आदरणीय बहुत ही शानदार ह्रदयस्पर्शी ग़ज़ल कही है 

Comment by Sushil Sarna on June 3, 2016 at 1:28pm

चिन्ह घावों का नहीं है पीठ पर अब
पर हृदय में आज भी जीती चुभन है

वाह आदरणीय गिरिराज जी वाह दिल को छूती इस ग़ज़ल के हर शेर पर दाद कबूल फरमाएं सर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Samar kabeer replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"प्रिय मंच को आदाब, Euphonic अमित जी पिछले तीन साल से मुझसे जुड़े हुए हैं और ग़ज़ल सीख रहे हैं इस बीच…"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, किसी को किसी के प्रति कोई दुराग्रह नहीं है. दुराग्रह छोड़िए, दुराव तक नहीं…"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"अपने आपको विकट परिस्थितियों में ढाल कर आत्म मंथन के लिए सुप्रेरित करती इस गजल के लिए जितनी बार दाद…"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय सौरभ सर, अवश्य इस बार चित्र से काव्य तक छंदोत्सव के लिए कुछ कहने की कोशिश करूँगा।"
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"शिज्जू भाई, आप चित्र से काव्य तक छंदोत्सव के आयोजन में शिरकत कीजिए. इस माह का छंद दोहा ही होने वाला…"
7 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"धन्यवाद आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब "
8 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"धन्यवाद आ. सौरभ सर,आप हमेशा वहीँ ऊँगली रखते हैं जहाँ मैं आपसे अपेक्षा करता हूँ.ग़ज़ल तक आने, पढने और…"
8 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. लक्ष्मण धामी जी,अच्छी ग़ज़ल हुई है ..दो तीन सुझाव हैं,.वह सियासत भी कभी निश्छल रही है.लाख…"
8 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब,अच्छी ग़ज़ल हुई है ..बधाई स्वीकार करें ..सही को मैं तो सही लेना और पढना…"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"मोहतरम अमीरुद्दीन अमीर बागपतवी साहिब, अच्छी ग़ज़ल हुई है, सादर बधाई"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय सौरभ सर, हार्दिक आभार, मेरा लहजा ग़जलों वाला है, इसके अतिरिक्त मैं दौहा ही ठीक-ठाक पढ़ लिख…"
8 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
10 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service